Milky Mist

Friday, 29 March 2024

कभी ख़ुद सड़कों पर सोए, आज हैं लॉज और तीन आउटलेट के मालिक

29-Mar-2024 By पी.सी. विनोजकुमार
कोयंबटूर

Posted 27 Mar 2018

साल 1979 में रामनाथपुर जिले के एक सुदूर गांव से तीन लड़के कोयंबटूर पहुंचे.

उनकी आंखों में शहर में नई ज़िंदगी शुरू करने का सपना था.

उनमें से एक 16 वर्षीय के.आर. राजा की जेब में मात्र 25 रुपए थे.

शरीर पर शर्ट व वेश्टी, हाथ में पीले रंग का बैग जिसमें एक अतिरिक्‍त शर्ट और लुंगी थी, राजा अपने दो साथियों के साथ बस से उतरकर गांव के ही रहने वाले एक पुलिस कांस्टेबल की तलाश करने लगे.

राजा बताते हैं, हम पैदल चलते-चलते उनके घर पहुंचे. वो दयालु इंसान थे और उन्होंने हम सभी को नाश्ता कराया.

के.आर. राजा जेब में महज 25 रुपए लेकर कोयंबटूर आए थे, लेकिन अब वो शहर में तीन बिरयानी आउटलेट और एक लॉज के मालिक हैं. (सभी फ़ोटो – एच.के. राजशेकर)


अब 54 बरस के हो चुके राजा याद करते हैं, देवाकोट्टाई से कोयंबटूर आने में 11 रुपए बस किराए में ख़र्च हो चुके थे. मेरे पास थोड़े से पैसे बचे थे.

राजा को बहुत मुश्किलों से गुज़रना पड़ा. उन्‍होंने 45 रुपए प्रतिमाह की तनख्‍़वाह पर एक होटल में सप्लायर के तौर पर पहली नौकरी की. फिर कुछ छोटे बिज़नेस में हाथ आज़माए. आखिरकार 1987 में अपना छोटा सा भोजनालय खोला, जिसने उन्‍हें कोयंबटूर में बिज़नेसमैन के रूप में स्‍थापित करने की नींव रखी.

आज वो शहर में तीन बिरयानी आउटलेट और 30 से अधिक कमरों वाली एक लॉज के मालिक हैं.

वो अनुमान लगाते हैं कि गांधीपुरम् में उनकी तीन मंज़िला लॉज की वर्तमान क़ीमत 10 करोड़ रुपए के आसपास है.

शून्‍य से शिखर तक पहुंचने की कहानी बताते हुए राजा खुलासा करते हैं, शुरुआती दिन मुश्किल थे, तब उन्हें सड़क पर सोना पड़ता था.

राजा का जन्म रामनाथपुरम् जिले के गोविंदमंगलम् गांव में एक ग़रीब घर में हुआ था. वो अपने माता-पिता की इकलौती संतान हैं. उनके माता-पिता की कोई औपचारिक शिक्षा नहीं हुई थी और वो खेतों में दिहाड़ी मज़दूरी करते थे.

राजा जब सबसे पहले कोयंबटूर आए तो उन्‍होंने एक रेस्‍तरां के लिए सप्‍लायर का काम किया.


राजा बताते हैं, मेरी पढ़ाई सरकारी स्कूल में हुई. कक्षा चार के बाद मैंने एक साल के लिए स्कूल छोड़ दिया, क्‍योंकि गांव में भयंकर सूखे के कारण परिवार को काम की तलाश में दूर जाना पड़ा था.

मुझे मनमदुराई शहर भेज दिया गया. वहां मैंने एक परिवार के साथ काम किया जो मुरुक्कू (स्‍थानीय नाश्‍ता) का बिज़नेस करता था. पति-पत्नी मुरुक्कू बनाते थे और स्थानीय दुकानों में बेचते थे. मेरा काम था घर की सफाई करना, बर्तन धोना और उनके दो बच्चों का ध्यान रखना.

उस वक्त राजा की उम्र नौ के आसपास थी. उस परिवार के साथ बिताए एक साल के दौरान उनका रुझान बिज़नेस की ओर बढ़ा. इसके बाद वे फिर अपने परिवार के पास चले गए.

दस साल की उम्र में उन्होंने बिज़नेस की ओर पहला नन्‍हा क़दम बढ़ाया. वो चार किलोमीटर दूर एक स्थानीय दुकान से मिठाई ख़रीदकर अपने घर से मुनाफ़े पर बेचने लगे.

वो बताते हैं, पहली बार मैंने 70 पैसे में मिठाई ख़रीदी और उस पर 45 पैसे मुनाफ़ा कमाया. इससे मेरा हौसला बढ़ा. बाद में जब मैंने अनन्‍थूर के सरकारी स्कूल में कक्षा छह की पढ़ाई शुरू की, तो मैं स्कूल से लौटते वक्त रोज़ कुछ ख़रीद लेता था और शाम को घर से बेच देता था.

राजा के तीन आउटलेट और एक लॉज में कुल 35 कर्मचारी काम करते हैं.


सालों बाद कोयंबटूर आकर उन्‍होंने पहली नौकरी एक रेस्तरां में की, जहां उनका काम पानी सर्व करना था.

जब वहीं किसी कर्मचारी ने उनसे पूछा कि क्या वो वेटर का काम कर सकते हैं तो उन्होंने बोल दिया कि हां वो कर सकते हैं. जबकि इसका उन्‍हें कोई अनुभव नहीं था.

दरअसल, एक अनुभवी वेटर का काम होता है ग्राहकों को मेन्यू बताना, खाने का ऑर्डर लेना और खाना सर्व करना.

राजा ने यह काम जल्द ही सीख लिया. काम के दौरान ही उन्होंने एक संस्थान में सिलाई का कोर्स ज्वाइन कर लिया, जहां उन्हें मासिक 175 रुपए स्‍टाईपेंड मिलता था.

दो साल बाद जब वो गांव लौटे तो उन्होंने सिलाई के साथ छोटा-मोटा काम करना शुरू कर दिया.

राजा बताते हैं, मैंने महिलाओं के लिए ट्राउजर्स और ब्लाउज़ सिले. लकड़ी से चारकोल बनाया और उसे बाज़ार में बेचा. लेकिन मैं ख़ुश नहीं था और 1984 में कोयंबटूर वापस आ गया.

श्री राजा बिरयानी होटल और राजा लॉज दोनों गांधीपुरम बस स्‍टैंड के पास एक ही इमारत में हैं.


इस बार उन्हें एक होटल में नौकरी मिल गई. उनका काम दोसा और इडली की लेई के अलावा सभी तरह के मसाले तैयार करना था.

शाम को वो किराए की साइकिल पर कपड़े बेचने लगे. उन्होंने इकट्ठा किए 1,000 रुपए से यह बिज़नेस शुरू किया.

साल 1986 में उन्होंने किराए की जगह लेकर एक छोटी सी दुकान खोली. अगले साल उन्होंने पराठा और खाने की दुकान शुरू कर दी.

राजा बताते हैं, हम सड़क पर पराठे बनाते थे. 3.50 रुपए में पेटभर भोजन और कुछ स्वादिष्ट पराठे खिलाते थे. वो एक छोटा सा भोजनालय था, जहां दो कुर्सियां और एक टेबल थी.

बिज़नेस बढ़ा तो उन्होंने दुकान ख़रीद ली और उसी जगह बड़ा रेस्तरां बनाया. बाद में उन्होंने दूसरा रेस्तरां खोलने के लिए पास में ही एक और जगह ख़रीदी.

साल 2007 में उन्होंने गांधीपुरम में एक लॉज ख़रीद ली. अपनी बचत से पैसा लगाने के साथ उन्‍होंने 70 लाख रुपए का बैंक ऋण भी लिया. उनके बिज़नेस में अब 35 कर्मचारी काम करते हैं और वो उनका पूरा ख्‍़याल रखते हैं. दिवाली के दिन वो उन्हें ख़ुद खाना परोसते हैं औऱ फिर परिवार के साथ त्‍योहार मनाते हैं.

राजा बताते हैं, जब मैं काम करता था तब दिवाली के दिन मुझे कोई ख़ास खाना नहीं मिलता था. मैं नहीं चाहता कि मेरे कर्मचारियों को भी ऐसा व्यवहार मिले.

राजा की जिंदगी साबित करती है कि चाहे परिस्थितियां कैसी भी हों, कठिन परिश्रम से आप सफलता पा सकते हैं.


 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • seven young friends are self-made entrepreneurs

    युवाओं ने ठाना, बचपन बेहतर बनाना

    हमेशा से एडवेंचर के शौकीन रहे दिल्ली् के सात दोस्‍तों ने ऐसा उद्यम शुरू किया, जो स्कूली बच्‍चों को काबिल इंसान बनाने में अहम भूमिका निभा रहा है. इन्होंने चीन से 3डी प्रिंटर आयात किया और उसे अपने हिसाब से ढाला. अब देशभर के 150 स्कूलों में बच्‍चों को 3डेक्‍स्‍टर के जरिये 3डी प्रिंटिंग सिखा रहे हैं.
  • Rhea Singhal's story

    प्लास्टिक के खिलाफ रिया की जंग

    भारत में प्‍लास्टिक के पैकेट में लोगों को खाना खाते देख रिया सिंघल ने एग्रीकल्चर वेस्ट से बायोडिग्रेडेबल, डिस्पोजेबल पैकेजिंग बॉक्स और प्लेट बनाने का बिजनेस शुरू किया. आज इसका टर्नओवर 25 करोड़ है. रिया प्‍लास्टिक के उपयोग को हतोत्साहित कर इको-फ्रेंडली जीने का संदेश देना चाहती हैं.
  • how a boy from a village became a construction tycoon

    कॉन्ट्रैक्टर बना करोड़पति

    अंकुश असाबे का जन्म किसान परिवार में हुआ. किसी तरह उन्हें मुंबई में एक कॉन्ट्रैक्टर के साथ नौकरी मिली, लेकिन उनके सपने बड़े थे और उनमें जोखिम लेने की हिम्मत थी. उन्होंने पुणे में काम शुरू किया और आज वो 250 करोड़ रुपए टर्नओवर वाली कंपनी के मालिक हैं. पुणे से अन्वी मेहता की रिपोर्ट.
  • Selling used cars he became rich

    यूज़्ड कारों के जादूगर

    जिस उम्र में आप और हम करियर बनाने के बारे में सोच रहे होते हैं, जतिन आहूजा ने पुरानी कार को नया बनाया और बेचकर लाखों रुपए कमाए. 32 साल की उम्र में जतिन 250 करोड़ रुपए की कंपनी के मालिक हैं. नई दिल्ली से सोफ़िया दानिश खान की रिपोर्ट.
  • Vaibhav Agrawal's Story

    इन्हाेंने किराना दुकानों की कायापलट दी

    उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के आईटी ग्रैजुएट वैभव अग्रवाल को अपने पिता की किराना दुकान को बड़े स्टोर की तर्ज पर बदलने से बिजनेस आइडिया मिला. वे अब तक 12 शहरों की 50 दुकानों को आधुनिक बना चुके हैं. महज ढाई लाख रुपए के निवेश से शुरू हुई कंपनी ने दो साल में ही एक करोड़ रुपए का टर्नओवर छू लिया है. बता रही हैं सोफिया दानिश खान.