Milky Mist

Wednesday, 2 April 2025

दो भाइयों ने फेसबुक पेज पर 3.5 लाख रुपए के निवेश से प्री-ओन्ड फर्नीचर बेचना शुरू किया, पांच साल में 14 करोड़ टर्नओवर वाला बिजनेस जमाया

02-Apr-2025 By उषा प्रसाद
नई दिल्ली

Posted 17 Jun 2021

दो भाई गौरव कक्कड़ और अंकुर कक्कड़. दोनों ने ऊंची तनख्वाह वाली कॉरपोरेट नौकरी छोड़कर अपनी फर्म शुरू की. नाम रखा एम्बेसी गुड्स कंपनी. यह उन प्री-ओन्ड यानी एक बार खरीदे गए फर्नीचर को बेचती थी, जो दिल्ली में विदेशी राजदूत उपयोग कर चुके होते थे.

दोनों ने फर्नीचर को प्रदर्शित करने के लिए फेसबुक पेज से शुरुआत की. अपने घर पर गाड़ी रखने की जगह का इस्तेमाल उन्होंने ओपन वेयरहाउस के रूप में किया. दोनों का सपना साकार हुआ. वे इस बिजनेस को 14 करोड़ रुपए के टर्नओवर वाली कंपनी में तब्दील कर चुके हैं.
गाैरव कक्कड़ (आगे) और अंकुर कक्कड़ अपनी कॉरपोरेट नौकरी छोड़कर प्री-ओन्ड फर्नीचर बेचने लगे. (फोटो : विशेष व्यवस्था से)

2015 में महज 3.5 लाख रुपए के निवेश से शुरू की गई कंपनी के बारे में गौरव बताते हैं, “हमने 2019 में काउचलेन ब्रांड से विशेष रूप से बनाए गए लग्जरी फर्नीचर बेचना शुरू किया.”

यह पोलैंड के राजदूत के फर्नीचर और अन्य सामान खरीदने के एवज में चुकाई गई एडवांस राशि (या सिक्यूरिटी डिपॉजिट) थी.

गौरव कहते हैं, “राजदूत को अचानक देश छोड़ना पड़ा था. उनकी पत्नी अपने बच्चे और एक पालतू के साथ यहीं रुकी थी. उनका दक्षिण दिल्ली के छतरपुर में काफी बड़ा फार्म हाउस था. वे घर में मौजूद हर चीज बेचना चाहती थीं, जिसमें एक बड़ा पियानो भी शामिल था.”

दाेनों भाइयों ने पूरा लॉट डेढ़ माह में बेच दिया. उन्होंने सिर्फ फर्नीचर ही सात लाख रुपए में बेचा और पूरे सौदे से उन्हें 20% मुनाफा हुआ.

यह सबके लिए बेहतर सौदा रहा. राजदूत की पत्नी इस सौदे से खुश थीं और उन्हें अपने पियानो के लिए एक असल खरीदार भी मिल गया था.

अंकुर कहते हैं, “उस व्यक्ति का दक्षिण दिल्ली में संगीत स्कूल था. उन्हें यह पियानो वास्तविक कीमत के बहुत छोटे से हिस्से में मिल गया था. आज वह उनकी बहुमूल्य संपत्ति है.”
गौरव बड़ी कंपनियों में सीनियर पोजिशन पर रहे हैं.

कक्कड़ बंधुओं के फेसबुक पेज पर अधिक पूछताछ आना शुरू हुई. जब उन्होंने दिल्ली के राजनयिक समुदाय में पैठ बढ़ाना शुरू किया तो कारोबार भी रफ्तार पकड़ने लगा.

उन्होंने फर्नीचर रखने के लिए अपने घर के नजदीक गुरुग्राम में डीएलएफ फेज तीन में करीब 15,000 रुपए महीने के किराए पर 300 वर्ग फुट की एक छोटी सी जगह किराए पर ली.

डेढ़ साल बाद वे उसी इलाके में 40,000 रुपए महीना किराए पर 1,800 वर्ग फुट के बेसमेंट में चले गए.

2019 की शुरुआत में, उनकी यह प्रोपराइटरशिप फर्म काउचलेन होम डेकोर एलएलपी बन गई. इस कंपनी में दोनों भाइयों की समान हिस्सेदारी थी.

एम्बेसी गुड्स कंपनी काउचलेन होम डेकोर के तहत एक ब्रांड बन गई. गुरुग्राम में 13,000 वर्ग फुट में इसका गोडाउन और शोरूम एक साथ है.

काउचलेन डिजाइन स्टूडियो महरौली-गुरुग्राम रोड पर 3,000 वर्ग फुट के किराए के स्थान पर है.

गौरव कहते हैं, “हमने एम्बेसी गुड्स कंपनी और काउचलेन के जरिए अब तक 10,000 से अधिक घरों को सजाया है. इसमें हर साल दोगुनी बढ़ोतरी हो रही है. यह बिजनेस सिर्फ और सिर्फ सोशल मीडिया की शक्ति पर खड़ा किया गया है. फेसबुक पर करीब 40,000 लोग हमें फॉलो करते हैं.”

42 वर्षीय गौरव और 35 वर्षीय अंकुर का जन्म और पालन-पोषण दिल्ली में हुआ. उनके पिता का दक्षिण दिल्ली के नेहरू प्लेस में डीसीएम रिटेल आउटलेट था.
दिल्ली में राजनयिक समुदाय के अंकुर के संपर्कों ने बहुत कम कीमतों पर गुणवत्तापूर्ण फर्नीचर हासिल करने में मदद की.

दोनों ने दिल्ली से एमबीए की पढ़ाई की है. गौरव ने फोर स्कूल ऑफ मैनेजमेंट और अंकुर ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ प्लानिंग एंड मैनेजमेंट (आईआईपीएम) से डिग्री ली.

अपने 20 साल के कॉरपोरेट करियर में गौरव ने कई शीर्ष पदों पर कार्य किया है. वे माइक्रोमैक्स में ब्रांड मार्केटिंग के प्रमुख और मिंत्रा जबॉन्ग में वाइस प्रेसिडेंट (मार्केटिंग) रहे हैं. यह नौकरी उन्होंने काउचलेन लॉन्च करने के पहले छोड़ दी थी.

अंकुर ने इंटरकाॅन्टिनेंटल, द ललित और पार्क होटल जैसे शीर्ष होटलों के लिए सेल्स और मार्केटिंग की है. हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री में अपने विभिन्न जिम्मेदारियों के दौरान वे बहुत से प्रवासियों और राजनयिकों को जानने लगे थे.

2014 के आखिर में जब कक्कड़ भाई अंकुर के नए घर के लिए फर्नीचर तलाश रहे थे, तो उन्हें अपने हिसाब का फर्नीचर नहीं मिला. और जो उन्हें पसंद आए, वे उनकी पहुंच में नहीं थे.

लगभग उसी समय, दिल्ली में एक वरिष्ठ राजनयिक अपने देश लौट रहे थे. वे अपना फर्नीचर और अन्य सामान बेचना चाहते थे, जिन्हें वे अपने साथ नहीं ले जा सकते थे.

जब अंकुर ने इस बारे में सुना, तो उन्होंने सामान पर एक नजर डालने का फैसला किया. खूबसूरती से तराशे गए फर्नीचर को देखते उन्हें उससे प्यार हो गया. जब राजनयिक ने उनकी कीमत बताई, तो उन्होंने दोबारा सोचा ही नहीं. वह एक शानदार सौदा रहा.

जिन मित्रों और रिश्तेदारों ने वह फर्नीचर देखा, वे उसके दीवाने हो गए. पूछताछ करने लगे कि क्या वे भी ऐसे फर्नीचर के लिए प्रवासियों से संपर्क कर सकते हैं.

इसके बाद पोलैंड के राजनयिक की पत्नी के साथ फर्नीचर और सामान का सौदा हुआ.

जल्द ही नौकरी छोड़कर एम्बेसी गुड्स कंपनी शुरू करने वाले अंकुर कहते हैं, “हमने महसूस किया कि हमारे जैसे लोगों के लिए यहां बहुत बड़ा बाजार है, जो अपनी हैसियत से अधिक पैसे नहीं दे सकते, लेकिन गुणवत्ता वाले सामान चाहते हैं. वह चीज किसी इस्तेमाल करने वाले से ली जा रही हो तो भी उन्हें उससे गुरेज नहीं था.”

अंकुर ने दूतावासों का दौरा करना, प्रवासियों से मिलना और उन्हें अपने नए उद्यम के बारे में बताना शुरू कर दिया. सफल कॉर्पोरेट करियर वाले गौरव ने यह बिजनेस को बढ़ाने में उनका पूरा समर्थन किया.
दोनों भाइयों की योजना नोएडा में जल्द ही एक और वेयरहाउस बनाने की है.

लोगों की प्रतिक्रिया अच्छी थी. उन्हें अधिक आइटम मिलने लगे और खरीदारों की सूची भी बढ़ने लगी.

ग्राहकों को अलग-अलग प्रकार के सामान उपलब्ध कराने के लिए गौरव और अंकुर ने ऑनलाइन फर्नीचर कंपनियों, अर्बन लैडर और पेपरफ्राई के साथ भी डील की. वे उनसे अतिरिक्त या बचा हुआ फर्नीचर लेते थे.

दोनों इन कंपनियों से ऐसे अतिरिक्त फर्नीचर लेते थे, जो आकार के मुद्दों के कारण लौटाए गए थे, लाने-ले जाने के दौरान जिन्हें छोटा-मोटा नुकसान हुआ था या जो मॉडल/डिजाइन ज्यादा चलते नहीं थे.

उन्होंने अर्बन लैडर के पैक उत्पाद एमआरपी पर 40% की छूट के साथ अपने वेयरहाउस पर उपलब्ध होने का विज्ञापन दिया.

गौरव कहते हैं, “चूंकि हम थोक मात्रा में सामान रहे थे, इसलिए हमें उत्पाद कम कीमत पर मिले और हम ग्राहकों को भारी छूट देने पाए. इसने एनसीआर में खरीदारों के बीच बहुत रुचि पैदा की.”

इस बीच, उन्होंने 2018 में अपने मौजूदा वेयरहाउस के ऊपर एक और 2,000 वर्ग फुट जगह जोड़ ली. इसे डिस्प्ले एरिया की तरह बनाया गया.

जल्द ही, दोनों भाइयों को फर्नीचर निर्यात कंपनियों से भी स्टॉक मिलने लगा, जो वे अंतरराष्ट्रीय ब्रांडों के लिए बनाती थीं.

निर्यातक दुनिया भर के मेलों में प्रदर्शित करने के लिए अपने उत्पादों के नमूने बनाते थे. 100 नमूनों में से लगभग 20 को ही शॉर्टलिस्ट किया जाता था. शेष उत्पाद निर्यातकों के किसी काम के नहीं होते थे.

गौरव कहते हैं, “ये सभी उत्पाद अंतरराष्ट्रीय संवेदनशीलता और पसंद को देखकर बनाए गए थे। यहां तक ​​कि निर्यात के लिए इस्तेमाल की जाने वाली लकड़ी भी बहुत उच्च गुणवत्ता की थी.”

“हमने अपने वेयरहाउस में इन उत्पादों को भी रखना शुरू कर दिया. देखते ही देखते अंतरराष्ट्रीय फर्नीचर को पसंद करने वाले लोगों का यह नया वर्ग उभरा, जिसे अब तक इस तरह का फर्नीचर भारत में कहीं नहीं मिल पाता था.”

एम्बेसी गुड्स कंपनी आज अर्बन लैडर से लिए गए फर्नीचर और राजस्थान, उत्तर प्रदेश और गुजरात के कुछ निर्यातकों के साथ-साथ प्रवासियों के छोड़े हुए उत्पादों की खरीदी-बिक्री करती है.

गौरव की पत्नी योगिता की अपनी एग्जीबिशन कंपनी काइट एग्जीबिशंस (KYTE Exhibitions) है. उनकी 12 साल की एक बेटी और चार साल का एक बेटा है. अंकुर की पत्नी स्वाति एचआर कंसल्टेंट हैं. दोनों की छह साल की एक बेटी है.

दोनों महिलाएं एम्बेसी गुड्स और काउचलेन के उत्पादों की ऑर्गेनिक मार्केटिंग में अपने पति को पूरा सहयोग करती हैं.
ऑनलाइन फर्नीचर कंपनियों जैसे अर्बन लैडर और फर्नीचर निर्यात कंपनियों के अतिरिक्त फर्नीचर एम्बेसी गुड्स कंपनी पर मिल जाते हैं.

कक्कड़ बंधु अगले पांच वर्षों में कारोबार को अगले स्तर तक ले जाने के लिए अल्पकालिक लक्ष्यों पर गंभीरता से काम कर रहे हैं.

गौरव कहते हैं, “हम 2021-22 के अंत तक नोएडा में 12,000 वर्ग फुट का एक और वेयरहाउस जोड़ने की योजना बना रहे हैं. संभवत: उसके बाद एक और मेट्रो शहर में प्रवेश करेंगे.”

इस बीच, काउचलेन के पास जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले भारतीयों से भी अपने घरों को साज-सज्जा में रुचि दिखाई है.

काउचलेन अगले कुछ महीनों में वेबसाइट लॉन्च करने की तैयारी में है. गौरव और अंकुर को उम्मीद है कि उनके बिजनेस का भारत की सीमाओं से परे भी बड़े पैमाने पर विस्तार होगा.

 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • former indian basketball player, now a crorepati businessman

    खिलाड़ी से बने बस कंपनी के मालिक

    साल 1985 में प्रसन्ना पर्पल कंपनी की सालाना आमदनी तीन लाख रुपए हुआ करती थी. अगले 10 सालों में यह 10 करोड़ रुपए पहुंच गई. आज यह आंकड़ा 300 करोड़ रुपए है. प्रसन्ना पटवर्धन के नेतृत्व में कैसे एक टैक्सी सर्विस में इतना ज़बर्दस्त परिवर्तन आया, पढ़िए मुंबई से देवेन लाड की रिपोर्ट
  • Bijay Kumar Sahoo success story

    देश के 50 सर्वश्रेष्ठ स्कूलों में इनका भी स्कूल

    बिजय कुमार साहू ने शिक्षा हासिल करने के लिए मेहनत की और हर महीने चार से पांच लाख कमाने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट बने. उन्होंने शिक्षा के महत्व को समझा और एक विश्व स्तरीय स्कूल की स्थापना की. भुबनेश्वर से गुरविंदर सिंह की रिपोर्ट
  • Red Cow founder Narayan Majumdar success story

    पूर्वी भारत का ‘मिल्क मैन’

    ज़िंदगी में बिना रुके खुद पर विश्वास किए आगे कैसे बढ़ा जाए, नारायण मजूमदार इसकी बेहतरीन मिसाल हैं. एक वक्त साइकिल पर घूमकर किसानों से दूध इकट्ठा करने वाले नारायण आज करोड़ों रुपए के व्यापार के मालिक हैं. कोलकाता में जी सिंह मिलवा रहे हैं इस प्रेरणादायी शख़्सियत से.
  • Nitin Godse story

    संघर्ष से मिली सफलता

    नितिन गोडसे ने खेत में काम किया, पत्थर तोड़े और कुएं भी खोदे, जिसके लिए उन्हें दिन के 40 रुपए मिलते थे. उन्होंने ग्रैजुएशन तक कभी चप्पल नहीं पहनी. टैक्सी में पहली बार ग्रैजुएशन के बाद बैठे. आज वो 50 करोड़ की एक्सेल गैस कंपनी के मालिक हैं. कैसे हुआ यह सबकुछ, मुंबई से बता रहे हैं देवेन लाड.
  • Vaibhav Agrawal's Story

    इन्हाेंने किराना दुकानों की कायापलट दी

    उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के आईटी ग्रैजुएट वैभव अग्रवाल को अपने पिता की किराना दुकान को बड़े स्टोर की तर्ज पर बदलने से बिजनेस आइडिया मिला. वे अब तक 12 शहरों की 50 दुकानों को आधुनिक बना चुके हैं. महज ढाई लाख रुपए के निवेश से शुरू हुई कंपनी ने दो साल में ही एक करोड़ रुपए का टर्नओवर छू लिया है. बता रही हैं सोफिया दानिश खान.