अगर आप 1,000 करोड़ रुपए की कंपनी खड़ी करना चाहें तो कर सकते हैं
04-Oct-2023
By पीसी विनोज कुमार
चेन्नई
सतीश चामीवेलुमणि का जन्म किसी अमीर घराने में नहीं हुआ, लेकिन उनके सपने बड़े थे.
जब वो कॉलेज में थे और लंच में अंडे का पफ़ व एक कप चाय पीकर गुज़ारा कर लेते थे, तब उन्होंने 1,000 करोड़ रुपए की कंपनी खड़ी करने का सपना देखा था.
सतीश आज फ़ूड टेक स्टार्टअप फ़्रेशली के संस्थापक हैं. वो बताते हैं, “मुझे घर से लंच के लिए पांच रुपए मिलते थे और इतने पैसों में अंडे का पफ़ और एक कप चाय ही आ पाती थी.”
फ़्रेशली क्विक सर्विस रेस्तरां (क्यूएसआर) इंडस्ट्री में अपनी ऑटोमेटेड फ़ूड डिस्पेंसिंग यूनिट्स की दुनिया में बहुत नाम कमा रही है.
![]() |
फ्रेशली के संस्थापक सतीश चामीवेलुमणि ने अपनी ग़रीब के दिनों से उठने के लिए कड़ी मेहनत की है. (सभी फ़ोटो : विशेष व्यवस्था से)
|
सतीश ने साल 2014 में ऑटोमेटेड फ़ूड यूनिट विकसित की. इसे चेन्नई में तीन जगह पर दो सालों तक टेस्ट किया गया, जिनमें सेंट्रल रेलवे स्टेशन भी शामिल है.
यह मशीन इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स (आईओटी) प्लेटफॉर्म पर ऑपरेट की जाती है.
आज फ़्रेशली के आउटलेट चेन्नई, पुणे और कोलकाता हवाईअड्डे समेत छह जगहों पर हैं.
फ़्रेशली ने कई अग्रणी रेस्तरां के साथ समझौता किया है. इस समझौते के तहत फ़्रेशली के आउटलेट पर विशेष रूप से बनाई गई ट्रे में फ़ूड पैकेट्स डिलिवर किए जाते हैं. इन पैकेट को मशीन पर लोड कर दिया जाता है, जिसे कस्टमर एक बटन दबाकर हासिल कर सकता है.
फ़्रेशली के हर आउटलेट पर एक व्यक्ति रहता है.
आउटलेट पर बिक्री का एक हिस्सा फ़्रेशली को मिलता है.
हर यूनिट प्रति घंटा 140 पैक सर्व कर सकती है और उसमें 300 पैक की स्टोरेज क्षमता होती है.
सतीश बताते हैं, “यूनिट पहले से तैयार कर ली जाती है और आठ से 12 घंटे में कहीं भी लगाई जा सकती है.
“हमारी पांच से छह रेस्तरां के साथ पार्टनरशिप होती है और हम 20-25 तरह का खाना ऑफ़र करते हैं. हर रिटेल यूनिट की तरह हमारी यूनिट भी आम दिनों की तरह खुली रहती है. घरेलू एअरपोर्ट में हम यूनिट रात 11 बजे बंद कर देते हैं, ताकि यूनिट को सुबह जल्दी खोला जा सके. सबसे ज्यादा मांग सुबह चार और सात बजे के बीच होती है.”
सतीश को पहली मशीन को बनाने में 35 लाख रुपए की लागत आई थी, जबकि दूसरी मशीन बनाने में 14-15 लाख. अब यह राशि और घट गई है.
वित्तीय वर्ष 2017-18 में कंपनी का टर्नओवर पांच करोड़ रुपए रहा. ताज़ा वित्तीय वर्ष में उम्मीद है कि यह आंकड़ा 50 करोड़ रुपए को छू जाएगा.
सतीश के मुताबिक, “हम 12 आउटलेट लांच कर रहे हैं. इनमें से एक मुंबई के सेंट्रल रेलवे स्टेशन पर भी होगा. एक उदय ट्रेन में पूर्ण ऑटोमेटेड पैंट्री शुरू करने का भी प्लान है.”
एक वक्त था जब सतीश कोयंबटूर में अपने माता-पिता और तीन भाई-बहनों के साथ 10 X 10 वर्ग फ़ीट के कमरे में रहे.
यहां दस घरों के लोगों के लिए एक ही टॉयलेट था- इसका मतलब था सुबह जल्दी उठना. क़रीब 40 लोगों के साथ टॉयलेट की लाइन में बाल्टी लेकर खड़े होना और अपनी बारी का इंतज़ार करना.
परिवार के पास दूध ख़रीदने के पैसे नहीं होते थे, इसलिए घर में ब्लैक कॉफ़ी पी जाती थी.
परंपरागत बढ़ई के काम से जुड़े रहने वाला उनका परिवार मूल रूप से केरल के पलक्कड़ का रहने वाला है लेकिन उनके पिता कोयंबटूर आ गए. हालांकि उनके पिता ने यह पेशा नहीं चुना और पूरी ज़िंदगी मिस्त्री का काम किया, ताकि जीवनयापन हो सके.
जब साल 1998 में वो रिटायर हुए, तब उनकी तनख़्वाह मात्र 4,000 रुपए थी. इतनी कम तनख़्वाह का मतलब था बच्चों के भूखों मरने की नौबत आना.
![]() |
फ़्रेशली ने वर्ष 2017-18 में 5 करोड़ रुपए का टर्नओवर हासिल किया. इस वर्ष राजस्व में 10 गुना बढ़ोतरी का लक्ष्य रखा गया है.
|
सतीश कहते हैं, “मेरी मां गृहिणी थीं और वो पिता की छोटी सी तनख़्वाह में हम सबके लिए खाना बनाती थीं. हम अधिकतर चावल, करी और सूखी मछली खाकर गुज़ारा करते थे.”
सतीश ने कक्षा 10 तक तमिल माध्यम से पढ़ाई की. उसके बाद उन्होंने अंग्रेज़ी मीडियम का रुख किया और कोयंबटूर के कुमारगुरु कॉलेज ऑफ़ टेक्नोलॉजी से मेकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की.
जब उनकी उम्र 19 साल थी, तब उनकी मां की मृत्यु हो गई.
सतीश कहते हैं, “हम मां को नहीं बचा पाए क्योंकि हमारे पास उनके डायलिसिस के लिए पैसे नहीं थे. मैंने कॉलेज में पढ़ाई के अलावा खाना बनाना भी शुरू कर दिया.”
हालांकि कोई भी नाकामयाबी या मुश्किल सतीश को अपनी पढ़ाई पर ध्यान न देने से नहीं रोक सकी.
सतीश पढ़ाई में अच्छे थे. वो कॉलेज गोल्ड मेडलिस्ट और 1,500 छात्रों के बीच सिल्वर मेडलिस्ट रहे.
इस समय तक वे अपने 1000 करोड़ की कंपनी शुरू करने के सपने को रफ्तार दे चुके थे. वो कहते हैं, “मैं इस कहावत में विश्वास करता हूँ कि आपका दिमाग़ अगर किसी चीज़ की कल्पना करता है तो आप उसे हासिल कर सकते हैं. मैंने सपने देखने का साहस किया क्योंकि मेरे पास खोने के लिए कुछ नहीं था. मैं मानता हूं कि अगर आप कुछ करना चाहें तो उसकी शुरुआत करें. फिर क्या होगा उसकी चिंता बाद में करें.”
ग्रैजुएशन के बाद अगले दो साल तक उन्होंने कोयंबटूर की कुछ कंपनियों जैसे एल्गी इक्विपमेंट्स और शॉर्प टूल्स में काम किया लेकिन उन्हें जल्द अहसास हो गया कि अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए उन्हें कुछ साहसी फ़ैसले लेने होंगे.
न्यू जर्सी इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी से मैन्युफ़ैक्चरिंग इंजीनियरिंग में एमएस करने के पीछे कारणों पर वो कहते हैं, “मेरा सपना 1,000 करोड़ रुपए टर्नओवर वाली कंपनी बनाने का था और उधर मेरी तनख़्वाह 6,000 रुपए थी. मुझे पता था कि अपना सपना पूरा करने के लिए मुझे लंबी छलांगें लेनी पड़ेंगी.”
अमेरिका में पढ़ाई के दौरान अपने रोज़मर्रा के ख़र्च के लिए सतीश ने रेस्तरां में बर्तन धोए. |
बहुत मुश्किल से पहले सेमेस्टर की तीन लाख रुपए की फ़ीस का इंतज़ाम करने के बाद वो अमेरिका चले गए.
सतीश बताते हैं, “अगले दो साल मुश्किल भरे रहे. मुझे उसी इंस्टिट्यूट में रिसर्च असिस्टेंट की नौकरी मिल गई, जिससे मुझे ट्यूशन फ़ीस पर 50 फ़ीसदी का डिस्काउंट मिल गया.”
वो याद करते हैं, “मैंने पार्ट-टाइम नौकरियां भी कीं, मीट खाना कम कर दिया, रेस्तरां में काम किया, टेबल साफ़ की, बर्तन धोए, सब कुछ किया.”
एमएस के बाद सतीश ने कूनो नामक कंपनी में नौकरी कर ली. यह कंपनी फ़िल्ट्रेशन प्रॉडक्ट्स बनाती थी. सतीश ने यहां 2002 से 2012 तक काम किया.
सतीश याद करते हैं, “25 साल की उम्र में अमेरिका में मेरा अपना घर था.”
दिसंबर 2012 में जब उन्होंने भारत लौटने का निर्णय किया, तब उनके पास पांच करोड़ रुपए जमा हो गए थे.
एक निवेशक की ओर से ढाई लाख डॉलर के निवेश से उन्होंने बिज़नेस की शुरुआत की और फ़ूड मशीन का विकास किया. बाद में उन्होंने पांच मिलियन डॉलर का निवेश जुटाया.
फ़्रेशली की मालिक आउल टेक प्राइवेट लिमिटेड नामक कंपनी है. सतीश इस कंपनी के मालिकों में से एक हैं.
उन्हें पूरा भरोसा है कि एक दिन उनका सपना पूरा होगा और उनकी कंपनी का टर्नओवर 1,000 करोड़ को पार कर जाएगा.
आप इन्हें भी पसंद करेंगे
-
फूल खिले हैं गुलशन-गुलशन
आज दुनिया में ‘फ़र्न्स एन पेटल्स’ जाना-माना ब्रैंड है लेकिन इसकी कहानी बिहार से शुरू होती है, जहां का एक युवा अपने पूर्वजों की ख़्याति को फिर अर्जित करना चाहता था. वो आम जीवन से संतुष्ट नहीं था, बल्कि कुछ बड़ा करना चाहता था. बिलाल हांडू बता रहे हैं यह मशहूर ब्रैंड शुरू करने वाले विकास गुटगुटिया की कहानी. -
स्पोर्ट्स वियर के बादशाह
रोशन बैद की शुरुआत से ही खेल में दिलचस्पी थी. क़रीब दो दशक पहले चार लाख रुपए से उन्होंने अपने बिज़नेस की शुरुआत की. आज उनकी दो कंपनियों का टर्नओवर 240 करोड़ रुपए है. रोशन की सफ़लता की कहानी दिल्ली से सोफ़िया दानिश खान की क़लम से. -
देश के 50 सर्वश्रेष्ठ स्कूलों में इनका भी स्कूल
बिजय कुमार साहू ने शिक्षा हासिल करने के लिए मेहनत की और हर महीने चार से पांच लाख कमाने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट बने. उन्होंने शिक्षा के महत्व को समझा और एक विश्व स्तरीय स्कूल की स्थापना की. भुबनेश्वर से गुरविंदर सिंह की रिपोर्ट -
जैविक खेती ही खुशहाली
मधु चंदन सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में अमेरिका में मोटी सैलरी पा रहे थे. खुद की कंपनी भी शुरू कर चुके थे, लेकिन कर्नाटक के मांड्या जिले में किसानों की आत्महत्याओं ने उन्हें झकझोर दिया और वे देश लौट आए. यहां किसानों को जैविक खेती सिखाने के लिए खुद किसान बन गए. किसानों को जोड़कर सहकारी समिति बनाई और जैविक उत्पाद बेचने के लिए विशाल स्टोर भी खोले. मधु चंदन का संघर्ष बता रहे हैं बिलाल खान -
इनके लिए पेड़ पर उगते हैं ‘पैसे’
साल 1995 की एक सुबह अमर सिंह का ध्यान सड़क पर गिरे अख़बार के टुकड़े पर गया. इसमें एक लेख में आंवले का ज़िक्र था. आज आंवले की खेती कर अमर सिंह साल के 26 लाख रुपए तक कमा रहे हैं. राजस्थान के भरतपुर से पढ़िए खेती से विमुख हो चुके किसान के खेती की ओर लौटने की प्रेरणादायी कहानी.