Milky Mist

Wednesday, 13 November 2024

कभी रेलवे स्टेशन पर सोते थे, आज 100 करोड़ का कारोबार करने वाली ट्रेवल कंपनी के मालिक हैं

13-Nov-2024 By पी.सी. विनोज कुमार
चेन्नई

Posted 27 Dec 2017

बचपन में वो इतने ग़रीब थे कि उनका परिवार दूसरों के बचे-खुचे खाने पर निर्भर था, लेकिन उनका सपना बड़ा था. एक दिन वो गांव छोड़कर चेन्नई आ गए. रेलवे स्टेशन पर रातें गुजारीं. आज उनका 100 करोड़ रुपए का कारोबार है. चेन्नई से पी.सी. विनोज कुमार बता रहे हैं वी.के.टी. बालन की सफलता की कहानी

 

वर्ष 1981 में, 27 वर्षीय एक युवा मदुराई से क़रीब 180 किमी दूर गांव तिरुचेंदुर से चेन्नई के इग्मोर रेलवे स्टेशन आया. उसके मन में तमिल फ़िल्म इंडस्ट्री में उस दौर के सुपरस्टार कमल हासन या रजनीकांत की तरह स्टार बनने का सपना था.

वी.के. थानाबालन, जिन्हें बाद में वी.के.टी. बालन नाम से जाना जाने लगा, मदुरा ट्रेवल सर्विस प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक हैं. मदुरा ट्रेवल ने वर्ष 2017 तक 100 करोड़ रुपए का कारोबार हासिल कर लिया है.

बालन ने एक समय अपने परिवार को बिना बताए घर छोड़ दिया था और तिरुचेंदुर से ट्रेन पकड़कर चेन्नई आ गए थे.

https://www.theweekendleader.com/admin/upload/may17-17-leadoffice.JPG

चेन्नई में मदुरा ट्रेवल्स के संस्थापक वी.के.टी. बालन आज भी अपनी सादगीपूर्ण जड़ों को याद करते हैं और पहले की तरह कमीज़ व धोती पहनते हैं. 1981 में इसी पहनावे में वो उत्साहपूर्ण युवा के रूप में पहली बार चेन्नई आए थे. (फ़ोटो: एच के राजाशेकर)

आठवीं के बाद पढ़ाई छोड़ चुके और थिएटर में दिलचस्पी दिखाने लगे 64 वर्षीय बालन याद करते हैं, “मैं चेन्नई आया, तब मेरे पास फूटी कौड़ी भी नहीं थी. ट्रेन में भी मैंने बिना टिकट सफ़र किया था. मेरे पास बस एक धोती और एक कमीज़ था, जो मैंने पहन रखा था.

वो फ़िल्मों को लेकर बिल्कुल पागल थे और शिवाजी गणेशन व एम.जी.आर. के कट्टर प्रशंसक थे, जो 50 और 60 के दशक के शीर्ष अभिनेता थे. वो उनकी फ़िल्मों के लंबे संवादों को याद कर लिया करते थे.

बालन हंसते हुए कहते हैं, “यही दिलचस्पी किशोरावस्था में मुझे थिएटर की ओर ले गई. मैं दोस्तों के साथ जुड़ गया और हमारे गांव में मशहूर फ़िल्मों पर आधारित नाटक खेलना शुरू कर दिए. इन नाटकों में हीरो से कमतर कोई भूमिका मुझे मंजूर नहीं होती थी.

इसी सोच ने व्यक्ति को बनाया और उन ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया, जिस पर वो आज हैं- अभिनेता की भूमिका निभाने और प्रसिद्धि छू लेने की इच्छा. वह भी ऐसे समय जब उनका परिवार ग़रीबी में गुज़र-बसर कर रहा था और उन गांव वालों के दिए बचे-खुचे भोजन पर जीवन बिताता था, जिनके कपड़े उनके माता-पिता धोया करते थे.

बालन की किशोरावस्था के दौरान भी तिरुचेंदुर एक गांव ही था- हालांकि अब वह छोटे शहर में विकसित हो चुका है. उनका परिवार धोबी समुदाय से है. उनके माता-पिता गांववालों के घर-घर जाकर गंदे कपड़े इकट्ठा करते, उनकी गठरी बनाते, अपने गधे पर लादते और उन्हें धोने के लिए पास की नदी या स्त्रोत पर ले जाते.

बालन कहते हैं, “हमने कभी घर पर भोजन नहीं पकाया. गांववासी अपना बचा-खुचा भोजन हमें दे देते थे. हम बस वही भोजन खाते थे.

बालन के दो बड़े भाई थे और दोनों ही अब इस दुनिया में नहीं हैं. उन्होंने 19 वर्ष की उम्र में अपने पिता को भी खो दिया था.

चेन्नई में, कॉलीवुड के केंद्र कोडामबक्कम के स्टूडियो के बाहर बालन का जब सच्चाई से सामना हुआ तो सैलूलॉइड की दुनिया में दाख़िल होने के उनके सपने चूर-चूर हो गए.

बालन कहते हैं, “मैं उम्मीद कर रहा था कि कोडामबक्कम की गलियों में मशहूर अभिनेताओं से मुलाक़ात हो जाएगी और मुझे फ़िल्मों में काम करने का मौक़ा मिलेगा.

लेकिन न तो मैं कभी किसी अभिनेता से मिल पाया, न ही किसी स्टूडियो में प्रवेश मिला. मैंने इग्मोर की होटलों और ट्रेवल एजेंसियों में नौकरी के लिए कोशिश की, पर मुझे जल्द ही अहसास हो गया कि कोई भी किसी अजनबी को नौकरी नहीं देगा.

वो शहर में किसी को नहीं जानते थे और वहां उनकी मदद करने वाला कोई नहीं था. कई दिनों तक बिना भोजन के रहे बालन उन तंगहाल दिनों को याद करते हुए कहते हैं, “इग्मोर रेलवे स्टेशन का प्लेटफ़ॉर्म मेरा घर बन गया था और मैं रिक्षा खींचने वालों, भिखारियों, जेबकतरों व मेरे जैसे अन्य बेघर लोगों के साथ रहने लगा.

https://www.theweekendleader.com/admin/upload/may17-17-lead1.JPG

इग्मोर में जिस कमर्शियल कॉम्प्लेक्स में बालन का ऑफ़िस है, उसकी छत से रेलवे स्टेशन का नज़ारा. इसी रेलवे स्टेशन पर बालन ने कई रातें भूखे पेट गुज़ारी थीं.


मैं दुबला और कमज़ोर हो गया था. अपने अस्तव्यस्त बालों और बढ़ी हुई दाढ़ी से मैं भिखारी जैसा नज़र आने लगा था. एक रात जब मैं रेलवे स्टेशन पर सो रहा था, तो एक पुलिसवाले ने लाठी मारी. मुझे अन्य लोगों के साथ क़तार में खड़ा हो जाने के लिए कहा गया.

वे याद करते हैं, “किसी ने मुझे बताया कि हम सभी को झूठे आरोपों में हिरासत में लेकर जेल भेज दिया जाएगा. मुझे पता चला कि पुलिस अक्सर ऐसे बेघर लोगों को घेरती है और उन पर झूठे मुकदमे लगाकर जेल भेज देती है.

बालन ने एक पल से भी कम समय में वहां से भागने का निर्णय लिया. वे कहते हैं, “मैं बस दौड़ पड़ा. मुझे यह नहीं पता कि मुझमें शक्ति कहां से आ गई थी कि मैं इतनी तेज़ दौड़ा. जल्द ही, मुझे एक पत्थर का फर्श दिखा, जहां कई लोग सोए थे. मैं भी वहां बैठ गया और कुछ ही देर में मुझे नींद आ गई.

यह चेन्नई में अमेरिकी दूतावास के बाहर का फर्श था, जहां लोग अपने वीज़ा के लिए एक रात पहले से क़तार लगाए हुए थे. वहां सोए लोगों में कुछ ऐसे एजेंट भी शामिल थे, जो सुबह वीज़ा की तलाश में आए लोगों को क़तार का अपना स्थान बेच देते थे.

तड़के क़रीब 5 बजे किसी ने उन्हें जगाया और उनके द्वारा रोके गए स्थान के बदले 2 रुपए दिए.

इन पैसों से उन्होंने कई दिन भूखे रहने के बाद पहला खाना किया. वे कहते हैं, “मैं चावल, सांभर, रसम, और कोटु पोरियाल (सब्ज़ी वाला एक पारंपरिक भोजन, जो तमिलनाडु में चावल के साथ परोसा जाता है) वाला भोजन करना चाहता था.

किसी कथा लेखक की अलंकृत भाषा की तरह कहानी बताते हुए वे कहते हैं, “मैंने सुबह का नाश्ता छोड़ दिया और छोटी सी होटल में दोपहर का भोजन किया. हालांकि वहां 2 रुपए में सीमित भोजनमिला, लेकिन थोड़े से चावल के साथ परोसे गए बहुत से सांभर व पोरियाल से मेरा पेट भर गया.

https://www.theweekendleader.com/admin/upload/may17-17-leademployees.JPG

अपने कुछ सहकर्मियों के साथ ऑफ़िस में बालन.


वो कहते हैं, “मैं रातोरात उद्यमी बन गया. मैंने अमेरिकी दूतावास के बाहर रोज़ रूमाल व पत्थर रखकर पांच-छह लोगों के लिए जगह रोकना शुरू कर दी और अगले दिन वह जगह लोगों को बेचने लगा.

उनकी रोज़ की कमाई 2 रुपए से बढ़कर 10 रुपए हो गई, और फिर 20 रुपए. उन्होंने सैदापेट में 150 रुपए महीना के किराए पर एक कमरा ले लिया.

अमेरिकी दूतावास के बाहर अपने कार्यस्थलपर वो ट्रेवल एजेंसियों के लिए काम करने वाले एजेंटों से परिचित हो गए. उनका परिचय एक कंपनी से कराया गया, जो उड़ान के टिकट बेचने पर उन्हें 9 प्रतिशत कमीशन देती थी.

बालन कहते हैं, “मैं वीज़ा इंटरव्यू के लिए आने वाले लोगों को फ़्लाइट टिकट पर पांच प्रतिशत डिस्काउंट देने लगा. मैं ट्रेवल एजेंसी के विज़िटिंग कार्ड के पीछे मेरा नाम लिखकर उन्हें दे देता था. कई लोग कार्ड दिखाकर डिस्काउंट हासिल कर लेते थे. मुझे हर टिकट पर अपने हिस्से का चार प्रतिशत डिस्काउंट मिल जाता था.

वर्ष 1982 तक, उन्हें एक एजेंट के लिए रामेश्वरम-कोलंबो जहाज़ से यात्रा करने वाले लोगों के वीज़ा पहुंचाने का काम मिल गया. ऐसे बहुत से लोग थे, जो यही काम करते थे.

बालन कहते हैं, “मैं चेन्नई से शाम की ट्रेन में बैठकर अगले दिन सुबह-सुबह रामेश्वरम पहुंच जाता था और जहाज़ रवाना होने के कुछ घंटों पहले एजेंट को वीज़ा सौंप देता था.

एक यात्रा के दौरान भोर के समय ट्रेन के बाहर शोरगुल सुनकर मेरी नींद टूटी. मैंने पाया कि ट्रेन 2 किमी लंबे पम्बन ब्रिज (जो भारतीय धरती को रामेश्वरम द्वीप से जोड़ता है) से पहले रुक गई थी.

मुझे बताया गया कि ट्रेन कुछ घंटे देरी से रवाना होगी, क्योंकि ट्रैक पर कुछ मरम्मत की जाना थी और वह कर्मचारियों के काम पर आने के बाद ही शुरू होना थी. इसके बाद मैंने ट्रैक को पैदल पार करने का निर्णय लिया. हालाँकि मैं इस दौरान आने वाले जोखि़म से बिलकुल अनजान था.

कुछ मीटर चलने के बाद मैंने पाया कि समुद्र तक ट्रैक के नीचे गिट्टी नहीं थी. लकड़ी के लट्ठ (स्लीपर्स) चिकने तथा गीले थे और मैं उनके नीचे प्रचंड समुद्र देख सकता था.

https://www.theweekendleader.com/admin/upload/may17-17-leadjeeva.jpg

पम्बन ब्रिज को ख़तरनाक तरीके़ से रेंगकर पार करते बालन का एक कलाकार द्वारा बनाया चित्र. (कलाकार: जीवा)

लहरें पानी को ट्रैक पर उछाल रही थीं. मैं अपने पेट के बल लेट गया और पूरे तख्तों को रेंगकर पार करने लगा. मैंने वीज़ा से भरा बैग अपनी पीठ पर बांध लिया था.

बालन के एक भी ग़लत क़दम का मतलब था उनकी जलसमाधि बनना. पूरे मंजर को जीवंतता से बताते हुए वे कहते हैं, “पूरी स्थिति अवास्तविक लग रही थी और अंधेरे से निकल रही प्रकाश की पहली किरण इसे डरावना बना रही थी.

लेकिन बालन अपनी दास्तां सुनाने के लिए जीवित बचे. अपने एजेंट तक वीज़ा पहुंचाने वाले वो एकमात्र वाहक थे, जिसने क़रीब 100 लोगों के वीज़ा की व्यवस्था की थी और वे जहाज़ पर चढ़ने का इंतज़ार कर रहे थे.

बालन कहते हैं, “अपने पूरे कपड़ों व शरीर पर चिकनाई और कीचड़ लगे हुए ही मैं रामेश्वरम पहुंचा. एजेंट ने मुझे गले लगा लिया और दावत दी. उसने मुझे 1000 रुपए का पुरस्कार भी दिया. उन दिनों यह राशि बहुत बड़ी होती थी.

बालन कहते हैं, “यदि मैं अपने जीवन को ख़तरे में डालकर समय पर नहीं पहुंचता, तो उसे बहुत बड़ी राशि का नुक़सान होता. इस घटना ने मुझे ट्रेवल और टूर इंडस्ट्री में विश्वसनीय व्यक्ति के रूप में स्थापित कर दिया.

https://www.theweekendleader.com/admin/upload/may17-17-leadstudents.JPG

विभिन्न सिटी कॉलेज के पर्यटन के विद्यार्थियों से चर्चा करते बालन.

वर्ष 1986 में, बालन ने उत्तरी चेन्नई के मन्नाडी में अपनी ख़ुद की एजेंसी शुरू की और अंतरराष्ट्रीय वायु यातायात संस्था (आईएटीए) से मान्यता प्राप्त एजेंसी के उप-एजेंट रूप में काम करने लगे. बालन कहते हैं, “मैंने छोटे तरीके़ से शुरुआत की. मैंने 1000 रुपए प्रति माह के किराए पर एक दुकान ली. मेरे साथ तीन लोग काम कर रहे थे.

वर्ष 1988 में उन्होंने अपने व्यवसाय में बड़ी कामयाबी हासिल की, जब उन्होंने अग्रणी कर्नाटक गायक सिरकाझी गोविंदाराजन के कुछ प्रमुख यूरोपियाई शहरों में म्यूजिक कॉन्सर्ट आयोजित किए. सभी शहरों में कॉन्सर्ट ज़बर्दस्त हिट रहे और एकाएक बालन फ़िल्म शख्सियतों के साथ विदेशों में कार्यक्रम आयोजित करने वाले व्यक्ति के रूप में पहचाने जाने लगे.

बालन को अब पीछे पलटकर नहीं देखना था. वो अब तक 25 से अधिक देशों में 300 से ज़्यादा कार्यक्रम आयोजित कर चुके हैं, जिनमें बॉलीवुड और कॉलीवुड दोनों से अग्रणी फ़िल्म हस्तियां शामिल हुई हैं. इस असाधारण कार्य ने उन्हें किसी भारतीय कंपनी द्वारा विदेशों में सबसे ज्यादा सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करने के लिए लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स में स्थान दिला दिया.

वे कॉलीवुड के क्षेत्र में मशहूर हो गए और कई सेलीब्रिटी उनके ग्राहक बन गए. वर्ष 1997 में, उन्हें संस्कृति का प्रचार-प्रसार करने में योगदान देने पर तमिलनाडु सरकार ने प्रतिष्ठित कलाईमामानी अवार्डसे सम्मानित किया.

आज, मदुरा ट्रेवल्स एमआईसीई (मीटिंग्स, इन्सेंटिव्ज़, कॉन्फ्रे़ंस ऐंड एग्ज़ीबिशन, ऐंड ईवेंट्स), और क्रूज़ जैसी श्रेणियों में अंतरराष्ट्रीय पैकेज टूर तथा दक्षिण भारत के स्थानों के लिए आयुर्वेद पैकेज व घरेलू क्षेत्रों में आध्यात्मिक टूर उपलब्ध कराती है.

वर्ष 1993 में, बालन ने आईएटीए मान्यता लेने के लिए अपनी कंपनी को प्राइवेट लिमिटेड में तब्दील कर लिया. अपनी कंपनी में उनकी 90 प्रतिशत अंशधारिता है और बाक़ी शेयर उनकी पत्नी व बेटे के नाम हैं.


1998 तक, कंपनी के कारोबार ने 22 करोड़ रुपए का आंकड़ा छू लिया था. मदुरा ट्रेवल्स सालभर बिना किसी अवकाश लिए 24*7 काम करती है. 40 स्थायी कर्मचारियों के साथ कंपनी में 400 अतिरिक्त कॉन्ट्रैक्ट और सब-एजेंट्स भी काम करते हैं.

कंपनी ने तमिलनाडु में पर्यटकों को लक्ष्य रखकर मदुरा वेलकम नाम से एक तिमाही प्रकाशन भी शुरू किया है. अब तक इसकी तमिल में चार किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें से एक पूर्व मुख्यमंत्री के कामराज पर केंद्रित थी.

https://www.theweekendleader.com/admin/upload/may17-17-leadawards.JPG

बालन राज्य सरकार के प्रतिष्ठित कलाइमामानी पुरस्कार समेत कई पुरस्कार से सम्मानित हो चुके हैं.

बालन पिछले आठ सालों से दूरदर्शन पर एक साप्ताहिक कार्यक्रम वेलिचाथिन मरुपक्कमभी कर रहे हैं, जो समाज के कमज़ोर तबके जैसे यौनकर्मियों, अपराधियों, और अन्य आम लोगों जैसे सड़क पर बेचने वालों पर केंद्रित होता है.

बालन अब अपनी कंपनी की बागडोर अपने 27 वर्षीय बेटे श्रीहरन को सौंपने को तैयार हैं और उनकी 60 वर्षीय पत्नी उनके लिए सुशीला एक महान संपत्ति है. वो उन्हें मूल्यों व नैतिकता सिखाने और एक बेहतर व्यक्ति के रूप में गढ़ने का श्रेय देते हैं.

उनकी 30 वर्षीय बेटी सारन्या फिलहाल मनोविज्ञान से डॉक्टरेट कर रही हैं. उनका विवाह बी जयकुमार क्रिस्टुरंजन से हुआ है, जो चेन्नई के सेंट. जोसेफ़ कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग के निदेशक हैं. छह वर्षीय ताशा और छह महीने की शिवानी उनकी नातिनें हैं. उन्हें उनके साथ समय गुज़ारना पसंद है.

बालन कहते हैं, “उन्होंने अपने जीवन में कभी भी इन दो चीज़ों से समझौता नहीं किया- अपनी व्यक्तिगत अखंडता और मदद करने वाले लोगों के लिए कृतज्ञता.

एक भावनात्मक टिप्पणी से अपनी बात ख़त्म करते हुए वो दावा करते हैं कि यदि कोई मुझे पर यह आरोप लगाए कि मुझमें ये गुण नहीं हैं, तो मैं निश्चित रूप से अपना जीवन ख़त्म कर लूंगा.

 

 

 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • Just Jute story of Saurav Modi

    ये मोदी ‘जूट करोड़पति’ हैं

    एक वक्त था जब सौरव मोदी के पास लाखों के ऑर्डर थे और उनके सभी कर्मचारी हड़ताल पर चले गए. लेकिन उन्होंने पत्नी की मदद से दोबारा बिज़नेस में नई जान डाली. बेंगलुरु से उषा प्रसाद बता रही हैं सौरव मोदी की कहानी जिन्होंने मेहनत और समझ-बूझ से जूट का करोड़ों का बिज़नेस खड़ा किया.
  • Success story of Susux

    ससक्स की सक्सेस स्टोरी

    30 रुपए से 399 रुपए की रेंज में पुरुषों के टी-शर्ट, शर्ट, ट्राउजर और डेनिम जींस बेचकर मदुरै के फैजल अहमद ने रिटेल गारमेंट मार्केट में तहलका मचा दिया है. उनके ससक्स शोरूम के बाहर एक-एक किलोमीटर लंबी कतारें लग रही हैं. आज उनके ब्रांड का टर्नओवर 50 करोड़ रुपए है. हालांकि यह सफलता यूं ही नहीं मिली. इसके पीछे कई असफलताएं और कड़ा संघर्ष है.
  • Story of Sattviko founder Prasoon Gupta

    सात्विक भोजन का सहज ठिकाना

    जब बिजनेस असफल हो जाए तो कई लोग हार मान लेते हैं लेकिन प्रसून गुप्ता व अंकुश शर्मा ने अपनी गलतियों से सीख ली और दोबारा कोशिश की. आज उनकी कंपनी सात्विको विदेशी निवेश की बदौलत अमेरिका, ब्रिटेन और दुबई में बिजनेस विस्तार के बारे में विचार कर रही है. दिल्ली से सोफिया दानिश खान की रिपोर्ट.
  • Miyazaki Mango story

    ये 'आम' आम नहीं, खास हैं

    जबलपुर के संकल्प उसे फरिश्ते को कभी नहीं भूलते, जिसने उन्हें ट्रेन में दुनिया के सबसे महंगे मियाजाकी आम के पौधे दिए थे. अपने खेत में इनके समेत कई प्रकार के हाइब्रिड फलों की फसल लेकर संकल्प दुनियाभर में मशहूर हो गए हैं. जापान में 2.5 लाख रुपए प्रति किलो में बिकने वाले आमों को संकल्प इतना आम बना देना चाहते हैं कि भारत में ये 2 हजार रुपए किलो में बिकने लगें. आम से जुड़े इस खास संघर्ष की कहानी बता रही हैं सोफिया दानिश खान
  • how Chayaa Nanjappa created nectar fresh

    मधुमक्खी की सीख बनी बिज़नेस मंत्र

    छाया नांजप्पा को एक होटल में काम करते हुए मीठा सा आइडिया आया. उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. आज उनकी कंपनी नेक्टर फ्रेश का शहद और जैम बड़े-बड़े होटलों में उपलब्ध है. प्रीति नागराज की रिपोर्ट.