Milky Mist

Wednesday, 17 September 2025

जम्मू के छोटे से नगर से निकल कर विदेशों में खोजा हैंडीक्राफ्ट सामान का बाजार, 7 साल में कंपनी का टर्नओवर 19 करोड़ रुपए पहुंचा

17-Sep-2025 By गुरविंदर सिंह
नई दिल्ली

Posted 14 Feb 2021

जम्मू के एक छोटे से नगर में जन्मी 28 वर्षीय मानसी गुप्ता ने साल 2011 में अपने पति अंकित वाधवा के साथ मिलकर साहसिक निर्णय लिया. उन्होंने अमेरिकी बाजार में भारतीय हैंडीक्राफ्ट उत्पादों को बेचने के लिए एक ऑनलाइन स्टोर शुरू किया.

दिल्ली में किराए के दफ्तर से 10 लाख रुपए और 13 कर्मचारियों से साल 2013 में शुरुआत हुई. आज 80 कर्मचारियों के साथ कंपनी का टर्नओवर 19 करोड़ रुपए पर पहुंच गया है.

मानसी गुप्ता ने 2013 में करीब 8 कर्मचारियों की टीम के साथ तिजोरी की शुरुआत की थी. (सभी फोटो : विशेष व्यवस्था से) 

गुप्ता दंपती के ऑनलाइन स्टोर तिजोरी (Tjori) पर आज भिन्न-भिन्न तरीके के प्रोडक्ट उपलब्ध हैं. इनमें घरेलू और वैश्विक दोनों तरह के मार्केट के लिए अपैरल, वेलनेस, फुटवियर और ज्वेलरी प्रोडक्ट शामिल हैं.

तिजोरी के प्रोडक्ट की पहुंच 190 देशों तक है और कूरियर पार्टनर फेडएक्स के जरिए ग्राहकों तक पहुंचाए जाते हैं.

मानसी पुणे में अपने कॉलेज के दिनों से लंबा सफर तय कर चुकी है. उन्होंने पुणे यूनिवर्सिटी से बिजनेस मैनेजमेंट में ग्रेजुएशन किया है. यह बड़ी बात इसलिए है क्योंकि मानसी का परिवार कभी जम्मू-कश्मीर राज्य से बाहर नहीं गया था.

अपनी किशोरावस्था के दिनों से मानसी ने चुनौतियों का सामना किया है और उनसे समय-समय पर उबरती रही है.

जम्मू के अखनूर स्थित महाराजा हरिसिंह एग्रीकल्चरल कॉलेजिएट स्कूल से गणित और विज्ञान विषय में कक्षा 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद जब मानसी पुणे यूनिवर्सिटी से आगे की पढ़ाई करना चाहती थीं, तो उन्हें तत्काल अपने परिवार की सहमति नहीं मिली.

मानसी कहती हैं, "यह मेरे लिए कठिन निर्णय था क्योंकि मेरे माता-पिता ने कभी अपने राज्य से बाहर कदम भी नहीं रखा था और वे चाहते थे कि मैं अपनी पढ़ाई जम्मू में रहकर ही जारी रखूं. लेकिन मैंने तय किया कि मैं बाहर निकलूंगी और बिजनेस की पढ़ाई करने का अपना सपना पूरा करूंगी.''
किशोरावस्था में मानसी ने तय किया कि वे बिजनेस मैनेजमेंट की बैचलर डिग्री लेने के लिए पुणे जाएंगी.

मानसी कहती हैं, “मैं हमेशा से अपने बल पर कुछ करना चाहती थी और जम्मू में ऐसे अवसर मौजूद नहीं थे. मैं अपनी दादी की कृतज्ञ हूं, जिन्होंने मेरे निर्णय का समर्थन किया और मेरे साथ खड़ी रहीं. आखिर मेरे माता-पिता ने मुझे अनुमति दे दी.”

पुणे में, कॉलेज की पढ़ाई के दौरान मानसी ने 2002 में आईसीआईसीआई बैंक में पार्ट-टाइम नौकरी की. वे याद करती हैं, “मेरा काम बैंक में लोगों के डीमैट अकाउंट खुलवाना था. हमें खोले गए अकाउंट की संख्या के हिसाब से पैसे दिए जाते थे.”

वे कहती हैं, “कॉलेज से समय मिलने पर मैं आमतौर पर हफ्ते में एक या दो बार बैंक जाती थी. मुझे साल 2003 में करीब 11,500 रुपए मिल जाते थे. उस समय वह मेरे लिए बहुत बड़ी राशि थी. इससे मुझे मेरे खर्च निकालने में मदद मिल जाती थी.”

साल 2004 में बीबीएम (बैचलर इन बिजनेस मैनेजमेंट) कोर्स पूरा करने के बाद वे पुणे में आईसीआईसीआई बैंक से पूर्णकालिक कर्मचारी के रूप में जुड़ गईं. उन्हें 15,000 रुपए मासिक सैलरी पर क्लाइंट रिलेशनशिप मैनेजर के तौर पर नियुक्त किया गया था.

मानसी वेल्थ मैनेजमेंट और इन्वेस्टमेंट का काम देखती थीं. छह महीने में उन्हें असिस्टेंट ब्रांच मैनेजर के पद पर पदोन्नत कर दिया गया. जब उन्होंने तय किया कि वे अब एमबीए करेंगी, तो साल 2007 तक बैंक की नौकरी छोड़ दी.

मानसी बताती हैं, “माता-पिता ने साफ तौर पर मुझे चेतावनी दे दी थी कि मैं उच्च अध्ययन करूं या शादी कर लूं. मैंने पढ़ाई को तवज्जो दी और 2007 में कार्डिफ यूनिवर्सिटी में एक साल के एमबीए कोर्स में नामांकन करवा लिया.”

2008 में देश लौटने के बाद वे की अकाउंट मैनेजर के तौर पर आईबीएम इंडिया में नौकरी करने लगीं. वे टेलीकॉम क्लाइंट्स से जुड़ा काम देख रही थीं. कंपनी के 16 की अकाउंट मैनेजर में मानसी सबसे युवा थीं.


मानसी अपने पति और सह-संस्थापक अंकित वाधवा के साथ.

2009 में उनकी शादी अंकित वाधवा से हुई, जो दिल्ली में मल्टीनेशनल कंपनी में काम कर रहे थे.

एक साल बाद, जब उनके पति दो साल के एमबीए कोर्स के लिए पेन्सिल्वेनिया यूनिवर्सिटी के अंतर्गत व्हार्टन स्कूल गए तो मानसी ने भी साल 2011 में कामकाजी पेशेवरों के एक साल के व्हार्टन प्रोग्राम में नामांकन करवा लिया.

फिलाडेल्फिया में रहने के दौरान ही उन्हें पता चला कि अमेरिका में भारतीय हैंडीक्राफ्ट सामान का बड़ा बाजार है.

मानसी कहती हैं, “मुझे महसूस हुआ कि यह बिजनेस का अवसर है. मैंने अपने पति से बात की तो उन्होंने भी सहमति जताई. मैंने ब्रांड नेम तिजोरी चुना और 2011 में जब मैं और पति छुट्टियों में भारत आए तो अपनी कंपनी एएम वेबशॉप इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को रजिस्टर करवा लिया.”

दोनों अपने-अपने कोर्स पूरे कर सितंबर 2012 में देश लौट आए.

मानसी याद करती हैं, “हमने दिल्ली के साकेत में 20 हजार रुपए मासिक किराए पर एक ऑफिस लिया. इससे पहले मैंने आईबीएम की अपनी नौकरी भी छोड़ दी थी. यह ऑफिस करीब 1 हजार वर्ग फुट में था, जो पैकेजिंग और वेयरहाउस के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था.”

पर्यटन की खासी शौकीन मानसी देश के कई हिस्सों के कलाकारों से जुड़ गई थीं. इस दौरान उन्होंने देखा था कि डाई और ब्लॉक प्रिंटिंग का कैसे होता है. इसी से प्रेरित होकर उन्होंने अपना नया कलेक्शन बनाया.

उन्होंने 50 कलाकारों के साथ साझेदारी की, जो हैंडीक्राफ्ट आयटम जैसे शॉल, ज्वेलरी, चूड़ियां, फुटवियर, घर की सजावट का सामान और अन्य प्रॉडक्ट बनाते थे.
दिल्ली ऑफिस में अपनी टीम के कुछ सदस्यों के साथ मानसी. 

वे कहती हैं, “हम उनसे सामान लेते और अमेरिका और कनाडा के ग्राहकों को बेचते हैं. साल 2013 में पहले दिन की बिक्री 250 डॉलर रही थी.

कोविड-19 संकट के दौरान हिचकोले खाते अपने बिजनेस के बारे में मानसी बताती हैं, “अक्टूबर 2013 में हमने अपने प्रॉडक्ट भारत में लॉन्च किए. पहले वित्त वर्ष में ही हमारा टर्नओवर 93 लाख रुपए को छू गया. 2018 में यह 10 करोड़ रुपए को छू गया.”

तिजोरी ने कोविड के लॉकडाउन के दौरान हैंडवॉश और सैनिटाइजर भी बनाए, क्योंकि उस समय बाजार में इनकी मांग बहुत अधिक थी.

साल 2016-17 में कंपनी ने अपने परिवार और दोस्तों से 1.5 करोड़ रुपए इकट्‌ठे किए और बिजनेस का विस्तार करने के लिए प्री-सीरीज ए फंडिंग हासिल की.

मानसी ने अपने प्रोडक्ट्स की रिसर्च और डेवलपमेंट पर ध्यान रखते हुए वेलनेस प्रोडक्ट्स अन्य स्रोत से मंगवाती हैं.

वर्तमान में, उनका ऑफिस दिल्ली के सुल्तानपुर में है. 11 हजार वर्ग फुट की जगह में फ्रंट ऑफिस और फैशन वेयरहाउस है.

मानसी कहती हैं, “हमारे सभी प्रोडक्ट्स तिजोरी ब्रांड के तहत बेचे जाते हैं. हमारे पास 7 कैटेगरी में प्रोडक्ट हैं. ये हैं- अपैरल, एक्सेसरीज, फुटवियर, होम डेकोर, वेलनेस, बैग्स और पर्सनल केयर.”

हम अपने प्रोडक्ट्स भारत के अलावा दुनियाभर में भेजते हैं, लेकिन खासकर उत्तरी अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर में। हमारा उद्देश्य तिजोरी को देश का अग्रणी विशिष्ट सांस्कृतिक ब्रांड बनाना है.

मानसी कहती हैं, “मेरे पति कंपनी में मार्केटिंग और टेक्नोलॉजी का भी काम देखते हैं, लेकिन वे खुद के भी कई प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं. जब उनके पास काेई काम नहीं होता, तो वे हमें समय देते हैं.”

दोनों का डेढ़ साल का एक बेटा है. उसका नाम रयान है.
अपने बेटे रयान के साथ मानसी.

अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए मानसी कहती हैं कि जब उन्होंने अपना काम शुरू किया तो उन्हें फैशन इंडस्ट्री के अपर्याप्त तकनीकी ज्ञान से सामना करना पड़ा था.

लेकिन हैंडीक्राफ्ट के प्रति उनका जुनून बना रहा और जल्द ही उन्होंने बिजनेस के तकनीकी पहलू पर पकड़ बना ली. इसमें सही गुणवत्ता का कपड़ा चुनने से लेकर विभिन्न कलाकारों से लेन-देन करना भी शामिल था.

उभरते उद्यमियों को मानसी का संदेश है: मजबूत बने रहें और अपने सपनों में विश्वास करें. यदि आप कठिन परिश्रम करेंगे, तो आपका सपना वास्तविकता बन जाएगा. कोई भी व्यक्ति यदि दूरदर्शी है और सफल होने का जोश है तो उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं है.

 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • Namarata Rupani's story

    डॉक्टर भी, फोटोग्राफर भी

    क्या कभी डाॅक्टर जैसे गंभीर पेशे वाला व्यक्ति सफल फोटोग्राफर भी हो सकता है? हैदराबाद की नम्रता रुपाणी इस अटकल को सही साबित करती हैं. उन्हाेंने दंत चिकित्सक के रूप में अपना करियर शुरू किया था, लेकिन एक बार तबियत खराब होने के बाद वे शौकिया तौर पर फोटोग्राफी करने लगीं. आज वे दोनों पेशों के बीच संतुलन बनाते हुए 65 लाख रुपए सालाना कमा लेती हैं. बता रहे हैं गुरविंदर सिंह...
  • Success story of helmet manufacturer

    ‘हेलमेट मैन’ का संघर्ष

    1947 के बंटवारे में घर बार खो चुके सुभाष कपूर के परिवार ने हिम्मत नहीं हारी और भारत में दोबारा ज़िंदगी शुरू की. सुभाष ने कपड़े की थैलियां सिलीं, ऑयल फ़िल्टर बनाए और फिर हेलमेट का निर्माण शुरू किया. नई दिल्ली से पार्थो बर्मन सुना रहे हैं भारत के ‘हेलमेट मैन’ की कहानी.
  • Success story of Sarat Kumar Sahoo

    जो तूफ़ानों से न डरे

    एक वक्त था जब सरत कुमार साहू अपने पिता के छोटे से भोजनालय में बर्तन धोते थे, लेकिन वो बचपन से बिज़नेस करना चाहते थे. तमाम बाधाओं के बावजूद आज वो 250 करोड़ टर्नओवर वाली कंपनियों के मालिक हैं. कटक से जी. सिंह मिलवा रहे हैं ऐसे इंसान से जो तूफ़ान की तबाही से भी नहीं घबराया.
  • Vikram Mehta's story

    दूसरों के सपने सच करने का जुनून

    मुंबई के विक्रम मेहता ने कॉलेज के दिनों में दोस्तों की खातिर अपना वजन घटाया. पढ़ाई पूरी कर इवेंट आयोजित करने लगे. अनुभव बढ़ा तो पहले पार्टनरशिप में इवेंट कंपनी खोली. फिर खुद के बलबूते इवेंट कराने लगे. दूसरों के सपने सच करने के महारथी विक्रम अब तक दुनिया के कई देशों और देश के कई शहरों में डेस्टिनेशन वेडिंग करवा चुके हैं. कंपनी का सालाना रेवेन्यू 2 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है.
  • Rich and cool

    पान स्टाल से एफएमसीजी कंपनी का सफर

    गुजरात के अमरेली के तीन भाइयों ने कभी कोल्डड्रिंक और आइस्क्रीम के स्टाल से शुरुआत की थी. कड़ी मेहनत और लगन से यह कारोबार अब एफएमसीजी कंपनी में बढ़ चुका है. सालाना टर्नओवर 259 करोड़ रुपए है. कंपनी शेयर बाजार में भी लिस्टेड हो चुकी है. अब अगले 10 सालों में 1500 करोड़ का टर्नओवर और देश की शीर्ष 5 एफएमसीजी कंपनियों के शुमार होने का सपना है. बता रहे हैं गुरविंदर सिंह