Milky Mist

Tuesday, 9 December 2025

बिना व्यवसायिक पृष्ठभूमि वाली पटना की युवती ने 15 लाख रुपए निवेश कर वॉल पुट्टी ब्रांड बनाया, तीन साल में टर्नओवर 1 करोड़ रुपए पहुंचाया

09-Dec-2025 By सोफिया दानिश खान
पटना

Posted 16 Nov 2021

बिहार, पटना के मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाली आकृति वर्मा को उनके चाचा ने उद्यमी बनने के लिए प्रेरित किया. 26 साल की उम्र में बिना किसी व्यावसायिक पृष्ठभूमि के उन्होंने 15 लाख रुपए के निवेश से वॉल पुट्टी बनाने की कंपनी शुरू करने का साहसिक कदम उठाया.

वॉल पुट्टी निर्माण उद्योग में उपयोग किया जाने वाला एक उत्पाद है. इसे पेंट करने से पहले दीवारों पर लगाया जाता है ताकि दीवार को सपाट बनाया जा सके.

आकृति वर्मा ने 2018 में एकेवी वॉल पुट्टी ब्रांड लॉन्च किया था. (तस्वीरें: विशेष व्यवस्था से)

तीन साल बाद उनकी कंपनी रेनेसां इंडस्ट्री प्राइवेट लिमिटेड ने 1 करोड़ रुपए टर्नओवर वाला ब्रांड एकेवी वॉल पुट्टी बनाया है. यह बाजार में बिड़ला, जेके सीमेंट और आइरिस जैसे दिग्गजों के उत्पादों के साथ प्रतिस्पर्धा करता है.

सिंगापुर में अच्छे वेतन वाली नौकरी छोड़कर कारोबार में आने वाली आकृति कहती हैं, “मेरे चाचा एक रियाल्टार थे और कड़ी मेहनत करते थे. लेकिन उनके पास अपने परिवार और खुद के लिए हमेशा समय होता था. मेरे पिता सरकारी नौकरी में थे, लेकिन उनके पास हमारे लिए ज्यादा समय नहीं होता था.”

आकृति के पिता अतुल कुमार वर्मा राज्य सरकार के कर्मचारी थे. वे 2019 में कला, संस्कृति और युवा विभाग के निदेशक के रूप में सेवानिवृत्त हुए थे.

स्नातक तक पढ़ी उनकी मां कृति वर्मा गृहिणी थीं. वे हमेशा आकृति का समर्थन करती थीं और सपनों को साकार करने के लिए प्रोत्साहित करती थीं. मार्च 2019 में उनका दुखद निधन हुआ, उससे पहले तक वे आकृति को कारोबार में मदद भी करती रहीं.

पटना के माउंट कार्मेल स्कूल से 2010 में 79 फीसदी अंकों के साथ 12वीं की पढ़ाई पूरी करने वाली 29 वर्षीय आकृति कहती हैं, “मेरी मां मेरे लिए हमेशा बहुत रक्षात्मक रहीं. हमारे कुछ रिश्तेदार हमेशा मेरे माता-पिता से मुझे विदेश भेजने और मेरी शिक्षा पर इतना पैसा खर्च करने के उनके फैसले के बारे में सवाल करते थे. लेकिन वे मजबूत महिला थीं और अपने निर्णय पर अडिग रहीं.”

“मेरे माता-पिता चाहते थे कि मैं डॉक्टर या इंजीनियर बनूं. हालांकि मुझे कॉमर्स में दिलचस्पी थी. मुझे एक डेंटल कॉलेज में प्रवेश भी मिल गया था, लेकिन वह मेरी दिलचस्पी का नहीं था. मैं स्पष्ट थी कि मैं किसी समय कारोबार करना चाहती थी.”

आकृति ने पटना के गोरीचक में अपना कारखाना सह गोदाम स्थापित किया है.

आकृति ने दिल्ली विश्वविद्यालय के दयाल सिंह कॉलेज से अंग्रेजी ऑनर्स (2010-13) पूरा किया और प्रोजेक्ट मैनेजमेंट में एमबीए (2013-15) करने के लिए कार्डिफ मेट्रोपॉलिटन यूनिवर्सिटी सिंगापुर कैंपस चली गईं.

एमबीए करने के बाद उन्हें अग्रणी भर्ती एजेंसी सेल्बी जेनिंग्स में 24 लाख रुपए के सालाना पैकेज पर परियोजना सलाहकार के रूप में नौकरी मिल गई.

आकृति कहती हैं, “जब मैं सिंगापुर में थी, तब यात्रा करते हुए बड़ी और खूबसूरत इमारतें मुझे हमेशा आकर्षित करती थीं. तभी मुझे एहसास हुआ कि बुनियादी ढांचा किसी भी देश की रीढ़ है. जब मैं कारोबार शुरू करने की योजना बना रही थी, तब मैंने कुछ ऐसा उत्पाद बनाने के बारे में विचार किया, जो रियल्टी क्षेत्र में उपयोग किया जा सके.

“मैंने शुरू में व्हाइट सीमेंट बनाने के बारे में सोचा, लेकिन इस विचार को छोड़ दिया क्योंकि उसमें बहुत पूंजी का निवेश करना पड़ता. फिर मैंने वॉल पुट्टी पर ध्यान दिया.”

भारत लौटकर आकृति ने 2015 में मां के माध्यम से अपनी कंपनी रेनेसां इंडस्ट्री को पंजीकृत कराया. उस वक्त मां बिहार के सिवान जिले के नागाई गांव में परिवार के स्वामित्व वाली एक एकड़ भूमि पर जैविक खेती और बकरी पालन में अपना हाथ आजमा रही थीं.

आकृति कहती हैं, “हमने भारत में बकरी पनीर बनाने और इसे सिंगापुर भेजने की योजना बनाई, जहां इसकी मांग थी. लेकिन हमें कभी मैन्युफैक्चरिंग लाइसेंस नहीं मिला. इसलिए प्रोजेक्ट कभी रफ्तार नहीं पकड़ सका.”

सिंगापुर में लगभग दो साल काम करने के बाद आकृति अपना कारोबार शुरू करने के लिए अपनी बचत के साथ भारत लौट आईं.

आकृति के साथ करीब 11 कर्मचारी काम करते हैं.  

पुट्टी बनाने की यूनिट लगाने के बारे में आकृति बताती हैं, “मेरा मार्गदर्शन करने वाला कोई नहीं था. इसलिए मैंने अपने दम पर ही बहुत शोध किया. मुझे निर्माण इकाई शुरू करने की प्रक्रिया के बारे में भी कोई जानकारी नहीं थी.”

आकृति ने पटना में किराए की जगह पर अपना कारखाना स्थापित किया और 2018 में चार कर्मचारियों के साथ उत्पादन शुरू किया. वे कहती हैं, “मेरे चार्टर्ड अकाउंटेंट ने मुझे मैन्युफैक्चरिंग लाइसेंस और आईएसआई ट्रेडमार्क हासिल करने के बारे में मार्गदर्शन किया.”

2018-19 में कंपनी का टर्नओवर 12 लाख रुपए था. महज तीन साल में उन्होंने पटना के गोरीचक में अपना कारखाना सह गोदाम स्थापित किया. अभी उनके साथ 11 कर्मचारी काम करते हैं. वित्त वर्ष 2020-21 में उनका टर्नओवर 1 करोड़ रुपए तक पहुंच गया.

आकृति ने इंडिया मार्ट और ट्रेड इंडिया जैसे कारोबार पोर्टल्स पर अपनी कंपनी को सूचीबद्ध करके कारोबार जमाया.

वे कहती हैं, “यह मुख्य रूप से बी 2 बी व्यवसाय है. इंडिया मार्ट या ट्रेड इंडिया से मिलने वाले संपर्कों को मैं व्यक्तिगत रूप से कॉल करती हूं, ताकि यह सुनिश्चित हो कि डील हमें ही मिले. मैं अपने ब्रांड के बारे में समझाती हूं, नमूने भेजती हूं और ऑर्डर लेती हूं.”

वे कहती हैं कि उनके उत्पाद की कीमत बड़े ब्रांडों की तुलना में कम है, लेकिन गुणवत्ता अन्य ब्रांड्स के बराबर है.


आकृति का बिजनेस फंडा सीधा सा है; वे कभी किसी क्लाइंट को ना नहीं कहतीं, और छोटे ऑर्डर भी लेती हैं. वे कहती हैं, “हम 20 किलो वॉल पुट्‌टी की बोरी 380 रुपए में बेचते हैं, जबकि 40 किलो की बोरी 750 रुपए में बिकती है. थोक ऑर्डर पर डिस्काउंट भी देते हैं.”

“मैं कभी किसी ग्राहक को ना नहीं कहती, चाहे उनका ऑर्डर छोटा हो या बड़ा. मेरी भविष्य में कारोबार में विविधता लाने के लिए नए प्रोडक्ट जैसे टाइल एडहेसिव जैसे नए प्रोडक्ट पेश करने की योजना बना रही हूं. व्हाइट सीमेंट के निर्माण की योजना भी है.”

अपना कारोबार स्थापित करने के लिए आकृति ने कई कस्बों और शहरों की यात्रा की है.

आकृति कहती हैं, “मैंने अक्सर उत्तर प्रदेश, झारखंड और ओडिशा के शहरों और कस्बों में कारोबारियों और बिल्डरों के बीच अपने उत्पाद को बढ़ावा देने के लिए यात्रा की है.” आकृति अधिकांश: अपनी कार से यात्रा करना पसंद करती हैं. हालांकि भुवनेश्वर जैसे अधिक दूरी वाले शहर वे फ्लाइट से जाती हैं.


कई जगहों पर उनके रिश्तेदार हैं और यात्रा के दौरान वे उनमें से किसी के यहां ठहरती हैं. जब उन्हें किसी होटल में रुकने की आवश्यकता होती है, तो वे बजट होटल पसंद करती हैं. वे एक रात रुकने के लिए 2000 रुपए से अधिक खर्च नहीं करती हैं.

और वे किसी भी स्थिति से डरती नहीं हैं. एक बार उनकी एक मशीन में तकनीकी खराबी आ गई.

निर्माता दिल्ली में था और जब ऐसा लगा कि दिल्ली से आने वाले व्यक्ति के माध्यम से मशीन को ठीक करने में कुछ दिन लगेंगे, तो उन्होंने मशीन को खुद ठीक करने का फैसला किया.

आकृति की टाइल एडहेसिव और यहां तक ​​कि व्हाइट सीमेंट बनाने की योजना है.  

आकृति कहती हैं, “मुझे झारखंड के एक बिल्डर से बड़ा ऑर्डर मिला था और समय पर डिलीवरी करनी थी. समय बर्बाद करने की स्थिति नहीं थी. इसलिए मैंने मशीन को खुद ठीक किया. निर्माता ने मुझे फोन पर निर्देश दिए थे.”


मार्च 2019 में उन्हें जीवन में व्यक्तिगत झटका लगा, जब उन्होंने दुखद परिस्थितियों में अपनी मां को खो दिया.

आकृति बताती हैं, “उन्हें हर्निया का पता चला था. इसके बाद उनका ऑपरेशन किया जाना था. हम उन्हें दिल्ली के एक अस्पताल ले गए. लेकिन सर्जरी के बाद मां ने पेट दर्द की शिकायत की. तब उन्हें मल्टी-स्पेशियलिटी अस्पताल स्थानांतरित करने के लिए कहा गया.”

“वहां हमें बताया गया कि उसे आंतरिक रक्तस्राव हो रहा था. इसके बाद मल्टी ऑर्गन फैल्योर के कारण उन्होंने दम तोड़ दिया. और इस तरह एक सामान्य, मामूली सर्जरी में हमने उन्हें खो दिया. हमारे परिवार को इस क्षति से उबरने में काफी समय लगा.”

आकृति की एक छोटी बहन है, जो वकील है. एक भाई है, जो अभी कॉलेज में पढ़ रहा है. उनके पिता आकृति के लिए उपयुक्त लड़के की तलाश कर रहे हैं. हालांकि वे खुद अपनी सारी ऊर्जा अपने काम पर केंद्रित करती हैं.


 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • Success story of anti-virus software Quick Heal founders

    भारत का एंटी-वायरस किंग

    एक वक्त था जब कैलाश काटकर कैलकुलेटर सुधारा करते थे. फिर उन्होंने कंप्यूटर की मरम्मत करना सीखा. उसके बाद अपने भाई संजय की मदद से एक ऐसी एंटी-वायरस कंपनी खड़ी की, जिसका भारत के 30 प्रतिशत बाज़ार पर कब्ज़ा है और वह आज 80 से अधिक देशों में मौजूद है. पुणे में प्राची बारी से सुनिए क्विक हील एंटी-वायरस के बनने की कहानी.
  • Just Jute story of Saurav Modi

    ये मोदी ‘जूट करोड़पति’ हैं

    एक वक्त था जब सौरव मोदी के पास लाखों के ऑर्डर थे और उनके सभी कर्मचारी हड़ताल पर चले गए. लेकिन उन्होंने पत्नी की मदद से दोबारा बिज़नेस में नई जान डाली. बेंगलुरु से उषा प्रसाद बता रही हैं सौरव मोदी की कहानी जिन्होंने मेहनत और समझ-बूझ से जूट का करोड़ों का बिज़नेस खड़ा किया.
  • Weight Watches story

    खुद का जीवन बदला, अब दूसरों का बदल रहे

    हैदराबाद के संतोष का जीवन रोलर कोस्टर की तरह रहा. बचपन में पढ़ाई छोड़नी पड़ी तो कम तनख्वाह में भी काम किया. फिर पढ़ते गए, सीखते गए और तनख्वाह भी बढ़ती गई. एक समय ऐसा भी आया, जब अमेरिकी कंपनी उन्हें एक करोड़ रुपए सालाना तनख्वाह दे रही थी. लेकिन कोरोना लॉकडाउन के बाद उन्हें अपना उद्यम शुरू करने का विचार सूझा. आज वे देश में ही डाइट फूड उपलब्ध करवाकर लोगों की सेहत सुधार रहे हैं. संतोष की इस सफल यात्रा के बारे में बता रही हैं उषा प्रसाद
  • Poly Pattnaik mother's public school founder story

    जुनूनी शिक्षाद्यमी

    पॉली पटनायक ने बचपन से ऐसे स्कूल का सपना देखा, जहां कमज़ोर व तेज़ बच्चों में भेदभाव न हो और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी जाए. आज उनके स्कूल में 2200 बच्चे पढ़ते हैं. 150 शिक्षक हैं, जिन्हें एक करोड़ से अधिक तनख़्वाह दी जाती है. भुबनेश्वर से गुरविंदर सिंह बता रहे हैं एक सपने को मूर्त रूप देने का संघर्ष.
  • multi cooking pot story

    सफलता का कूकर

    रांची और मुंबई के दो युवा साथी भले ही अलग-अलग रहें, लेकिन जब चेन्नई में साथ पढ़े तो उद्यमी बन गए. पढ़ाई पूरी कर नौकरी की, लेकिन लॉकडाउन ने मल्टी कूकिंग पॉट लॉन्च करने का आइडिया दिया. महज आठ महीनों में ही 67 लाख रुपए की बिक्री कर चुके हैं. निवेश की गई राशि वापस आ चुकी है और अब कंपनी मुनाफे में है. बता रहे हैं पार्थो बर्मन...