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Tuesday, 19 March 2024

टीसीएस इंजीनियर नौकरी छोड़कर एलईडी लाइट बेचने लगा, फिर अपने गृहनगर में अकेले ही 14 करोड़ रुपए टर्नओवर वाली सोलर कंपनी बनाई

19-Mar-2024 By उषा प्रसाद
बुलढाना (महाराष्ट्र)

Posted 07 Oct 2021

आप उस व्यक्ति को क्या कहेंगे, जो मुंबई में टीसीएस कंपनी की 6 लाख रुपए सालाना पैकेज की नौकरी छोड़कर अपने गृहनगर लौट आता है और एलईडी लाइट्स बेचना शुरू करता है. और आप क्या कहेंगे अगर वह व्यक्ति आपसे कहे कि उसने अपने इस नए कारोबार में एक साल में 60,000 रुपए कमाए.

इससे पहले कि आप किसी निष्कर्ष पर पहुंचें, आइए आपको पूरी कहानी बताते हैं. सवालों से घिरे यह व्यक्ति 34 साल के करण चोपड़ा हैं, जो महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले के खामगांव में आज एक सफल उद्यमी हैं.

चिरायु पावर प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक करण चोपड़ा ने 2015 में सौर समाधान उपलब्ध कराने के कारोबार में कदम रखा. (फोटो: विशेष व्यवस्था से)

करण की लगन और अपने दम पर कुछ करने के जुनून ने उन्हें एलईडी बिजनेस से आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया. हालांकि उन्हें ठीकठाक मुनाफा नहीं हुआ, तो वे नए बिजनेस आइडिया की तलाश में लग गए.

उसके बाद उनकी सौर ऊर्जा में दिलचस्पी पैदा हुई और उन्होंने सोलर इंस्टॉलेशन बिजनेस शुरू कर दिया. यह बिजनेस आज 14 करोड़ रुपए टर्नओवर वाले चिरायु पावर प्राइवेट लिमिटेड में विकसित हो गया है.

250 से अधिक ग्राहकों के साथ चिरायु पावर अब महाराष्ट्र में एक जानी-मानी सौर ऊर्जा ईपीसी (इंजीनियरिंग, प्रोक्योरमेंट एंड कंस्ट्रक्शन) कंपनी है. इसके कार्यालय मुंबई, पुणे, हैदराबाद के अलावा खामगांव में हैं.

चिरायु पावर ने खामगांव में उद्योगों के लिए एक मेगावाट तक के सोलर प्लांट लगाए हैं.

आज, करण सिविल इंजीनियरों, इलेक्ट्रिकल इंजीनियरों और सेल्स व मार्केटिंग के कर्मचारियों वाली 100 सदस्यीय टीम का नेतृत्व करते हैं.

करण ने टीसीएस (टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज) में ऊंची तनख्वाह वाली नौकरी महज एक साल मेंं ही छोड़ दी थी. वे इसका कारण बताते हैं, “मेरे परिवार में हर कोई बिजनेस में है. मैं भी उद्यमी बनकर किसी के मातहत काम नहीं करना चाहता था.”

मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे करण ने मुंबई के चेंबूर स्थित विवेकानंद कॉलेज से आईटी में इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की.

करण के पिता एक उद्योग चलाते हैं, जहां कपास के बीजों से तेल निकाला जाता है. इसके बाद रिफाइनरियों को कपास के खाद्य तेल की आपूर्ति की जाती है. यह इकाई खामगांव के औद्योगिक क्षेत्र में है. करण यहीं से चिरायु पावर का भी संचालन करते हैं.

अच्छा-खासा पैकेज मिलने के बावजूद करण ने एक साल बाद टीसीएस की नौकरी छोड़ दी थी.

उनकी मां एक गृहिणी हैं. उनकी एक बड़ी बहन है, जो शादीशुदा है और हैदराबाद में बस गई हैं.

2009 में इंजीनियरिंग पूरी करने के बाद करण मुंबई में प्रोग्रामर के रूप में टीसीएस से जुड़े. 6 लाख रुपए सालाना वेतन वाली अच्छी नौकरी होने के बावजूद उन्होंने एक साल बाद नौकरी छोड़ने की ठानी.

जिस दिन करण को प्रशंसा और पदोन्नति पत्र मिला, ठीक नौकरी के 365वें ही दिन उन्होंने ई-मेल पर अपना इस्तीफा भेज दिया. वे खामगांव लौट आए और पिता के कारोबार से जुड़ गए.

कुछ वर्षों बाद करण को एहसास हुआ कि उसके पास अपने पिता की इकाई में करने के लिए कुछ नहीं है.

करण कहते हैं, “यह एक यांत्रिक काम से अधिक ही था. मैं उसके विस्तार के बारे में नहीं सोच सकता था. वह कारोबार की पुरानी शैली में चलता था. मैंने फैसला किया कि मुझे अपने दम पर कुछ करना चाहिए.”

2014 में करण ने देखा कि भारत में एलईडी लाइट्स का बाजार फल-फूल रहा था. लोग एलईडी लाइट्स की चमकीली रोशनी को स्वीकार कर रहे थे.

उन्होंने कुछ स्थानीय निर्माताओं से कुछ नमूने लिए और उन्हें बेचना शुरू किया. वे बताते हैं, “मैं दो से तीन नमूने लेता था और खामगांव के औद्योगिक क्षेत्र में जाता था. मैं महीने में पांच से 10 पीस बेच लेता था.”

एलईडी लाइट्स का कारोबार कर करण ने एक साल में करीब 60,000 रुपए कमाए. टीसीएस में 6 लाख रुपए के सालाना वेतन से एक साल में उनकी कमाई घटकर मात्र 60,000 रुपए रह गई थी.

अच्छा पैसा कमाने के लिए किसी कॉर्पोरेट कंपनी में वापस जाने के विचार कई बार करण के दिमाग में आए.

करण कहते हैं, “मैं टीसीएस में काम करते हुए शानदार जीवन जीता था. मैंने एक साल में जो भी कमाया, वह सब खुद पर खर्च कर दिया. मेरे पास कभी कोई बचत नहीं थी.”

जब करण ने अपने दम पर शुरुआत की, तो वे बहुत स्पष्ट थे कि वे परिवार से एक पैसा भी नहीं लेंगे.

करण एलईडी निर्माण का कारोबार करने लगे, लेकिन जल्द ही उन्हें पता चल गया कि वह इतना भी आकर्षक नहीं था.

2015 में, उन्होंने देखा कि सौर ऊर्जा उद्योग फलफूल रहा था. करण ने छह महीने तक सौर ऊर्जा के बारे में काफी अध्ययन किया. उन्होंने सेमिनार और सौर कार्यक्रमों में भाग लिया, क्षेत्र के विभिन्न विशेषज्ञों से मुलाकात की और छोटे-छोटे प्रयोग किए.

चिरायु पावर ने खामगांव में उद्योगों के लिए एक मेगावाट तक के सोलर प्लांट लगाए हैं.

उसी समय, करण के पिता के एक मित्र ने उन्हें एक छोटा सोलर पावर सिस्टम लगाने की अनुमति दी. उसकी कीमत 30,000 रुपए थी. वह करण का पहला प्रोजेक्ट था.

करण हंसते हुए कहते हैं, “मुझे बिजली के बारे में शून्य जानकारी थी. बार-बार, मैं बिजली से बहुत डर जाता था. लेकिन अगर आपको अपना कारोबार करना है, तो आपको होमवर्क और शोध करना होगा.”

“खामगांव और उसके आसपास के टियर-4 और टियर-5 शहरों में किसी को नहीं पता था कि कोई उद्योग या सुविधा सौर ऊर्जा से भी चल सकती है. यह एक नई अवधारणा थी. शुरू में कोई मुझे भाव नहीं देता था और न ही मुझे अपना समाधान बताने के लिए समय देता था.”

लेकिन जल्द ही उन्होंने विभिन्न अक्षय ऊर्जा कंपनियों के लिए कई ओईएम प्रोजेक्ट किए और अनुभव हासिल किया. 2015 के अंत तक, उन्हें अपनी साख के आधार पर छोटे आवासीय और वाणिज्यिक प्रोजेक्ट मिलने लगे.

करण ने 2016 में अपने प्रोपराइटरशिप बिजनेस को प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में बदल दिया. चिरायु पावर बुलढाणा की पहली कंपनी थी, जिसे भारत सरकार (नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय-एमएनआरई) के चैनल पार्टनर के रूप में पंजीकृत किया गया था.

करण को 2016 में बुलढाणा अर्बन बैंक के लिए 5 लाख रुपए का प्रोजेक्ट मिला. यह उनका पहला बड़ा क्लाइंट था. करण याद करते हैं, “बैंक लोड-शेडिंग की समस्या से जूझ रहा था. उन्हें मेरी पेशकश पसंद आई और मुझे 5 किलोवाट बैटरी बैकअप वाला प्लांट लगाने को कहा. लेकिन मुझे नहीं पता था कि काम कैसे शुरू किया जाए, क्योंकि यह बैटरी से चलने वाला सिस्टम था, और उस समय सोलर बहुत महंगा था.”

तब बुलढाणा जिले में किसी भी बैंक ने सौर ऊर्जा विकल्प नहीं अपनाया था. करण ने उन्हें आश्वस्त किया कि सिस्टम कैसे काम करेगा और उन्हें गारंटी दी कि यह ठीक काम करेगा, और प्रोजेक्ट हासिल किए.

उन्होंने बिना एक रुपए का निवेश किए प्रोजेक्ट को सफलतापूर्वक अंजाम दिया. बैंक ने उन्हें करीब 65% राशि अग्रिम दी. करण ने पहले प्रोजेक्ट से करीब 35% मार्जिन कमाया.

इसके बाद करण को धुले जिले के शिरपुर में 10 किलोवाट के प्लांट के लिए एक और बैंक का प्रोजेक्ट मिला. यह एक ग्रिड से जुड़ा सिस्टम था.

करण के मुताबिक, चिरायु पावर को चालू वित्त वर्ष में 28 करोड़ रुपए के टर्नओवर की उम्मीद है.

इसके बाद करण ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. उन्होंने 30 किलोवाट का प्रोजेक्ट किया. इसके बाद उन्हें अधिक आवासीय और कमर्शियल जटिल प्रोजेक्ट मिले.

करण कहते हैं, “महामारी हमारे लिए आशीर्वाद जैसी रही. हर कोई घर से काम कर रहा था. हमने जूम मीटिंग के जरिए लोगों को सोलर प्लांट की खूबियां बताईं. महामारी के दौरान ही कई प्रोजेक्ट को अंतिम रूप दिए.”

सौर पावर सिस्टम लगाने के अलावा कंपनी सौर पैनलों के कारोबार में भी है. खामगांव के उद्योग में चिरायु पावर सौर प्रणालियों के लिए संरचनाएं बनाती है, जबकि पैनल और इन्वर्टर आयात किए जाते हैं.

करण ने अब तक कंपनी में 70 लाख रुपए का निवेश किया है और 1.5 करोड़ रुपए का बैंक कर्ज लिया है. अब उनकी बैटरियों के निर्माण और व्यापार में भी उतरने की योजना है.

अपने कारोबार के कठिन दौर को याद करते हुए करण बताते हैं कि 2015-16 में शुरुआत में जब वे सौर वॉटर हीटर पर काम कर रहे थे, तो उन्हें 5 लाख रुपए का नुकसान हुआ था, क्योंकि हीटर की गुणवत्ता बहुत खराब थी.

वे कहते हैं, “मैंने वॉटर हीटर बेचना बंद करने का फैसला किया. मेरे कार्यालय में अभी भी वे वॉटर हीटर पड़े हैं.”

2015-16 में 10 लाख रुपए का टर्नओवर हासिल करने वाली चिरायु पावर तब से साल-दर-साल 100% की रफ्तार से बढ़ रही है. 2021-2022 के लिए 28 करोड़ रुपए के कारोबार का अनुमान है.

करण की पत्नी मोनल भी कंपनी में डायरेक्टर हैं. दंपति की 5 साल की एक बेटी है.


 

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