Milky Mist

Wednesday, 12 November 2025

कम शिक्षा के चलते कभी 1500 रुपए की तनख्वाह पर ट्रैक्टर शोरूम में काम किया, पढ़ते गए और सालाना 1 करोड़ रुपए कमाने के बाद अब सफल उद्यमी बने

12-Nov-2025 By उषा प्रसाद
हैदराबाद

Posted 10 Nov 2021

10वीं के बाद स्कूल पढ़ाई छोड़ने और 1,500 रुपए की तनख्वाह पर एक ट्रैक्टर शोरूम में ऑफिस बॉय सह स्टोरकीपर के रूप में काम करने के बाद संतोष मंचला ने खुद को शिक्षित करने का फैसला किया. इसके बाद उन्होंने बेहतर नौकरी हासिल की और अमेरिका चले गए, जहां उनकी कमाई 1 करोड़ रुपए सालाना तक बढ़ी.

अब संतोष हैदराबाद लौट आए हैं. यहां उन्होंने सबका वेलनेसऑन प्राइवेट लिमिटेड (Sabka WellnessOn Private Limited) की स्थापना की है. यह एक वजन घटाने वाली कंपनी है, जो अपने ग्राहकों को डाइट फूड मुहैया कराती है.

सबका वेलनेसऑन प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक संतोष मंचला ने बहुत सादगीपूर्ण शुरुआत की और कठिनाईभरा सफर किया. (तस्वीरें: विशेष व्यवस्था)  

संतोष की यात्रा तेलंगाना के छोटे से शहर पेद्दापल्ली से शुरू हुई थी. वहां उनके पिता को कारोबार में भारी नुकसान होने के बाद उनका परिवार गंभीर वित्तीय संकट में फंस गया था. इसके बाद उन्हें अपनी स्कूली शिक्षा छोड़नी पड़ी और काम करना शुरू करना पड़ा. आज वे जिस मुकाम पर हैं, वह उनकी कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प का परिणाम है.

35 वर्षीय संतोष कहते हैं, “वेलनेसऑन किचन गाचीबाउली में है. यह रोज 300 ऑर्डर पूरे करने के हिसाब से तैयार किया गया है. यहां से नाश्ता, दोपहर का भोजन और रात का खाना डिलीवर किया जाता है. दोपहर और रात के भोजन का प्लान 10,000 रुपए का है, जबकि नाश्ते सहित यह 12,000 रुपए का है.”

अप्रैल में शुरुआत के बाद से उन्होंने अब तक 37 ग्राहकों काे जोड़ा है. मई में 20,000 रुपए के बाद उन्होंने सितंबर तक लगभग 2.5 लाख रुपए का कारोबार किया है.

संतोष ने अपनी बचत से 75 लाख रुपए का निवेश किया है. उनके दो एनआरआई दोस्तों ने भी कारोबार में 75 लाख रुपए का निवेश किया है.

संतोष भले संपन्न परिवार में पैदा हुए, लेकिन उनका जीवन रोलर कोस्टर की सवारी की तरह रहा. उनके पिता राजेंद्र मंचला पेद्दापल्ली में प्राइवेट फाइनेंसिंग और चिट फंड कारोबार करते थे. उन्हें कारोबार में 80 लाख रुपए का नुकसान हुआ और उसकी भरपाई के लिए उन्हें अपनी सारी संपत्तियां बेचनी पड़ीं.

संतोष कहते हैं, “जब हम संपन्न थे, तब वे बहुत मजबूत व्यक्ति थे. लेकिन नुकसान के बाद वे टूट गए और मानसिक रूप से परेशान हो गए.”

संतोष का हाल ही में शुरू किया गया उद्यम वेलनेसऑन ग्राहकों को डाइट फूड उपलब्ध करवाता है.

बाद में, उनके पिता ने घर पर ही एक छोटा सुविधा स्टोर शुरू किया, जिसमें एक एसटीडी बूथ भी था.

पिता के छोटे भाई सुरेश मंचला ने संतोष को कंप्यूटर हार्डवेयर इंजीनियरिंग का दो महीने का कोर्स करने में मदद की. फिर 2003 में उन्होंने संतोष के लिए साइबर कैफे खोलने में 50,000 रुपए का निवेश किया.

लेकिन कारोबार अच्छा न चलने के कारण उसे छह महीने में ही बंद करना पड़ा. कोई विकल्प नहीं होने के कारण संतोष ने मनोज मोटर्स नामक एक ट्रैक्टर शोरूम ऑफिस बॉय सह स्टोरकीपर के रूप में काम करना शुरू कर दिया. वहां उनकी तनख्वाह 1,500 रुपए महीना थी.

ट्रैक्टर शोरूम बंद होने के बाद, उन्होंने एयरटेल में फ्रंट ऑफिस असिस्टेंट के रूप में नौकरी की और छह महीने तक काम किया.

बाद में वे 2,500 रुपए के वेतन पर एक चार्टर्ड अकाउंटेंट वरप्रसाद के दफ्तर में डेटा एंट्री ऑपरेटर के रूप में नौकरी करने लगे. संतोष तेजी से सीखने में माहिर थे. इसलिए वरप्रसाद ने हर छह महीने में उनका वेतन 500 रुपए बढ़ाया.

जब वरप्रसाद ने संतोष को शिक्षा जारी रखने के लिए राजी किया, तो संतोष ने एक ओपन यूनिवर्सिटी में बी.कॉम. में दाखिला लिया और 2007 में स्नातक की पढ़ाई पूरी की.

उस समय तक उनका वेतन बढ़कर 5000 रुपए हो गया था. वे कंप्यूटर की मरम्मत और सर्विसिंग करके कुछ अतिरिक्त कमाई भी करने लगे थे.

वरप्रसाद ने उन्हें हैदराबाद स्थानांतरित होने और बेहतर नौकरियों की तलाश करने के लिए प्रोत्साहित किया, क्योंकि वे अब स्नातक थे. हैदराबाद में, संतोष ने कई इंटरव्यू दिए, लेकिन कमजोर संवाद कौशल के कारण उन्हें कोई नौकरी नहीं मिली.

संतोष कहते हैं, “एक कंपनी में एक महिला एचआर अधिकारी ने उन्हें संवाद कौशल में सुधार की सलाह दी. उन्होंने सुझाव दिया कि मैं कुछ डॉक्यूमेंट्री देखूं और अंग्रेजी अखबार पढ़ूं.”

वे पेद्दापल्ली लौट आए और लगभग एक साल तक अंग्रेजी बोलने के कौशल पर काम किया. उनके पिता एक अंग्रेजी दैनिक अखबार भी मंगवाने लगे.

गच्चीबाउली स्थित वेलनेसऑन किचन में अपनी टीम के साथ संतोष. 

2008 में, संतोष हैदराबाद लौट आए और एक बीपीओ में 8,500 रुपए के वेतन पर नौकरी करने लगे. वहां वे कंप्यूटर हार्डवेयर से जुड़ी समस्याओं पर अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों को ग्राहक सहायता प्रदान करते थे.

वे एक होस्टल में रहते थे और परिवार को हर महीने 5000 रुपए भेजते थे. उन्होंने नौकरी छोड़ने और 2010 में सिकंदराबाद के स्वामी विवेकानंद पीजी कॉलेज में एमबीए (फाइनैंस) के लिए दाखिला लेने से पहले करीब 18 महीने तक कंपनी में काम किया.

पढ़ाई के दौरान भी संतोष कई जगह पार्ट-टाइम काम करते रहे. वे कहते हैं, “मैंने कैटरिंग फर्म से लेकर सुपरमार्केट तक में कई काम किए.”

उन्होंने 2012 में एमबीए पूरा किया और बैंक ऑफ अमेरिका में एसोसिएट ट्रैनी के रूप में 10,000 रुपए प्रति माह के वेतन पर नौकरी हासिल की. वहां काम करते हुए उन्होंने ओरेकल एप्लीकेशंस में एक अल्पकालिक पाठ्यक्रम में दाखिला लिया, जिसने उनके जीवन को बड़े पैमाने पर बदल दिया.

2013 में, वे एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में एपलैब्स से जुड़े. कुछ ही महीनों में उनकी पदोन्नति हो गई और उनका वेतन 5 लाख रुपए से बढ़कर 8.5 लाख सालाना हो गया.

वे 2014 में 1.2 लाख रुपए प्रति माह के पैकेज पर ट्रिनिटी कॉरपोरेशन में चले गए. उसी साल अक्टूबर में सैन डिएगो, अमेरिका में ऑनसाइट अवसर मिला.

इस काम के लिए उन्हें 85,000 डाॅलर के रूप में सालाना भत्ता भी मिला. अमेरिका जाने के तीन महीने बाद, जिस क्लाइंट के लिए उन्होंने काम किया, उसे दूसरी कंपनी ने अधिग्रहित कर लिया और संतोष को अपना पद खोना पड़ा.

संतोष 2017 में वेट वॉचर्स में शामिल हुए और उनका वेतन 1 करोड़ रुपए सालाना हो गया.

जब ट्रिनिटी ने संतोष को वापस भारत बुलाया, तो वे अमेरिका में रुके रहे और क्लाइंट को परामर्श देने के लिए प्रति घंटे 100 डाॅलर चार्ज करने लगे. उन्होंने पूरे अमेरिका की यात्रा की और सात राज्यों में काम किया.

2016 में अपनी शादी के लिए थोड़े समय के लिए भारत आए संतोष याद करते हैं, “मैं घर का कर्ज चुकाने, अपने भाई-बहनों सतीश और सौम्या को शिक्षित करने, अपनी शादी के लिए बचत करने और सौम्या की शादी के लिए 10 लाख रुपए की फिक्स्ड डिपॉजिट करने में सक्षम था.”

अमेरिका लौटने के बाद उन्हें सितंबर 2017 में वेट वॉचर्स से एक बिजनेस एनालिस्ट के रूप में 143 हजार डाॅलर यानी करीब 1 करोड़ रुपए का प्रस्ताव मिला. यह उनका अब तक का सबसे अधिक वेतन था.

एक साल तक वहां काम करने के बाद संतोष को तेज थकान होने लगी और वे अक्सर बीमार रहने लगे. तभी वे अपनी कंपनी वेट वॉचेस के वजन घटाने के कार्यक्रम में शामिल हुए.

उन्होंने अपने कोच के साथ मिलकर काम किया क्योंकि अमेरिकी व्यंजनों के लिए प्रोग्राम किए गए डाइट प्लान को भारतीय व्यंजनों के लिए बदलना पड़ा. इसके बाद वे अपनी स्वास्थ्य समस्याओं को सुलझाने में सफल हुए और हल्के और ऊर्जावान महसूस करने लगे.

जनवरी 2020 में वे तीन महीने की छुट्टी पर भारत आए, लेकिन मार्च तक कोविड संबंधी यात्रा प्रतिबंध लागू होने के बाद से योजना के अनुसार अमेरिका नहीं लौट सके.

इसलिए उन्होंने घर से काम करना शुरू कर दिया. इसने उन्हें स्वयं के प्रोजेक्ट पर ध्यान केंद्रित करने का मौका दिया, जिसे उन्होंने इस साल अप्रैल में लॉन्च किया था.

वे कहते हैं, “सौभाग्य से मुझे यहीं से काम करने पर भी अमेरिकी वेतन मिल रहा था. उसी समय, मेरी पत्नी ने हमारे दूसरे बच्चे साईं सत्व को जन्म दिया और मुझे 90 दिनों का पितृत्व अवकाश लेने का अवसर मिला.”

संतोष की इस साल के अंत तक हैदराबाद में वेलनेसऑन की तीन और शाखाएं खोलने की योजना है. 

संतोष ने इस साल अगस्त में वेट वॉचर्स की नौकरी छोड़ दी. वे कहते हैं, “इससे मुझे परियोजना पर अधिक ध्यान केंद्रित करने में मदद मिली. भारत से काम करना मेरे लिए वरदान साबित हुआ.”

वेलनेसऑन की टीम में 12 किचन स्टाफ और कॉरपोरेट ऑफिस के छह लोग शामिल हैं. कंपनी ने हाल ही में अपने वेलनेस स्नैक्स लॉन्च किए हैं, जो इसकी वेबसाइट, अमेजन और फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध हैं.

वे कहते हैं, “हम इस साल के अंत तक हैदराबाद में तीन और शाखाएं खोलने की योजना बना रहे हैं. हमारा मिशन स्वस्थ खाने की आदतों और जीवन शैली के जरिये लोगों की कायापलट करना है.”

 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • Sharath Somanna story

    कंस्‍ट्रक्‍शन का महारथी

    बिना अनुभव कारोबार में कैसे सफलता हासिल की जा सकती है, यह बेंगलुरु के शरथ सोमन्ना से सीखा जा सकता है. बीबीए करने के दौरान ही अचानक वे कंस्‍ट्रक्‍शन के क्षेत्र में आए और तमाम उतार-चढ़ावों से गुजरने के बाद अब वे एक सफल बिल्डर हैं. अपनी ईमानदारी और समर्पण के चलते वे लगातार सफलता हासिल करते जा रहे हैं.
  • Match fixing story

    जोड़ी जमाने वाली जोड़ीदार

    देश में मैरिज ब्यूरो के साथ आने वाली समस्याओं को देखते हुए दिल्ली की दो सहेलियों मिशी मेहता सूद और तान्या मल्होत्रा सोंधी ने व्यक्तिगत मैट्रिमोनियल वेबसाइट मैचमी लॉन्च की. लोगों ने इसे हाथोहाथ लिया. वे अब तक करीब 100 शादियां करवा चुकी हैं. कंपनी का टर्नओवर पांच साल में 1 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है. बता रही हैं सोफिया दानिश खान
  • Chandubhai Virani, who started making potato wafers and bacome a 1800 crore group

    विनम्र अरबपति

    चंदूभाई वीरानी ने सिनेमा हॉल के कैंटीन से अपने करियर की शुरुआत की. उस कैंटीन से लेकर करोड़ों की आलू वेफ़र्स कंपनी ‘बालाजी’ की शुरुआत करना और फिर उसे बुलंदियों तक पहुंचाने का सफ़र किसी फ़िल्मी कहानी जैसा है. मासूमा भरमाल ज़रीवाला आपको मिलवा रही हैं एक ऐसे इंसान से जिसने तमाम परेशानियों के सामने कभी हार नहीं मानी.
  • Royal brother's story

    परेशानी से निकला बिजनेस आइडिया

    बेंगलुरु से पुड्‌डुचेरी घूमने गए दो कॉलेज दोस्तों को जब बाइक किराए पर मिलने में परेशानी हुई तो उन्हें इस काम में कारोबारी अवसर दिखा. लौटकर रॉयल ब्रदर्स बाइक रेंटल सर्विस लॉन्च की. शुरुआत में उन्हें लोन और लाइसेंस के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा, लेकिन मेहनत रंग लाई. अब तीन दोस्तों के इस स्टार्ट-अप का सालाना टर्नओवर 7.5 करोड़ रुपए है. रेंटल सर्विस 6 राज्यों के 25 शहरों में उपलब्ध है. बता रहे हैं गुरविंदर सिंह
  • Anjali Agrawal's story

    कोटा सिल्क की जादूगर

    गुरुग्राम की अंजलि अग्रवाल ने राजस्थान के कोटा तक सीमित रहे कोटा डोरिया सिल्क को न केवल वैश्विक पहचान दिलाई, बल्कि इसके बुनकरों को भी काम देकर उनकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ की. आज वे घर से ही केडीएस कंपनी को 1,500 रिसेलर्स के नेटवर्क के जरिए चला रही हैं. उनके देश-दुनिया में 1 लाख से अधिक ग्राहक हैं. 25 हजार रुपए के निवेश से शुरू हुई कंपनी का टर्नओवर अब 4 करोड़ रुपए सालाना है. बता रही हैं उषा प्रसाद