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Wednesday, 2 April 2025

8,000 रुपए से बिज़नेस शुरू किया, अब 10 साल में 100 करोड़ टर्नओवर का लक्ष्य

02-Apr-2025 By उषा प्रसाद
बेंगलुरु

Posted 30 Jun 2018

बहुत कम लोग होंगे, जो अपनी अच्छी-ख़ासी नौकरी छोड़कर बिज़नेस शुरू करने के बारे में सोचेंगे.

लेकिन बेंगलुरु के सौरव मोदी जब 23 साल के थे, तो उन्होंने 1.6 लाख रुपए सीटीसी वाली अर्न्स्ट ऐंड यंग की नौकरी छोड़ दी.

तेरह साल बाद वो जस्ट जूट नामक कंपनी के मालिक और सीईओ हैं.

साल 2015-16 में कंपनी का सालाना कारोबार 6.5 करोड़ रुपए रहा और उन्‍हें अपने फ़ैसले पर कोई पश्‍चाताप नहीं है.

सौरव मोदी ने वर्ष 2005 में अपनी मां से 8000 रुपए मांगकर बिज़नेस शुरू किया था. (सभी फ़ोटो – एच.के. राजाशेकर)


सौरव की कंपनी जूट के उत्‍पाद जैसे बैग, फ़ोल्डर, बेल्ट, पर्स और कॉर्पोरेट गिफ़्ट्स बनाती है. ये उत्‍पाद भारत की टॉप रिटेल चेन पर उपलब्‍ध हैं. इसके अलावा कुछ यूरोपीय देशों में भी निर्यात किए जाते हैं.

सौरव का ताल्लुक एक मध्यमवर्गीय परिवार से है. उन्होंने अपने बिज़नेस की शुरुआत मां से मांगे हुए 8,000 रुपए से की थी.

उस राशि में से उन्होंने 1,800 रुपए में एक सेकंड-हैंड सिलाई मशीन ख़रीदी, एक पार्ट-टाइम दर्जी रखा और विजयनगर में किराए के 100 वर्गफुट गैराज में काम शुरू कर दिया.

जहां दोस्त मज़े से कॉर्पोरेट नौकरी का आनंद उठा रहे थे, वहीं सौरव के शुरुआती दिन बेहद कठिन रहे.

उनका सबसे मुश्किल वक्त वर्ष 2007 में आया, जब सभी 30 कर्मचारी अचानक हड़ताल पर चले गए. लेकिन सौरव ने हिम्मत और संकल्‍प से उस स्थिति का सामना किया.

आज कामाक्षीपाल्या में 10,000 वर्गफुट में फैली दो युनिट में उनके लिए क़रीब 100 कर्मचारी काम करते हैं.

क्राइस्ट कॉलेज से ग्रैजुएशन के बाद सौरव ने टैक्स ऐनालिस्ट के तौर पर अर्न्स्ट ऐंड यंग कंपनी में डेढ़ साल काम किया.

वो अमेरिका जाकर एमबीए करना चाहते थे, लेकिन आर्थिक परेशानियों और पारिवारिक मामलों के चलते सपना पूरा नहीं कर पाए.

अपनी पत्‍नी निक्‍यता के साथ सौरव. निक्‍यता की बनाई डिज़ाइन कारोबार का अहम हिस्‍सा है.


सौरव बताते हैं, मुझे कैलिफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी में एमबीए में एडमिशन मिल गया था, लेकिन पीछे मुड़कर देखता हूं तो महसूस होता है कि जूट के उत्‍पाद बनाना ही मेरी किस्मत था.

सौरव अपनी नौकरी से जल्द बोर हो गए और अपने पिता के बिज़नेस में हाथ बंटाने का फैसला किया. उनके साथ उन्होंने दो साल काम किया.

उनके पिता असम की चाय के विभिन्न ब्रैंड्स के डिस्ट्रिब्यूटर थे और बेंगलुरु व आसपास के छोटे शहरों में चाय सप्लाई करते थे. इस बिज़नेस से इतना पैसा आ जाता था कि परिवार आराम से रह सके.

सौरव बताते हैं, मैंने दो साल पिताजी के बिज़नेस में हाथ बंटाया. वो एक सामान्‍य मार्केटिंग नौकरी थी. मेरा काम गांव में मार्केटिंग देखना था.

लेकिन मैं कुछ बड़ा करना चाहता था. एक दिन मैंने काम छोड़ दिया. चूंकि पिताजी भी ख़ुद संघर्ष कर सफल हुए थे, इसलिए उन्होंने मेरे फ़ैसले का समर्थन किया.

एक दिन शहर में जूट बैग खोजते हुए सौरव को जूट के उत्‍पाद बनाने का आइडिया आया.

उनके पिता उपहार देने के लिए जूट बैग ख़रीदना चाहते थे, लेकिन उन्हें बेंगलुरु में जूट बैग नहीं मिला. उन्हें बताया गया कि ऐसा बैग कोलकाता से मंगवाना पड़ेगा.

कामाक्षीपाल्‍या स्थित यूनिट में बैग बनाने में जुटे कर्मचारी.


सौरव बताते हैं, उस वक्त बेंगलुरु में बमुश्किल ही कहीं जूट के उत्‍पाद मिलते थे. ऐसे सामान बनाने वाली तो कोई कंपनी ही नहीं थी. वहीं से मुझे जस्‍ट जूट का आइडिया आया.

जब उन्होंने कंपनी शुरू करने के बारे में सोचा तो उन्हें एक भी अच्छा दर्जी नहीं मिला.

आखिरकार उन्हें एक दर्जी मिला, जो पार्ट-टाइम काम करने के लिए तैयार हुआ. उसे 10 किलोमीटर दूर उसके घर से हर दिन लाना होता था और छोड़ना होता था.

इस काम में सौरव को अपने कजिन सिद्धार्थ की मदद मिली, जो उस वक्‍त इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था.

शुरुआत में उन्होंने बैग और फोल्डर के छोटे ऑर्डर लिए.

धीरे-धीरे प्रचार-प्रसार हुआ. एक दिन उनके पिता के एक ग्राहक ने चाय पैक करने के 500 बैग का ऑर्डर दिया. काम शुरू करने के चार-पांच महीनों में यह पहला ऑर्डर था.

जल्द ही शहर के नामी जौहरी ने उन्हें ग्राहकों को भेंट देने के लिए जूट बैग बनाने का ऑर्डर दिया.

सौरव बताते हैं, ऑर्डर के पैसे से मैंने एक और मशीन ख़रीदी और दो पार्ट-टाइम दर्जियों को नौकरी दी. कभी-कभी काम करने में इतनी देरी हो जाती थी कि दर्जी मेरे घर पर ही सो जाते थे.

जस्‍ट जूट के उत्‍पाद देशभर की रिटेल चेन पर मिलने लगे हैं.


साल 2006 में उन्हें एक कैंडल एक्सपोर्टर से 70,000 रुपए का पहला बड़ा ऑर्डर मिला.

एडवांस मिले पैसे से उन्होंने चार नई मशीनें ख़रीदीं और तीन दर्जियों को काम पर रखा.

साल 2006 तक कंपनी बेहतर स्थिति में पहुंच गई थी.

साल 2008 में उन्होंने निक्यता से शादी की. निक्यता ने एनिमेशन की पढ़ाई की थी और उन्‍हें डिज़ाइन में महारत हासिल थी. शादी के बाद ही सौरव को उस वक्त तगड़ा झटका लगा, जब कर्मचारी हड़ताल पर चले गए.

सौरव बताते हैं, मेरे हाथ में ढेर सारे ऑर्डर थे. हड़ताल के चलते कई ऑर्डर रद्द हो गए.

उन्होंने लगभग काम बंद करने का फ़ैसला कर लिया था, जब उनकी पत्नी निक्यता ने उन्हें हिम्मत नहीं हारने को कहा और बिज़नेस को दोबारा खड़ा करने में मदद की.

सौरव ने अपने सभी कर्मचारियों को नौकरी से हटाकर अगले छह महीने में नई टीम शुरू की. बिज़नेस बढ़ाने के लिए उन्होंने बैंक से ऋण लिया.

निक्यता ने अपनी प्रतिभा का इस्‍तेमाल किया और नए बैग के लिए बेहतरीन डिज़ाइन बनाईं.

सौरव बताते हैं, निक्यता की डिज़ाइन की बदौलत हमें अपने प्रतिद्वंद्वियों पर बढ़त मिलने लगी.

बिज़नेस में तरक्की होने लगी.

कंपनी अलग-अलग तरह के हैंडबैग, पर्स, लैपटॉप बैग, फोल्डर आदि बनाने लगी. अब दूसरे फ़ैब्रिक जैसे ऑर्गेनिक कॉटन, पॉलीयूरथेन की मदद से भी सामान बनाया जा रहा है.

वर्ष 2008 में जब कर्मचारी हड़ताल के कारण सौरव ने बिज़नेस बंद करना चाहते थे, तब निक्‍यता ने ही बिज़नेस जारी रखने को कहा.


जस्ट जूट का 70 प्रतिशत बिज़नेस बैग से आता है.

ब्रैंड नेम की अहमियत समझते हुए साल 2013 में सौरव ने पहला लेबल एनवाईके – निक्यता का छोटा नाम – लॉन्‍च किया.

सौरव अगले 10 साल में 100 करोड़ का बिज़नेस खड़ा करना चाहते हैं.


 

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