Milky Mist

Sunday, 16 November 2025

सात्विक भोजन बेचकर आप सालभर में 18 करोड़ रुपए कमा सकते हैं

16-Nov-2025 By सोफिया दानिश खान
नई दिल्ली

Posted 24 Apr 2019

भारत में सात्विक जीवन जीने का मतलब है प्रकृति के साथ तालमेल बनाकर रखना और सादा लेकिन पौष्टिक भोजन करना.

इसी सोच को ध्यान में रखकर प्रसून गुप्ता और अंकुश शर्मा ने जनवरी 2017 में सात्विक स्नैक्स ब्रैंड सात्विको की शुरुआत की.

उनकी कंपनी रेज कलिनरी डिलाइट्स प्राइवेट लिमिटेड ने वित्तीय वर्ष 2017-18 में 18 करोड़ रुपए का सालाना टर्नओवर हासिल किया.

कंपनी में 145 लोग काम करते हैं.

एक तरफ़ जहां प्रसून ब्रैंडिंग और सेल्स का काम देखते हैं, वहीं अंकुश दिल्ली में 10,000 वर्ग फ़ीट में फैली फैैक्ट्री में ऑपरेशंस संभालते हैं.

इसी फैैक्ट्री में करीब 300 थर्ड पार्टी वेंडर्स से लिए गए खाने को पैक किया जाता है.

प्रसून गुप्‍ता (बाएं) और अंकुश शर्मा के लिए सात्विको तीसरा और सबसे सफल बिजनेस है. (सभी फोटो : नवनीता)


प्रसून बताते हैं, पैकेज को इस तरह डिज़ाइन किया गया है कि आप कहीं आते-जाते भी खा सकें. स्नैक्स कई तरह के होते हैं जैसे खाकरा, फ्लेवर किया गया मखाना. ये सभी सिर्फ स्वास्थ्य के लिए अच्छे होते हैं और इनका स्‍वाद भी बेहतर होता है.

कंपनी के सबसे सबसे मशहूर स्नैक्स हैं पान मुनक्‍का, जीरा वाले मूंगफली के दाने और गुड़ चना.

कंपनी के प्रॉडक्ट्स डिपार्टमेंट स्टोर्स के अलावा ऑनलाइन रीटेल स्टोर्स में भी उपलब्ध हैं.

पूरे भारत में कंपनी के 30 डिस्ट्रिब्यूटर्स हैं और उनकी लुफ्थांसा, ताज होटल के अलावा देशभर के हवाईअड्डों तक पहुंच है.

उम्मीद है कि वित्तीय वर्ष 2018-19 में कंपनी का टर्नओवर 25-30 करोड़ रुपए तक पहुंच जाएगा. अगले साल इसके दोगुना होने की उम्‍मीद है.

हालांकि इस मुकाम तक पहुंचना दोनों के लिए सहज नहीं था.

इसकी शुरुआत से पहले उनकी दो कोशिशें नाकाम हुईं और उन्हें दोनों बिजनेस बीच में छोड़ने पड़े.

32 वर्षीय प्रसून ने अंकुश और कुछ दोस्तों के साथ मिलकर स्‍कूली छात्रों के लिए ऑनलाइन एजुकेशन प्‍लेटफॉर्म टेकबडीज लांच किया था. तब वो आईआईटी रुड़की में इंजीनियरिंग की पढ़ाई के आखिरी साल में थे.

प्रसून याद करते हैं, इसके पीछे मेरे दोस्‍त सुरेन कुमार का तकनीकी दिमाग था, जबकि दूसरे दोस्त अभिषेक शर्मा, पवन गुप्ता, अंकुश और मैंने दूसरे पहलुओं का ध्यान रखा.

ग्रैजुएशन के बाद साल 2009 के मध्य में वो रुड़की से दिल्ली आ गए. वो सभी फायदेमंद स्टार्टअप शुरू करना चाहते थे. इसके लिए सभी ने पचास-पचास हजार रुपए इकट्ठा किए और एक छोटा सा मकान किराए पर लिया.

प्रसून मुस्‍कुराते हुए याद करते हैं, हम अपने घरों में काम करते थे लेकिन क्लाइंट से मीटिंग पड़ोसी के घर में किया करते थे.

पहले साल कंपनी का टर्नओवर एक करोड़ रुपए रहा, लेकिन जल्द ही सुरेन ने कंपनी छोड़ दी और नौकरी कर ली. साल 2009 के अंत तक दो अन्‍य साथियों ने भी निजी कारणों के चलते कंपनी छोड़ दी.

जेनपेक्‍ट के रमन रॉय सात्विको के मुख्‍य निवेशकों में से एक हैं.


प्रसून कहते हैं, हम जयपुर आ गए ताकि छोटे शहरों में मौके तलाश सकें, लेकिन दो लाख छात्र-छात्राओं को ट्रेंड करने और 600 फ़ैकल्टी सदस्यों, जो बड़ी-बड़ी कंपनियों के सीईओ थे, के बावजूद हमें मन मुताबिक फायदा नहीं हो रहा था. इसलिए वर्ष 2013 में 50 लाख रुपए में हमने कंपनी बेच दी.

इसके बाद जल्‍द ही प्रसून पूरे देश की यात्रा पर निकल गए. उन्‍होंने अधिकतर यात्रा सड़क से की, 28 राज्‍यों में घूमे. कई दूरस्‍थ इलाकों में भी गए.

प्रसून कहते हैं, उस साल मैंने विचार किया कंपनी क्यों नहीं चली. उसी दौरान मुझे महसूस हुआ कि बिज़नेस कितना बड़ा है वह इस बात पर निर्भर करता है कि टर्नओवर कितना बड़ा है, न कि कंपनी के आकार पर.

दिल्ली में उनकी अंकुश से फिर मुलाकात हुई और उन्होंने नए सिरे से बिजनेस शुरू करने का विचार किया.

बेंगलुरु में उन्हें सात्वम नामक रेस्तरां दिखा, जहां परंपरागत सात्विक खाना परोसा जाता था. उन्होंने दिल्ली में भी ऐसी ही एक चेन खोलने के बारे में सोचा.

साल के अंत तक दिल्ली में उनके आठ रेस्तरां हो गए. उन्होंने खुद 30 लाख रुपए जमा किए और परिवार व दोस्तों से डेढ़ करोड़ रुपए जुटाए.

प्रसून कहते हैं, हम परंपरागत भारतीय खाना आधुनिक तरीके से सर्व करना चाहते थे. इसी कोशिश में हमने पैकेज्ड खाना भी रखना शुरू किया, जो बहुत हिट रहा.

रेस्तरां अच्छा बिजनेस नहीं कर रहे थे. ऐसे में एक दिन हमारी मुलाकात बीपीओ इंडस्ट्री के पितामह और जेनपेक्ट के प्रमुख रमन रॉय से हुई. उन्होंने कहा कि अगर हम रेस्तरां बंद कर दें तो वो पैकेज्ड खाने के बिजनेस में निवेश कर सकते हैं.

सात्विको में 145 लोग काम करते हैं. अपने कुछ कर्मचारियों के साथ प्रसून और अंकुश.


इस तरह सात्विको का जन्म हुआ.

प्रसून अपनी सफलता का मंत्र बताते हैं, सात्विको के सफ़ल होने का कारण प्रॉडक्‍ट में इनोवेशन है. हमने इसकी मार्केटिंग करना भी सीखा है.

कंपनी को अब तक 30 निवेशकों से 10 लाख डॉलर का निवेश मिल चुका है. इनमें हेलिऑन के आशीष गुप्‍ता प्रमुख हैं. इस निवेश की बदौलत कंपनी अमेरिका, ब्रिटेन और दुबई में बिजनेस फैलाने के बारे में विचार कर रही है.

कंपनी को कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है. इनमें नैशनल एंटरप्रेन्‍योर अवार्ड-2017 (पांच लाख का नकद पुरस्‍कार), अचीवर्स ऑफ द वर्ल्‍ड– बिजनेस वर्ल्‍ड, टाइकॉन एंटरप्रेन्‍योरशिप अवार्ड और राजस्‍थान सरकार का भामाशाह अवार्ड (20 लाख रुपए नकद पुरस्‍कार) मिल चुका है.


 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • Agnelorajesh Athaide story

    मुंबई के रियल हीरो

    गरीब परिवार में जन्मे एग्नेलोराजेश को परिस्थितिवश मुंबई की चॉल और मालवानी जैसे बदनाम इलाके में रहना पड़ा. बारिश में कई रातें उन्होंने टपकती छत के नीचे भीगते हुए गुजारीं. इन्हीं परिस्थितियाें ने उनके भीतर का एक उद्यमी पैदा किया. सफलता की सीढ़ियां चढ़ते-चढ़ते वे आज सफल बिल्डर और मोटिवेशनल स्पीकर हैं. बता रहे हैं गुरविंदर सिंह
  • He didn’t get regular salary, so started business and became successful

    मजबूरी में बने उद्यमी

    जब राजीब की कंपनी ने उन्हें दो महीने का वेतन नहीं दिया तो उनके घर में खाने तक की किल्लत हो गई, तब उन्होंने साल 2003 में खुद का बिज़नेस शुरू किया. आज उनकी तीन कंपनियों का कुल टर्नओवर 71 करोड़ रुपए है. बेंगलुरु से उषा प्रसाद की रिपोर्ट.
  • Metamorphose of Nalli silks by a young woman

    सिल्क टाइकून

    पीढ़ियों से चल रहे नल्ली सिल्क के बिज़नेस के बारे में धारणा थी कि स्टोर में सिर्फ़ शादियों की साड़ियां ही मिलती हैं, लेकिन नई पीढ़ी की लावण्या ने युवा महिलाओं को ध्यान में रख नल्ली नेक्स्ट की शुरुआत कर इसे नया मोड़ दे दिया. बेंगलुरु से उषा प्रसाद बता रही हैं नल्ली सिल्क्स के कायापलट की कहानी.
  • Honey and Spice story

    शुद्ध मिठास के कारोबारी

    ट्रेकिंग के दौरान कर्नाटक और तमिलनाडु के युवा इंजीनियरों ने जनजातीय लोगों को जंगल में शहद इकट्‌ठी करते देखा. बाजार में मिलने वाली बोतलबंद शहद के मुकाबले जब इसकी गुणवत्ता बेहतर दिखी तो दोनों को इसके बिजनेस का विचार आया. 7 लाख रुपए लगातार की गई शुरुआत आज 3.5 करोड़ रुपए के टर्नओवर में बदलने वाली है. पति-पत्नी मिलकर यह प्राकृतिक शहद विदेश भी भेज रहे हैं. बता रही हैं उषा प्रसाद
  • success story of courier company founder

    टेलीफ़ोन ऑपरेटर बना करोड़पति

    अहमद मीरान चाहते तो ज़िंदगी भर दूरसंचार विभाग में कुछ सौ रुपए महीने की तनख्‍़वाह पर ज़िंदगी बसर करते, लेकिन उन्होंने कारोबार करने का निर्णय लिया. आज उनके कूरियर बिज़नेस का टर्नओवर 100 करोड़ रुपए है और उनकी कंपनी हर महीने दो करोड़ रुपए तनख्‍़वाह बांटती है. चेन्नई से पी.सी. विनोज कुमार की रिपोर्ट.