Milky Mist

Tuesday, 21 October 2025

एक लाख रुपए जोड़कर बनाई कंपनी, अब टर्नओवर है 12 करोड़ सालाना

21-Oct-2025 By गुरविंदर सिंह
पुणे

Posted 28 Jul 2018

रोहित प्रसाद और विक्रम कुमार - दोनों की उम्र 34 साल. दोनों न सिर्फ़ अच्छे दोस्त और बिज़नेस पार्टनर हैं, बल्कि इनमें बहुत सी ऐसी बातें हैं, जो इनकी दोस्‍ती को मजबूत बनाती है.

दोनों मध्यमवर्गीय पृष्‍ठभूमि से आते हैं. पढ़ाई के दिनों से महत्वाकांक्षी थे और अपना खुद का कुछ शुरू करना चाहते थे.

इनकी मुलाक़ात पुणे के सिम्‍बायोसिस सेंटर फ़ॉर इनफ़ॉर्मेशन टेक्नॉलोजी (एससीआईटी) में हुई, जहां दोनों ने एमबीए किया.

विक्रम कुमार (बाएं) और रोहित प्रसाद ने एससीआईटी, पुणे से एमबीए करने के बाद वर्ष 2011 में एसआरवी मीडिया की स्‍थापना की. (सभी फ़ोटो : विशेष व्‍यवस्‍था से)


रोहित बताते हैं, हमें तत्‍काल ही समझ आ गया कि हमारे लक्ष्‍य एक ही हैं. साल 2011 में दोनों साथ आए और 50-50 हज़ार रुपए मिलाकर एक लाख रुपए के निवेश से पुणे में एसआरवी मीडिया प्राइवेट लिमिटेड की शुरुआत की. यह एक डिजिटल मार्केटिंग कंपनी है.

एसआरवी कई तरह की डिजिटल सर्विस देती थी, जिनमें सर्च इंजन ऑप्टिमाइजेशन, सोशल मीडिया मार्केटिंग, डिज़ाइन ऐंड ब्रैंडिंग, मोबाइल ऐप्लिकेंशस, वेबसाइट डेवलपमेंट आदि शामिल थीं.

विक्रम बताते हैं, हम शहर के एक छोटे से कमरे से काम करते थे. वही हमारा हेडक्वार्टर था.

कंपनी ने जल्द ही तरक्की की. आज इसका टर्नओवर 12 करोड़ रुपए सालाना है.

लेकिन शुरुआत आसान नहीं थी.

रोहित बताते हैं, हमारे लिए कर्मचारी ढूंढना बहुत मुश्किल था क्योंकि हमारी कंपनी छोटी थी और हमारे पास पैसे भी ज्‍़यादा नहीं थे. लोग हम पर भरोसा जताने में संकोच करते थे.

संयोग देखिए कंपनी की पहली क्लाइंट सिम्‍बायोसिस रही, जहां वो पढ़ चुके थे. उन्‍होंने संस्‍थान की डिजिटल मार्केटिंग की जिम्‍मेदारी संभाली.

रोहित और विक्रम ने साल 2014 में ईज़बज़ नामक पेमेंट गेटवे की शुरुआत की. अब उनके पुणे के अलावा सूरत और गुड़गांव में भी ऑफिस हैं.


विक्रम बताते हैं, शुरुआत चुनौतीपूर्ण थी, लेकिन हमने ईमानदारी व संपूर्णता से काम किया और अपने वादों को पूरा किया. धीरे-धीरे लोगों का भरोसा बढ़ता गया, जिससे हमें और क्लाइंट्स मिलने लगे.

रोहित के परिवार का ताल्लुक पटना (बिहार) से है. उनके पिता केंद्र सरकार की रूरल इलेक्ट्रिफ़िकेशन कंपनी में काम करते थे. मां गृहिणी थीं.

रोहित बताते हैं, हमारे घर की माली हालत ठीक नहीं थी क्योंकि पिताजी की तनख्‍़वाह पूरे परिवार को चलाने के लिए काफ़ी नहीं थी. मेरे दादा की जल्‍द मृत्यु होने के कारण पिताजी पर छोटे भाइयों की पढ़ाई का भी बोझ था.

पिता का ट्रांसफ़र एक जगह से दूसरी जगह होता रहता था. इसलिए रोहित ने पढ़ाई की शुरुआत कोलकाता के जीएसएस स्कूल से की और 2004 में दिल्ली पब्लिक स्कूल में पूरी की.

रोहित बताते हैं, इसके बाद मैंने गुड़गांव (अब गुरुग्राम) की आईटीएम युनिवर्सिटी से इलेक्ट्रॉनिक्स ऐंड इंस्ट्रुमेंटेशन में इंजीनियरिंग की. 2005-09 तक टीसीएस में नौकरी की.

साल 2009 में रोहित ने एमबीए करने के लिए एससीआईटी में प्रवेश लिया.

दूसरी तरफ़, विक्रम का ताल्लुक बोकारो (झारखंड) से है. रोहित की तरह उनकी भी एक बड़ी बहन थीं. उनके पिता स्टील अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया (सेल) में काम करते थे और मां गृहिणी थीं.

बोकारो इस्पात सेकंडरी स्कूल से साल 2001 में पढ़ाई करने के बाद उन्होंने बीआईटी रांची में 2004-08 तक पढ़ाई की. उसके बाद साल 2009 में एससीआईटी पुणे में दाखिला लिया.

एससीआईटी में विक्रम और रोहित का संपर्क हुआ. दोनों ने साल 2011 में एमबीए पूरा किया. रोहित को मुंबई की एक्सेंचर टेक्नॉलोजी में 11 लाख रुपए के पैकेज पर नौकरी मिल गई, जबकि विक्रम को एचडीएफ़सी बैंक में 5.5 लाख रुपए के पैकेज पर नौकरी मिली.

नौकरी मिलने के बावजूद उन्होंने अप्रैल 2011 में दो कर्मचारियों के साथ एसआरवी मीडिया की शुरुआत कर दी. एसआरवी का पहले साल का टर्नओवर मात्र एक लाख रुपए था. साल 2013 में विक्रम ने नौकरी छोड़ दी और पूरा ध्यान एसआरवी पर लगाया. ये मौक़ा था जब एसआरवी की किस्मत में बदलाव शुरू हुआ.

एसआरवी मीडिया और ईज़बज़ ने कुल 120 लोगों को रोज़गार दिया है.


साल 2014 में उन्होंने अपनी जमापूंजी से 15 लाख रुपए का निवेश कर पेमेंट गेटवे ईज़बज़ की शुरुआत की.

साल 2015 में रोहित ने भी नौकरी छोड़ दी और पूरी तरह एसआरवी मीडिया से जुड़ गए. वे बताते हैं, हम पेमेंट गेटवे के साथ वैल्यू ऐडेड सर्विसेज़ की शुरुआत करना चाहते थे ताकि छोटे और मध्यम बिज़नेस को फ़ायदा हो.

क्रेडिट, डेबिट कार्ड और नेटबैंकिंग से ईज़बज़ पेमेंट गेटवे के जरिये हुए हर ट्रांजेक्‍शन पर कंपनी को 1.1 से 2.5 प्रतिशत कमीशन मिलता है.

एक अलग कंपनी के तौर पर साल 2017-18 में ईज़बज़ ने दो करोड़ रुपए कमाए.

एसआरवी के पास अभी 55 से अधिक क्लाइंट्स हैं, जबकि ईज़बज़ पर 5,000 व्यापारी रजिस्टर्ड हैं. दोनों कंपनियों में कुल 120 लोग काम करते हैं.

पुणे के अलावा अब सूरत और गुड़गांव (अब गुरुग्राम) में भी कंपनी के दफ़्तर हैं.

कंपनी का लक्ष्य है कि वो आने वाले दिनों में टेक्नॉलोजी और सॉल्‍यूशंस पर फ़ोकस करके एक ग्लोबल कंपनी बन जाए.

साल 2012 में रोहित ने स्वर्णिमा माथुर से शादी की और उनकी बेटी का नाम आनवी है. उधर विक्रम ने साल 2015 में प्रियंका से शादी की और उनके बेटे का नाम आदित्य है.

यह आश्‍चर्यजनक नहीं है कि दोनों का सफलता का मंत्र एक ही है : धैर्य और दृढ़ता.

इसका निश्चित रूप से उन्‍हें प्रतिफल मिल रहा है!


 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • ‘It is never too late to organize your life, make  it purpose driven, and aim for success’

    द वीकेंड लीडर अब हिंदी में

    सकारात्मक सोच से आप ज़िंदगी में हर चीज़ बेहतर तरीक़े से कर सकते हैं. इस फलसफ़े को अपना लक्ष्य बनाकर आगे बढ़ने वाले देशभर के लोगों की कहानियां आप ‘वीकेंड लीडर’ के ज़रिये अब तक अंग्रेज़ी में पढ़ रहे थे. अब हिंदी में भी इन्हें पढ़िए, सबक़ लीजिए और आगे बढ़िए.
  • World class florist of India

    फूल खिले हैं गुलशन-गुलशन

    आज दुनिया में ‘फ़र्न्स एन पेटल्स’ जाना-माना ब्रैंड है लेकिन इसकी कहानी बिहार से शुरू होती है, जहां का एक युवा अपने पूर्वजों की ख़्याति को फिर अर्जित करना चाहता था. वो आम जीवन से संतुष्ट नहीं था, बल्कि कुछ बड़ा करना चाहता था. बिलाल हांडू बता रहे हैं यह मशहूर ब्रैंड शुरू करने वाले विकास गुटगुटिया की कहानी.
  • Apparels Manufacturer Super Success Story

    स्पोर्ट्स वियर के बादशाह

    रोशन बैद की शुरुआत से ही खेल में दिलचस्पी थी. क़रीब दो दशक पहले चार लाख रुपए से उन्होंने अपने बिज़नेस की शुरुआत की. आज उनकी दो कंपनियों का टर्नओवर 240 करोड़ रुपए है. रोशन की सफ़लता की कहानी दिल्ली से सोफ़िया दानिश खान की क़लम से.
  • Udipi boy took south indian taste to north india and make fortune

    उत्तर भारत का डोसा किंग

    13 साल की उम्र में जयराम बानन घर से भागे, 18 रुपए महीने की नौकरी कर मुंबई की कैंटीन में बर्तन धोए, मेहनत के बल पर कैंटीन के मैनेजर बने, दिल्ली आकर डोसा रेस्तरां खोला और फिर कुछ सालों के कड़े परिश्रम के बाद उत्तर भारत के डोसा किंग बन गए. बिलाल हांडू आपकी मुलाक़ात करवा रहे हैं मशहूर ‘सागर रत्ना’, ‘स्वागत’ जैसी होटल चेन के संस्थापक और मालिक जयराम बानन से.
  • Archna Stalin Story

    जो हार न माने, वो अर्चना

    चेन्नई की अर्चना स्टालिन जन्मजात योद्धा हैं. महज 22 साल की उम्र में उद्यम शुरू किया. असफल रहीं तो भी हार नहीं मानी. छह साल बाद दम लगाकर लौटीं. पति के साथ माईहार्वेस्ट फार्म्स की शुरुआती की. किसानों और ग्राहकों का समुदाय बनाकर ऑर्गेनिक खेती की. महज तीन साल में इनकी कंपनी का टर्नओवर 1 करोड़ रुपए पहुंच गया. बता रही हैं उषा प्रसाद