Milky Mist

Tuesday, 20 May 2025

एक लाख रुपए जोड़कर बनाई कंपनी, अब टर्नओवर है 12 करोड़ सालाना

20-May-2025 By गुरविंदर सिंह
पुणे

Posted 28 Jul 2018

रोहित प्रसाद और विक्रम कुमार - दोनों की उम्र 34 साल. दोनों न सिर्फ़ अच्छे दोस्त और बिज़नेस पार्टनर हैं, बल्कि इनमें बहुत सी ऐसी बातें हैं, जो इनकी दोस्‍ती को मजबूत बनाती है.

दोनों मध्यमवर्गीय पृष्‍ठभूमि से आते हैं. पढ़ाई के दिनों से महत्वाकांक्षी थे और अपना खुद का कुछ शुरू करना चाहते थे.

इनकी मुलाक़ात पुणे के सिम्‍बायोसिस सेंटर फ़ॉर इनफ़ॉर्मेशन टेक्नॉलोजी (एससीआईटी) में हुई, जहां दोनों ने एमबीए किया.

विक्रम कुमार (बाएं) और रोहित प्रसाद ने एससीआईटी, पुणे से एमबीए करने के बाद वर्ष 2011 में एसआरवी मीडिया की स्‍थापना की. (सभी फ़ोटो : विशेष व्‍यवस्‍था से)


रोहित बताते हैं, हमें तत्‍काल ही समझ आ गया कि हमारे लक्ष्‍य एक ही हैं. साल 2011 में दोनों साथ आए और 50-50 हज़ार रुपए मिलाकर एक लाख रुपए के निवेश से पुणे में एसआरवी मीडिया प्राइवेट लिमिटेड की शुरुआत की. यह एक डिजिटल मार्केटिंग कंपनी है.

एसआरवी कई तरह की डिजिटल सर्विस देती थी, जिनमें सर्च इंजन ऑप्टिमाइजेशन, सोशल मीडिया मार्केटिंग, डिज़ाइन ऐंड ब्रैंडिंग, मोबाइल ऐप्लिकेंशस, वेबसाइट डेवलपमेंट आदि शामिल थीं.

विक्रम बताते हैं, हम शहर के एक छोटे से कमरे से काम करते थे. वही हमारा हेडक्वार्टर था.

कंपनी ने जल्द ही तरक्की की. आज इसका टर्नओवर 12 करोड़ रुपए सालाना है.

लेकिन शुरुआत आसान नहीं थी.

रोहित बताते हैं, हमारे लिए कर्मचारी ढूंढना बहुत मुश्किल था क्योंकि हमारी कंपनी छोटी थी और हमारे पास पैसे भी ज्‍़यादा नहीं थे. लोग हम पर भरोसा जताने में संकोच करते थे.

संयोग देखिए कंपनी की पहली क्लाइंट सिम्‍बायोसिस रही, जहां वो पढ़ चुके थे. उन्‍होंने संस्‍थान की डिजिटल मार्केटिंग की जिम्‍मेदारी संभाली.

रोहित और विक्रम ने साल 2014 में ईज़बज़ नामक पेमेंट गेटवे की शुरुआत की. अब उनके पुणे के अलावा सूरत और गुड़गांव में भी ऑफिस हैं.


विक्रम बताते हैं, शुरुआत चुनौतीपूर्ण थी, लेकिन हमने ईमानदारी व संपूर्णता से काम किया और अपने वादों को पूरा किया. धीरे-धीरे लोगों का भरोसा बढ़ता गया, जिससे हमें और क्लाइंट्स मिलने लगे.

रोहित के परिवार का ताल्लुक पटना (बिहार) से है. उनके पिता केंद्र सरकार की रूरल इलेक्ट्रिफ़िकेशन कंपनी में काम करते थे. मां गृहिणी थीं.

रोहित बताते हैं, हमारे घर की माली हालत ठीक नहीं थी क्योंकि पिताजी की तनख्‍़वाह पूरे परिवार को चलाने के लिए काफ़ी नहीं थी. मेरे दादा की जल्‍द मृत्यु होने के कारण पिताजी पर छोटे भाइयों की पढ़ाई का भी बोझ था.

पिता का ट्रांसफ़र एक जगह से दूसरी जगह होता रहता था. इसलिए रोहित ने पढ़ाई की शुरुआत कोलकाता के जीएसएस स्कूल से की और 2004 में दिल्ली पब्लिक स्कूल में पूरी की.

रोहित बताते हैं, इसके बाद मैंने गुड़गांव (अब गुरुग्राम) की आईटीएम युनिवर्सिटी से इलेक्ट्रॉनिक्स ऐंड इंस्ट्रुमेंटेशन में इंजीनियरिंग की. 2005-09 तक टीसीएस में नौकरी की.

साल 2009 में रोहित ने एमबीए करने के लिए एससीआईटी में प्रवेश लिया.

दूसरी तरफ़, विक्रम का ताल्लुक बोकारो (झारखंड) से है. रोहित की तरह उनकी भी एक बड़ी बहन थीं. उनके पिता स्टील अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया (सेल) में काम करते थे और मां गृहिणी थीं.

बोकारो इस्पात सेकंडरी स्कूल से साल 2001 में पढ़ाई करने के बाद उन्होंने बीआईटी रांची में 2004-08 तक पढ़ाई की. उसके बाद साल 2009 में एससीआईटी पुणे में दाखिला लिया.

एससीआईटी में विक्रम और रोहित का संपर्क हुआ. दोनों ने साल 2011 में एमबीए पूरा किया. रोहित को मुंबई की एक्सेंचर टेक्नॉलोजी में 11 लाख रुपए के पैकेज पर नौकरी मिल गई, जबकि विक्रम को एचडीएफ़सी बैंक में 5.5 लाख रुपए के पैकेज पर नौकरी मिली.

नौकरी मिलने के बावजूद उन्होंने अप्रैल 2011 में दो कर्मचारियों के साथ एसआरवी मीडिया की शुरुआत कर दी. एसआरवी का पहले साल का टर्नओवर मात्र एक लाख रुपए था. साल 2013 में विक्रम ने नौकरी छोड़ दी और पूरा ध्यान एसआरवी पर लगाया. ये मौक़ा था जब एसआरवी की किस्मत में बदलाव शुरू हुआ.

एसआरवी मीडिया और ईज़बज़ ने कुल 120 लोगों को रोज़गार दिया है.


साल 2014 में उन्होंने अपनी जमापूंजी से 15 लाख रुपए का निवेश कर पेमेंट गेटवे ईज़बज़ की शुरुआत की.

साल 2015 में रोहित ने भी नौकरी छोड़ दी और पूरी तरह एसआरवी मीडिया से जुड़ गए. वे बताते हैं, हम पेमेंट गेटवे के साथ वैल्यू ऐडेड सर्विसेज़ की शुरुआत करना चाहते थे ताकि छोटे और मध्यम बिज़नेस को फ़ायदा हो.

क्रेडिट, डेबिट कार्ड और नेटबैंकिंग से ईज़बज़ पेमेंट गेटवे के जरिये हुए हर ट्रांजेक्‍शन पर कंपनी को 1.1 से 2.5 प्रतिशत कमीशन मिलता है.

एक अलग कंपनी के तौर पर साल 2017-18 में ईज़बज़ ने दो करोड़ रुपए कमाए.

एसआरवी के पास अभी 55 से अधिक क्लाइंट्स हैं, जबकि ईज़बज़ पर 5,000 व्यापारी रजिस्टर्ड हैं. दोनों कंपनियों में कुल 120 लोग काम करते हैं.

पुणे के अलावा अब सूरत और गुड़गांव (अब गुरुग्राम) में भी कंपनी के दफ़्तर हैं.

कंपनी का लक्ष्य है कि वो आने वाले दिनों में टेक्नॉलोजी और सॉल्‍यूशंस पर फ़ोकस करके एक ग्लोबल कंपनी बन जाए.

साल 2012 में रोहित ने स्वर्णिमा माथुर से शादी की और उनकी बेटी का नाम आनवी है. उधर विक्रम ने साल 2015 में प्रियंका से शादी की और उनके बेटे का नाम आदित्य है.

यह आश्‍चर्यजनक नहीं है कि दोनों का सफलता का मंत्र एक ही है : धैर्य और दृढ़ता.

इसका निश्चित रूप से उन्‍हें प्रतिफल मिल रहा है!


 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • Success story of Wooden Street

    ऑनलाइन फ़र्नीचर बिक्री के महारथी

    चार युवाओं ने पांच लाख रुपए की शुरुआती पूंजी लगाकर फ़र्नीचर के कारोबार की शुरुआत की और सफल भी हुए. तीन साल में ही इनका सालाना कारोबार 18 करोड़ रुपए तक पहुंच गया. नई दिल्ली से पार्थाे बर्मन के शब्दों में पढ़ें इनकी सफलता की कहानी.
  • Pagariya foods story

    क्वालिटी : नाम ही इनकी पहचान

    नरेश पगारिया का परिवार हमेशा खुदरा या होलसेल कारोबार में ही रहा. उन्होंंने मसालों की मैन्यूफैक्चरिंग शुरू की तो परिवार साथ नहीं था, लेकिन बिजनेस बढ़ने पर सबने नरेश का लोहा माना. महज 5 लाख के निवेश से शुरू बिजनेस ने 2019 में 50 करोड़ का टर्नओवर हासिल किया. अब सपना इसे 100 करोड़ रुपए करना है.
  • Vaibhav Agrawal's Story

    इन्हाेंने किराना दुकानों की कायापलट दी

    उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के आईटी ग्रैजुएट वैभव अग्रवाल को अपने पिता की किराना दुकान को बड़े स्टोर की तर्ज पर बदलने से बिजनेस आइडिया मिला. वे अब तक 12 शहरों की 50 दुकानों को आधुनिक बना चुके हैं. महज ढाई लाख रुपए के निवेश से शुरू हुई कंपनी ने दो साल में ही एक करोड़ रुपए का टर्नओवर छू लिया है. बता रही हैं सोफिया दानिश खान.
  • The Tea Kings

    ये हैं चेन्नई के चाय किंग्स

    चेन्नई के दो युवाओं ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई, फिर आईटी इंडस्ट्री में नौकरी, शादी और जीवन में सेटल हो जाने की भेड़ चाल से हटकर चाय की फ्लैवर्ड चुस्कियों को अपना बिजनेस बनाया. आज वे 17 आउटलेट के जरिये चेन्नई में 7.4 करोड़ रुपए की चाय बेच रहे हैं. यह इतना आसान नहीं था. इसके लिए दोनों ने बहुत मेहनत की.
  • Saravanan Nagaraj's Story

    100% खरे सर्वानन

    चेन्नई के सर्वानन नागराज ने कम उम्र और सीमित पढ़ाई के बावजूद अमेरिका में ऑनलाइन सर्विसेज कंपनी शुरू करने में सफलता हासिल की. आज उनकी कंपनी का टर्नओवर करीब 18 करोड़ रुपए सालाना है. चेन्नई और वर्जीनिया में कंपनी के दफ्तर हैं. इस उपलब्धि के पीछे सर्वानन की अथक मेहनत है. उन्हें कई बार असफलताएं भी मिलीं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. बता रही हैं उषा प्रसाद...