Milky Mist

Saturday, 7 December 2024

ख़ुद आईएएस अफ़सर नहीं बन पाए तो दूसरों के सपने सच करने लगे

07-Dec-2024 By पी.सी. विनोज कुमार
कोयंबटूर

Posted 03 May 2018

असफलता को किस तरह अवसर में तब्‍दील किया जा सकता है, यह पी. कानगराज से सीखा जा सकता है.

वो दो बार सिविल सर्विस परीक्षा में इंटरव्यू स्टेज तक पहुंचे, लेकिन आगे नहीं बढ़ पाए. दोबारा शुरू करने के लिहाज से उन्होंने फ़ैसला किया कि वो ऐसेयुवाओं को उनका सपना पूरा करने में मदद करेंगे.

वो ख़ुद को मुफ़्त आईएएस एग्ज़ाम कोच कह कर बुलाते हैं.

कानगराज कहते हैं, मैंने तय किया कि सिविल सर्विस की तैयारी के दौरान जो जानकारी हासिल की है, उसे युवाओं के फ़ायदे के लिए इस्तेमाल करूंगा..

कोयंबटूर में प्रोफ़ेसर कानगराज की आईएएस कोचिंग क्‍लास में क़रीब 400 छात्र-छात्राएं पढ़ते हैं. (सभी फ़ोटो : एच.के. राजाशेकर)


कानगराज कोयंबटूर के गवर्नमेंट आर्ट्स कॉलेज में पॉलिटिकल साइंस के एसोसिएट प्रोफ़ेसर हैं.

नौकरी करते हुए उन्होंने 70 से ज़्यादा युवाओं को सिविल सर्विसेज़ की परीक्षा पास करने में मदद की है. इनमें से 17 आईएएस अफ़सर बने, जबकि 27 आईपीएस के लिए चुने गए.

कानगराज आईएएस के अभ्‍यर्थियों को जनरल स्टडीज़ और पॉलिटिकल साइंस पढ़ाते हैं.

वो कहते हैं, मैं पढ़ाने के बदले कोई फ़ीस नहीं लेता. मैं बच्चों से कहता हूँ कि मैं उनके पास कभी नहीं आऊंगा कि मैंने तुम्हें पढ़ाया है. आप मेरे लिए यह काम करो. अगर आप कुछ करना ही चाहते हैं तो समाज के लिए करिए.

वर्तमान में उनकी क्लास में क़रीब 400 बच्चे पढ़ने आते हैं. सप्ताह के दिनों में वो कॉलेज में पढ़ाने के बाद शाम चार से साढ़े छह बजे तक क्‍लास लेते हैं. रविवार के दिन उनकी कक्षा भरी रहती है और वो बिना ब्रेक लिए सुबह 10 से दोपहर 2:30 बजे तक पढ़ाते हैं.

47 साल के कानगराज कहते हैं, पिछले आठ सालों में मैं सिर्फ़ आठ रविवार को क्लास नहीं ले पाया. वो भी इसलिए क्‍योंकि मेरे नज़दीकी रिश्तेदारों की मौत हो गई थी.

देश के दूसरे हिस्सों में रहने वाले बच्चों के लिए कानगराज फ़ोन और स्काइप पर क्‍लास लेते हैं.

प्रिलिमनरी और मेन परीक्षा के अभ्‍यर्थियों के लिए वो सेवारत व सेवानिवृत्‍त ब्यूरोक्रैट्स की सहायता से मॉक इंटरव्‍यू भी आयोजित कराते हैं.

इसके पीछे विचार यह है कि अगर उन्हें भी सही रास्ता दिखाने वाला कोई मिला होता तो वो जीवन के सफ़र में कहीं और निकल गए होते. इसलिए उनकी कोशिश होती है कि कोई भी योग्‍य उम्‍मीदवार प्रशिक्षण के अभाव में अफ़सर बनने से न चूक जाए.

कानगराज की आईएएस कोचिंग क्‍लासेज़ में पढ़ने के लिए कोई फ़ीस नहीं ली जाती है.


वो कई अख़बारों के लिए लिखते भी हैं. उन्होंने स्मार्ट स्ट्रैटज़ीस फ़ॉर सक्सेस इन आईएएस इंटरव्‍यू किताब भी लिखी है.

कानगराज तमिलनाडु के तंजावूर जिले के कुरुवादिपट्टी गांव के रहने वाले हैं. उनके पिता किसान थे. उन्होंने कक्षा 10 तक तमिल मीडियम स्कूल में पढ़ाई की.

चेन्नई के लोयोला कॉलेज से इंग्लिश लिटरेचर में ग्रैजुएशन के बाद वो दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) आ गए, जहां पॉलिटिकल साइंस में एमए, एमफ़िल और पीएचडी की.

कानगराज कहते हैं, इन दो संस्थाओं ने मुझे ज़िंदगी के सभी अच्छे मूल्य सिखाए.

साल 2003 में जेएनयू के कुछ छात्रों ने उनसे आईएएस परीक्षा की तैयारी को लेकर मदद मांगी.

कोयंबटूर में हायर स्‍टडीज़ सेंटर के सामने कानगराज.


इस तरह आईएएस कोचिंग क्लास की शुरुआत उनके घर से ही हुई. जब साल 2008 में उनके पढ़ाए दो छात्र आईपीएस के लिए चुन लिए गए तो मीडिया में उनका नाम आने लगा.

कानगराज बताते हैं, अजीता बेगम दक्षिण भारत से आईपीएस के लिए चुनी गई पहली मुस्लिम लड़की थीं. ए. अरुल कुमार को हिमाचल प्रदेश कैडर दिया गया. वो आईएएस के लिए चुने गए थे, लेकिन उन्होंने आईपीएस चुना. वह उनकी ख्‍़वाबों की नौकरी थी.

मीडिया में नाम आने के बाद ज़्यादा बच्चे उनके पास आने लगे. अब घर में जगह नहीं बचती थी.

तब उन्होंने कोचिंग अपने कॉलेज में स्थानांतरित करवा ली. साथ ही वो आईएएस, आईपीएस और आईआरएस अधिकारियों को बच्चों को प्रेरित करने के लिए बुलाने लगे.

ऐसी ही एक क्‍लास के दौरान कोयंबटूर के तत्‍कालीन कमिश्नर अंशुल मिश्रा कानगराज से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने कानगराज से कॉर्पोरेशन स्कूलों के बच्चों के लिए करियर गाइडेंस और उच्‍च शिक्षा जागरूकता कार्यक्रम चलाने का अनुरोध किया.

रविवार को कानगराज सुबह 10 बजे से दोपहर 2:30 बजे तक बिना ब्रेक लिए क्‍लास लेते हैं.

बाद में कॉर्पोरेशन ने ऐसे कार्यक्रमों के लिए उच्च शिक्षा केंद्र की स्थापना की. कानगराज को इस केंद्र में आईएएस कोचिंग क्लास चलाने की अनुमति भी दी गई.

क़रीब चार साल पहले उन्होंने एक पहल के तहत राज्य के आदिवासी और ग्रामीण बच्चों के लिए एम्पावरिंग फ़ॉर फ़्यूचर नामक कार्यक्रम शुरू किया.

आईएएस की कोचिंग के लिए आने वाले विद्यार्थी इस पहल में उनकी मदद करते हैं. 

आज कई अरुल कुमार और अजीता बेगम कानगराज की कोचिंग में एक सपना लेकर आते हैं.


दूसरी कोशिश में आईएएस की परीक्षा पास करने वाली अजीता बेगम आज केरल के कोल्लम में पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण) पद पर हैं. वो साल 2007 में आईएएस के लिए चुनी गई थीं.

अजीता कोयंबटूर की रहने वाली हैं और वो पहली बार कानगराज से साल 2005 में कोयंबटूर के गवर्नमेंट आर्ट्स कॉलेज में मिली थीं.

उन्होंने बीकॉम की पढ़ाई ख़त्म की थी और वो एमबीए करना चाहती थीं, जब उनके पिता के दोस्त ने उन्हें सिविल सर्विसेज़ का सुझाव दिया और कानगराज के साथ मुलाकात तय कर दी.

वो बताती हैं, मुझे सिविल सर्विसेज़ में बारे में बिल्‍कुल भी जानकारी नहीं थी. कानगराज सर हमारे साथ ढाई घंटे बिताए और जो लोग आईएएस अफ़सर बन गए, उनके बारे में बताया.

उन्होंने ऐसे समझाया कि सब कुछ बहुत आसान है. इससे मेरा आत्मविश्वास बढ़ा.

केरल में अजीता अपने काम से धूम मचा रही हैं. दो साल पहले जब वो तिरूअनंतपुरम में डीसीपी थीं, तब उन्होंने छेड़छाड़ से निपटने के लिए फ़ेम पैट्रोल नामक पहल शुरू की. इसे अब केरल के दूसरे हिस्सों में भी लागू किया जा रहा है.

कानगराज को उम्मीद है आईएएस बनना चाह रहे कई दूसरे लोग भी अपना सपना पूरा कर पाएंगे. वो बताते हैं कि उन्हें अपने काम में पत्नी वेन्नीला और दो बच्चों का पूरा सहयोग मिलता है.


 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • Air-O-Water story

    नए भारत के वाटरमैन

    ‘हवा से पानी बनाना’ कोई जादू नहीं, बल्कि हकीकत है. मुंबई के कारोबारी सिद्धार्थ शाह ने 10 साल पहले 15 करोड़ रुपए में अमेरिका से यह महंगी तकनीक हासिल की. अब वे बेहद कम लागत से खुद इसकी मशीन बना रहे हैं. पीने के पानी की कमी से जूझ रहे तटीय इलाकों के लिए यह तकनीक वरदान है.
  • Success story of helmet manufacturer

    ‘हेलमेट मैन’ का संघर्ष

    1947 के बंटवारे में घर बार खो चुके सुभाष कपूर के परिवार ने हिम्मत नहीं हारी और भारत में दोबारा ज़िंदगी शुरू की. सुभाष ने कपड़े की थैलियां सिलीं, ऑयल फ़िल्टर बनाए और फिर हेलमेट का निर्माण शुरू किया. नई दिल्ली से पार्थो बर्मन सुना रहे हैं भारत के ‘हेलमेट मैन’ की कहानी.
  • Malika sadaani story

    कॉस्मेटिक प्रॉडक्ट्स की मलिका

    विदेश में रहकर आई मलिका को भारत में अच्छी गुणवत्ता के बेबी केयर प्रॉडक्ट और अन्य कॉस्मेटिक्स नहीं मिले तो उन्हें ये सामान विदेश से मंगवाने पड़े. इस बीच उन्हें आइडिया आया कि क्यों न देश में ही टॉक्सिन फ्री प्रॉडक्ट बनाए जाएं. महज 15 लाख रुपए से उन्होंने अपना स्टार्टअप शुरू किया और देखते ही देखते वे मिसाल बन गईं. अब तक उनकी कंपनी को दो बार बड़ा निवेश मिल चुका है. कंपनी का टर्नओवर 4 साल में ही 100 करोड़ रुपए काे छूने के लिए तैयार है. बता रही हैं सोफिया दानिश खान.
  • Making crores in paper flowers

    कागज के फूल बने करेंसी

    बेंगलुरु के 53 वर्षीय हरीश क्लोजपेट और उनकी पत्नी रश्मि ने बिजनेस के लिए बचपन में रंग-बिरंगे कागज से बनाए जाने वाले फूलों को चुना. उनके बनाए ये फूल और अन्य क्राफ्ट आयटम भारत सहित दुनियाभर में बेचे जा रहे हैं. यह बिजनेस आज सालाना 64 करोड़ रुपए टर्नओवर वाला है.
  • Vada story mumbai

    'भाई का वड़ा सबसे बड़ा'

    मुंबई के युवा अक्षय राणे और धनश्री घरत ने 2016 में छोटी सी दुकान से वड़ा पाव और पाव भाजी की दुकान शुरू की. जल्द ही उनके चटकारेदार स्वाद वाले फ्यूजन वड़ा पाव इतने मशहूर हुए कि देशभर में 34 आउटलेट्स खुल गए. अब वे 16 फ्लेवर वाले वड़ा पाव बनाते हैं. मध्यम वर्गीय परिवार से नाता रखने वाले दोनों युवा अब मर्सिडीज सी 200 कार में घूमते हैं. अक्षय और धनश्री की सफलता का राज बता रहे हैं बिलाल खान