Milky Mist

Wednesday, 4 October 2023

नौकरी शुरू करते समय उनके पास महज 39 रुपए थे, आज चीन में 8 करोड़ रुपए का कारोबार करने वाली एलईडी निर्माण इकाई है

04-Oct-2023 By मासुमा भारमल जरीवाला
राजकोट

Posted 27 Dec 2017

अपनी पहली नौकरी शुरू करने के वक्त 39 रुपए का बैंक बैलेंस होने से लेकर चीन में 8 करोड़ रुपए का कारोबार करने वाली एलईडी निर्माण इकाई शुरू करने वाले पहले भारतीय होने तक जितेंद्र जोशी ने लंबा रास्ता तय किया है.

आज, जितेंद्र के चीन स्थित कारखाने में इन्डोर ऐंड आउटडोर एलईडी डिस्प्ले, एलईडी कर्टन्स, ट्रांसपैरेंट एलईडी वाल्स, एलईडी डिस्प्ले कियोस्क, एलईडी स्क्रीन वैन्स और कई अन्य उत्पादों का निर्माण किया जा रहा है, जो खाड़ी, ब्रिटेन, अमेरिका, भारत व अन्य एशियाई देशों को निर्यात किए जाते हैं.

https://www.theweekendleader.com/admin/upload/22-06-17-01Joshi1.JPG

ग्लोबल कम्यूनिकेशंस डॉट कॉम के संस्थापक जितेंद्र जोशी ने चीन के शेनझेन में वर्ष 2014 में एलईडी निर्माण इकाई स्थापित की है. (फ़ोटो - अब्बास अली)

चीन में उनके 400 शहरों में ग्राहक हैं. वैश्विक सफलता हासिल करने वाले व्यक्ति के रूप में आश्वस्त होकर जितेंद्र कहते हैं, “हम चीन में सालाना 8000 वर्ग मीटर एलईडी का निर्माण करते हैं.

लेकिन 1997 से राजकोट आकर बसे 39 वर्षीय कारोबारी जितेंद्र कभी महज 1000 रुपए महीने की तनख़्वाह में रबर स्टांप बेचा करते थे.

मुंबई में 1978 में मध्यम-वर्गीय परिवार में जन्मे जितेंद्र ने अपनी स्कूली पढ़ाई गुजरात के मोरवी से की. तीन बच्चों में वो अकेले लड़के थे, लेकिन कभी उनके पिता ने उनका पक्ष नहीं लिया.

स्थिति तब और ज्यादा बिगड़ गई, जब वो स्कूल में अपनी कक्षा की एक लड़की चंद्रिका से प्यार कर बैठे. चंद्रिका 12वीं कक्षा की पढ़ाई पूरी कर चिकित्सा क्षेत्र से जुड़ गईं, जबकि जितेंद्र बोर्ड परीक्षा में फेल हो गए और 1994 में मुंबई चले गए. वहां उन्होंने भारती विद्यापीठ में कंप्यूटर इंजीनियरिंग में डिप्लोमा करने के लिए प्रवेश ले लिया.

हालांकि जितेंद्र नियमित रूप से कभी कंप्यूटर कक्षा नहीं गए और पेरमा रबर स्टांप कंपनी में नौकरी करने लगे. जितेंद्र कहते हैं, “मुझे 1000 रुपए महीने की तनख़्वाह में रबर स्टांप बेचने का काम मिला. मैंने पेरमा में तीन महीने काम किया.

https://www.theweekendleader.com/admin/upload/22-06-17-01Joshi2.JPG

जितेंद्र ने राजकोट के पास 10,000 वर्ग फ़ीट में भारत का पहला एलईडी कारखाना लगाया है.

उसी साल, अपने परिजनों की इच्छा के ख़िलाफ़ जाकर जितेंद्र ने आर्य समाज परंपरा से चंद्रिका से शादी कर ली.

जितेंद्र कहते हैं, “जब हमने शादी करना तय किया, तब मेरे पास केवल 1,100 रुपए थे. मैंने चंद्रिका को 600 रुपए क़ीमत वाली साड़ी उपहार में दी, 350 रुपए शादी संबंधी कामों पर ख़र्च किए और आख़िर में मेरे पास हाथ में सिर्फ 39 रुपए बचे थे.

उस समय चंद्रिका अपनी मेडिकल इंटर्नशिप कर रही थी. डेढ़ साल में वो स्टाइपेंट पाने के योग्य होने वाली थी. लेकिन मैं जानता था कि मेरे पास उचित जीवन के लिए कमाई शुरू करने के लिए इतना ही समय था.

जितेंद्र बताते हैं, ”हमारी शादी के बाद चंद्रिका पढ़ाई पूरी करने के लिए अपने घर लौट गई. मैंने अपना डिप्लोमा पूरा किया और कंप्यूटर साइंस की डिग्री लेने के लिए नामांकन भर दिया.

नियमित रूप से कॉलेज न जाते हुए, जितेंद्र ने हिंदुस्तान कंप्यूटर्स लिमिटेड (एचसीएल) में 1500 रुपए महीने की नौकरी कर ली. वहां उन्होंने कंप्यूटर के साथ काम करने का अनुभव लिया.

एचसीएल में डेढ़ साल तक काम करने के बाद वर्ष 1997 में जितेंद्र कारोबार शुरू करने के उद्देश्य से राजकोट रहने चले गए. उस समय तक चंद्रिका की चिकित्सा की पढ़ाई भी पूरी हो चुकी थी.

https://www.theweekendleader.com/admin/upload/22-06-17-01Joshi3.JPG

कारोबार के शुरुआती सालों में, जितेंद्र बाबा रामदेव को एलईडी स्क्रीन किराए पर दिया करते थे और उनके योग के कार्यक्रमों का लाइव प्रसारण किया करते थे.

जितेंद्र ने ख़ुद के दम पर कारोबार शुरू करने के प्रारंभिक प्रयासों के बारे में बताया कि हाथ में थोड़े से पैसे ही थे. उनसे मैंने रेडीमेड गारमेंट का छोटा सा कारोबार शुरू किया, लेकिन इसे छह महीने में ही बंद करना पड़ा. यह एक बुरा विचार था क्योंकि अधिकतर कपड़े उन लोगों ने ख़रीदे, जो मेरे परिचित थे। रिश्तेदारी कारोबार पर हावी हो गई और और पैसे कभी नहीं आए.

हालांकि उद्यमी महत्वाकांक्षा को छोड़ने का उनका कोई इरादा नहीं था। वो याद करते हैं, “मैंने 1998 में कंप्यूटर के कारोबार में प्रवेश किया और 1500 रुपए प्रति महीने के किराए पर एक दुकान ले ली. उन दिनों असेम्बल कंप्यूटर की मांग थी.

मुंबई से पुर्जे जुटाकर वो अपनी दुकान में कंप्यूटर असेम्बल करते थे और एक सिस्टम पर 10,000 से 15,000 रुपए कमा लेते थे. लेकिन जब दुकान पर उत्पाद शुल्क विभाग का छापा पड़ा तो यह उनके कारोबार के लिए एक झटका साबित हुआ और उन्हें भारी नुक़सान हुआ.

इसके बाद जितेंद्र ने एक बैंक से तीन लाख रुपए का कर्ज़ लिया और कंप्यूटर मीडिया सर्विसेजशुरू की. यह एक कंपनी थी, जो राजकोट में इंटरनेट सेवा उपलब्ध कराती थी.

https://www.theweekendleader.com/admin/upload/22-06-17-01joshi4.jpg

भारत में एक आयोजन में एलईडी का पूरा सेटअप. (फ़ोटो - विशेष व्यवस्था के जरिये)

हालांकि, उनकी आर्थिक स्थिति तब तक अच्छी नहीं हुई, जब तक कि उन्होंने वर्ष 2003 में ख़ुद की कंपनी ग्लोबल कम्यूनिकेशन डॉट कॉम की स्थापना नहीं कर ली. उसी समय वो योग गुरु बाबा रामदेव के संपर्क में आए, जो एक योग कार्यक्रम के सिलसिले में राजकोट आए थे.

रामदेव ने कार्यक्रम को दिखाने के लिए उनकी कंपनी से प्रोजेक्टर किराए पर लिए थे. बाद में, रामदेव ने जितेंद्र को उनके विभिन्न योग शिविरों में साथ देने और लाइव प्रसारण के लिए कहा.

जितेंद्र ख़ुलासा करते हैं, “राजकोट में चार प्रोजेक्टर से शुरुआत कर हमने देश के लगभग हर हिस्से में कैंप लगाए. एक कार्यक्रम में अधिक से अधिक 80 प्रोजेक्टर लगाए जाते थे. मैं उपकरणों को किराए पर देने और वीडियो प्रसारण के लिए शुल्क लेता था. पहले साल, हमने 60 लाख रुपए का कारोबार किया.

उन्होंने रामदेव के योग शिविरों की हर चीज़ की व्यवस्था की. इसमें आस्था व संस्कार चैनल पर ध्वनि से लेकर प्रकाश और लाइव प्रसारण भी शामिल था. प्रोजेक्टर के बाद वो ऑप्टिकल स्क्रीन और फिर एलईडी स्क्रीन पर इस्तेमाल करने लगे.

जितेंद्र मुस्कुराते हैं, “हम वर्ष 2008 में चीन से पहली एलईडी स्क्रीन 25 लाख रुपए में लाए थे. मैं बाबा से ही पैसे उधार लाया था और फिर वह पैसा चुका दिया. बाद में, बाबा के एक कार्यक्रम के लिए हमने एक एलईडी ट्रक (लाइव प्रसारण के लिए एलईडी स्क्रीन वाला ट्रक) तैयार किया. यह बहुत सफल रहा.

https://www.theweekendleader.com/admin/upload/22-06-17-01joshi5.JPG

8 करोड़ रुपए का सालाना कारोबार और दोहन किए जाने के लिए इंतज़ार कर रहा बड़ा बाज़ार, जितेंद्र के पास मुस्कुराने का कारण है.

जितेंद्र ने गुजरात सरकार के साथ भी काम शुरू किया. जितेंद्र याद करते हैं, “उस वक्त नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे. हमने वाइब्रेंट नवरात्रि से लेकर कच्छ महोत्सव और कृषि मेलों, स्वतंत्रता दिवस समारोहों, जन्माष्टमी व नवरात्रि त्योहारों तक सबका प्रसारण किया.कंपनी ने आईपीएल मैचों और अब बॉलीवुड शो का भी प्रसारण किया.

जितेंद्र ने समझ लिया था कि भारत में एलईडी का भविष्य बहुत विशाल है और उन्होंने बड़ा निर्णय लिया कि वे खुद ही एलईडी स्क्रीन का निर्माण करेंगे.

एलईडी का वैश्विक बाज़ार क़रीब 3 अरब अमेरिकी डॉलर का है और भारत शीर्ष पांच उपभोक्ताओं में से एक है.

एलईडी निर्माण के क्षेत्र में जाने के पीछे वे तथ्यों के बारे में जितेंद्र बताते हैं, “कुल मांग में से चीन एक अरब अमेरिकी डॉलर मूल्य का सामान बनाता है. पिछले साल, 3 करोड़ अमेरिकी डॉलर मूल्य की चीनी एलईडी सिर्फ भारत को ही निर्यात की गई.

वर्ष 2014 में, जितेंद्र ने चीन के शेनझेन में एक एलईडी निर्माण इकाई लगाई, जिसने पहले साल में 500 वर्ग मीटर एलईडी का निर्माण किया. उत्पादों को मुख्य रूप से भारत निर्यात किया जाता था.

https://www.theweekendleader.com/admin/upload/22-06-17-01joshi6.jpg

जितेंद्र के चीन में लगे कारखाने में सालाना 8000 वर्ग मीटर एलईडी का निर्माण होता है. (फ़ोटो - विशेष व्यवस्था के जरिये)

जितेंद्र कहते हैं, “यह आसान नहीं था. उत्पादन योजनाबद्ध होता था, लेकिन भाषा की समस्या एक अवरोध थी, क्योंकि हमारे क़रीब 40 कर्मचारी चीनी थे. हालांकि, हमने व्यवस्थित तरीके़ से योजना के साथ और समय के साथ चुनौती से पार पा लिया.

पिछले साल, जितेंद्र ने राजकोट के पास 10,000 वर्ग फ़ीट क्षेत्र में भारत का पहला एलईडी निर्माण का कारखाना स्थापित किया है. यही कारण है कि राजकोट में जितेंद्र को जादूगर कहा जाता है. एक उद्यमी के रूप में वे इस संतुष्टि से अपनी बात ख़त्म करते हैं, जिसने उस स्थान पर जाने की हिम्मत जुटाई, जहां अब तक बहुत से लोग नहीं गए हैं. वे कहते हैं, “हमें जल्द ही उत्पादन शुरू होने की उम्मीद है. मशीनें लग गई हैं और कर्मचारियों को चीन में प्रशिक्षण दिया जा चुका है. हमने 15 करोड़ रुपए का निवेश किया है.

अब मैं जानता हूं कि मेरा भारत में एलईडी स्क्रीन उत्पादन करने का सपना ज्यादा दूर नहीं है.

 


 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • Chandubhai Virani, who started making potato wafers and bacome a 1800 crore group

    विनम्र अरबपति

    चंदूभाई वीरानी ने सिनेमा हॉल के कैंटीन से अपने करियर की शुरुआत की. उस कैंटीन से लेकर करोड़ों की आलू वेफ़र्स कंपनी ‘बालाजी’ की शुरुआत करना और फिर उसे बुलंदियों तक पहुंचाने का सफ़र किसी फ़िल्मी कहानी जैसा है. मासूमा भरमाल ज़रीवाला आपको मिलवा रही हैं एक ऐसे इंसान से जिसने तमाम परेशानियों के सामने कभी हार नहीं मानी.
  • Success story of helmet manufacturer

    ‘हेलमेट मैन’ का संघर्ष

    1947 के बंटवारे में घर बार खो चुके सुभाष कपूर के परिवार ने हिम्मत नहीं हारी और भारत में दोबारा ज़िंदगी शुरू की. सुभाष ने कपड़े की थैलियां सिलीं, ऑयल फ़िल्टर बनाए और फिर हेलमेट का निर्माण शुरू किया. नई दिल्ली से पार्थो बर्मन सुना रहे हैं भारत के ‘हेलमेट मैन’ की कहानी.
  • Alkesh Agarwal story

    छोटी शुरुआत से बड़ी कामयाबी

    कोलकाता के अलकेश अग्रवाल इस वर्ष अपने बिज़नेस से 24 करोड़ रुपए टर्नओवर की उम्मीद कर रहे हैं. यह मुकाम हासिल करना आसान नहीं था. स्कूल में दोस्तों को जीन्स बेचने से लेकर प्रिंटर कार्टेज रिसाइकिल नेटवर्क कंपनी बनाने तक उन्होंने कई उतार-चढ़ाव देखे. उनकी बदौलत 800 से अधिक लोग रोज़गार से जुड़े हैं. कोलकाता से संघर्ष की यह कहानी पढ़ें गुरविंदर सिंह की कलम से.
  • Crafting Success

    अमूल्य निधि

    इंदौर की बेटी निधि यादव ने कंप्यूटर साइंस में बीटेक किया, लेकिन उनकी दिलचस्पी कपड़े बनाने में थी. पढ़ाई पूरी कर उन्होंने डेलॉयट कंपनी में भी काम किया, लेकिन जैसे वे फैशन इंडस्ट्री के लिए बनी थीं. आखिर नौकरी छोड़कर इटली में फैशन इंडस्ट्री का कोर्स किया और भारत लौटकर गुरुग्राम में केएस क्लोदिंग नाम से वुमन वियर ब्रांड शुरू किया. महज 3.50 लाख से शुरू हुआ बिजनेस अब 137 करोड़ रुपए टर्नओवर वाला ब्रांड है. सोफिया दानिश खान बता रही हैं निधि की अमूल्यता.
  • Success story of Sarat Kumar Sahoo

    जो तूफ़ानों से न डरे

    एक वक्त था जब सरत कुमार साहू अपने पिता के छोटे से भोजनालय में बर्तन धोते थे, लेकिन वो बचपन से बिज़नेस करना चाहते थे. तमाम बाधाओं के बावजूद आज वो 250 करोड़ टर्नओवर वाली कंपनियों के मालिक हैं. कटक से जी. सिंह मिलवा रहे हैं ऐसे इंसान से जो तूफ़ान की तबाही से भी नहीं घबराया.