Milky Mist

Friday, 25 October 2024

‘अपनी ज़िंदगी संवारने के लिए कभी देर नहीं होती, अपने जीने का मकसद तय करें और सफलता को ही लक्ष्य बना लें’

25-Oct-2024 By पी सी विनोज कुमार की क़लम से
चेन्नई

Posted 27 Dec 2017

3 सितंबर, 2010 को सकारात्मक पत्रकारिताके विचार के साथ द वीकेंड लीडर ने एक ऑनलाइन अंग्रेज़ी पत्रिका के रूप में अपना सफर शुरू किया था. उस समय कई लोग संदेह करते थे कि केवल सकारात्मक ख़बरों पर केंद्रित कोई भी प्रकाशन सफल नहीं हो सकता, क्योंकि पाठक इस तरह की सामग्री पढ़ना पसंद नहीं करेंगे.

अच्छी ख़बर यह है कि हमने अपने आलोचकों को ग़लत साबित किया है. सात सालों से जारी इस सफ़र को और भी आगे बढ़ाने के लिए हम स्थानीय भाषाओं में नए संस्करण शुरू कर रहे हैं. इस साल अप्रैल माह में हम अपना तमिल संस्करण लाए थे, और आज 27 दिसंबर, 2017 को हमारे हिंदी भाषा के संस्करण का शुभारंभ हो गया है.

वीकेंड लीडर में विशेष स्थान प्राप्त गुमनाम नायकों में से एक हैं ऑटो अन्नादुराई. चेन्नई के ऑटो चालक अन्नादुराई ने अपनी गाड़ी में ग्राहकों के लिए कई सुख-सुविधाएं जुटाई हैं. उनके ऑटो में विभिन्न अखबारों व पत्रिकाओं के अलावा वाईफाई नेटवर्क उपलब्ध रहता  है. यही नहीं टीवी, लैपटॉप, टैबलेट और आईपैड भी मौजूद रहते हैं. (फ़ोटो - एच के राजशेकर)


स्थानीय भाषाओं में नए संस्करण शुरू किए जाने का ख़ास मकसद द वीकेंड लीडर के अंग्रेज़ी संस्करण में प्रकाशित उद्यमियों की सफलता के क़िस्सों और कई प्रेरणादायी लेखों को लोगों की सुविधानुसार अन्य भाषाओं में उपलब्ध करवाना है.

 

हम यह मानते हैं कि अंग्रेज़ी भाषा के सीमित ज्ञान की वजह से कोई भी पाठक ऐसे प्रेरणादायी लेखों से वंचित न रहे, जिन्हें हमने देशभर के कई अनुभवी पत्रकारों की मदद से सावधानीपूर्वक तैयार है. हमारे पाठकों के क्षेत्रीय भाषाओं में प्रकाशन करने के सुझावों से भी हमें स्थानीय भाषी संस्करण शुरू करने का काफ़ी प्रोत्साहन व हौसला मिला.

 

इस हिंदी संस्करण में शुरुआती कुछ महीने कई सफल उद्यमियों की प्रेरक कहानियां पाठकों तक पहुंचाने की हमारी योजना है. हालांकि आने वाले समय में आपको विविधता भरी पाठ्य सामग्री मिलेगी और हम लोगों के दिलों में जगह बनाने में सफल रहेंगे.

 

अब तक लोग दोस्तों व बच्चों को उपहार स्वरूप प्रेरणादायक किताबें देते आए हैं, अब उसकी जगह द वीकेंड लीडरके रूप में ख़ुशियां बांटने का विकल्प भी लोगों के पास मौजूद रहेगा. आप हमारे लेख फ़ेसबुक व वाट्सएप के ज़रिये भी साझा कर सकते हैं.

 

अपनी ज़िंदगी संवारने के लिए कभी देर नहीं होती, अपने जीने का मकसद तय करें और सफलता को ही लक्ष्य बना लें. मैं बेहद विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि हमारी पत्रिका के नियमित पाठक बनने पर आप अभी के मुकाबले और बेहतर व्यक्ति के रूप में ढल जाएंगे, और अपनी ज़िंदगी एक अच्छे मकसद के साथ जिएंगे.

 

पढ़ते रहिए, आगे बढ़ते रहिए!

 

पी सी विनोज कुमार द वीकेंड लीडर के संस्थापक संपादक हैं.


 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • PM modi's personal tailors

    मोदी-अडानी पहनते हैं इनके सिले कपड़े

    क्या आप जीतेंद्र और बिपिन चौहान को जानते हैं? आप जान जाएंगे अगर हम आपको यह बताएं कि वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निजी टेलर हैं. लेकिन उनके लिए इस मुक़ाम तक पहुंचने का सफ़र चुनौतियों से भरा रहा. अहमदाबाद से पी.सी. विनोज कुमार बता रहे हैं दो भाइयों की कहानी.
  • Nitin Godse story

    संघर्ष से मिली सफलता

    नितिन गोडसे ने खेत में काम किया, पत्थर तोड़े और कुएं भी खोदे, जिसके लिए उन्हें दिन के 40 रुपए मिलते थे. उन्होंने ग्रैजुएशन तक कभी चप्पल नहीं पहनी. टैक्सी में पहली बार ग्रैजुएशन के बाद बैठे. आज वो 50 करोड़ की एक्सेल गैस कंपनी के मालिक हैं. कैसे हुआ यह सबकुछ, मुंबई से बता रहे हैं देवेन लाड.
  • Taking care after death, a startup Anthyesti is doing all rituals of funeral with professionalism

    ‘अंत्येष्टि’ के लिए स्टार्टअप

    जब तक ज़िंदगी है तब तक की ज़रूरतों के बारे में तो सभी सोच लेते हैं लेकिन कोलकाता का एक स्टार्ट-अप है जिसने मौत के बाद की ज़रूरतों को ध्यान में रखकर 16 लाख सालाना का बिज़नेस खड़ा कर लिया है. कोलकाता में जी सिंह मिलवा रहे हैं ऐसी ही एक उद्यमी से -
  • Multi-crore businesswoman Nita Mehta

    किचन से बनी करोड़पति

    अपनी मां की तरह नीता मेहता को खाना बनाने का शौक था लेकिन उन्हें यह अहसास नहीं था कि उनका शौक एक दिन करोड़ों के बिज़नेस का रूप ले लेगा. बिना एक पैसे के निवेश से शुरू हुए एक गृहिणी के कई बिज़नेस की मालकिन बनने का प्रेरणादायक सफर बता रही हैं दिल्ली से सोफ़िया दानिश खान.
  • Archna Stalin Story

    जो हार न माने, वो अर्चना

    चेन्नई की अर्चना स्टालिन जन्मजात योद्धा हैं. महज 22 साल की उम्र में उद्यम शुरू किया. असफल रहीं तो भी हार नहीं मानी. छह साल बाद दम लगाकर लौटीं. पति के साथ माईहार्वेस्ट फार्म्स की शुरुआती की. किसानों और ग्राहकों का समुदाय बनाकर ऑर्गेनिक खेती की. महज तीन साल में इनकी कंपनी का टर्नओवर 1 करोड़ रुपए पहुंच गया. बता रही हैं उषा प्रसाद