Milky Mist

Thursday, 11 December 2025

‘अपनी ज़िंदगी संवारने के लिए कभी देर नहीं होती, अपने जीने का मकसद तय करें और सफलता को ही लक्ष्य बना लें’

11-Dec-2025 By पी सी विनोज कुमार की क़लम से
चेन्नई

Posted 27 Dec 2017

3 सितंबर, 2010 को सकारात्मक पत्रकारिताके विचार के साथ द वीकेंड लीडर ने एक ऑनलाइन अंग्रेज़ी पत्रिका के रूप में अपना सफर शुरू किया था. उस समय कई लोग संदेह करते थे कि केवल सकारात्मक ख़बरों पर केंद्रित कोई भी प्रकाशन सफल नहीं हो सकता, क्योंकि पाठक इस तरह की सामग्री पढ़ना पसंद नहीं करेंगे.

अच्छी ख़बर यह है कि हमने अपने आलोचकों को ग़लत साबित किया है. सात सालों से जारी इस सफ़र को और भी आगे बढ़ाने के लिए हम स्थानीय भाषाओं में नए संस्करण शुरू कर रहे हैं. इस साल अप्रैल माह में हम अपना तमिल संस्करण लाए थे, और आज 27 दिसंबर, 2017 को हमारे हिंदी भाषा के संस्करण का शुभारंभ हो गया है.

वीकेंड लीडर में विशेष स्थान प्राप्त गुमनाम नायकों में से एक हैं ऑटो अन्नादुराई. चेन्नई के ऑटो चालक अन्नादुराई ने अपनी गाड़ी में ग्राहकों के लिए कई सुख-सुविधाएं जुटाई हैं. उनके ऑटो में विभिन्न अखबारों व पत्रिकाओं के अलावा वाईफाई नेटवर्क उपलब्ध रहता  है. यही नहीं टीवी, लैपटॉप, टैबलेट और आईपैड भी मौजूद रहते हैं. (फ़ोटो - एच के राजशेकर)


स्थानीय भाषाओं में नए संस्करण शुरू किए जाने का ख़ास मकसद द वीकेंड लीडर के अंग्रेज़ी संस्करण में प्रकाशित उद्यमियों की सफलता के क़िस्सों और कई प्रेरणादायी लेखों को लोगों की सुविधानुसार अन्य भाषाओं में उपलब्ध करवाना है.

 

हम यह मानते हैं कि अंग्रेज़ी भाषा के सीमित ज्ञान की वजह से कोई भी पाठक ऐसे प्रेरणादायी लेखों से वंचित न रहे, जिन्हें हमने देशभर के कई अनुभवी पत्रकारों की मदद से सावधानीपूर्वक तैयार है. हमारे पाठकों के क्षेत्रीय भाषाओं में प्रकाशन करने के सुझावों से भी हमें स्थानीय भाषी संस्करण शुरू करने का काफ़ी प्रोत्साहन व हौसला मिला.

 

इस हिंदी संस्करण में शुरुआती कुछ महीने कई सफल उद्यमियों की प्रेरक कहानियां पाठकों तक पहुंचाने की हमारी योजना है. हालांकि आने वाले समय में आपको विविधता भरी पाठ्य सामग्री मिलेगी और हम लोगों के दिलों में जगह बनाने में सफल रहेंगे.

 

अब तक लोग दोस्तों व बच्चों को उपहार स्वरूप प्रेरणादायक किताबें देते आए हैं, अब उसकी जगह द वीकेंड लीडरके रूप में ख़ुशियां बांटने का विकल्प भी लोगों के पास मौजूद रहेगा. आप हमारे लेख फ़ेसबुक व वाट्सएप के ज़रिये भी साझा कर सकते हैं.

 

अपनी ज़िंदगी संवारने के लिए कभी देर नहीं होती, अपने जीने का मकसद तय करें और सफलता को ही लक्ष्य बना लें. मैं बेहद विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि हमारी पत्रिका के नियमित पाठक बनने पर आप अभी के मुकाबले और बेहतर व्यक्ति के रूप में ढल जाएंगे, और अपनी ज़िंदगी एक अच्छे मकसद के साथ जिएंगे.

 

पढ़ते रहिए, आगे बढ़ते रहिए!

 

पी सी विनोज कुमार द वीकेंड लीडर के संस्थापक संपादक हैं.


 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • Astha Jha story

    शादियां कराना इनके बाएं हाथ का काम

    आस्था झा ने जबसे होश संभाला, उनके मन में खुद का बिजनेस करने का सपना था. पटना में देखा गया यह सपना अनजाने शहर बेंगलुरु में साकार हुआ. महज 4000 रुपए की पहली बर्थडे पार्टी से शुरू हुई उनकी इवेंट मैनेटमेंट कंपनी पांच साल में 300 शादियां करवा चुकी हैं. कंपनी के ऑफिस कई बड़े शहरों में हैं. बता रहे हैं गुरविंदर सिंह
  • Udipi boy took south indian taste to north india and make fortune

    उत्तर भारत का डोसा किंग

    13 साल की उम्र में जयराम बानन घर से भागे, 18 रुपए महीने की नौकरी कर मुंबई की कैंटीन में बर्तन धोए, मेहनत के बल पर कैंटीन के मैनेजर बने, दिल्ली आकर डोसा रेस्तरां खोला और फिर कुछ सालों के कड़े परिश्रम के बाद उत्तर भारत के डोसा किंग बन गए. बिलाल हांडू आपकी मुलाक़ात करवा रहे हैं मशहूर ‘सागर रत्ना’, ‘स्वागत’ जैसी होटल चेन के संस्थापक और मालिक जयराम बानन से.
  • how Chayaa Nanjappa created nectar fresh

    मधुमक्खी की सीख बनी बिज़नेस मंत्र

    छाया नांजप्पा को एक होटल में काम करते हुए मीठा सा आइडिया आया. उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. आज उनकी कंपनी नेक्टर फ्रेश का शहद और जैम बड़े-बड़े होटलों में उपलब्ध है. प्रीति नागराज की रिपोर्ट.
  • kakkar story

    फर्नीचर के फरिश्ते

    आवश्यकता आविष्कार की जननी है. यह दिल्ली के गौरव और अंकुर कक्कड़ ने साबित किया है. अंकुर नए घर के लिए फर्नीचर तलाश रहे थे, लेकिन मिला नहीं. तभी देश छोड़कर जा रहे एक राजनयिक का लग्जरी फर्नीचर बेचे जाने के बारे में सुना. उसे देखा तो एक ही नजर में पसंद आ गया. इसके बाद दोनों ने प्री-ओन्ड फर्नीचर की खरीद और बिक्री को बिजनेस बना लिया. 3.5 लाख से शुरू हुआ बिजनेस 14 करोड़ का हो चुका है. एकदम नए तरीका का यह बिजनेस कैसे जमा, बता रही हैं उषा प्रसाद.
  • Weight Watches story

    खुद का जीवन बदला, अब दूसरों का बदल रहे

    हैदराबाद के संतोष का जीवन रोलर कोस्टर की तरह रहा. बचपन में पढ़ाई छोड़नी पड़ी तो कम तनख्वाह में भी काम किया. फिर पढ़ते गए, सीखते गए और तनख्वाह भी बढ़ती गई. एक समय ऐसा भी आया, जब अमेरिकी कंपनी उन्हें एक करोड़ रुपए सालाना तनख्वाह दे रही थी. लेकिन कोरोना लॉकडाउन के बाद उन्हें अपना उद्यम शुरू करने का विचार सूझा. आज वे देश में ही डाइट फूड उपलब्ध करवाकर लोगों की सेहत सुधार रहे हैं. संतोष की इस सफल यात्रा के बारे में बता रही हैं उषा प्रसाद