ये हैं ईशान सिंह बेदी : एक ट्रक, तीन कर्मचारियों से शुरुआत की और 98 करोड़ रुपए टर्नओवर वाली कंपनी बनाई; आज 200 ट्रक और 700 कर्मचारी हैं
06-Jul-2025
By सोफिया दानिश खान
नई दिल्ली
साल 2007 में 25 वर्ष की उम्र में लॉजिस्टिक्स बिजनेस में आना ईशान सिंह बेदी के लिए फायदे का सौदा रहा. उन्होंने तीन कर्मचारियों और एक ट्रक से शुरुआत की थी. अब उनकी कंपनी में 700 कर्मचारी हैं, 200 ट्रक का बेड़ा है और सालाना टर्नओवर 98 करोड़ रुपए है.
उनकी कंपनी सिन्क्रोनाइज्ड सप्लाई सिस्टम्स लिमिटेड देश में आए थर्ड पार्टी लॉजिस्टिक्स (3PL) में बढ़ोतरी से बढ़ी. इसके बाद साल-दर-साल बढ़ती गई. इसने अपने ट्रकों का बेड़ा बढ़ाया और अपनी वेयरहाउस क्षमता बढ़ाई.

अपने पिता से अनबन के बाद पारिवारिक बिजनेस छोड़कर 25 साल की उम्र में उद्यमी बनने की यात्रा पर निकल पड़े दिल्ली निवासी ईशान याद करते हैं, “पहले साल हमने 78 लाख रुपए का टर्नओवर हासिल किया. साल 2013 तक हमने 50 करोड़ रुपए का आंकड़ा छू लिया था.”
उनके पिता की कंपनी कस्टम क्लियरेंस और सामान भेजने से जुड़ा काम करती है. उन्होंने गुरुग्राम में इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड मैनेजमेंट से बैंकिंग एंड फाइनेंस में ग्रैजुएशन करते समय ही वहां काम करना शुरू कर दिया था.
वे कहते हैं, “मैं अपनी कक्षा के बाद रोज तीन से चार घंटे कंपनी में काम करता था.” ग्रैजुएशन के बाद उन्होंने डेढ़ साल तक कंपनी की मुंबई ब्रांच का काम संभाला.
इस क्षेत्र में होने वाली नवीनतम प्रगति के बारे में सीखने के लिए वे साल 2005 में इंग्लैंड की क्रैनफील्ड यूनिवर्सिटी चले गए. वहां उन्होंने लॉजिस्टिक्स में मास्टर डिग्री की. अपने पारिवारिक बिजनेस को बेहतर बनाने का सपना लेकर वे भारत लौटे.
हालांकि, उन्होंने यह कल्पना कभी नहीं की थी कि यूके में पढ़ाई के बाद बिजनेस के प्रति उनके नजरिये में इस कदर बदलाव आ जाएगा.
ईशान कहते हैं, “कोर्स से मेरी समझ का दायरा बढ़ा. पूरे 15 महीने के कोर्स में फैमिली बिजनेस पर बमुश्किल 45 मिनट का सेशन रहा. यह कोर्स मेरे लिए गेम चेंजर साबित हुआ.
“मैं सप्लाई चेन की प्लानिंग, बिजनेस प्लानिंग और लॉजिस्टिक्स में इस्तेमाल होने वाली आधुनिक टेक्नोलॉजी को समझने के लिए इस विषय की गहराई तक गया.”

ईशान ने एक ट्रक और तीन कर्मचारियों से शुरुआत की थी. अब उनके पास 200 ट्रकों का बेड़ा है. |
ईशान कहते हैं, “भारत के मुकाबले वहां चीजें समय से पहले बदली हैं. पेप्सी के ब्रिट्विक वेयरहाउस की मेरी यात्रा मेरे लिए आंखें खोल देने वाली रही. वहां 10 लाख वर्ग फीट का वेयरहाउस महज 14 लोग संभाल रहे थे.
“वहां सर्तकतापूर्वक रोबोट काम कर रहे थे. कन्वेयर बेल्ट्स पर प्रोडक्ट्स आगे बढ़ रहे थे. सैकड़ों ट्रक भीतर आते थे और बिना किसी परेशानी के निकल जाते थे.”
ईशान घर लौटकर अपनी कंपनी का तकनीकी रूप से स्वरूप बदलने और उसे अगले स्तर पर ले जाने के लिए उत्सुक थे.
हालांकि, उन्हें जल्द ही एहसास हो गया कि यह काम उतना आसान नहीं होने वाला था, क्योंकि वे कंपनी में जो बदलाव करना चाहते थे, उसके लिए अपने पिता से आंख में आंख मिलाकर बात नहीं कर पाए.
वे कहते हैं, “पिता के साथ मेरा बार-बार टकराव होने लगा. ऐसा इसलिए था क्योंकि कई मामलों में हम दोनाें की सोच अलग थी और उनके साथ काम करने का मेरा सपना चूर-चूर हो गया.”
इसलिए साल 2007 में, जब ईशान ने घोषणा की कि वे खुद की लॉजिस्टिक्स कंपनी शुरू करना चाहते हैं, तो परिवार में कोई ज्यादा उत्साह नहीं दिखा. इसके बावजूद परिवार ने सिन्क्रोनाइज्ड सप्लाई सिस्टम्स लिमिटेड शुरू करने के लिए 8 लाख रुपए की पूंजी दी. यह एक गैर सूचीबद्ध पब्लिक लिमिटेड कंपनी थी.
ईशान बताते हैं, “मैंने ट्रकों की आवाजाही और वेयरहाउसिंग पर ध्यान केंद्रित किया, क्योंकि यह सामान के अलावा बिजनेस का बड़ा हिस्सा था. साल 2007 में जिसके पास भी ट्रक खरीदने के लिए पैसे होते थे, वह ट्रांसपोर्टर बन जाता था.”
“उस समय ट्रक इंडस्ट्री में बहुत ज्यादा काबिल लोग नहीं थे. कई लोग अकेले या ख्याति के आधार पर बिजनेस कर रहे थे. पहले तीन साल मेरे लिए मुश्किल भरे साबित हुए. हालांकि हमने पहले ही साल 78 लाख रुपए का टर्नओवर हासिल कर लिया.”

सिन्क्रोनाइज्ड के भारतभर में 35 वेयरहाउस हैं.
|
वे कहते हैं कि देश में 3पीएल यानी थर्ड पार्टी लॉजिस्टिक्स की मांग बढ़ने के बाद उनका बिजनेस बढ़ा. इससे वेयरहाउस और ट्रकों दोनों की मांग बढ़ी.
बिजनेस के शुरुआती सालों के बारे में ईशान बताते हैं, “प्रतिद्वंद्वी बड़े थे, लेकिन वे भी शुरुआत ही कर रहे थे. टाटा और रिलायंस से हमारा सीधा मुकाबला था.
“हमने नए ग्राहकों को जोड़ा और सही कीमत पर अच्छी सेवा दी. इससे ग्राहकों के साथ ही हमें भी बढ़ने में मदद मिली. हम लगातार बढ़ते रहे, जब तक कि 2013 के आसपास बिजनेस स्थिर नहीं हो गया.
“हमारे प्रतिद्वंद्वी भी रफ्तार पकड़ रहे थे. इस बीच मैंने महसूस किया कि जैसे-जैसे हमारा ट्रकों का बेड़ा बढ़ रहा था, वैसे-वैसे ट्रकों का हिसाब-किताब रखना मुश्किल होता जा रहा था. जैसे सड़क पर होने वाली समस्याओं से निपटना, सर्विसिंग की तारीख याद रखना और इंश्योरेंस का नवीनीकरण कराना आदि.
“ट्रक का टायर पंक्चर हो सकता है या उसका चालान बन जाता है या ड्राइवर के पास डीजल भराने के पैसे नहीं होते. इन सब का हिसाब-किताब रखना चुनौतीपूर्ण था. इसलिए परेशान होकर मैंने तय किया कि सब कुछ सही करने के लिए एक सिस्टम तैयार करूंगा.”
ईशान ने ऐसे सभी मुद्दों की पहचान की, जिनका संस्थान की उत्पादकता बढ़ाने और क्षमता हासिल करने के लिए समाधान होना जरूरी था.
2013 तक कंपनी में ट्रकों की संख्या बढ़कर 50 हो गई और उन्होंने सभी कामों को स्वचालित करने के लिए सॉफ्टवेयर टीम विकसित की.

ईशान ने अपने बेड़े और कर्मचारियों के काम को आसान बनाने के लिए टेक्नोलॉजी पर ध्यान केंद्रित किया. |
उन्होंने दावा किया, “हम लॉजिस्टिक्स क्षेत्र की भारत की पहली कंपनी थे, जिसने डिजिटल टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया.”
“हमने कंपनी के लिए विशेष सॉफ्टवेयर विकसित करवाया. यह काम गांठों की गेंद खोलने जैसा था. आप इसे कैंची से नहीं काट सकते, लेकिन एक-एक करके हर गांठ को खोलना होता है. इसी तरह लॉजिस्टिक्स 1000 समस्याओं का बिजनेस है, जिन्हें एक-एक करके सुलझाना होता है.”
शुरुआत में, उनकी टेक्नोलॉजी टीम में चार कर्मचारी थे. अब उनके टेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट में 30 लोगों की टीम है.
ड्राइवरों के कल्याण में काफी दिलचस्पी रखने वाले ईशान कहते हैं, “हमने ट्रक ड्राइवरों के लिए एक एप भी विकसित किया है. रास्ते में नकद खत्म होने पर उन्हें केवल एक बटन दबाना होता है. इस पर पैसा उन्हें तत्काल अपने आप ट्रांसफर हो जाता है.
“एक ट्रक ड्राइवर 24 घंटे और 30 दिन ड्यूटी पर होता है. उसे बमुश्किल 10,000 से 15,000 रुपए मासिक पैसे दिए जाते हैं. इसलिए उन्होंने ईंधन भराने के लिए इसकी शुरुआत की. हमारी कंपनी में दो ड्राइवर एक ट्रक चलाते हैं. हर 12 घंटे के लिए एक ड्राइवर होता है. दोनों आराम भी करते हैं और दोनों के समय का इस्तेमाल बेहतर तरीके से हो जाता है.”

अपने ऑफिस की टीम के सदस्यों के साथ ईशान. |
वे कहते हैं कि ट्रक जितनी जल्दी पहुंचेगा, कंपनी उतनी ज्यादा कमाई करेगी और वे मुनाफा ड्राइवरों तक पहुंचाने में सक्षम होंगे. ईशान के मुताबिक, उनकी कंपनी के कुछ ड्राइवर 50,000 रुपए प्रति महीना तक इन्सेंटिव कमाते हैं.
कंपनी के देशभर में 35 वेयरहाउस हैं. इनका कुल क्षेत्रफल 20 लाख वर्ग फीट है. उनके ऑटोमोटिव, केमिकल और पैंट, एफएमसीजी, रिटेल और ई-कॉमर्स क्षेत्रों के ग्राहक हैं.
आप इन्हें भी पसंद करेंगे
-
फर्नीचर के फरिश्ते
आवश्यकता आविष्कार की जननी है. यह दिल्ली के गौरव और अंकुर कक्कड़ ने साबित किया है. अंकुर नए घर के लिए फर्नीचर तलाश रहे थे, लेकिन मिला नहीं. तभी देश छोड़कर जा रहे एक राजनयिक का लग्जरी फर्नीचर बेचे जाने के बारे में सुना. उसे देखा तो एक ही नजर में पसंद आ गया. इसके बाद दोनों ने प्री-ओन्ड फर्नीचर की खरीद और बिक्री को बिजनेस बना लिया. 3.5 लाख से शुरू हुआ बिजनेस 14 करोड़ का हो चुका है. एकदम नए तरीका का यह बिजनेस कैसे जमा, बता रही हैं उषा प्रसाद. -
प्रेरणादायी उद्ममी
सुमन हलदर का एक ही सपना था ख़ुद की कंपनी शुरू करना. मध्यमवर्गीय परिवार में जन्म होने के बावजूद उन्होंने अच्छी पढ़ाई की और शुरुआती दिनों में नौकरी करने के बाद ख़ुद की कंपनी शुरू की. आज बेंगलुरु के साथ ही कोलकाता, रूस में उनकी कंपनी के ऑफिस हैं और जल्द ही अमेरिका, यूरोप में भी वो कंपनी की ब्रांच खोलने की योजना बना रहे हैं. -
भारत का एंटी-वायरस किंग
एक वक्त था जब कैलाश काटकर कैलकुलेटर सुधारा करते थे. फिर उन्होंने कंप्यूटर की मरम्मत करना सीखा. उसके बाद अपने भाई संजय की मदद से एक ऐसी एंटी-वायरस कंपनी खड़ी की, जिसका भारत के 30 प्रतिशत बाज़ार पर कब्ज़ा है और वह आज 80 से अधिक देशों में मौजूद है. पुणे में प्राची बारी से सुनिए क्विक हील एंटी-वायरस के बनने की कहानी. -
युवाओं ने ठाना, बचपन बेहतर बनाना
हमेशा से एडवेंचर के शौकीन रहे दिल्ली् के सात दोस्तों ने ऐसा उद्यम शुरू किया, जो स्कूली बच्चों को काबिल इंसान बनाने में अहम भूमिका निभा रहा है. इन्होंने चीन से 3डी प्रिंटर आयात किया और उसे अपने हिसाब से ढाला. अब देशभर के 150 स्कूलों में बच्चों को 3डेक्स्टर के जरिये 3डी प्रिंटिंग सिखा रहे हैं. -
उड़ान परी
भाेपाल की कनिका टेकरीवाल ने सफलता का चरम छूने के लिए जीवन से चरम संघर्ष भी किया. कॉलेज की पढ़ाई पूरी ही की थी कि 24 साल की उम्र में पता चला कि उन्हें कैंसर है. इस बीमारी को हराकर उन्होंने एयरक्राफ्ट एग्रीगेटर कंपनी जेटसेटगो एविएशन सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना की. आज उनके पास आठ विमानों का बेड़ा है. देशभर में 200 लोग काम करते हैं. कंपनी का टर्नओवर 150 करोड़ रुपए है. सोफिया दानिश खान बता रही हैं कनिका का संघर्ष