Milky Mist

Wednesday, 30 October 2024

पांच लाख के निवेश से शुरू की क्वालिटी मसालों की मैन्यूफैक्चरिंग, अब इसे 100 करोड़ रुपए के क्लब में शामिल करने का सपना

30-Oct-2024 By उषा प्रसाद
बेंगलुरु

Posted 10 Mar 2020

अपने परिवार और समुदाय के पीढि़यों से चले आ रहे सुस्‍त और दबे-कुचले कारोबार से अलग हटकर नरेश पगारिया ने 1990 में महज 5 लाख रुपए के निवेश से मैन्‍यूफैक्‍चरिंग के क्षेत्र में कदम रखा. इसके बाद उनकी कंपनी ने बुलंदियों को छुआ. साल 2019 में कंपनी का टर्नओवर 50 करोड़ रुपए रहा है.

पगारिया फूड्स की शुरुआत बेंगलुरु शहर के चिकपेट इलाके की छोटी दुकान से हुई थी. यह इलाका मारवाड़ी समुदाय का गढ़ है, जो यहां कई प्रकार का कारोबार करते हैं. अब पगारिया फूड्स का मुख्‍यालय चामराजपेट में है. जबकि मैन्‍यूफैक्‍चरिंग यूनिट हरोहल्‍ली में 50,000 वर्ग फीट में फैली है.

कारोबारी समुदाय से आने वाले नरेश पगारिया ने अपने परिवार की इच्‍छा के विरुद्ध मसाला प्रॉडक्‍ट्स की मैन्‍यूफैक्‍चरिंग का कारोबार शुरू करने का साहस किया. (सभी फोटो – विजय बाबू)

युवा नरेश ने सबसे पहला काम यह किया कि वे चिकपेट इलाके से बाहर निकले. वे याद करते हैं, ‘‘मैं व्‍यापारियों के बीच काम नहीं कर सकता था. मुझे इतना पक्‍का पता था कि स्‍थान बदलने से मेरी विचार प्रक्रिया बदलेगी और मैं बड़ी चुनौतियों के लिए तैयार हो जाऊंगा.’’

बेंगलुरु का चिकपेट इलाके से बाहर निकलना उनके लिए सीखने लायक अनुभव रहा. यह वही इलाका था, जहां नरेश के पिता भंवरलाल पगारिया ने 70 के दशक में राजस्‍थान के पाली जिले के सोजत से आकर छोटी किराना दुकान शुरू की थी.

उस वक्‍त भंवरलाल पगारिया की उम्र करीब 20 साल रही होगी. वे इस दक्षिण भारतीय शहर में उजले भविष्‍य की आस में आए थे क्‍योंकि सोजत में किराना दुकान ठीक नहीं चल रही थी और तब रेगिस्‍तानी राज्‍य राजस्‍थान में जीवनयापन के बहुत अधिक अवसर नहीं थे.

उन्‍होंने अपनी छोटी दुकान से होटलों और रेस्‍तरां को किराना सामान और मसाले बेचनेे शुरू किए. उस दुकान को साल 2001 में बंद कर दिया गया. नरेश कहते हैं, ‘‘उन दिनों एमडीएच और एवरेस्‍ट दो मशहूर ब्रांड थे. पिताजी को जल्‍द ही यह अहसास हो गया कि फूड इंडस्‍ट्री में मसालों की बहुत मांग है. इसीलिए उन्‍हें मसालों का कारोबार शुरू करने का विचार आया.’’

अब 45 साल के हो चुके नरेश पगारिया तीन बेटों में सबसे छोटे हैं. नरेश ने महसूस किया कि डिस्‍ट्रीब्‍यूशन से मैन्‍यूफैक्‍चरिंग में अधिक संभावनाएं हैं. इसलिए उन्‍होंने बेंगलुरु के सेंट जोसेफ कॉलेज से मैनेजमेंट ऑफ स्‍माल स्‍कैल इंडस्‍ट्रीज में बेचलर ऑफ बिजनेस एडमिनिस्‍ट्रेशन (बीबीए) की डिग्री ली और अपने सपने को सच करने में जुट गए.

हालांकि उनके पिता शुरुआत में नहीं चाहते थे कि उनका बेटा मसालों की मैन्‍यूफैक्‍चरिंग में हाथ आजमाए. लेकिन धीरे-धीरे उन्‍हें अहसास हो गया कि कारोबार में अब उतनी संभावना नहीं है और उन्‍होंने बेटे को उसकी योजना में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्‍साहित किया.

नरेश कहते हैं, ‘‘मैन्‍यूफैक्‍चरिंग के क्षेत्र में जाने वाला मैं अपने परिवार का पहला व्‍यक्ति था. लेकिन मेरे पिता ने चार मसाला उत्‍पादों की नींव रखी. ये थे- चाट मसाला, चना मसाला, गरम मसाला और कसूरी मेथी. वे इन्‍हीं मसालों में कारोबार किया करते थे.’’

पगारिया अगले तीन साल में 100 करोड़ रुपए का टर्नओवर करने का लक्ष्‍य रखते हैं.

नरेश पगारिया के भाई ज्‍वेलरी के कारोबार में उतरे, जबकि साल 1998 में नरेश ने पारिवारिक सदस्‍यों और रिश्‍तेदारों की मदद से करीब पांच लाख रुपए का निवेश कर मसाला कारोबार पूरी तरह संभाल लिया.

शुरुआत से ही उन्‍होंने सेल्‍स और मार्केटिंग के साथ प्रमुख जिम्‍मेदारियां संभालीं. जबकि उनके पिता ने खरीदी, अकाउंट्स जैसी गतिविधियां संभालीं.  

आज, ‘क्‍वालिटी फूड्स’ पगारिया प्रॉडक्‍ट्स का ब्रांड नेम है. यह बाजार में मशहूर है. नरेश कंपनी के एमडी हैं, जिसे प्रोफेशनल्‍स और एक्‍सपर्ट की टीम चलाती है. उनके पिता सेवानिवृत्‍त जीवन जी रहे हैं और अब भी जरूरत पड़ने पर मार्गदर्शन देते हैं.

नरेश अपनी कंपनी को अगले 2 सालों में 100 करोड़ रुपए के क्‍लब में शामिल कराना चाहते हैं. वे कहते हैं, ‘‘क्‍वालिटी प्रॉडक्‍ट्स की कम कीमत होना हमारी बड़ी ताकत है. हमारी सफलता का श्रेय स्‍थानीय मैन्‍यूफैक्‍चरिंग को भी जाता है.’’

अतीत में झांकते हुए नरेश कहते हैं, ‘‘यह सफर एक लाख रुपए प्रति महीना टर्नओवर से शुरू हुआ था. तब हमारा बिजनेस बेंगलुरु के होलसेल मार्केट तक ही सीमित था. धीरे-धीरे और एकसमान गति से बिजनेस बढ़ता गया और हम दूसरे होलसेल डीलर और रिटेलर को भी सामान देने लगे. साथ ही कर्नाटक के अन्‍य शहरों के मार्केट में भी प्रवेश कर गए.’’

शुरुआत में ये सभी प्रॉडक्‍ट मगाड़ी रोड पर 300 वर्ग फीट की किराए की जगह में बनाए जाते थे. साल 2002 में राजाजीनगर में 1200 वर्ग फीट की जगह में बनाए जाने लगे. बिजनेस बढ़ा, तो साल 2002 में ही श्रीरामपुरम की 4500 वर्गफीट की बड़ी जगह पर ले जाया गया.

साल 2006 में पगारिया ने मैसूर रोड पर एक और प्‍लांट शुरू कर दिया. यह 15,000 वर्ग फीट में फैला था. बिजनेस साल-दर-साल बढ़ रहा था. साल 2015 में उन्‍होंने हरोहल्‍ली में 2 एकड़ जमीन खरीदी और नई यूनिट स्‍थापित की. वहां सभी क्‍वालिटी फूड प्रॉडक्‍ट्स बनाए जाते थे.

क्‍वालिटी फूड्स के तहत मसाले, ब्रेकफास्‍ट सीरियल्‍स और इंस्‍टैंट मिक्‍स आदि प्रॉडक्‍ट बनाए जाते हैं.

प्‍लांट की उत्‍पादन क्षमता 7,200 टन सालाना है. लेकिन वर्तमान में इससे 4,000 टन की उत्‍पादन किया जा रहा है.

क्‍वालिटी फूड्स ब्रांड के तहत मसाले, ब्रेकफास्‍ट सीरियल्‍स और इंस्‍टेंट मिक्‍स बनाने वाली कंपनी के संस्‍थापक कहते हैं, ‘‘भविष्‍य के विस्‍तार के लिए एक एकड़ का तीन चौथाई हिस्‍सा खाली रखा गया है.’’

लेकिन शुरुआत इतनी सहज नहीं थी. नरेश कहते हैं, ‘‘चूंकि अपनी बिरादरी में मैं पहला व्‍यक्ति था, जो मैन्‍यूफैक्‍चरिंग के क्षेत्र में उतरा था, इसलिए मुझे बिरादरी और परिवार को समझाने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा. वे मुझ पर हंसते थे और मेरा मजाक उड़ाते थे. कई कर्ज लेकर बिजनेस करने के विचार के खिलाफ थे.’’

लेकिन एक बार बिजनेस शुरू होने के बाद प्रॉडक्‍ट लॉन्‍च करने, विस्‍तार करने और राज्‍यभर के बड़े मार्केट तक पहुंच बनाने से यह दो साल में छह गुना बढ़ा.

वे कहते हैं, ‘‘तीन साल के भीतर 15 लाख रुपए प्रति महीना का बिजनेस होने लगा. हमारे 22 प्रॉडक्‍ट बाजार में थे.’’

साल 2003-04 में उन्‍होंने सीरियल्‍स की रेंज बाजार में उतारी. बाजार पर नजर रखने पर उन्‍हें पता चला कि एक जाने-माने सीरियल ब्रांड ने ब्रेकफास्‍ट सीरियल प्रॉडक्‍ट लॉन्‍च किया. नरेश को इसमें एक अच्‍छा अवसर नजर आया.   

शुरुआत में उन्‍होंने दूसरी कंपनियों से सीरियल्‍स लिया और उसे क्‍वालिटी फूड्स के ब्रांड से बेचा. चार साल बाद उन्‍होंने खुद इसकी मैन्‍यूफैक्‍चरिंग शुरू कर दी. वे कहते हैं, ‘‘सीरियल्‍स ने हमें जरूरी खुदरा बाजार उपलब्‍ध करवाया. हमारे अधिकांश प्रॉडक्‍ट होलसेल वाले थे, इसलिए सीरियल्‍स ने हमारी रिटेल में मौजूदगी बनाने में मदद की.’’

पगारिया फूड्स ने 240 लोगों को रोजगार दिया है.

कंपनी ने पूरे दक्षिण भारत और महाराष्‍ट्र के हिस्‍सों में जाकर विस्‍तार किया. उन्‍होंने साल 2014 में विदेशी बाजार में प्रवेश किया और मिडिल ईस्‍ट में निर्यात करने लगे. उन्‍होंने दुबई को हब बनाया. आज पगारिया फूड्स नेपाल, श्रीलंका, तंजानिया और केन्‍या समेत 21 देशों में अपने प्रॉडक्‍ट निर्यात करता है.

मार्केट चेन जैसे डीमार्ट, रिलायंस और बिग बाजार में इनका दबदबा है. इनके प्रॉडक्‍ट ई-कॉमर्स प्‍लेटफॉर्म जैसे अमेजॉन, फ्लिपकार्ट और बिग बास्‍केट पर भी उपलब्‍ध हैं.

नरेश की सेल्‍स और मार्केटिंग स्‍ट्रेटेजी ने कंपनी को नई ऊंचाई छूने में मदद की. वे कहते हैं, ‘‘उचित कीमत पर गुणवत्‍ता वाले प्रॉडक्‍ट उपलब्‍ध कराना, आकर्षक पैकेजिंग और चैनल पार्टनर को अच्‍छा-खासा मार्जिन देना ही हमारी ताकत है. ’’

कंपनी के पास 240 कर्मचारी हैं. इनमें से 80 सेल्‍स टीम में हैं. 120 फैक्‍टरी में हैं और बाकी कामों के लिए हैं. करीब 400 डिस्‍ट्रीब्‍यूटर हैं, जिनकी कर्नाटक और महाराष्‍ट्र-गुजरात के हिस्‍सों के करीब 20,000 रिटेल स्‍टोर्स तक पहुंच है.

गुणवत्‍ता बनाए रखने के लिए कंपनी देशभर से टॉप क्‍वालिटी के इन्‍ग्रेडिएंट जुटाती है. कुछ को आयात भी करती है.

कुछ ऐतिहासिक प्रॉडक्‍ट की लॉन्चिंग के बारे में नरेश बताते हैं, ‘‘देश में सबसे पहले हमने ही गोभी मंचुरियन मिक्‍स, पास्‍ता मसाला और नूडल्‍स मसाला लॉन्‍च किया था.’’

कंपनी निकट भविष्‍य में प्रॉडक्‍ट की दो से तीन कैटेगरी जोड़ने पर भी काम कर रही है. जिंजर गार्लिक पेस्‍ट, मैयोनीज, चीज स्‍प्रेड के लिक्विड पेस्‍ट के अलावा प्रोसेस्‍ड वेजीटेबल और जूस भी लॉन्‍च किए जा सकते हैं.

अपने कुछ प्रॉडक्‍ट के साथ पगारिया.

इस बिजनेस में मसाला और स्‍पाइस का योगदान 50 प्रतिशत है. ब्रेकफास्‍ट सीरियल्‍स और इंस्‍टेंट मिक्‍स का योगदान क्रमश: 35 प्रतिशत और 15 प्रतिशत है.

पगारिया फूड्स अपनी शुरुआत से ही शून्‍य कर्ज वाली कंपनी है. इसने साल 2012 के बाद विस्‍तार के लिए कर्ज लिया. भंवरलाल पगारिया कंपनी के डायरेक्‍टरों में से एक हैं. इसी तरह नरेश पगारिया के भतीजे धीरज जैन सेल्‍स और मार्केटिंग संभालते हैं.

पगारिया कहते हैं, ‘‘दक्षिण भारत में क्‍वालिटी फूड्स तीसरा बड़ा प्‍लेयर है, लेकिन मसालों में शीर्ष स्‍थान पाने के लिए हमें कठिन परिश्रम करने की जरूरत है.’’ पगारिया के लिए अपना परिवार प्राथमिकता है. उनका वीकेंड शनिवार दोपहर से शुरू होता है. उन्‍हें अपनी गृहिणी पत्‍नी कविता और बेटों सचिन व साहिल के साथ समय बिताना पसंद है.

पगारिया स्‍वास्‍थ्‍य के प्रति सजग रहते हैं. उनका दिन योग और मॉर्निंग वॉक से शुरू होता है. वे अपने बेटों के साथ बैडमिंटन और टेबल टेनिस खेलते हैं. वे बॉलीवुड स्‍टार अमिताभ बच्‍चन के बहुत बड़े प्रशंसक हैं. उन्‍हें बॉलीवुड की फिल्‍में देखना पसंद हैं.


 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • The Yellow Straw story

    दो साल में एक करोड़ का बिज़नेस

    पीयूष और विक्रम ने दो साल पहले जूस की दुकान शुरू की. कई लोगों ने कहा कोलकाता में यह नहीं चलेगी, लेकिन उन्हें अपने आइडिया पर भरोसा था. दो साल में उनके छह आउटलेट पर हर दिन 600 गिलास जूस बेचा जा रहा है और उनका सालाना कारोबार क़रीब एक करोड़ रुपए का है. कोलकाता से जी सिंह की रिपोर्ट.
  • Selling used cars he became rich

    यूज़्ड कारों के जादूगर

    जिस उम्र में आप और हम करियर बनाने के बारे में सोच रहे होते हैं, जतिन आहूजा ने पुरानी कार को नया बनाया और बेचकर लाखों रुपए कमाए. 32 साल की उम्र में जतिन 250 करोड़ रुपए की कंपनी के मालिक हैं. नई दिल्ली से सोफ़िया दानिश खान की रिपोर्ट.
  • Rajan Nath story

    शून्य से शिखर की ओर

    सिलचर (असम) के राजन नाथ आर्थिक परिस्थिति के चलते मेडिकल की पढ़ाई कर डॉक्टर तो नहीं कर पाए, लेकिन अपने यूट्यूब चैनल और वेबसाइट के जरिए सैकड़ों डाक कर्मचारियों को वरिष्ठ पद जरूर दिला रहे हैं. उनके बनाए यूट्यूब चैनल ‘ईपोस्टल नेटवर्क' और वेबसाइट ‘ईपोस्टल डॉट इन' का लाभ हजारों लोग ले रहे हैं. उनका चैनल भारत में डाक कर्मचारियों के लिए पहला ऑनलाइन कोचिंग संस्थान है. वे अपने इस स्टार्ट-अप को देश के बड़े ऑनलाइन एजुकेशन ब्रांड के बराबरी पर लाना चाहते हैं. बता रही हैं उषा प्रसाद
  • thyrocare founder dr a velumani success story in hindi

    घोर ग़रीबी से करोड़ों का सफ़र

    वेलुमणि ग़रीब किसान परिवार से थे, लेकिन उन्होंने उम्मीद का दामन कभी नहीं छोड़ा, चाहे वो ग़रीबी के दिन हों जब घर में खाने को नहीं होता था या फिर जब उन्हें अनुभव नहीं होने के कारण कोई नौकरी नहीं दे रहा था. मुंबई में पीसी विनोज कुमार मिलवा रहे हैं ए वेलुमणि से, जिन्होंने थायरोकेयर की स्थापना की.
  • Malika sadaani story

    कॉस्मेटिक प्रॉडक्ट्स की मलिका

    विदेश में रहकर आई मलिका को भारत में अच्छी गुणवत्ता के बेबी केयर प्रॉडक्ट और अन्य कॉस्मेटिक्स नहीं मिले तो उन्हें ये सामान विदेश से मंगवाने पड़े. इस बीच उन्हें आइडिया आया कि क्यों न देश में ही टॉक्सिन फ्री प्रॉडक्ट बनाए जाएं. महज 15 लाख रुपए से उन्होंने अपना स्टार्टअप शुरू किया और देखते ही देखते वे मिसाल बन गईं. अब तक उनकी कंपनी को दो बार बड़ा निवेश मिल चुका है. कंपनी का टर्नओवर 4 साल में ही 100 करोड़ रुपए काे छूने के लिए तैयार है. बता रही हैं सोफिया दानिश खान.