Milky Mist

Wednesday, 29 November 2023

नौकरी रास नहीं आई, तो काम सीखा और ख़ुद की कंपनी खोली, अब है 250 करोड़ टर्नओवर

29-Nov-2023 By अन्वी मेहता
पुणे

Posted 25 Aug 2018

नब्बे के दशक में अंकुश असाबे ने मुंबई में एक कॉन्‍ट्रैक्‍टर की नौकरी छोड़कर पुणे जाने और वहां ख़ुद का काम शुरू करने का फ़ैसला किया. उस वक्त उनके पास कोई शुरुआती पूंजी नहीं थी.

आज वो पुणे में 250 करोड़ रुपए के टर्नओवर वाली वेंकटेश बिल्डकॉन के डायरेक्‍टर हैं. उन्‍हें निर्माण उद्योग में काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा.

अंकुश का जन्म 30 सितंबर 1970 को महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के छोटे से गांव में हुआ. उस वक्त गांव की आबादी क़रीब 3,000 थी.

मुंबई में कॉन्‍ट्रेक्‍टर के यहां 1500 रुपए महीने में नौकरी करने वाले अंकुश असाबे अब 250 करोड़ रुपए टर्नओवर वाली कंपनी वेंकटेश बिल्‍डकॉन के मालिक हैं. (सभी फ़ोटो – अनिरुद्ध राजंदेकर)


अंकुश के पिता किसान थे. उनकी आमदनी बेहद कम थी क्योंकि उस इलाक़े में पानी की कमी और अच्‍छे बाज़ार से संपर्क न होने के कारण खेती से बहुत ज्‍़यादा कमाई नहीं हो पाती थी.

इसलिए सरकारी स्कूलों में पढ़ाई और सोलापुर के गवर्नमेंट पॉलिटेक्निक कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग का डिप्लोमा लेने के बाद उन्होंने गांव से बाहर जाने का फ़ैसला किया.

सोलापुर से कई लोग बेहतर मौक़ों की तलाश में मुंबई, पुणे, नासिक और दूसरे शहर जाते थे.

अंकुश याद करते हैं, परिवार की आर्थिक स्थिति मुझे आगे पढ़ने की इजाज़त नहीं दे रही थी, इसलिए मैं परिवार को संभालने और अपने छोटे भाई की पढ़ाई में मदद के लिए मुंबई आ गया.

साल 1989 में उन्हें रिश्तेदारों के सहयोग से मुंबई के एक कॉन्‍ट्रैक्‍टर के पास काम मिला. उन्हें मात्र 1,500 तनख्‍वाह मिलती थी, लेकिन उन्हें काम के दौरान जो अनुभव मिला उसने भविष्य में उनकी बहुत मदद की.

जल्द ही उन्होंने कॉन्‍ट्रैक्‍टर के काम की बारीकियां सीख लीं. उन्‍होंने ख़ुद निजी प्रोजेक्ट्स लेने शुरू कर दिए, जिससे उन्हें अतिरिक्त आमदनी होने लगी. साल 1993 तक उन्‍हें इतनी कमाई होने लगी कि उनका और परिवार का ख़र्च निकल सकता था. लेकिन वो अधिक कमाने के लिए लालायित थे.

अपनी शुरुआती महत्‍वाकांक्षा बताते हुए अंकुश कहते हैं, मुझे पता था कि डिप्लोमा से मुझे बहुत अच्छी नौकरी नहीं मिल सकती. मैं भी एक औसत नौकरी में अपना जीवन नहीं खपाना चाहता था. मैं चाहता था कि मैं भी बॉस बनूं.

मुंबई से पुणे जाने के बारे में अंकुश बताते हैं, मेरे छोटे भाई की पढ़ाई ख़त्‍म हो चुकी थी और वो पुणे में काम कर रहा था. मैंने अपने परिवार को इस फ़ैसले के बारे में नहीं बताया क्योंकि मैं मुंबई में अच्छा-ख़ासा कमा रहा था और मुझे लगा कि वो मेरे फ़ैसले को स्वीकर नहीं करेंगे. साथ में महाराष्ट्र के कई लोगों को लगता है कि वो दूसरे समुदायों की तरह अच्छी तरह बिज़नेस नहीं कर सकते!

अंकुश का ड्रीम प्रोजेक्‍ट वेंकटेश लेक विस्‍टा 12.5 एकड़ ज़मीन पर बना है. साल 2007 में इसका काम पूरा हुआ. यह अंकुश के करियर के लिए मील का पत्‍थर साबित हुआ.


पुणे का कंस्ट्रक्शन बिज़नेस समझने के लिए उन्होंने वहां एक साल तक 2,800 रुपए की नौकरी कर ली. उनकी तनख्‍वाह मुंबई में मिल रही तनख्‍वाह से 70 प्रतिशत कम थी.

काम पर जाने के लिए अंकुश को कई मील पैदल चलना पड़ता था और कई बसें बदलनी पड़ती थीं, लेकिन इस मुश्किल दौर में भी उनके भाई और उसके दोस्‍तों ने उनका हौसला बनाए रखा.

क़रीब एक साल बाद आखिरकार अंकुश ने पुणे में कॉन्‍ट्रैक्‍ट लेने शुरू किए. साथ ही अपनी नौकरी भी जारी रखी, ताकि परिवार की आर्थिक ज़रूरतें पूरी हो सकें. अंकुश ने अपनी कंपनी शुरू करने के लिए कुछ रकम भी इकट्ठा कर ली.

साल 1998 में उन्होंने नौकरी छोड़ दी और एक दोस्त के साथ 50-50 फ़ीसदी की पार्टनरशिप पर वेंकटेश बिल्डकॉन की शुरुआत की. उन्होंने डेढ़ एकड़ का एक प्लॉट ख़रीदा और अपना पहला प्रोजेक्ट शुरू कर दिया.

अंकुश बताते हैं, मेरे पास चार लाख रुपए थे. दोस्तों व परिवार की मदद से सात लाख रुपए और इकट्ठा किए. सभी ने मेरा हौसला बढ़ाया.

उसके बाद अंकुश ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. अंकुश ने सिविल इंजीनियर शुभांगी से शादी की. उनकी दो बेटियां और एक बेटा है.

साल 2004 में पार्टनरशिप ख़त्म हो गई और वेंकटेश प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बन गई. अंकुश के भाई और शुभांगी के भाई अमित मोडगे कंपनी में तीन डायरेक्टर में से एक हैं.

अंकुश वर्तमान में पुणे एयरपोर्ट के नज़दीक बन रहे 1200 फ्लैट क्षमता वाले रेसिडेंशियल कॉम्‍प्‍लेक्‍स पर काम कर रहे हैं.


अंकुश के भाई लाहूराज असाबे भी कंपनी में डॉयरेक्टर हैं. वो कंस्ट्रक्शन से जुड़ी सभी गतिविधियों पर नज़र रखते हैं, जबकि अंकुश कंपनी की स्ट्रैटजी, प्लानिंग और बिज़नेस पर ध्यान देते हैं.

साल 2007 में अंकुश ने 12.5 एकड़ पर अपने ड्रीम प्रोजेक्ट वेंकटेश लेक विस्टा की शुरुआत की. इसे मात्र 26 महीनों में ही 40 करोड़ निवेश से पूरा कर लिया गया.

यह प्रोजेक्ट पुणे की प्राइम लोकेशन अंबेगांव में स्थित है. इस प्रोजेक्ट ने कंपनी को पुणे की टॉप कंस्ट्रक्शन कंपनियों में शुमार कर दिया.

गुज़रे सालों में उन्होंने कई उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन जब भी कोई चुनौती आई, उन्होंने ख़ुद को इस बात से प्रेरित किया कि कमाई चाहे कितनी भी कम हो, ख़ुद के लिए काम करना दूसरे के लिए काम करने से बहुत बेहतर है.

अंकुश अब भी दूसरी कंस्ट्रक्शन कंपनियों जैसे हीरानंदानी, सतीश मागर आदि के बिज़नेस मॉडल के बारे में पढ़ते रहते हैं क्योंकि वो मानते हैं कि सीखने की प्रक्रिया हमेशा जारी रहती है.

अभी वेंकटेश का 1,200 फ्लैट्स का एक प्रोजेक्ट पुणे एयरपोर्ट के पास चल रहा है.

अंकुश सन् 2022 तक कंपनी का टर्नओवर तीन गुना करने पर अपनी निगाहें लगाए हुए हैं.


अंकुश का लक्ष्य है साल 2022 तक कंपनी का टर्नओवर 250 करोड़ रुपए तक पहुंचाना.

अंकुश रेसिडेंशियल स्पेस के बाद अब ऑफ़िस स्पेस, इन्फ़्रास्ट्रक्चर और लग्ज़री लिविंग में भी जाना चाहते हैं.

कंस्‍ट्रक्‍शन बिज़नेस के अतिरिक्‍त अंकुश वर्तमान में मराठा एंटरप्रेन्योर एसोसिएशन के प्रमुख भी हैं, जो युवाओं को बिज़नेस शुरू करने के लिए प्रेरित करती है. इसके 500 सदस्‍य हैं. यह समूह अब तक पुणे की 90 महिलाओं को ख़ुद का बिज़नेस शुरू करवाने में मदद कर चुका है और सभी सफलतापूर्वक बिज़नेस संचालित कर रही हैं.

वो कहते हैं, एक बिज़नेसमैन तभी आगे बढ़ेगा, जब उसमें कुछ करने की तीव्र इच्छा हो. चाहे मैं असफ़ल रहूं, मैं हमेशा नई चीज़ ट्राई करने की कोशिश करता हूं.


 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • Success story of man who sold saris in streets and became crorepati

    ममता बनर्जी भी इनकी साड़ियों की मुरीद

    बीरेन कुमार बसक अपने कंधों पर गट्ठर उठाए कोलकाता की गलियों में घर-घर जाकर साड़ियां बेचा करते थे. आज वो साड़ियों के सफल कारोबारी हैं, उनके ग्राहकों की सूची में कई बड़ी हस्तियां भी हैं और उनका सालाना कारोबार 50 करोड़ रुपए का आंकड़ा पार कर चुका है. जी सिंह के शब्दों में पढ़िए इनकी सफलता की कहानी.
  • Dream of Farming revolution in city by hydroponics start-up

    शहरी किसान

    चेन्नई के कुछ युवा शहरों में खेती की क्रांति लाने की कोशिश कर रहे हैं. इन युवाओं ने हाइड्रोपोनिक्स तकनीक की मदद ली है, जिसमें खेती के लिए मिट्टी की ज़रूरत नहीं होती. ऐसे ही एक हाइड्रोपोनिक्स स्टार्ट-अप के संस्थापक श्रीराम गोपाल की कंपनी का कारोबार इस साल तीन गुना हो जाएगा. पीसी विनोज कुमार की रिपोर्ट.
  • Hotelier of North East India

    मणिपुर जैसे इलाके का अग्रणी कारोबारी

    डॉ. थंगजाम धाबाली के 40 करोड़ रुपए के साम्राज्य में एक डायग्नोस्टिक चेन और दो स्टार होटल हैं. इंफाल से रीना नोंगमैथेम मिलवा रही हैं एक ऐसे डॉक्टर से जिन्होंने निम्न मध्यम वर्गीय परिवार में जन्म लिया और जिनके काम ने आम आदमी की ज़िंदगी को छुआ.
  • Karan Chopra

    रोशनी के राजा

    महाराष्ट्र के बुलढाना के करण चाेपड़ा ने टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेस में नौकरी की, लेकिन रास नहीं आई. छोड़कर गृहनगर बुलढाना लौटे और एलईडी लाइट्स का कारोबार शुरू किया, लेकिन उसमें भी मुनाफा नहीं हुआ तो सोलर ऊर्जा की राह पकड़ी. यह काम उन्हें पसंद आया. धीरे-धीरे प्रगति की और काम बढ़ने लगा. आज उनकी कंपनी चिरायु पावर प्राइवेट लिमिटेड का टर्नओवर 14 करोड़ रुपए हो गया है. जल्द ही यह दोगुना होने की उम्मीद है. करण का संघर्ष बता रही हैं उषा प्रसाद
  • Miyazaki Mango story

    ये 'आम' आम नहीं, खास हैं

    जबलपुर के संकल्प उसे फरिश्ते को कभी नहीं भूलते, जिसने उन्हें ट्रेन में दुनिया के सबसे महंगे मियाजाकी आम के पौधे दिए थे. अपने खेत में इनके समेत कई प्रकार के हाइब्रिड फलों की फसल लेकर संकल्प दुनियाभर में मशहूर हो गए हैं. जापान में 2.5 लाख रुपए प्रति किलो में बिकने वाले आमों को संकल्प इतना आम बना देना चाहते हैं कि भारत में ये 2 हजार रुपए किलो में बिकने लगें. आम से जुड़े इस खास संघर्ष की कहानी बता रही हैं सोफिया दानिश खान