Milky Mist

Saturday, 15 November 2025

नौकरी रास नहीं आई, तो काम सीखा और ख़ुद की कंपनी खोली, अब है 250 करोड़ टर्नओवर

15-Nov-2025 By अन्वी मेहता
पुणे

Posted 25 Aug 2018

नब्बे के दशक में अंकुश असाबे ने मुंबई में एक कॉन्‍ट्रैक्‍टर की नौकरी छोड़कर पुणे जाने और वहां ख़ुद का काम शुरू करने का फ़ैसला किया. उस वक्त उनके पास कोई शुरुआती पूंजी नहीं थी.

आज वो पुणे में 250 करोड़ रुपए के टर्नओवर वाली वेंकटेश बिल्डकॉन के डायरेक्‍टर हैं. उन्‍हें निर्माण उद्योग में काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा.

अंकुश का जन्म 30 सितंबर 1970 को महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के छोटे से गांव में हुआ. उस वक्त गांव की आबादी क़रीब 3,000 थी.

मुंबई में कॉन्‍ट्रेक्‍टर के यहां 1500 रुपए महीने में नौकरी करने वाले अंकुश असाबे अब 250 करोड़ रुपए टर्नओवर वाली कंपनी वेंकटेश बिल्‍डकॉन के मालिक हैं. (सभी फ़ोटो – अनिरुद्ध राजंदेकर)


अंकुश के पिता किसान थे. उनकी आमदनी बेहद कम थी क्योंकि उस इलाक़े में पानी की कमी और अच्‍छे बाज़ार से संपर्क न होने के कारण खेती से बहुत ज्‍़यादा कमाई नहीं हो पाती थी.

इसलिए सरकारी स्कूलों में पढ़ाई और सोलापुर के गवर्नमेंट पॉलिटेक्निक कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग का डिप्लोमा लेने के बाद उन्होंने गांव से बाहर जाने का फ़ैसला किया.

सोलापुर से कई लोग बेहतर मौक़ों की तलाश में मुंबई, पुणे, नासिक और दूसरे शहर जाते थे.

अंकुश याद करते हैं, परिवार की आर्थिक स्थिति मुझे आगे पढ़ने की इजाज़त नहीं दे रही थी, इसलिए मैं परिवार को संभालने और अपने छोटे भाई की पढ़ाई में मदद के लिए मुंबई आ गया.

साल 1989 में उन्हें रिश्तेदारों के सहयोग से मुंबई के एक कॉन्‍ट्रैक्‍टर के पास काम मिला. उन्हें मात्र 1,500 तनख्‍वाह मिलती थी, लेकिन उन्हें काम के दौरान जो अनुभव मिला उसने भविष्य में उनकी बहुत मदद की.

जल्द ही उन्होंने कॉन्‍ट्रैक्‍टर के काम की बारीकियां सीख लीं. उन्‍होंने ख़ुद निजी प्रोजेक्ट्स लेने शुरू कर दिए, जिससे उन्हें अतिरिक्त आमदनी होने लगी. साल 1993 तक उन्‍हें इतनी कमाई होने लगी कि उनका और परिवार का ख़र्च निकल सकता था. लेकिन वो अधिक कमाने के लिए लालायित थे.

अपनी शुरुआती महत्‍वाकांक्षा बताते हुए अंकुश कहते हैं, मुझे पता था कि डिप्लोमा से मुझे बहुत अच्छी नौकरी नहीं मिल सकती. मैं भी एक औसत नौकरी में अपना जीवन नहीं खपाना चाहता था. मैं चाहता था कि मैं भी बॉस बनूं.

मुंबई से पुणे जाने के बारे में अंकुश बताते हैं, मेरे छोटे भाई की पढ़ाई ख़त्‍म हो चुकी थी और वो पुणे में काम कर रहा था. मैंने अपने परिवार को इस फ़ैसले के बारे में नहीं बताया क्योंकि मैं मुंबई में अच्छा-ख़ासा कमा रहा था और मुझे लगा कि वो मेरे फ़ैसले को स्वीकर नहीं करेंगे. साथ में महाराष्ट्र के कई लोगों को लगता है कि वो दूसरे समुदायों की तरह अच्छी तरह बिज़नेस नहीं कर सकते!

अंकुश का ड्रीम प्रोजेक्‍ट वेंकटेश लेक विस्‍टा 12.5 एकड़ ज़मीन पर बना है. साल 2007 में इसका काम पूरा हुआ. यह अंकुश के करियर के लिए मील का पत्‍थर साबित हुआ.


पुणे का कंस्ट्रक्शन बिज़नेस समझने के लिए उन्होंने वहां एक साल तक 2,800 रुपए की नौकरी कर ली. उनकी तनख्‍वाह मुंबई में मिल रही तनख्‍वाह से 70 प्रतिशत कम थी.

काम पर जाने के लिए अंकुश को कई मील पैदल चलना पड़ता था और कई बसें बदलनी पड़ती थीं, लेकिन इस मुश्किल दौर में भी उनके भाई और उसके दोस्‍तों ने उनका हौसला बनाए रखा.

क़रीब एक साल बाद आखिरकार अंकुश ने पुणे में कॉन्‍ट्रैक्‍ट लेने शुरू किए. साथ ही अपनी नौकरी भी जारी रखी, ताकि परिवार की आर्थिक ज़रूरतें पूरी हो सकें. अंकुश ने अपनी कंपनी शुरू करने के लिए कुछ रकम भी इकट्ठा कर ली.

साल 1998 में उन्होंने नौकरी छोड़ दी और एक दोस्त के साथ 50-50 फ़ीसदी की पार्टनरशिप पर वेंकटेश बिल्डकॉन की शुरुआत की. उन्होंने डेढ़ एकड़ का एक प्लॉट ख़रीदा और अपना पहला प्रोजेक्ट शुरू कर दिया.

अंकुश बताते हैं, मेरे पास चार लाख रुपए थे. दोस्तों व परिवार की मदद से सात लाख रुपए और इकट्ठा किए. सभी ने मेरा हौसला बढ़ाया.

उसके बाद अंकुश ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. अंकुश ने सिविल इंजीनियर शुभांगी से शादी की. उनकी दो बेटियां और एक बेटा है.

साल 2004 में पार्टनरशिप ख़त्म हो गई और वेंकटेश प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बन गई. अंकुश के भाई और शुभांगी के भाई अमित मोडगे कंपनी में तीन डायरेक्टर में से एक हैं.

अंकुश वर्तमान में पुणे एयरपोर्ट के नज़दीक बन रहे 1200 फ्लैट क्षमता वाले रेसिडेंशियल कॉम्‍प्‍लेक्‍स पर काम कर रहे हैं.


अंकुश के भाई लाहूराज असाबे भी कंपनी में डॉयरेक्टर हैं. वो कंस्ट्रक्शन से जुड़ी सभी गतिविधियों पर नज़र रखते हैं, जबकि अंकुश कंपनी की स्ट्रैटजी, प्लानिंग और बिज़नेस पर ध्यान देते हैं.

साल 2007 में अंकुश ने 12.5 एकड़ पर अपने ड्रीम प्रोजेक्ट वेंकटेश लेक विस्टा की शुरुआत की. इसे मात्र 26 महीनों में ही 40 करोड़ निवेश से पूरा कर लिया गया.

यह प्रोजेक्ट पुणे की प्राइम लोकेशन अंबेगांव में स्थित है. इस प्रोजेक्ट ने कंपनी को पुणे की टॉप कंस्ट्रक्शन कंपनियों में शुमार कर दिया.

गुज़रे सालों में उन्होंने कई उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन जब भी कोई चुनौती आई, उन्होंने ख़ुद को इस बात से प्रेरित किया कि कमाई चाहे कितनी भी कम हो, ख़ुद के लिए काम करना दूसरे के लिए काम करने से बहुत बेहतर है.

अंकुश अब भी दूसरी कंस्ट्रक्शन कंपनियों जैसे हीरानंदानी, सतीश मागर आदि के बिज़नेस मॉडल के बारे में पढ़ते रहते हैं क्योंकि वो मानते हैं कि सीखने की प्रक्रिया हमेशा जारी रहती है.

अभी वेंकटेश का 1,200 फ्लैट्स का एक प्रोजेक्ट पुणे एयरपोर्ट के पास चल रहा है.

अंकुश सन् 2022 तक कंपनी का टर्नओवर तीन गुना करने पर अपनी निगाहें लगाए हुए हैं.


अंकुश का लक्ष्य है साल 2022 तक कंपनी का टर्नओवर 250 करोड़ रुपए तक पहुंचाना.

अंकुश रेसिडेंशियल स्पेस के बाद अब ऑफ़िस स्पेस, इन्फ़्रास्ट्रक्चर और लग्ज़री लिविंग में भी जाना चाहते हैं.

कंस्‍ट्रक्‍शन बिज़नेस के अतिरिक्‍त अंकुश वर्तमान में मराठा एंटरप्रेन्योर एसोसिएशन के प्रमुख भी हैं, जो युवाओं को बिज़नेस शुरू करने के लिए प्रेरित करती है. इसके 500 सदस्‍य हैं. यह समूह अब तक पुणे की 90 महिलाओं को ख़ुद का बिज़नेस शुरू करवाने में मदद कर चुका है और सभी सफलतापूर्वक बिज़नेस संचालित कर रही हैं.

वो कहते हैं, एक बिज़नेसमैन तभी आगे बढ़ेगा, जब उसमें कुछ करने की तीव्र इच्छा हो. चाहे मैं असफ़ल रहूं, मैं हमेशा नई चीज़ ट्राई करने की कोशिश करता हूं.


 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • multi cooking pot story

    सफलता का कूकर

    रांची और मुंबई के दो युवा साथी भले ही अलग-अलग रहें, लेकिन जब चेन्नई में साथ पढ़े तो उद्यमी बन गए. पढ़ाई पूरी कर नौकरी की, लेकिन लॉकडाउन ने मल्टी कूकिंग पॉट लॉन्च करने का आइडिया दिया. महज आठ महीनों में ही 67 लाख रुपए की बिक्री कर चुके हैं. निवेश की गई राशि वापस आ चुकी है और अब कंपनी मुनाफे में है. बता रहे हैं पार्थो बर्मन...
  • seven young friends are self-made entrepreneurs

    युवाओं ने ठाना, बचपन बेहतर बनाना

    हमेशा से एडवेंचर के शौकीन रहे दिल्ली् के सात दोस्‍तों ने ऐसा उद्यम शुरू किया, जो स्कूली बच्‍चों को काबिल इंसान बनाने में अहम भूमिका निभा रहा है. इन्होंने चीन से 3डी प्रिंटर आयात किया और उसे अपने हिसाब से ढाला. अब देशभर के 150 स्कूलों में बच्‍चों को 3डेक्‍स्‍टर के जरिये 3डी प्रिंटिंग सिखा रहे हैं.
  • Alkesh Agarwal story

    छोटी शुरुआत से बड़ी कामयाबी

    कोलकाता के अलकेश अग्रवाल इस वर्ष अपने बिज़नेस से 24 करोड़ रुपए टर्नओवर की उम्मीद कर रहे हैं. यह मुकाम हासिल करना आसान नहीं था. स्कूल में दोस्तों को जीन्स बेचने से लेकर प्रिंटर कार्टेज रिसाइकिल नेटवर्क कंपनी बनाने तक उन्होंने कई उतार-चढ़ाव देखे. उनकी बदौलत 800 से अधिक लोग रोज़गार से जुड़े हैं. कोलकाता से संघर्ष की यह कहानी पढ़ें गुरविंदर सिंह की कलम से.
  • Astha Jha story

    शादियां कराना इनके बाएं हाथ का काम

    आस्था झा ने जबसे होश संभाला, उनके मन में खुद का बिजनेस करने का सपना था. पटना में देखा गया यह सपना अनजाने शहर बेंगलुरु में साकार हुआ. महज 4000 रुपए की पहली बर्थडे पार्टी से शुरू हुई उनकी इवेंट मैनेटमेंट कंपनी पांच साल में 300 शादियां करवा चुकी हैं. कंपनी के ऑफिस कई बड़े शहरों में हैं. बता रहे हैं गुरविंदर सिंह
  • Food Tech Startup Frshly story

    फ़्रेशली का बड़ा सपना

    एक वक्त था जब सतीश चामीवेलुमणि ग़रीबी के चलते लंच में पांच रुपए का पफ़ और एक कप चाय पी पाते थे लेकिन उनका सपना था 1,000 करोड़ रुपए की कंपनी खड़ी करने का. सालों की कड़ी मेहनत के बाद आज वो उसी सपने की ओर तेज़ी से बढ़ रहे हैं. चेन्नई से पीसी विनोज कुमार की रिपोर्ट