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Wednesday, 2 April 2025

तीन भाइयों ने मार्बल के बिजनेस को नया आयाम दिया, 9 लाख रुपए निवेश कर टर्नओवर 300 करोड़ पहुंचाया, अब अंतरराष्ट्रीय ब्रांड बनने की चाहत

02-Apr-2025 By सोफिया दानिश खान
नई दिल्ली

Posted 22 Apr 2020

एक परिवार के तीन लड़कों ने पेपर विक्रय का पुश्‍तैनी धंधा छोड़कर मार्बल का कारोबार शुरू किया. अपनी अनूठी दूरदर्शिता और उभरते बाजार पर पैनी दृष्टि रखकर इसे तेजी से फैलाया. आज उनकी कंपनी स्‍टोनेक्‍स इंडिया का टर्नओवर 300 करोड़ रुपए के आसपास है. कंपनी अब अंतरराष्‍ट्रीय ब्रांड बनने की तैयारी में है.

स्‍टोनेक्‍स भारत में ट्रेंडसेटर बन चुकी है. कंपनी ने कई आकर्षक रंगों में उच्‍च गुणवत्‍ता के मार्बल पेश किए हैं, जैसे बरबेरी बीज, जियोर्जियो अरमानी ब्रोंज, बरबेरी ग्रे, कासानोवा बीज, स्‍टेचुरियो व्‍हाइट आदि. कंपनी के संस्‍थापक भी उच्‍च जीवनशैली का जीवन जी रहे हैं.

(बाएं से) विकास अग्रवाल, गौरव अग्रवाल और सौरव अग्रवाल ने साल 2001 में 9 लाख रुपए के निवेश से स्‍टोनेक्‍स की स्‍थापना की थी. (सभी फोटो – नवनीता)

तीनों भाई अपने अतीत को याद कर गर्व महसूस करते हैं. 39 साल के गौरव अग्रवाल कहते हैं, ‘‘साल 1990 तक हम किराए के एक कमरे वाले फ्लैट में रहते थे. इसके बाद हमारे पिता ने 2बीएचके फ्लैट लिया. वहां हम सभी भाई एक कमरे में रहते थे. हम परिवार के साथ छुट्टियां नहीं बिता पाते थे. यही नहीं, स्‍कूल की कोई ट्रिप जाने पर दोस्‍तों से बहाना बनाना पड़ता था.’’

गौरव ने अपने छोटे भाई सौरव अग्रवाल (37) और चचेरे भाई विकास अग्रवाल (40) के साथ साल 2001 में 9 लाख रुपए के निवेश से दिल्ली के राजौरी गार्डन में 300 वर्ग फीट की एक दुकान किराए से ली और मार्बल का कारोबार शुरू किया.

इससे पहले युवा चचेरे भाई परिवार के पेपर के कारोबार में उनके पिता की मदद करते थे, जो चिरनाजी लाल संस के नाम से चावड़ी बाजार से संचालित होता था. अग्रवाल भाइयों का जीवन अपने मामा के साथ हुई एक मीटिंग के बाद बदल गया.

चचेरे भाई विकास अग्रवाल को वह मीटिंग आज भी अच्‍छी तरह याद है. वे कहते हैं, ‘‘मामाजी की राजस्‍थान के बांसवाड़ा में ‘कुशलबाग मार्बल्स’ नाम से मार्बल की फैक्‍ट्री थी. उन्‍होंने सुझाव दिया कि हमें कुछ अलग करना चाहिए, क्‍योंकि पेपर के कारोबार में विस्‍तार की इतनी गुंजाइश नहीं बची है. इसके बाद हमने उनकी फैक्‍ट्री देखी और तय किया कि दिल्ली में दुकान खोलेंगे.’’

सौरव अग्रवाल बताते हैं, ‘‘हमने अपने पिता से ही 9 लाख रुपए का लोन लिया और कठिन परिश्रम शुरू कर दिया. पिताजी ने अपना स्‍कूटर भी हमें दे दिया, जिसका इस्‍तेमाल हम तीनों भाई ग्राहकों के पास जाने, काम के सिलसिले में बाहर जाने और अन्‍य काम के लिए करते थे.’’ कारोबार की सफलता के बाद सौरव अब बीएमडब्‍ल्‍यू से आते-जाते हैं.

जून 2002 में उन्‍होंने मंगोलपुरी में ‘सरस्‍वती मार्बल’ नाम से एक और दुकान शुरू की. यह भी दिल्ली का जाना-माना इलाका था. विकास अग्रवाल अपने रोजमर्रा के काम इस दुकान से करने लगे.

सबसे युवा संस्‍थापक गौरव अग्रवाल कहते हैं, ‘‘उन दिनों हम हर संभावित तरीके से लागत घटाते थे. जब हमें राजस्‍थान के किशनगढ़ और उदयपुर जाना होता था, तो हम स्‍लीपर कोच में 450 रुपए वाला टिकट लेने के बजाय सामान्‍य बस का 250 रुपए वाला टिकट लेते थे.’’ गौरव अब बिजनेस क्‍लास में सफर करते हैं.

स्‍टोनेक्‍स के सबसे युवा सह संस्‍थापक सौरव अग्रवाल सेल्‍स और मार्केटिंग का काम संभालते हैं.

जब वे राजस्‍थान जाते थे, तो 15 से 20 दिन वहीं रुकते थे और एजेंट से खरीदने के बजाय गहरी रिसर्च कर सीधे मैन्‍यूफैक्‍चरर से खरीदी करते थे. इससे वे बेस्‍ट क्‍वालिटी का मार्बल चुन पाते थे.

सौरव अग्रवाल कहते हैं, ‘‘डेढ़ साल में ही हम ब्रांड स्‍थापित करने में सफल हो रहे और जून 2003 में ‘स्‍टोनेक्‍स’ लॉन्‍च किया. यह 2,000 वर्गफीट में फैला विशाल शोरूम था.’’

वर्ष 2003 में पहली कार मारुति 800 खरीदने के साथ ही उन्‍होंने साल 2005 में 80 लाख रुपए में पहला गोदाम भी खरीदा. 200 वर्ग फीट का यही गोदाम आज दिल्ली में शोरूम में तब्‍दील कर दिया गया है. यहां लामिनेम सिरेमिक स्‍लैब रखे गए हैं और एलिट क्लास के क्‍लाइंट आते हैं.

शुरुआत से स्‍टोनेक्‍स के सभी प्रमोटर ने ग्राहकों की जरूरतों को समझा और उन्‍हें पूरा करने का प्रयास किया. सौरव अग्रवाल कहते हैं, ‘‘हम ग्राहक केंद्रित रहे और हमने यह समझा कि जो लोग अपना घर बना रहे हैं, वे अपने पैसे ही नहीं, अपनी भावनाओं का भी निवेश कर रहे हैं.’’

बिजनेस की पहली चूक के बारे में विकास अग्रवाल बताते हैं, ‘‘एक ग्राहक ने मुझे विभिन्‍न आकार में मार्बल काटने के लिए कहा. मैंने वैसा ही किया, लेकिन पैसा सिर्फ खरीदे स्‍लैब का ही लिया. आम तौर पर वैस्‍टेज ग्राहक वहन करता है, लेकिन इस मामले में मैंने वहन किया.’’

स्‍टोनेक्‍स के दूरदृष्‍ट्रा गौरव अग्रवाल साल 2006 में तुर्की गए थे. उन्‍होंने मार्बल आयात करने की पहल की.

साल 2006 में मंगोलपुरी की दुकान बंद कर दी गई क्‍योंकि राजौरी गार्डन वाला आउटलेट बेहतर काम कर रहा था. जबकि मंगोलपुरी पर उतने ग्राहक नहीं आ रहे थे. हालांकि वह साल कंपनी के लिए ऐतिहासिक साबित हुआ.

अपनी पहली बड़ी उछाल के बारे में सौरव अग्रवाल बताते हैं, ‘‘साल 2006 में गौरव अपनी पहली अंतरराष्‍ट्रीय ट्रिप पर तुर्की गए, और हमने अपना पहला कंसाइनमेंट आयात किया, जो एक महीने में ही बिक गया. हमें बहुत मुनाफा हुआ.’’

जल्‍द ही उन्‍हें अहसास हो गया कि भारतीय मार्बल की मांग घट रही है और ग्राहक विदेशी मार्बल पसंद कर रहे हैं. इस तरह उन्‍होंने साल 2008 में भारतीय मार्बल का बिजनेस बंद कर दिया और आयात बढ़ा दिया.

साल 2008-2010 में उस समय मार्बल बिजनेस में तब उछाल आया, जब दिल्‍ली में कॉमनवेल्‍थ गेम्‍स 2010 की मेहमाननवाजी के लिए बुनियादी ढांचा बेहतर बनाने के लिए अधिक होटल और सुख-सुविधाएं बढ़ाई जा रही थीं.

स्‍टोनेक्‍स के दिन तब फिरे, जब होटल कंट्री इन, साहिबाबाद ने 5 करोड़ रुपए के मार्बल का ऑर्डर दिया.

क्‍वालिटी और कीमत के मामले में स्‍टोनेक्‍स की पहचान एक विश्‍वसनीय विक्रेता के रूप में बनी. 100 से अधि‍क होटलों ने अपने प्रोजेक्‍ट के लिए स्‍टोनेक्‍स पर विश्‍वास जताया. इससे वे मार्बल इंडस्‍ट्री में बड़े खिलाड़ी के रूप में स्‍थापित हो गए.

सौरव अग्रवाल कहते हैं, ‘‘साल 2008 में हमने हमारी टीम 15 से बढ़ाकर 50 लोगों की कर दी. कलात्‍मक शोरूम बनाने के लिए 250 वर्गमीटर जगह भी खरीदी, जहां मार्बल के हर सेंपल देखा जा सकता था, छुआ जा सकता था और महसूस किया जा सकता था. हमने मॉडल बाथरूम, किचन, टॉयलेट और सीढि़यां भी बनाईं, ताकि देखा जा सके कि कोई विशेष प्रकार का मार्बल इस्‍तेमाल करने पर कैसा दिखता है.’’

जहां अन्य विक्रेता मार्बल को खुली जगह में रखते थे, वहीं स्टोनेक्स एयर कंडीशंड जगह बना रहा था. शोरूम में मार्बल को दूसरी और तीसरी मंजिल पर संग्रह के लिए ले जाने के लिए विशेष लिफ्ट बनाई गई थी.

कैप्शन : विकास अग्रवाल स्टोनेक्स का रोजमर्रा का संचालन देखते हैं.

सौरव अग्रवाल याद करते हैं, “जून 2011 में जब शोरूम का शुभारंभ हुआ तो इंडस्ट्री के अन्य विक्रेताओं ने हमें पागल करार दिया.देखते ही देखते हमारा शोरूम इंडस्ट्री में ट्रेंड सेटर बन गया. ऐसे में अन्य भी इसी राह पर चलने के लिए प्रेरित हुए. हमारी बिक्री साल 2011 से 14 के बीच हर साल 100  प्रतिशत की दर से बढ़ी.

जब साल 2015 में बिक्री ने 200 करोड़ रुपए का आंकड़ा पार किया, तब निर्माण उद्योग में मंदी छाने लगी. इसने चचेरे भाइयों को फिर नवाचार करने को मजबूर किया. इस तरह 1 अगस्त 2015 को स्‍टोनेक्‍स ने दिल्ली से बाहर अहमदाबाद में अपना शोरूम खोला. इससे उन लोगों को सुविधा हो गई, जो मार्बल खरीदने दिल्ली आते थे. साल 2016 में उन्होंने अन्य 14 शहरों का लक्ष्य बनाया. इनमें मुंबई,  बेंगलुरु,  हैदराबाद,  सूरत,  चंडीगढ़, लुधियाना, कानपुर और लखनऊ शामिल थे.

साल 2016 में मार्केटिंग स्टाफ को नौकरी पर रखा और 50 से बढ़ाकर 150 लोगों की टीम बनाई. पहली बार मार्बल इंडस्ट्री में पूर्णकालिक एचआर हेड भी नियुक्त किया गया. अब तक मार्बल इंडस्ट्री असंगठित थी, क्योंकि लोग कारोबार का पुराना तरीका ही अपनाते थे.

उन्‍होंने एक शोरूम लामिनाम प्रॉडक्ट का भी खोला. यह पतले पोर्सलिन प्रकार का फ्लोरल मटेरियल होता है.

साल 2017 में उन्होंने 100 करोड़ रुपए की लागत से राजस्थान के किशनगढ़ में अपनी तरह का पहला ऑटोमैटेड प्लांट स्थापित किया. सौरव अग्रवाल कहते हैं, “हमारे मार्बल की लागत बाजार से 5 प्रतिशत अधिक थी. हालांकि गुणवत्ता अनुपम थी.

विजय माहेश्वरी ने 2016 में किशनगढ़ फैक्ट्री में सीईओ के रूप में काम शुरू किया. वे तीन चचेरे भाइयों के अलावा स्टोनेक्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के चौथे डायरेक्टर थे.

स्टोनेक्स 400 कर्मचारियों की बड़ी टीम के रूप में विकसित हो चुकी है.

गौरव अग्रवाल स्वप्नदर्शी हैं. वे एचआर के साथ कंपनी नई नीतियों पर काम करते हैं. विकास अग्रवाल रोजमर्रा के वित्तीय प्रबंधन के साथ दिल्ली, एनसीआर, गुजरात और पंजाब देखते हैं. सबसे छोटे सौरव अग्रवाल सेल्स एंड मार्केटिंग के साथ ही ग्राहकों से मिलने वाले फीडबैक पर भी काम करते हैं.

विकास अग्रवाल ने पारिवारिक बिजनेस संभालने से पहले साल 2000 में दिल्ली यूनिवर्सिटी से बी.कॉम. की डिग्री ली है. जबकि पिता के साथ दुर्घटना होने पर अग्रवाल भाइयों ने भी एक साल बाद बिजनेस में हाथ बंटाना शुरू कर दिया था. उस समय सौरव की उम्र 17 और गौरव की 19 वर्ष थी.

उस समय गौरव अग्रवाल कॉरस्पॉन्डेंस से बी.कॉम. कर रहे थे. जबकि उनके छोटे भाई आईआईटी में जाना चाहते थे. उन्होंने जेईई प्री भी पास कर ली थी. हालांकि दोनों भाइयों ने अपने परिजन की स्थिति देखकर कोई शिकायत नहीं की और अपनी छोटी बहन शैलजा मित्तल को सुरक्षित बचपन दिया. शैलजा कोआला कैब्स की संस्थापक हैं और दिल्ली के कैब मार्केट में अच्छा-खासा नाम कमाया है.

आज भले ही सभी अपने परिवारों के साथ आरामदायक और लग्जरी छुट्टियां बिताते हैं,  लेकिन वे अपनी जड़ें नहीं भूले हैं. गौरव अग्रवाल कहते हैं, “हमारी मां हमारे जीवन की मार्गदर्शक रही हैं. उन्‍होंने हमें जमीन से जुड़ा रहना सिखाया और यह सुनिश्चित किया कि हम अधिक खर्च न करें. आज हाथ में पर्याप्त पैसा होने के बावजूद हम दिखावा नहीं करते.

विकास अग्रवाल अपने एपल के गैजेट पसंद करते हैं. चाहे वह घड़ी, आईपैड या डेस्कटॉप हो और परिवार और दोस्‍तों के साथ क्वालिटी टाइम बिताते हैं.

अग्रवाल बंधुओं के पास मुस्कुराने की वजह है. वे स्टोनेक्स को ग्लोबल ब्रांड बनाने के लक्ष्य की तरफ बढ़ते जा रहे हैं.

सौरव अग्रवाल अपनी बीएमडब्ल्यू को सबसे बड़ा इनाम मानते हैं. वे कहते हैं, “यही वह एक चीज थी,  जिसे मैं खरीदना चाहता था. चूंकि मैं बहुत लाड़-प्‍यार से पला सबसे छोटा बेटा हूं,  इसलिए बड़े भाइयों ने मुझे उपकृत कर दिया.

सभी भाई ऑफिस में भी घर का पका भोजन पसंद करते हैं. गौरव अग्रवाल कहते हैं,  “हमारे हर ऑफिस में एक छोटा किचन है,  हम खाते हैं और भोजन शेयर भी करते हैं.

जब उन्‍होंने शुरुआत की थी, तब वे एक कर्मचारी की सैलरी भी बमुश्किल वहन कर पाते थे. आज पूरे भारत में 400 कर्मचारी हैं. स्टोनेक्स को ग्लोबल ब्रांड बनाने के सपने के साथ सभी भाइयों ने अगले लक्ष्य पर अपनी निगाहें गढ़ा दी हैं.


 

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