शहद की मिठास से खड़ा किया 10 करोड़ टर्नओवर वाला कारोबार
30-Oct-2024
By प्रीति नागराज
मैसुरु
आपके जीवन में कोई मार्गदर्शक या गुरु भले न हो, लेकिन व्यस्त मधुमक्खी आपकी प्रेरणा हैं, तो आप सही राह पर हैं.
नेक्टर फ्रेश कंपनी की फ़ाउंडर-पार्टनर छाया नांजप्पा इसकी जीती जागती मिसाल हैं.
छह करोड़ रुपए मूल्य वाली इस कंपनी का सालाना टर्नओवर 10 करोड़ रुपए है.
कंपनी का दफ़्तर श्रीरंगापटना व मैसुरु के बीच है और इसने हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री में हलचल पैदा करती है.
छाया 100 से अधिक किसानों के साथ काम कर विभिन्न प्रकार के शहद बनाती हैं, जो भारतीय और विदेशी दोनों बाज़ारों में बिकता है. (सभी फ़ोटो: एच.के. राजाशेकर)
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साल 2007 से की गई छाया की अथक मेहनत का ही नतीजा है कि आज देशभर के कई बड़े होटल दुर्लभ प्रीमियम ब्रैंड में से एक नेक्टर फ्रेश का ताज़ा शहद, जैम्स और फ्रूट प्रिज़र्व स्टॉक करके रखते हैं.
43 वर्षीय छाया की पहली झलक उनके भीतर धधक रही ज्वाला को झूठला देती है. वो बेहद मृदुभाषी और शर्मीली हैं, लेकिन आप उनसे बात करेंगे तो जल्द पता लग जाएगा कि उनमें विलक्षण कारोबार बोध है, जिसकी बदौलत वे बिज़नेस के उतार-चढ़ाव के बावजूद आगे बढ़ रही हैं.
महिला होने के कारण उनका सफ़र आसान नहीं रहा.
वो बताती हैं, “मैं परिवार की पहली महिला हूं, जिसने बिज़नेस में क़दम रखा. मुझे राह दिखाने वाला कोई मार्गदर्शक या गुरु नहीं था. मैंने जो कुछ सीखा, अपनी कोशिश और ग़लतियों से सीखा. इससे वक्त और पैसा दोनों बर्बाद हुआ, लेकिन जो सीख मिली वह बहुमूल्य थी.”
छाया का जन्म कोडागू के नलकेरी में हुआ. उनके पिता कॉफ़ी प्लांटर थे और मां हेडमिस्ट्रेस. परिस्थितियां ऐसी बनीं कि 12वीं के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी.
कुछ साल बाद वो बेंगलुरु आ गईं. दिशाहीन छाया ने टॉप फ़ाइव स्टार होटल द चांसरी के फ्रंट ऑफ़िस में नौकरी की. एक साल बाद उन्हें लगा कि ख़ुद का कुछ काम शुरू करना चाहिए. कुर्ग की होने के कारण उन्हें मसालों, कॉफ़ी और शहद की अच्छी जानकारी थी, इसलिए उन्होंने शहद से जुड़ा काम करने का निश्चय किया.
उन्होंने साल 2006-07 में पुणे के सेंट्रल बी ऐंड रिसर्च ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट (सीबीटीआरआई) से कोर्स किया. वहां शहद को प्रोसेस करने और उसे सुरक्षित रखने के तरीके़ सीखे. इस तरह नेक्टर फ्रेश का जन्म हुआ.
उन्होंने शहद की प्रोसेसिंग और उसे पैक करने के लिए मां के बचाए 10 लाख रुपए लिए, गहने बेचकर आठ लाख रुपए जुटाए और 10 लाख रुपए बैंक से क़र्ज लिया.
नेक्टर फ्रेश में एपीएरी हनी, जंगल हनी के साथ हिमाचल हनी, लीची हनी और क्लोवर हनी बेची जाती है.
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छाया की इकाई को खादी और ग्रामोद्योग बोर्ड का भी समर्थन मिला. साल 2007 में उन्होंने बेंगलुरु के पास बोमनहल्ली में शहद उत्पादन शुरू किया.
छाया कोडागू के चुनिंदा किसानों और आदिवासियों से शहद लेती थीं. धीरे-धीरे उनका बनाया पैक्ड शहद अपनी जगह बनाने लगा.
हालांकि उन्हें महसूस हुआ कि ताज़ा कूर्ग शहद की मांग ज़्यादा थी और सप्लाई चेन को ठीक किया जाए तो वो हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री में जगह बना सकती हैं.
शुरुआती दिनों को याद कर वो बताती हैं, “मेरी सारी प्रतिस्पर्धी बीरेनबर्ग, डार्बाे और बॉन मैमन जैसी अंतरराष्ट्रीय कंपनियों से थी. इन कंपनियों का दशकों से बाज़ार पर क़ब्जा था. उनके छोटी पैकिंग के जैम, शहद और फ्रूट प्रिज़र्व सालों से होटल बफे-ब्रेकफ़ास्ट के लिए इस्तेमाल कर रहे थे.”
हालांकि छाया की राह आसान नहीं थी. निजी कारणों से उन्हें तीन बार फ़ैक्ट्री की जगह बदलनी पड़ी.
हर बार स्थान बदलने से घाटा भी हुआ. उपकरण पुराने होने लगे. कुशल कारीगर छोड़कर जाने लगे.
छाया बताती हैं, “लेकिन मैंने उम्मीद नहीं छोड़ी. हर बार नए लोगों को प्रशिक्षित किया.”
नलकेरी की इस जुझारू महिला ने होटल इंडस्ट्री में अपने ब्रैंड को सबसे लोकप्रिय बनाने की हर कोशिश की.
अपने बिज़नेस साझीदार राजप्पा के साथ छाया.
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महिला उद्यमियों की आर्थिक मदद करने वाले कई नारों के बावजूद लघु और मध्यम उपक्रम मंत्रालय से उन्हें फंड, विषेषज्ञता या सबसिडी नहीं मिली. विस्तार के हर चरण पर उन्हें बैंकों से ऋण लेना पड़ा.
धीरे-धीरे घरेलू बाज़ार में आईटीसी, ला मेरेडियन जैसी होटल चेन में उनका ब्रैंड जगह बनाने लगा.
दबी हुई हंसी से छाया कहती हैं, “आज हम जर्मनी और फ्रांस जैसे देशों में जगह बना रहे हैं, जहां से कई अंतरराष्ट्रीय ब्रैंड उभरे हैं. मुकाबला वाक़ई रोचक हो रहा है!”
छाया का मक़सद अपने बिज़नेस को बढ़ाने की बजाय गांव की महिलाओं की मदद करना भी है.
उनकी फ़ैक्ट्री में 45 मज़दूर काम करते हैं. उनमें ज़्यादातर महिलाएं हैं. वो इनसे सेल्फ़ हेल्प समूहों की मदद से मुलाक़ात करती हैं, ताकि वो भी अपना काम शुरू करने के लिए प्रेरित हो सकें.
वर्तमान में छाया 100 किसानों और उनके परिवारों के साथ काम कर रही हैं. आज देशभर में नेक्टर फ्रेश के पास 20 मोबाइल वैन हैं जिनमें शहद इकट्ठा होता है. कंपनी अलग-अलग तरह के उपभोक्ताओं तक पहुंचा रही है, जैसे हिमाचल हनी, लीची हनी, क्लोवर हनी आदि.
इस शहद की ख़ासियत है कि इन्हें प्रदूषण मुक्त जंगलों, घाटियों में पर्यावरण अनुकूल तरीक़ों से इकट्ठा किया जाता है जिससे मधुमक्खियों को कोई नुकसान नहीं पहुंचता और शहद की गुणवत्ता, उसके पोषक तत्व बरकरार रहते हैं.
कंपनी 5-8 ग्राम के पैक, 100 ग्राम से एक लीटर के जार के अलावा नए कॉर्पाेरेट गिफ़्ट के तौर पर भी शहद मुहैया कराती है.
शुरुआती दौर में नेक्टर फ्रेश हर महीने एक टन शहद का उत्पादन करता था, जो अब 200 टन पहुंच गया है.
मैसुरु की सेंट्रल फूड ऐंड प्रोसेसिंग रिसर्च इंस्टिट्यूट के विशेषज्ञों की मदद से साल 2010 में उन्होंने अपने बिज़नेस को फ्रूट प्रोसेसिंग क्षेत्र में फैलाना शुरू किया.
शहद उद्योग में नेक्टर फ्रेश अब एक ब्रैंड के रूप में स्थापित हो चुका है.
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उनके इस सफ़र में उनके बिज़नेस पार्टनर और क़रीबी रिश्तेदार राजप्पा का बहुत योगदान रहा.
राजप्पा मैसुरु में माईस्टोर नामक सुपरस्टोर चेन के मालिक हैं और उन्हें ग्राहकों की पसंद, नापसंद के बारे में काफ़ी अनुभव है.
हाल के सालों में राजप्पा ने अपना पूरा ध्यान नेक्टर फ्रेश फ़ूड्स की ओर केंद्रित किया है. इसका असर यह हुआ है कि शहद, कॉफ़ी, जैम्स, सॉस, मेयोनीज़ जैसे क्षेत्रों में कंपनी ने अपना नाम स्थापित कर लिया है.
इन सफ़लताओं के बावजूद छाया रुकी नहीं हैं. उनकी नज़र अब विदेशी बाज़ारों पर है. कंपनी सॉस और केचप बनाने के लिए टोमैटो प्रोसेसिंग की शुरुआत कर रही है.
नेक्टर फ्रेश की वेबसाइट पर लिखा है - एक मधुमक्खी 50 मिलीग्राम शहद इकट्ठा करने के लिए 20 लाख फूलों पर जाती है. इसके मुकाबले हमारे काम का बोझ कुछ भी नहीं. ख़ुश रहें और काम करते रहें!
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