Milky Mist

Saturday, 27 July 2024

लॉकडाउन में इस आईटी कंपनी ने किसी कर्मचारी को नौकरी से न‍हीं निकाला, 30 लाख रुपए का लोन लेकर सैलरी भी बढ़ाई

27-Jul-2024 By सोफिया दानिश खान
अमृतसर

Posted 22 Sep 2020

पंजाब के अनजान से गांव तंगरा की आईटी कंपनी सिंबा क्‍वार्ट्ज दिसंबर 2020 तक एक भी कर्मचारी को नौकरी से नहीं हटाएगी. कंपनी ने कोरोनावायरस महामारी और लॉकडाउन में काम के अवसर 40 प्रतिशत कम होने के बावजूद कर्मचारियों की सैलरी बढ़ाने का फैसला किया है.
कंपनी की संस्‍थापक मनदीप कौर सिद्धू कहती हैं, “मैंने सीधे सैलरी बढ़ाने का फैसला करने की घोषणा कर दी. यह समय की जरूरत थी. मुझे इसके लिए 30 लाख रुपए का लोन लेना पड़ा, लेकिन मुझे कोई गिला नहीं. इस फैसले का असर यह हुआ है कि मेरे सभी कर्मचारी दोगुने प्रयास से काम कर रहे हैं. इस मुश्किल समय में भी हमें 30 प्रतिशत काम मिल रहा है, जिससे हमें अपना अस्तित्‍व बचाने में मदद मिल रही है.” 


मनदीप कौर सिद्धू ने अपने गांव में एक आईटी कंपनी शुरू की है, जहां वे आईआईएम और आईआईटी ग्रैजुएट के साथ ही स्‍थानीय लोगों को भी रोजगार उपलब्‍ध करवा रही हैं. (सभी फोटो : विशेष व्‍यवस्‍था से)


सिद्धू ने अपने पति मनदीप सिंह के साथ मिलकर इस कंपनी की शुरुआत की थी. आज इसमें 50 लोगों को रोजगार मिला हुआ है. इन कर्मचारियों में आईआईटी और आईआईएम के ग्रैजुएट से लेकर स्‍थानीय टेलेंट भी शामिल है. कंपनी का टर्नओवर 2 करोड़ रुपए सालाना है.

32 वर्षीय सिद्धू याद करती हैं, “2013 के अंत तक मैंने सिंबा कार्ट लॉन्‍च किया था. यह एक ई-कॉमर्स पोर्टल था. इससे इलेक्‍ट्रॉनिक आइटम्स से लेकर फुटवियर तक सब खरीदा जा सकता था. पहले साल का टर्नओवर 1 करोड़ रुपए था, लेकिन शुद्ध मुनाफा कुछ खास नहीं था. इसलिए हमने तय किया कि इस पर कम ध्‍यान केंद्रित करेंगे. इसके अगले साल हम कारोबार में विविधता लाए और सिंबा क्‍वार्ट्ज की स्‍थापना की. यह एक आईटी कंपनी थी. इसने कंसल्‍टेशन, सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट, वीडियो एडिटिंग और डिजिटल मार्केटिंग के क्षेत्र में काम करना शुरू किया.”

सिद्धू के पिता की अमृतसर से 40 किमी दूर स्थि‍त तंगरा में आटा चक्‍की है. उनकी मां गृहिणी हैं.

सिद्धू का एक छोटा भाई भी है. पिता का एक ही लक्ष्‍य था बच्‍चों को पढ़ाना-लिखाना. हालांकि बेटी ने पिता को निराश भी नहीं किया. वह अपने स्‍कूल और कॉलेज में टॉपर रही.
सिद्धू को कॉन्‍वेंट स्‍कूल में पढ़ाई के लिए अपने घर से 10 किमी दूर जाना पड़ता था.

12वीं की परीक्षा अच्‍छे नंबरों से पास कर उन्‍होंने इंटीग्रेटेड बीबीए+एमबीए कोर्स के लिए लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया. यह उनके घर से 60 किमी दूर थी.


सिद्धू के पिता की तंगरा में एक आटा चक्‍की है. जबकि उनकी मां गृहिणी हैं.


सिद्धू स्‍कूली दिनों में वैन से स्‍कूल जाती थीं, लेकिन उन्‍हें कॉलेज जाने के लिए रोज ट्रेन या बस से 120 किमी का सफर करना पड़ता था. इसके बावजूद उन्‍होंने एक भी दिन क्‍लास नहीं छोड़ी.

वे कहती हैं, “मेरे पिता अच्‍छी तरह समझते थे कि हमारी परिस्थिति बदलने का सिर्फ एक ही जरिया था. वह था मुझे और मेरे भाई को पढ़ाना. भाई मुझसे 10 साल छोटा है. इसलिए मैंने अपना ध्यान पूरी तरह से पढ़ाई पर लगा दिया.”

वे साफगोई से कहती हैं, “मैं हमेशा यूनिवर्सिटी टॉपर रही. स्‍कॉलरशिप मिलने के बावजूद अक्‍सर मेरी कुछ न कुछ यूनिवर्सिटी फीस बकाया रह जाती थी.”

वे कहती हैं, “दसवें सेमेस्‍टर के दौरान स्‍टूडेंट्स को इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग का विकल्प दिया गया था. यह ट्रेनिंग करने वाली अपनी क्‍लास की मैं इकलौती छात्रा थी. लेकिन इसका मतलब यह था कि मैं प्‍लेसमेंट के लिए नहीं बैठ सकती थी. मैंने इंटर्नशिप हाइपर सिटी में की. यह हाइपर मार्केट रहेजा समूह का था. मुझे पहली नौकरी के लिए साल 2011 में 25 हजार रुपए प्रति‍ महीना तनख्‍वाह का ऑफर दिया गया.”

मनदीप को याद नहीं कि उन्‍होंने इस पैसे को कभी खुद खर्च किया हो क्‍योंकि वे पूरी सैलरी मां के हाथों में रख देती थीं. वे इस पैसे का इस्‍तेमाल कॉलेज की बकाया फीस भरने में करती थीं.

साल 2012 में बैंकॉक के एक लग्‍जरी ज्‍वेलरी ब्रांड ने अपना स्‍टोर उसी मॉल में खोला और सिद्धू को अच्‍छा मौका मिला. स्‍टोर वाले मार्केटिंग के लिए एक शख्‍स तलाश रहे थे और मॉल प्रबंधन ने सिद्धू का नाम सुझाया.


प्राइमा गोल्‍ड में नौकरी करते हुए सिद्धू की मार्केटिंग हुनर और प्रतिभा दोनों को पैनापन मिला.


वे कहती हैं, “वे मेरी तनख्‍वाह दोगुनी करना चाहते थे. मुझे ब्रांड प्रमोशन, सेल्‍स के साथ इंस्‍टीट्यूशनल सेल का काम भी देखना था. उस स्‍टोर में 5 लाख रुपए का गोल्‍ड सेट 12-15 लाख रुपए में बेचा जाता था, क्‍योंकि वह डिजाइनर सेट होता था.”

मनदीप कहती हैं, “शोरूम में अभिजात्‍य वर्ग के लोग आते थे. नवजोत सिंह सिद्धू और उनकी पत्‍नी वहां नियमित रूप से आते थे. 20 लाख रुपए कीमत के नेकलेस वहां आसानी से बिक जाते थे.”

हालांकि एक समय के बाद मनदीप इस काम से ऊब गईं. उन्‍होंने दूसरे बिजनेस आइडिया के बारे में सोचना शुरू कर दिया.

साल 2013 में मनदीप सिंह से उनकी शादी हुई. उनका और उनके पति का जुनून ही नहीं, पहला नाम भी समान था. वे इन्‍फोसिस में काम करते थे. उन्‍होंने पत्‍नी के अपने गांव में बिजनेस शुरू करने के विचार का समर्थन किया.

गांव में बिजनेस शुरू करने के बाद मनदीप सिंह को अमेरिका में अमेरिकन एक्‍सप्रेस में नौकरी मिल गई और वे वहां चले गए. इन दिनों सिद्धू कुछ महीने अपने पति के साथ अमेरिका में बिताती हैं और इस समय का सदुपयोग दुनियाभर में कारोबार बढ़ाने में करती हैं.
अपनी विशेषज्ञता और मार्केटिंग स्किल के बारे में मनदीप बताती हैं कि वे 10 में से 9 आइडिया को डील में बदलने का माद्दा रखती हैं.

वे स्‍पष्‍ट करती हैं, “मार्केटिंग और सेल्‍स में मेरी विशेषज्ञता और अनुभव से सिंबा क्‍वार्ट्ज का बिजनेस बेहतर हुआ है. मैं सोशल मीडिया पर भी बहुत सक्रिय हूं, जिससे सुनिश्चित होता है कि नेतृत्‍व करने वालों का हमेशा अनुसरण किया जाता है.”


सिंबा क्‍वार्ट्ज के कर्मचारियों की सैलरी ऐसे समय बढ़ाई गई है, जब आईटी सेक्‍टर में नौकरी से निकालना आम बात है.

मनदीप का कारोबार दुनियाभर में फैला है. उनका सामना कभी बुरे क्‍लाइंट से नहीं हुआ. अधिकतर ने 4 से 6 महीने के प्रोजेक्‍ट से शुरुआत की और फिर आगे भी उनके साथ बने रहे.

चूंकि उनकी कीमत बहुत अधि‍क नहीं है, लेकिन वे बहुत कम भी नहीं हैं. इसलिए वे बेहतर सर्विस सुनिश्चित करती हैं. उद्देश्‍य क्लाइंट का विकास सुनिश्चित करना है, जिससे उनका विकास सुनिश्चित होता है. वे दार्शनिक अंदाज में बोलती हैं, कर्म महान तरीके से ही वापस आता है.

वे अपनी टीम बनाने की रणनीति के बारे में बताती हैं, “हमने एक कर्मचारी से शुरुआत की थी. इसके बाद जरूरत पड़ने पर कर्मचारी बढ़ाते गए. मैं वास्‍तव में अपने कर्मचारियों में निवेश करने में विश्‍वास करती हूं. इसलिए जब आईआईटी-आईआईएम ग्रैजुएट इंटरव्‍यू के लिए आते हैं, तो उनकी तकनीकी दक्षता का टेस्‍ट लेने के साथ यह भी देखती हूं कि वे कितने आत्‍म-प्रेरित हैं, ताकि वे कंपनी को बड़ी सफलता के लिए आगे ले जा सकें. इसके बाद मैं उन्‍हें बेहतर सैलरी देती हूं.”

सिंबा क्‍वार्ट्ज स्‍थानीय लोगों को भी रोजगार देती है. बुनियादी शिक्षा वाले लोगों को 6,000 से 7,000 रुपए महीने सैलरी पर रखा जाता है. बाद में उन्‍हें अंग्रेजी बोलने और सॉफ्ट स्किल की ट्रेनिंग दी जाती है. कुछ सालों में उनमें से कुछ 40,000 रुपए तक सैलरी पाने लगते हैं.

फिलहाल बीटेक कर रहे उनके भाई मनजोत सिद्धू कंपनी को 7-8 घंटे देते हैं. वे बताती हैं, “वह अपने कॉलेज से प्रतिभाशाली छात्रों को लाता है. उन्‍हें उनकी विशेषज्ञता के आधार पर 15,000 से 50,000 रुपए के बीच सैलरी दी जाती है. उनके लिए कॉलेज एजुकेशन बोरियत भरी होती है, क्‍योंकि वे इंटरनेट के जरिये बहुत कुछ पहले ही सीख चुके होते हैं.”

मनदीप ने नया ऑफिस बनाने के लिए जमीन खरीदी है. हालांकि कोरोनावायरस के चलते पैदा हुए आर्थिक संकट के चलते उसे टाल दिया है. अब तक कंपनी कर्जमुक्‍त है.

सुविधा से वंचित बच्‍चों के लिए एनजीओ चलाने के साथ सिद्धू मोटिवेशनल स्‍पीकर भी हैं.


सिद्धू स्‍माइल केयर नामक एनजीओ भी चलाती हैं. वे पिछले 4 साल में पंजाब के विभिन्‍न गांवों में 390 अभियान चला चुकी हैं. शू टु गिव एंड फूड शेयरिंग कार्यक्रम के तहत वे जरूरतमंदों को 50,000 जूते दे चुकी हैं.

सिद्धू उम्‍मीद करती हैं कि जब उनके कर्मचारी इस लायक हो जाएंगे, तब वे भी ऐसे जरूरतमंद लोगों की मदद करेंगे और समाज को तहेदिल से लौटाएंगे.

एक रेस्‍त्रां मालिक सिंबा क्‍वार्ट्ज के क्लाइंट हैं. लॉकडाउन के चलते वे आर्थिक संकट में फंस गए, तो मनदीप ने उनका काम मुफ्त में करना तय किया है, ताकि वे मुश्किल समय में आसानी से उबर सकें.

भले ही बिजनेस में 30-40 प्रतिशत गिरावट है, लेकिन वे नाउम्‍मीद नहीं हैं और वे अब भी लीड कर रही हैं. यह टेडएक्‍स स्‍पीकर जमीनी स्‍तर के लोगों की समस्‍याओं को महसूस करती हैं क्‍योंकि उनका पालन-पोषण भी बहुत गरीबी में हुआ है.

वे अपनी बात खत्‍म करते हुए कहती हैं, “यह ऐसा समय है, जब कारोबारियों को रोजगार पैदा करना चाहिए और अधिक से अधिक परिवारों की मदद करना चाहिए.


 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • Success story of man who sold saris in streets and became crorepati

    ममता बनर्जी भी इनकी साड़ियों की मुरीद

    बीरेन कुमार बसक अपने कंधों पर गट्ठर उठाए कोलकाता की गलियों में घर-घर जाकर साड़ियां बेचा करते थे. आज वो साड़ियों के सफल कारोबारी हैं, उनके ग्राहकों की सूची में कई बड़ी हस्तियां भी हैं और उनका सालाना कारोबार 50 करोड़ रुपए का आंकड़ा पार कर चुका है. जी सिंह के शब्दों में पढ़िए इनकी सफलता की कहानी.
  • story of Kalpana Saroj

    ख़ुदकुशी करने चली थीं, करोड़पति बन गई

    एक दिन वो था जब कल्पना सरोज ने ख़ुदकुशी की कोशिश की थी. जीवित बच जाने के बाद उन्होंने नई ज़िंदगी का सही इस्तेमाल करने का निश्चय किया और दोबारा शुरुआत की. आज वो छह कंपनियां संचालित करती हैं और 2,000 करोड़ रुपए के बिज़नेस साम्राज्य की मालकिन हैं. मुंबई में देवेन लाड बता रहे हैं कल्पना का अनूठा संघर्ष.
  • How Two MBA Graduates Started Up A Successful Company

    दो का दम

    रोहित और विक्रम की मुलाक़ात एमबीए करते वक्त हुई. मिलते ही लगा कि दोनों में कुछ एक जैसा है – और वो था अपना काम शुरू करने की सोच. उन्होंने ऐसा ही किया. दोनों ने अपनी नौकरियां छोड़कर एक कंपनी बनाई जो उनके सपनों को साकार कर रही है. पेश है गुरविंदर सिंह की रिपोर्ट.
  • World class florist of India

    फूल खिले हैं गुलशन-गुलशन

    आज दुनिया में ‘फ़र्न्स एन पेटल्स’ जाना-माना ब्रैंड है लेकिन इसकी कहानी बिहार से शुरू होती है, जहां का एक युवा अपने पूर्वजों की ख़्याति को फिर अर्जित करना चाहता था. वो आम जीवन से संतुष्ट नहीं था, बल्कि कुछ बड़ा करना चाहता था. बिलाल हांडू बता रहे हैं यह मशहूर ब्रैंड शुरू करने वाले विकास गुटगुटिया की कहानी.
  • Aamir Qutub story

    कुतुबमीनार से ऊंचे कुतुब के सपने

    अलीगढ़ जैसे छोटे से शहर में जन्मे आमिर कुतुब ने खुद का बिजनेस शुरू करने का बड़ा सपना देखा. एएमयू से ग्रेजुएशन के बाद ऑस्ट्रेलिया का रुख किया. महज 25 साल की उम्र में अपनी काबिलियत के बलबूते एक कंपनी में जनरल मैनेजर बने और खुद की कंपनी शुरू की. आज इसका टर्नओवर 12 करोड़ रुपए सालाना है. वे अब तक 8 स्टार्टअप शुरू कर चुके हैं. बता रही हैं सोफिया दानिश खान...