दांतों का इलाज करते-करते शौकिया फोटोग्राफी करने लगीं; अब पेशेवर फोटोग्राफर हैं, इससे 65 लाख रुपए सालाना कमा लेती हैं
29-Mar-2024
By गुरविंदर सिंह
हैदराबाद
एक आशावादी हर परिस्थिति में अवसर तलाश लेता है. नम्रता मोतिहार रुपाणी ने डेंटिस्ट के रूप में प्रशिक्षण लिया था. कोई आश्चर्य नहीं कि वे आशावादी भी थीं. हालांकि 26 साल की उम्र में बीमारी से उभरते हुए उन्हाेंने फोटोग्राफी में हाथ आजमाए और कठिन परिश्रम और जुनून के बलबूते प्रोफेशनल फोटोग्राफर के रूप में खुद काे स्थापित करके दिखाया.
आज, वे प्रतिभाशाली फोटोग्राफर हैं. हैदराबाद स्थित अपनी फोटो सर्विस कंपनी कैप्चर लाइफ के जरिये 65 लाख रुपए सालाना कमाती हैं. वे फोटोग्राफी वर्कशॉप्स आयोजित करती हैं. बैडमिंटन स्टार साइना नेहवाल की शादी को शूटिंग उनके यादगार कामों में शुमार है.
नम्रता रुपाणी ने ट्रेनिंग को दांतों के डॉक्टर के रूप में ली थी, लेकिन अब मशहूर फोटोग्राफर हैं. (सभी फोटो : विशेष व्यवस्था से) |
नम्रता वर्तमान में हैदराबाद में रहती हैं. वे मूल रूप से दिल्ली की हैं. उन्होंने दंत चिकित्सा की पढ़ाई क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज (सीएमसी) लुधियाना से की है. 2003 में शादी के बाद वे हैदराबाद आ गई थीं.
नम्रता ने शुरुआत में एक प्राइवेट डेंटल हाॅस्पिटल में कंसल्टेंट के रूप में काम किया. वे कहती हैं, "एक बीमारी के बाद मुझ पर काम से थोड़ा आराम लेने का दबाव पड़ा. इस बीच 2005 में मैंने शौकिया तौर पर फोटोग्राफी शुरू की थी.''
बीमारी के दौरान शुरू की गई फोटोग्राफी के शुरुआती छोटे-छोटे कदमों के बारे में नम्रता कहती हैं, "मैंने कोई पेशेवर कोर्स नहीं किया था. लेकिन इंटरनेट और किताबें पढ़-पढ़कर फोटोग्राफी सीखी. मैंने एक डीएसएलआर कैमरा खरीदा और फोटोग्राफी में निपुण होती गई.''
2007 में जब नम्रता काम पर लौटने के लिए पूरी तरह फिट हो गईं तो उन्होंने खुद का डेंटल क्लिनिक कॉन्सेप्ट 32 शुरू कर लिया. 2008 में उन्हें एक कॉरपोरेट हॉस्पिटल में पीडियाट्रिक डेंटिस्ट का अतिरिक्त काम भी मिल गया.
नम्रता अपने नए शौक को आगे बढ़ाने में सहयोग के लिए अपने बिजनेसमैन पति के सहयोग का जिक्र करना नहीं भूलतीं. वे कहती हैं, "मैं वीकेंड्स पर शूटिंग के लिए शहर से बाहर गांवों में चली जाती थी. लोगों के फोटो खींचती या प्रकृति के नजारे कैमरे में कैद करती. मैं अलसुबह घर से निकल जाया करती थी और झीलों और मनोरम स्थलों के फोटो शूट करती थी. जो भी मुझे लुभाता, मैं उसका फोटो खींच लेती थी.''
नम्रता ने शुरुआत में अपने फोटो सोशल मीडिया पर पोस्ट किए, जिससे लोगों का ध्यान आकर्षित हुआ.जब नम्रता ने अपने खींचे फोटो सोशल मीिडया पर पोस्ट करने शुरू किए तो उनके काम को पहचान मिलने लगी. वे बताती हैं, "मुझे फोटो शूट के लिए ऑफर मिलने लगे और मैंने इसी राह पर आगे बढ़ने का निर्णय लिया.''
नम्रता काे पहला पेशेवर असाइनमेंट एक दोस्त के बेटे का पोर्टेट शूट करने का मिला. इसके लिए उन्होंने 4000 रुपए लिए. वे याद करती हैं कि उन्होंने 2010 से 2012 के बीच 100 से अधिक शूट किए.
जब नम्रता पेशेवर फोटोग्राफर बन गईं तो जीवन व्यस्त होता चला गया. वे कहती हैं, "मैंने इवेंट्स शूट और वेडिंग शूट भी शुरू कर दिया था. दूसरी तरफ क्लिनिक में प्रैक्टिस भी जारी थी. मैंने अपने क्लिनिक के लिए शाम का समय तय किया था, जबकि सुबह कॉरपोरेट हॉस्पिटल में समय देती. इन सबके बीच मैं शूटिंग में व्यस्त रहती.''
हालांकि साल 2012 में उन्होंने कॉरपोरेट हॉस्पिटल छोड़ दिया. क्योंकि अब वे सुबह से शाम तक व्यस्त रहने लगी थीं और सब कुछ संभालना उनके लिए मुश्किल होने लगा था. इसलिए अब वे सिर्फ प्रैक्टिस और फोटोग्राफी पर ध्यान देने लगीं.
अगले चार साल वे डॉक्टरी पेशे और फोटोग्राफी दोनों को संभालती रहीं. उन्होंने देशभर में 150 से अधिक वेडिंग और इवेंट कवर किए. उन्हें मलेशिया में भी काम मिला.
साल 2016 में, वे आर्ट प्रिंटिंग के क्षेत्र में आईं और अपने सभी बिजनेस को बंजारा हिल्स में 1100 वर्ग फीट की विशाल जगह पर एक छत के नीचे ले आईं. वे कहती हैं, "मुझे महसूस हुआ कि मेरा क्लिनिक बहुत छोटा था और साइन आर्ट प्रिंटिंग के लिए मुझे जगह की जरूरत थी.''
नम्रता का सुरुचिपूर्ण तरीके से डिजाइन किया गया ऑफिस डेंटल क्लिनिक आने वाले मरीजों के लिए आकर्षण का केंद्र है. |
वे कहती हैं, "लोगों ने मुझसे कहा कि मैं सबकुछ एक छत के नीचे लाकर गलती कर रही हूं. उनका मानना था कि इससे ऐसी छवि बनेगी कि मैं अपने दंत चिकित्सा के पेशे के प्रति गंभीर नहीं हूं और बहुत सारी चीजों में उलझी हुई हूं. लेकिन मैं अडिग रही. मेरा मानना था कि मेरे क्लिनिक आने वाले मरीजों के लिए यह बिलकुल अलग अनुभव होगा. इससे मेरा आने-जाने का बहुत सा समय भी बचेगा.
नम्रता की सोच सही साबित हुई. मरीजों ने उनके ऑफिस आना पसंद किया. उन्होंने वहां दीवारों पर लगे पाेर्टेट्स और आर्ट एक्जीबिशन को पसंद किया.
नम्रता का काम कई एग्जीबिशन में दिखाया जा चुका है. उन्हें एलएंडटी ने हैदराबाद में मेट्रो रेल तैयार होने का दस्तावेज बनाने का काम भी दिया. उन्हें फियरलेस फोटोग्राफर्स की सूची में भी स्थान मिला है. यह एक ऐसा फोरम है, जो दुनिया के कुछ सर्वश्रेष्ठ वेडिंग फोटोग्राफरों को समर्पित है.
नम्रता 10 डॉक्टरों और दो फोटोग्राफरों की टीम के साथ काम करती हैं.
नए उद्यमियों को नम्रता सलाह देती हैं : आप जो कर रहे हैं, उसे लेकर अगर आप सहमत हैं, तो लोग क्या कहेंगे, इस बारे में कभी भयभीत न हों. मैंने कभी फोटोग्राफी के बारे में नहीं सोचा था. यह बस शुरू हो गई. जीवन यात्रा का आनंद लेने का दूसरा नाम है और उद्यमियों को कठिन परिश्रम करने के लिए तैयार रहना चाहिए. उन्हें इससे थकना नहीं चाहिए.
आप इन्हें भी पसंद करेंगे
-
पहाड़ी लड़की, पहाड़-से हौसले
उत्तराखंड के छोटे से गांव में जन्मी गीता सिंह ने दिल्ली तक के सफर में जिंदगी के कई उतार-चढ़ाव देखे. गरीबी, पिता का संघर्ष, नौकरी की मारामारी से जूझीं. लेकिन हार नहीं मानी. मीडिया के क्षेत्र में उन्होंने किस्मत आजमाई और द येलो कॉइन कम्युनिकेशन नामक पीआर और संचार फर्म शुरू की. महज 3 साल में इस कंपनी का टर्नओवर 1 करोड़ रुपए तक पहुंच गया. आज कंपनी का टर्नओवर 7 करोड़ रुपए है. बता रही हैं सोफिया दानिश खान -
सफलता का कूकर
रांची और मुंबई के दो युवा साथी भले ही अलग-अलग रहें, लेकिन जब चेन्नई में साथ पढ़े तो उद्यमी बन गए. पढ़ाई पूरी कर नौकरी की, लेकिन लॉकडाउन ने मल्टी कूकिंग पॉट लॉन्च करने का आइडिया दिया. महज आठ महीनों में ही 67 लाख रुपए की बिक्री कर चुके हैं. निवेश की गई राशि वापस आ चुकी है और अब कंपनी मुनाफे में है. बता रहे हैं पार्थो बर्मन... -
ठेला लगाने वाला बना करोड़पति
वो भी दिन थे जब सुरेश चिन्नासामी अपने पिता के ठेले पर खाना बनाने में मदद करते और बर्तन साफ़ करते. लेकिन यह पढ़ाई और महत्वाकांक्षा की ताकत ही थी, जिसके बलबूते वो क्रूज पर कुक बने, उन्होंने कैरिबियन की फ़ाइव स्टार होटलों में भी काम किया. आज वो रेस्तरां चेन के मालिक हैं. चेन्नई से पीसी विनोज कुमार की रिपोर्ट -
भारत का एंटी-वायरस किंग
एक वक्त था जब कैलाश काटकर कैलकुलेटर सुधारा करते थे. फिर उन्होंने कंप्यूटर की मरम्मत करना सीखा. उसके बाद अपने भाई संजय की मदद से एक ऐसी एंटी-वायरस कंपनी खड़ी की, जिसका भारत के 30 प्रतिशत बाज़ार पर कब्ज़ा है और वह आज 80 से अधिक देशों में मौजूद है. पुणे में प्राची बारी से सुनिए क्विक हील एंटी-वायरस के बनने की कहानी. -
सिल्क टाइकून
पीढ़ियों से चल रहे नल्ली सिल्क के बिज़नेस के बारे में धारणा थी कि स्टोर में सिर्फ़ शादियों की साड़ियां ही मिलती हैं, लेकिन नई पीढ़ी की लावण्या ने युवा महिलाओं को ध्यान में रख नल्ली नेक्स्ट की शुरुआत कर इसे नया मोड़ दे दिया. बेंगलुरु से उषा प्रसाद बता रही हैं नल्ली सिल्क्स के कायापलट की कहानी.