5,000 रुपए निवेश कर मेन्यू में अवधी बिरयानी को जोड़ा तो परिवार का छोटा भोजनालय 15 करोड़ रुपए टर्नओवर वाला रेस्तरां चेन बन गया
25-Oct-2024
By पार्थो बर्मन
कोलकाता
कोलकाता के बैरकपुर में व्यस्त 'दादा बाउदी' रेस्तरां के भीतर जैसे ही आप प्रवेश करते हैं, अवधी बिरयानी की जानी-पहचानी महक का झोंका हवा में तैरता महसूस होता है.
बिरयानी चाहने वालों के लिए यह आउटलेट 80 के दशक के अंतिम सालों से मशहूर है, जब किशोरावस्था में रहे संजीब साहा और राजीब साहा भाइयों ने 200 वर्ग फुट के पारिवारिक भोजनालय में मुंह में पानी लाने वाली इस डिश से परिचित कराया था. यह भोजनालय उनके दादाजी ने 1961 में शुरू किया था.
संजीब साहा (दाएं) और राजीब साहा ने दादा बाउदी में 1986 में बिरयानी परोसना शुरू की थी. इसके बाद उनका बिजनेस बढ़ने लगा. (सभी फोटो : विशेष व्यवस्था से/टी.डब्ल्यू.एल.)
|
1986 में अपने आउटलेट पर बिरयानी बेचना शुरू करने के बाद शुरू हुई दादा बाउदी की यात्रा के बारे में राजीब कहते हैं, “हमने बिजनेस में 5,000 रुपए का निवेश किया और बिरयानी बनाने के लिए कुछ बर्तन खरीदे. इसके साथ ही कुछ किलो बासमती चावल और मीट भी लाए. शुरुआत में हम रोज तीन किलोग्राम मटन बिरयानी बनाते थे.”
आज, उनके तीन आउटलेट हैं. भोजन के समय सभी में भारी भीड़ उमड़ती है. वे रोज 700 किलोग्राम बिरयानी बेचते हैं. मटन बिरयानी की कीमत 260 रुपए प्रति प्लेट और चिकन बिरयानी की कीमत 200 रुपए प्रति प्लेट है.
दादा बाउदी का सालाना टर्नओवर अब 15 करोड़ रुपए को छू चुका है और साल-दर-साल बढ़ रहा है.
उनके ग्राहकों में भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान और बी.सी.सी.आई. अध्यक्ष सौरव गांगुली समेत कई सेलीब्रिटी शामिल हैं. दो साल पहले तत्कालीन अमेरिकी कांसुलेट जनरल, कोलकाता क्रैग एल. हॉल भी अपने परिवार और अमेरिकी सीनेटर जैमी ड्रेगन के साथ उनके आउटलेट पर आए थे.
दादा बाउदी की सफलता दोनों भाइयों की कड़ी मेहनत का नतीजा है. वे पारिवारिक बिजनेस को नई ऊंचाई पर ले गए, जो उनके दादा और पिता भी हासिल नहीं कर पाए थे.
संजीब ने जहां कक्षा 12वीं की पढ़ाई पूरी की, वहीं उनके भाई राजीब 10वीं के आगे नहीं पढ़ पाए. लेकिन दोनों भाइयों ने यह सुनिश्चित किया कि वे जो बिरयानी बना रहे हैं, वह अच्छी गुणवत्ता की हो और सभी मानक पूरे करती हो, ताकि ग्राहक एक बार खाकर उनके पास फिर लौटे.
बिरयानी की हर प्लेट में 800 ग्राम चावल की बिरयानी होती है. इसमें 200 ग्राम मटन (या चिकन) और आलू होते हैं. यह अवधी बिरयानी की विशिष्टता है.
तत्कालीन अमेरिकी काउंसुलेट जनरल, कोलकाता क्रैग एल. हॉल अपने परिवार के साथ दादा बाउदी आउटलेट पर. |
राजीब कहते हैं कि जब उन्होंने शुरुआत की थी, तो 11 रुपए प्रति प्लेट मटन बिरयानी बेचते थे. लेकिन मीट और अन्य सामान की कीमतें लगातार बढ़ती रही, इसलिए उन्हें समय-समय पर कीमतें भी बढ़ानी पड़ीं.
दिलचस्प बात यह है कि बैरकपुर रेलवे स्टेशन के पास घोष पारा रोड पर पहला भोजनालय 1961 में शुरू हुआ था. यह उनके दादा रामप्रसाद ने शुरू किया था, जो अपनी पत्नी और छह बच्चों के साथ बिहार के पूर्वी चंपारण जिले के मोतिहारी से कोलकाता आ गए थे.
इस भोजनालय का कई साल तक नाम ही नहीं रहा. वहां शुरुआत में बस दाल-रोटी और सब्जी परोसी जाती थी.
लेकिन करीब 15 साल बाद, रामप्रसाद के बेटे धीरेन साहा ने भोजनालय का जिम्मा संभाला और उन्होंने मेन्यू को विस्तार दिया. उन्होंने चावल से लेकर फिश करी, चिकन और फिर रेड मीट करी जैसी डिश जोड़ी.
समय के साथ धीरेन की पत्नी संध्या भी पति का हाथ बंटाने लगीं. लोग दोनों को दादा बाउदी पुकारने लगे. (बंगाली भाषा में दादा का मतलब भाई और बाउदी का मतलब पत्नी होता है.) भोजनालय जल्द ही दादा बाउदी के नाम से पहचाना जाने लगा.
धीरेन और संध्या दो कर्मचारियों के साथ भाेजनालय संभालते थे. उनके स्कूल में पढ़ रहे बच्चे संजीब और राजीब स्कूल के बाद उनकी मदद करते थे.
संध्या याद करती हैं, “वे बहुत मुश्किल दिन थे. हम भोजन का स्वाद बनाए रखने के लिए मसालों को हाथों से पत्थर पर पीसते थे. मेरे दोनों बेटे काम में मदद करते थे.”
राजीब कहते हैं, “हम भोजन परोसते थे, टेबल साफ करते थे और प्लेटें धोते थे. हम महसूस करते थे कि माता-पिता की मदद करना हमारी जिम्मेदारी है. हमें ऐसा काम करने में कभी शर्म महसूस नहीं हुई.”
संजीब याद करते हैं कि वे ग्राहकों को रात 11 बजे तक खाना परोसते थे और इससे उनकी पढ़ाई प्रभावित होती थी. वे कहते हैं, “तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने अपनी बुनियादी शिक्षा पूरी की. हम बैरकपुर के देबी प्रसाद हायर सेकंडरी स्कूल गए. मैंने 1987 में कक्षा 12 की पढ़ाई पूरी की, जबकि राजीब कक्षा 10 के बाद पढ़ाई जारी नहीं रख सके.”
दादा बाउदी की बिरयानी ने सालों से अपना जायका एक समान बनाए रखा है. इसका श्रेय सलीम खान को जाता है, जो उनके मुख्य खानसामा हैं. सलीम खान तबसे किचन संभाल रहे हैं, जब बिरयानी लॉन्च की गई थी.
दादा बाउदी के एक भोजनालय के बाहर उमड़ी भीड़. |
सलीम खान के मार्गदर्शन में रोज 15-20 बड़े बर्तनों में बिरयानी तैयार की जाती है. मटन, चिकन और वेजीटेबल बिरयानी के अलावा, कई अन्य भारतीय, चाइनीज और मुगलई भोजन भी बनाया जाता है. इसमें तंदूरी आइटम भी शामिल हैं.
साहा बंधुओं ने अपना दूसरा आउटलेट बैरकपुर में पांच साल पहले शुरू किया. जबकि सोदपुर आउटलेट जुलाई 2019 में शुरू किया. उनके पास कुल 35 लोगों का स्टाफ है.
साहा परिवार बैरकपुर में श्यामास्री पल्ली में रहता है. वहां से रेस्तरां 10 मिनट की दूरी पर है. दोनों भाई आज आनंदित, आरामदायक और संतुष्ट जीवन जी रहे हैं.
संजीब को घूमना पसंद है. वे अधिकांश यूरोपीय और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में जा चुके हैं. जबकि राजीब को पालतू जानवर पसंद हैं. उनके पास अच्छी नस्ल के कई डॉग और एक प्रकार के ताेते कोकाटू समेत बहुत सारे पक्षी हैं. उनके घर पर अद्भुत एक्वेरियम भी है.
दोनों शादीशुदा हैं. दोनों के बच्चे भी हैं. संजीब को एक बेटा और बेटी हैं, जबकि राजीब को एक बेटी है.
आप इन्हें भी पसंद करेंगे
-
कुतुबमीनार से ऊंचे कुतुब के सपने
अलीगढ़ जैसे छोटे से शहर में जन्मे आमिर कुतुब ने खुद का बिजनेस शुरू करने का बड़ा सपना देखा. एएमयू से ग्रेजुएशन के बाद ऑस्ट्रेलिया का रुख किया. महज 25 साल की उम्र में अपनी काबिलियत के बलबूते एक कंपनी में जनरल मैनेजर बने और खुद की कंपनी शुरू की. आज इसका टर्नओवर 12 करोड़ रुपए सालाना है. वे अब तक 8 स्टार्टअप शुरू कर चुके हैं. बता रही हैं सोफिया दानिश खान... -
जुनूनी शिक्षाद्यमी
पॉली पटनायक ने बचपन से ऐसे स्कूल का सपना देखा, जहां कमज़ोर व तेज़ बच्चों में भेदभाव न हो और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी जाए. आज उनके स्कूल में 2200 बच्चे पढ़ते हैं. 150 शिक्षक हैं, जिन्हें एक करोड़ से अधिक तनख़्वाह दी जाती है. भुबनेश्वर से गुरविंदर सिंह बता रहे हैं एक सपने को मूर्त रूप देने का संघर्ष. -
ये हैं चेन्नई के चाय किंग्स
चेन्नई के दो युवाओं ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई, फिर आईटी इंडस्ट्री में नौकरी, शादी और जीवन में सेटल हो जाने की भेड़ चाल से हटकर चाय की फ्लैवर्ड चुस्कियों को अपना बिजनेस बनाया. आज वे 17 आउटलेट के जरिये चेन्नई में 7.4 करोड़ रुपए की चाय बेच रहे हैं. यह इतना आसान नहीं था. इसके लिए दोनों ने बहुत मेहनत की. -
मणिपुर जैसे इलाके का अग्रणी कारोबारी
डॉ. थंगजाम धाबाली के 40 करोड़ रुपए के साम्राज्य में एक डायग्नोस्टिक चेन और दो स्टार होटल हैं. इंफाल से रीना नोंगमैथेम मिलवा रही हैं एक ऐसे डॉक्टर से जिन्होंने निम्न मध्यम वर्गीय परिवार में जन्म लिया और जिनके काम ने आम आदमी की ज़िंदगी को छुआ. -
मधुमक्खी की सीख बनी बिज़नेस मंत्र
छाया नांजप्पा को एक होटल में काम करते हुए मीठा सा आइडिया आया. उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. आज उनकी कंपनी नेक्टर फ्रेश का शहद और जैम बड़े-बड़े होटलों में उपलब्ध है. प्रीति नागराज की रिपोर्ट.