Milky Mist

Wednesday, 26 November 2025

5,000 रुपए निवेश कर मेन्यू में अवधी बिरयानी को जोड़ा तो परिवार का छोटा भोजनालय 15 करोड़ रुपए टर्नओवर वाला रेस्तरां चेन बन गया

26-Nov-2025 By पार्थो बर्मन
कोलकाता

Posted 27 May 2021

कोलकाता के बैरकपुर में व्यस्त 'दादा बाउदी' रेस्तरां के भीतर जैसे ही आप प्रवेश करते हैं, अवधी बिरयानी की जानी-पहचानी महक का झोंका हवा में तैरता महसूस होता है.

बिरयानी चाहने वालों के लिए यह आउटलेट 80 के दशक के अंतिम सालों से मशहूर है, जब किशोरावस्था में रहे संजीब साहा और राजीब साहा भाइयों ने 200 वर्ग फुट के पारिवारिक भोजनालय में मुंह में पानी लाने वाली इस डिश से परिचित कराया था. यह भोजनालय उनके दादाजी ने 1961 में शुरू किया था.
संजीब साहा (दाएं) और राजीब साहा ने दादा बाउदी में 1986 में बिरयानी परोसना शुरू की थी. इसके बाद उनका बिजनेस बढ़ने लगा. (सभी फोटो : विशेष व्यवस्था से/टी.डब्ल्यू.एल.)

1986 में अपने आउटलेट पर बिरयानी बेचना शुरू करने के बाद शुरू हुई दादा बाउदी की यात्रा के बारे में राजीब कहते हैं, “हमने बिजनेस में 5,000 रुपए का निवेश किया और बिरयानी बनाने के लिए कुछ बर्तन खरीदे. इसके साथ ही कुछ किलो बासमती चावल और मीट भी लाए. शुरुआत में हम रोज तीन किलोग्राम मटन बिरयानी बनाते थे.”

आज, उनके तीन आउटलेट हैं. भोजन के समय सभी में भारी भीड़ उमड़ती है. वे रोज 700 किलोग्राम बिरयानी बेचते हैं. मटन बिरयानी की कीमत 260 रुपए प्रति प्लेट और चिकन बिरयानी की कीमत 200 रुपए प्रति प्लेट है.

दादा बाउदी का सालाना टर्नओवर अब 15 करोड़ रुपए को छू चुका है और साल-दर-साल बढ़ रहा है.

उनके ग्राहकों में भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान और बी.सी.सी.आई. अध्यक्ष सौरव गांगुली समेत कई सेलीब्रिटी शामिल हैं. दो साल पहले तत्कालीन अमेरिकी कांसुलेट जनरल, कोलकाता क्रैग एल. हॉल भी अपने परिवार और अमेरिकी सीनेटर जैमी ड्रेगन के साथ उनके आउटलेट पर आए थे.

दादा बाउदी की सफलता दोनों भाइयों की कड़ी मेहनत का नतीजा है. वे पारिवारिक बिजनेस को नई ऊंचाई पर ले गए, जो उनके दादा और पिता भी हासिल नहीं कर पाए थे.

संजीब ने जहां कक्षा 12वीं की पढ़ाई पूरी की, वहीं उनके भाई राजीब 10वीं के आगे नहीं पढ़ पाए. लेकिन दोनों भाइयों ने यह सुनिश्चित किया कि वे जो बिरयानी बना रहे हैं, वह अच्छी गुणवत्ता की हो और सभी मानक पूरे करती हो, ताकि ग्राहक एक बार खाकर उनके पास फिर लौटे.

बिरयानी की हर प्लेट में 800 ग्राम चावल की बिरयानी होती है. इसमें 200 ग्राम मटन (या चिकन) और आलू होते हैं. यह अवधी बिरयानी की विशिष्टता है.
तत्कालीन अमेरिकी काउंसुलेट जनरल, कोलकाता क्रैग एल. हॉल अपने परिवार के साथ दादा बाउदी आउटलेट पर.

राजीब कहते हैं कि जब उन्होंने शुरुआत की थी, तो 11 रुपए प्रति प्लेट मटन बिरयानी बेचते थे. लेकिन मीट और अन्य सामान की कीमतें लगातार बढ़ती रही, इसलिए उन्हें समय-समय पर कीमतें भी बढ़ानी पड़ीं.

दिलचस्प बात यह है कि बैरकपुर रेलवे स्टेशन के पास घोष पारा रोड पर पहला भोजनालय 1961 में शुरू हुआ था. यह उनके दादा रामप्रसाद ने शुरू किया था, जो अपनी पत्नी और छह बच्चों के साथ बिहार के पूर्वी चंपारण जिले के मोतिहारी से कोलकाता आ गए थे.

इस भोजनालय का कई साल तक नाम ही नहीं रहा. वहां शुरुआत में बस दाल-रोटी और सब्जी परोसी जाती थी.

लेकिन करीब 15 साल बाद, रामप्रसाद के बेटे धीरेन साहा ने भोजनालय का जिम्मा संभाला और उन्होंने मेन्यू को विस्तार दिया. उन्होंने चावल से लेकर फिश करी, चिकन और फिर रेड मीट करी जैसी डिश जोड़ी.

समय के साथ धीरेन की पत्नी संध्या भी पति का हाथ बंटाने लगीं. लोग दोनों को दादा बाउदी पुकारने लगे. (बंगाली भाषा में दादा का मतलब भाई और बाउदी का मतलब पत्नी होता है.) भोजनालय जल्द ही दादा बाउदी के नाम से पहचाना जाने लगा.

धीरेन और संध्या दो कर्मचारियों के साथ भाेजनालय संभालते थे. उनके स्कूल में पढ़ रहे बच्चे संजीब और राजीब स्कूल के बाद उनकी मदद करते थे.

संध्या याद करती हैं, “वे बहुत मुश्किल दिन थे. हम भोजन का स्वाद बनाए रखने के लिए मसालों को हाथों से पत्थर पर पीसते थे. मेरे दोनों बेटे काम में मदद करते थे.”

राजीब कहते हैं, “हम भोजन परोसते थे, टेबल साफ करते थे और प्लेटें धोते थे. हम महसूस करते थे कि माता-पिता की मदद करना हमारी जिम्मेदारी है. हमें ऐसा काम करने में कभी शर्म महसूस नहीं हुई.”

संजीब याद करते हैं कि वे ग्राहकों को रात 11 बजे तक खाना परोसते थे और इससे उनकी पढ़ाई प्रभावित होती थी. वे कहते हैं, “तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने अपनी बुनियादी शिक्षा पूरी की. हम बैरकपुर के देबी प्रसाद हायर सेकंडरी स्कूल गए. मैंने 1987 में कक्षा 12 की पढ़ाई पूरी की, जबकि राजीब कक्षा 10 के बाद पढ़ाई जारी नहीं रख सके.”

दादा बाउदी की बिरयानी ने सालों से अपना जायका एक समान बनाए रखा है. इसका श्रेय सलीम खान को जाता है, जो उनके मुख्य खानसामा हैं. सलीम खान तबसे किचन संभाल रहे हैं, जब बिरयानी लॉन्च की गई थी.
दादा बाउदी के एक भोजनालय के बाहर उमड़ी भीड़.

सलीम खान के मार्गदर्शन में रोज 15-20 बड़े बर्तनों में बिरयानी तैयार की जाती है. मटन, चिकन और वेजीटेबल बिरयानी के अलावा, कई अन्य भारतीय, चाइनीज और मुगलई भोजन भी बनाया जाता है. इसमें तंदूरी आइटम भी शामिल हैं.

साहा बंधुओं ने अपना दूसरा आउटलेट बैरकपुर में पांच साल पहले शुरू किया. जबकि सोदपुर आउटलेट जुलाई 2019 में शुरू किया. उनके पास कुल 35 लोगों का स्टाफ है.

साहा परिवार बैरकपुर में श्यामास्री पल्ली में रहता है. वहां से रेस्तरां 10 मिनट की दूरी पर है. दोनों भाई आज आनंदित, आरामदायक और संतुष्ट जीवन जी रहे हैं.

संजीब को घूमना पसंद है. वे अधिकांश यूरोपीय और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में जा चुके हैं. जबकि राजीब को पालतू जानवर पसंद हैं. उनके पास अच्छी नस्ल के कई डॉग और एक प्रकार के ताेते कोकाटू समेत बहुत सारे पक्षी हैं. उनके घर पर अद्भुत एक्वेरियम भी है.

दोनों शादीशुदा हैं. दोनों के बच्चे भी हैं. संजीब को एक बेटा और बेटी हैं, जबकि राजीब को एक बेटी है.

 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • Success story of three youngsters in marble business

    मार्बल भाईचारा

    पेपर के पुश्तैनी कारोबार से जुड़े दिल्ली के अग्रवाल परिवार के तीन भाइयों पर उनके मामाजी की सलाह काम कर गई. उन्होंने साल 2001 में 9 लाख रुपए के निवेश से मार्बल का बिजनेस शुरू किया. 2 साल बाद ही स्टोनेक्स कंपनी स्थापित की और आयातित मार्बल बेचने लगे. आज इनका टर्नओवर 300 करोड़ रुपए है.
  • success story of two brothers in solar business

    गांवों को रोशन करने वाले सितारे

    कोलकाता के जाजू बंधु पर्यावरण को सहेजने के लिए कुछ करना चाहते थे. जब उन्‍होंने पश्चिम बंगाल और झारखंड के अंधेरे में डूबे गांवों की स्थिति देखी तो सौर ऊर्जा को अपना बिज़नेस बनाने की ठानी. आज कई घर उनकी बदौलत रोशन हैं. यही नहीं, इस काम के जरिये कई ग्रामीण युवाओं को रोज़गार मिला है और कई किसान ऑर्गेनिक फू़ड भी उगाने लगे हैं. गुरविंदर सिंह की कोलकाता से रिपोर्ट.
  • Subhrajyoti's Story

    मनी बिल्डर

    असम के सिल्चर का एक युवा यह निश्चय नहीं कर पा रहा था कि बिजनेस का कौन सा क्षेत्र चुने. उसने कई नौकरियां कीं, लेकिन रास नहीं आईं. वह खुद का कोई बिजनेस शुरू करना चाहता था. इस बीच जब वह जिम में अपनी सेहत बनाने गया तो उसे वहीं से बिजनेस आइडिया सूझा. आज उसकी जिम्नेशियम चेन का टर्नओवर 2.6 करोड़ रुपए है. बता रहे हैं गुरविंदर सिंह
  • Success story of helmet manufacturer

    ‘हेलमेट मैन’ का संघर्ष

    1947 के बंटवारे में घर बार खो चुके सुभाष कपूर के परिवार ने हिम्मत नहीं हारी और भारत में दोबारा ज़िंदगी शुरू की. सुभाष ने कपड़े की थैलियां सिलीं, ऑयल फ़िल्टर बनाए और फिर हेलमेट का निर्माण शुरू किया. नई दिल्ली से पार्थो बर्मन सुना रहे हैं भारत के ‘हेलमेट मैन’ की कहानी.
  • Alkesh Agarwal story

    छोटी शुरुआत से बड़ी कामयाबी

    कोलकाता के अलकेश अग्रवाल इस वर्ष अपने बिज़नेस से 24 करोड़ रुपए टर्नओवर की उम्मीद कर रहे हैं. यह मुकाम हासिल करना आसान नहीं था. स्कूल में दोस्तों को जीन्स बेचने से लेकर प्रिंटर कार्टेज रिसाइकिल नेटवर्क कंपनी बनाने तक उन्होंने कई उतार-चढ़ाव देखे. उनकी बदौलत 800 से अधिक लोग रोज़गार से जुड़े हैं. कोलकाता से संघर्ष की यह कहानी पढ़ें गुरविंदर सिंह की कलम से.