Milky Mist

Saturday, 8 February 2025

दो भाइयों ने 60 हजार रुपए से ऑनलाइन गारमेंट स्टोर शुरू किया, अब यह 14 करोड़ टर्नओवर वाला बिजनेस

08-Feb-2025 By उषा प्रसाद
नई दिल्ली

Posted 20 Mar 2021

दो भाई खालिद रजा खान और अकरम तारिक खान जब इंजीनियरिंग कॉलेज में थे, तब उन्होंने योरलिबास नामक ऑनलाइन स्टोर शुरू किया. 60 हजार रुपए के छोटे से निवेश से शुरू किए गए इस स्टोर से डिजाइनर एथनिक पाकिस्तानी सूट्स बेचे जाते थे.


आज, दोनों छह साल में सफल हो चुके इस बिजनेस का आनंद ले रहे हैं. यह अब 14 करोड़ रुपए के टर्नओवर वाली कंपनी बन चुका है. दिल्ली में 2,000 वर्ग फुट में इसका ऑफिस है. इसमें 23 कर्मचारी काम करते हैं.

खालिद रजा खान (बाएं) और अकरम तारिक खान ने 2014 में योरलिबास की स्थापना की थी. खालिद की पत्नी शाहपर खान (बीच में) भी कारोबार से जुड़ी हैं. (फोटो: विशेष व्यवस्था से)

एक्सएलआरआई जमशेदपुर से ह्यूमन रिसोर्स मैनेजमेंट में एमबीए की डिग्री लेने वाले योरलिबास डॉट कॉम (yourlibaas.com) के सह-संस्थापक अकरम कहते हैं, “शुरुआत में हमने उत्पाद अपने फेसबुक पेज पर शेयर किए. इसके दो महीनों बाद वेबसाइट शुरू हुई.”

योरलिबास पर पाकिस्तान और यूएई के शीर्ष डिजाइनर्स के कैटलाॅग प्रदर्शित हैं. इनमें सना सफिनाज, मारिया. बी, गुल अहमद, सफायर, जरा शाहजहां, इलान, फराज मैनन, करिज्मा, बारोक और मोटिफ्स समेत अन्य भी शामिल हैं. ये सभी डिजाइनर्स पहले यूएई में हुआ करते थे.

योरलिबास के संस्थापक और सीईओ खालिद ने अपनी बचत और परिवार से उधार लेकर 60,000 रुपए एकत्र किए और थोक कारोबारी से पहला कैटलॉग खरीदा.

उन्होंने अपने पुणे स्थित फ्लैट पर 2014 में योरलिबास डॉट कॉम स्थापना तब की, जब उनकी उम्र महज 24 साल थी. उस समय वे पुणे इंस्टिट्यूट ऑफ कंप्यूटर टेक्नोलॉजी (पीआईसीटी) से कंप्यूटर इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष की पढ़ाई कर रहे थे.

उस वक्त उनके छोटे भाई अकरम 19 वर्ष के थे और उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में कंप्यूटर्स में इंजीनियरिंग करने के लिए एडमिशन लिया ही था.

दोनों भाइयों का जन्म मध्य पूर्व में रियाद में हुआ था. दोनों वहीं पले-बढ़े. 2001 में उनकी मां ने अपने पांच बच्चों के साथ भारत लौटना तय किया. इनमें दो बेटियां और तीन बेटे थे. वे चाहती थीं कि उनकी बेटियां उच्च शिक्षा भारत में पूरी करें.

उनके पिता केमिकल इंजीनियर थे. उन्होंने रियाद की कंस्ट्रक्शन कंपनी में फायरप्रूफिंग संबंधी काम जारी रखा.
जब योरलिबास की शुरुआत हुई, तब अकरम की उम्र महज 19 साल थी.

किशोरवस्था में खालिद और अकरम ने कई ब्लॉग्स, स्टैटिक वेबसाइट्स और विभिन्न ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म जैसे जाम्बर (सोशल नेटवर्किंग साइट), होस्टलनीड्स डॉट कॉम (छात्रावास उपलब्ध कराने के लिए ऑनलाइन स्टोर), यूथटाइम्स डॉट इन (युवाओं के लिए ई-मैग्जीन) और लेटेस्टमूवीज डॉट कॉम (मूवी पोर्टल) शुरू किए.

लेकिन सफलता का स्वाद चखने के लिए उन्हें योरलिबास के लॉन्च होने तक का इंतजार करना पड़ा.

दरअसल, लखनऊ की एक यात्रा के दौरान खालिद को पाकिस्तानी सूट्स के बारे में पता चला था. वहां उनके एक संबंधी पाकिस्तानी सूट के कपड़े अपने करीबी लोगों को बेचते थे.

खालिद बताते हैं, “वे कपड़े मशहूर हो गए थे. और मुझे पता चला कि उस समय उन्हें ऑनलाइन कोई नहीं बेच रहा था. वही पल था, जब मैंने तय किया कि मैं यह काम करूंगा.”

पाकिस्तानी सूट्स की विशेषता बताते हुए अकरम कहते हैं कि यह लॉन फैब्रिक का बनता है. यह कॉटन के समान होता है लेकिन उसका अधिक परिष्कृत रूप होता है. इसमें सिलवटें नहीं पड़तीं, यह मुलायम और हवादार होता है.

वे कहते हैं, “लॉन फैब्रिक पाकिस्तान का देसी कपड़ा है और इसीलिए यह विशेष है.”

“पाकिस्तान में लॉन फैब्रिक के कपड़े पहनना आम बात है. लेकिन भारत में औसत पाकिस्तानी सूट भी 5,000 रुपए का मिलता है. यह अब डिजाइनर हो चला है और इसकी सिलाई भी बहुत महंगी पड़ती है.”

पहले ही दिन, खालिद को 30,000 रुपए के ऑर्डर मिले और दो से तीन दिन में शुरुआती स्टॉक बिक गया.

बाद में खालिद ऑनलाइन पेमेंट से भी जुड़ गए. उन्होंने शिपरॉकेट से समझौता किया है. यह एक ई-कॉमर्स लॉजिस्टिक्स फर्म है, जो ऑर्डर की डिलीवरी करती है. चूंकि इसे ग्राहकों तक सामान पहुंचाने में तीन से चार दिन लगते थे, इसलिए उन्होंने बाद में डाक विभाग की सेवा लेनी शुरू कर दी.

खालिद याद करते हैं, “उन दिनों पैकेट भेजने के लिए मुझे रात में अपने कॉलेज से 20 किमी दूर पुणे रेलवे स्टेशन जाना पड़ता था. मैं अपने सारे काम खुद करता था, कॉलेज और नया काम दोनों संभालता था.”

शुरुआत में उन्हें मुख्य रूप से दिल्ली और पंजाब के क्षेत्रों से ही ऑर्डर मिलते थे.
खालिद अब यूएई में ही रहने लगे हैं, ताकि वहां से योरलिबास का कामकाज संभाल सकें.

2015 में, उन्होंने नोएडा के सेक्टर 50 में ऑफिस-कम-वेयरहाउस 25,000 रुपए महीने के हिसाब से किराए से लिया.

शुरुआती दिनों में कई उतार-चढ़ाव आए, जिनसे वे धीरे-धीरे उबर गए.

अकरम स्पष्ट करते हैं, “हमने देखा कि करीब 50% ऑर्डर वापस आ जाते थे क्योंकि ग्राहक डिलीवरी लेने से मना कर देते थे, उपलब्ध नहीं होते थे, उन्हें कपड़े पसंद नहीं आते थे या पता गलत होता था.

“पहले दो साल हमें कोई मुनाफा नहीं हो पाया. कोई ग्राहक दोबारा खरीदी के लिए नहीं आता था. हम विज्ञापनों, मार्केटिंग और शुरुआत में लॉजिस्टिक्स में पैसे झोंक रहे थे.”

इन सबके बीच एक बड़ी घटना हुई. एक होलसेलर ने 1.2 लाख रुपए के एडवांस पेमेंट के बावजूद हमें कपड़े डिलीवर नहीं किए. अधिकतर समस्याएं 2018 में तब खत्म हो गईं, जब उन्होंने अपने पूरे बिजनेस को ऑटोमेटेड कर दिया. इसमें बुकिंग, ऑर्डर की ट्रैकिंग और रिटर्न तक की सारी प्रक्रिया अपने आप होने लगी.

अकरम कहते हैं, “अब सामान लौटने की दर 10% से 15% थी, जो ऑटोमेशन के पहले 30% हुआ करती थी.”

हालांकि कोविड लॉकडाउन की वजह से उन्हें अपना काम बंद करना पड़ा, लेकिन जैसे ही बिजनेस खुले, उन्हें फिर बड़ी संख्या में नए ऑर्डर मिलने लगे.

अकरम बताते हैं, “आज, लोगों ने अपनी मर्जी से ऑनलाइन खरीदी शुरू कर दी है. इससे हमारे प्लेटफॉर्म पर नए ग्राहकों की अच्छी-खासी संख्या हो गई है.”

पिछले दिसंबर में उन्होंने दुबई, यूएई में भी एक ऑफिस खोला. वहां कई पाकिस्तानी डिजाइनर्स भी हैं. इस कदम से उनकी डिलीवरी करने की लागत बचेगी क्योंकि उनके कई ग्राहक मध्य पूर्व के देशों जैसे यूएई, ओमान, कुवैत, कतर और सऊदी अरब से हैं.
दिल्ली में योरलिबास का वेयरहाउस.

भारत में पाकिस्तानी सूट के बड़े मार्केट पंजाब, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, कश्मीर, केरल, हैदराबाद, मुंबई और कोलकाता में फैले हैं. टियर-2 शहरों जैसे अलीगढ़, कानपुर और लखनऊ के खरीदारों की संख्या भी बढ़ी है.

दिलचस्प यह है कि योरलिबास पर मौजूद शीर्ष ब्रांड में से कुछ के लिए बॉलीवुड अभिनेत्रियों ने भी मॉडलिंग की है. बॉलीवुड के कुछ सेलीब्रिटी और मैकअप आर्टिस्ट भी उनके ग्राहक हैं.

अकरम अभी बैचलर हैं, वहीं खालिद ने शाहपर खान से शादी की है. शाहपर ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से मास कम्यूनिकेशंस में मास्टर्स डिग्री ली है. वे इस बिजनेस में भी मदद करती हैं.


 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • Miyazaki Mango story

    ये 'आम' आम नहीं, खास हैं

    जबलपुर के संकल्प उसे फरिश्ते को कभी नहीं भूलते, जिसने उन्हें ट्रेन में दुनिया के सबसे महंगे मियाजाकी आम के पौधे दिए थे. अपने खेत में इनके समेत कई प्रकार के हाइब्रिड फलों की फसल लेकर संकल्प दुनियाभर में मशहूर हो गए हैं. जापान में 2.5 लाख रुपए प्रति किलो में बिकने वाले आमों को संकल्प इतना आम बना देना चाहते हैं कि भारत में ये 2 हजार रुपए किलो में बिकने लगें. आम से जुड़े इस खास संघर्ष की कहानी बता रही हैं सोफिया दानिश खान
  • How Two MBA Graduates Started Up A Successful Company

    दो का दम

    रोहित और विक्रम की मुलाक़ात एमबीए करते वक्त हुई. मिलते ही लगा कि दोनों में कुछ एक जैसा है – और वो था अपना काम शुरू करने की सोच. उन्होंने ऐसा ही किया. दोनों ने अपनी नौकरियां छोड़कर एक कंपनी बनाई जो उनके सपनों को साकार कर रही है. पेश है गुरविंदर सिंह की रिपोर्ट.
  • Juicy Chemistry story

    कॉस्मेटिक में किया कमाल

    कोयंबटूर के युगल प्रितेश और मेघा अशर ने छोटे बिजनेस से अपनी उद्यमिता का सफर शुरू किया. बीच में दिवालिया हाेने की स्थिति बनी. पत्नी ने शादियों में मेहंदी बनाने तक के ऑर्डर लिए. धीरे-धीरे गाड़ी पटरी पर आने लगी. स्कीनकेयर प्रोडक्ट्स का बिजनेस चल निकला. 5 हजार रुपए के निवेश से शुरू हुए बिजनेस का टर्नओवर अब 25 करोड़ रुपए सालाना है. बता रही हैं सोफिया दानिश खान.
  • Making crores in paper flowers

    कागज के फूल बने करेंसी

    बेंगलुरु के 53 वर्षीय हरीश क्लोजपेट और उनकी पत्नी रश्मि ने बिजनेस के लिए बचपन में रंग-बिरंगे कागज से बनाए जाने वाले फूलों को चुना. उनके बनाए ये फूल और अन्य क्राफ्ट आयटम भारत सहित दुनियाभर में बेचे जा रहे हैं. यह बिजनेस आज सालाना 64 करोड़ रुपए टर्नओवर वाला है.
  • Vikram Mehta's story

    दूसरों के सपने सच करने का जुनून

    मुंबई के विक्रम मेहता ने कॉलेज के दिनों में दोस्तों की खातिर अपना वजन घटाया. पढ़ाई पूरी कर इवेंट आयोजित करने लगे. अनुभव बढ़ा तो पहले पार्टनरशिप में इवेंट कंपनी खोली. फिर खुद के बलबूते इवेंट कराने लगे. दूसरों के सपने सच करने के महारथी विक्रम अब तक दुनिया के कई देशों और देश के कई शहरों में डेस्टिनेशन वेडिंग करवा चुके हैं. कंपनी का सालाना रेवेन्यू 2 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है.