दो भाइयों ने 60 हजार रुपए से ऑनलाइन गारमेंट स्टोर शुरू किया, अब यह 14 करोड़ टर्नओवर वाला बिजनेस
30-Oct-2024
By उषा प्रसाद
नई दिल्ली
दो भाई खालिद रजा खान और अकरम तारिक खान जब इंजीनियरिंग कॉलेज में थे, तब उन्होंने योरलिबास नामक ऑनलाइन स्टोर शुरू किया. 60 हजार रुपए के छोटे से निवेश से शुरू किए गए इस स्टोर से डिजाइनर एथनिक पाकिस्तानी सूट्स बेचे जाते थे.
आज, दोनों छह साल में सफल हो चुके इस बिजनेस का आनंद ले रहे हैं. यह अब 14 करोड़ रुपए के टर्नओवर वाली कंपनी बन चुका है. दिल्ली में 2,000 वर्ग फुट में इसका ऑफिस है. इसमें 23 कर्मचारी काम करते हैं.
खालिद रजा खान (बाएं) और अकरम तारिक खान ने 2014 में योरलिबास की स्थापना की थी. खालिद की पत्नी शाहपर खान (बीच में) भी कारोबार से जुड़ी हैं. (फोटो: विशेष व्यवस्था से)
|
एक्सएलआरआई जमशेदपुर से ह्यूमन रिसोर्स मैनेजमेंट में एमबीए की डिग्री लेने वाले योरलिबास डॉट कॉम (yourlibaas.com) के सह-संस्थापक अकरम कहते हैं, “शुरुआत में हमने उत्पाद अपने फेसबुक पेज पर शेयर किए. इसके दो महीनों बाद वेबसाइट शुरू हुई.”
योरलिबास पर पाकिस्तान और यूएई के शीर्ष डिजाइनर्स के कैटलाॅग प्रदर्शित हैं. इनमें सना सफिनाज, मारिया. बी, गुल अहमद, सफायर, जरा शाहजहां, इलान, फराज मैनन, करिज्मा, बारोक और मोटिफ्स समेत अन्य भी शामिल हैं. ये सभी डिजाइनर्स पहले यूएई में हुआ करते थे.
योरलिबास के संस्थापक और सीईओ खालिद ने अपनी बचत और परिवार से उधार लेकर 60,000 रुपए एकत्र किए और थोक कारोबारी से पहला कैटलॉग खरीदा.
उन्होंने अपने पुणे स्थित फ्लैट पर 2014 में योरलिबास डॉट कॉम स्थापना तब की, जब उनकी उम्र महज 24 साल थी. उस समय वे पुणे इंस्टिट्यूट ऑफ कंप्यूटर टेक्नोलॉजी (पीआईसीटी) से कंप्यूटर इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष की पढ़ाई कर रहे थे.
उस वक्त उनके छोटे भाई अकरम 19 वर्ष के थे और उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में कंप्यूटर्स में इंजीनियरिंग करने के लिए एडमिशन लिया ही था.
दोनों भाइयों का जन्म मध्य पूर्व में रियाद में हुआ था. दोनों वहीं पले-बढ़े. 2001 में उनकी मां ने अपने पांच बच्चों के साथ भारत लौटना तय किया. इनमें दो बेटियां और तीन बेटे थे. वे चाहती थीं कि उनकी बेटियां उच्च शिक्षा भारत में पूरी करें.
उनके पिता केमिकल इंजीनियर थे. उन्होंने रियाद की कंस्ट्रक्शन कंपनी में फायरप्रूफिंग संबंधी काम जारी रखा.
जब योरलिबास की शुरुआत हुई, तब अकरम की उम्र महज 19 साल थी.
|
किशोरवस्था में खालिद और अकरम ने कई ब्लॉग्स, स्टैटिक वेबसाइट्स और विभिन्न ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म जैसे जाम्बर (सोशल नेटवर्किंग साइट), होस्टलनीड्स डॉट कॉम (छात्रावास उपलब्ध कराने के लिए ऑनलाइन स्टोर), यूथटाइम्स डॉट इन (युवाओं के लिए ई-मैग्जीन) और लेटेस्टमूवीज डॉट कॉम (मूवी पोर्टल) शुरू किए.
लेकिन सफलता का स्वाद चखने के लिए उन्हें योरलिबास के लॉन्च होने तक का इंतजार करना पड़ा.
दरअसल, लखनऊ की एक यात्रा के दौरान खालिद को पाकिस्तानी सूट्स के बारे में पता चला था. वहां उनके एक संबंधी पाकिस्तानी सूट के कपड़े अपने करीबी लोगों को बेचते थे.
खालिद बताते हैं, “वे कपड़े मशहूर हो गए थे. और मुझे पता चला कि उस समय उन्हें ऑनलाइन कोई नहीं बेच रहा था. वही पल था, जब मैंने तय किया कि मैं यह काम करूंगा.”
पाकिस्तानी सूट्स की विशेषता बताते हुए अकरम कहते हैं कि यह लॉन फैब्रिक का बनता है. यह कॉटन के समान होता है लेकिन उसका अधिक परिष्कृत रूप होता है. इसमें सिलवटें नहीं पड़तीं, यह मुलायम और हवादार होता है.
वे कहते हैं, “लॉन फैब्रिक पाकिस्तान का देसी कपड़ा है और इसीलिए यह विशेष है.”
“पाकिस्तान में लॉन फैब्रिक के कपड़े पहनना आम बात है. लेकिन भारत में औसत पाकिस्तानी सूट भी 5,000 रुपए का मिलता है. यह अब डिजाइनर हो चला है और इसकी सिलाई भी बहुत महंगी पड़ती है.”
पहले ही दिन, खालिद को 30,000 रुपए के ऑर्डर मिले और दो से तीन दिन में शुरुआती स्टॉक बिक गया.
बाद में खालिद ऑनलाइन पेमेंट से भी जुड़ गए. उन्होंने शिपरॉकेट से समझौता किया है. यह एक ई-कॉमर्स लॉजिस्टिक्स फर्म है, जो ऑर्डर की डिलीवरी करती है. चूंकि इसे ग्राहकों तक सामान पहुंचाने में तीन से चार दिन लगते थे, इसलिए उन्होंने बाद में डाक विभाग की सेवा लेनी शुरू कर दी.
खालिद याद करते हैं, “उन दिनों पैकेट भेजने के लिए मुझे रात में अपने कॉलेज से 20 किमी दूर पुणे रेलवे स्टेशन जाना पड़ता था. मैं अपने सारे काम खुद करता था, कॉलेज और नया काम दोनों संभालता था.”
शुरुआत में उन्हें मुख्य रूप से दिल्ली और पंजाब के क्षेत्रों से ही ऑर्डर मिलते थे.
खालिद अब यूएई में ही रहने लगे हैं, ताकि वहां से योरलिबास का कामकाज संभाल सकें. |
2015 में, उन्होंने नोएडा के सेक्टर 50 में ऑफिस-कम-वेयरहाउस 25,000 रुपए महीने के हिसाब से किराए से लिया.
शुरुआती दिनों में कई उतार-चढ़ाव आए, जिनसे वे धीरे-धीरे उबर गए.
अकरम स्पष्ट करते हैं, “हमने देखा कि करीब 50% ऑर्डर वापस आ जाते थे क्योंकि ग्राहक डिलीवरी लेने से मना कर देते थे, उपलब्ध नहीं होते थे, उन्हें कपड़े पसंद नहीं आते थे या पता गलत होता था.
“पहले दो साल हमें कोई मुनाफा नहीं हो पाया. कोई ग्राहक दोबारा खरीदी के लिए नहीं आता था. हम विज्ञापनों, मार्केटिंग और शुरुआत में लॉजिस्टिक्स में पैसे झोंक रहे थे.”
इन सबके बीच एक बड़ी घटना हुई. एक होलसेलर ने 1.2 लाख रुपए के एडवांस पेमेंट के बावजूद हमें कपड़े डिलीवर नहीं किए. अधिकतर समस्याएं 2018 में तब खत्म हो गईं, जब उन्होंने अपने पूरे बिजनेस को ऑटोमेटेड कर दिया. इसमें बुकिंग, ऑर्डर की ट्रैकिंग और रिटर्न तक की सारी प्रक्रिया अपने आप होने लगी.
अकरम कहते हैं, “अब सामान लौटने की दर 10% से 15% थी, जो ऑटोमेशन के पहले 30% हुआ करती थी.”
हालांकि कोविड लॉकडाउन की वजह से उन्हें अपना काम बंद करना पड़ा, लेकिन जैसे ही बिजनेस खुले, उन्हें फिर बड़ी संख्या में नए ऑर्डर मिलने लगे.
अकरम बताते हैं, “आज, लोगों ने अपनी मर्जी से ऑनलाइन खरीदी शुरू कर दी है. इससे हमारे प्लेटफॉर्म पर नए ग्राहकों की अच्छी-खासी संख्या हो गई है.”
पिछले दिसंबर में उन्होंने दुबई, यूएई में भी एक ऑफिस खोला. वहां कई पाकिस्तानी डिजाइनर्स भी हैं. इस कदम से उनकी डिलीवरी करने की लागत बचेगी क्योंकि उनके कई ग्राहक मध्य पूर्व के देशों जैसे यूएई, ओमान, कुवैत, कतर और सऊदी अरब से हैं.
दिल्ली में योरलिबास का वेयरहाउस. |
भारत में पाकिस्तानी सूट के बड़े मार्केट पंजाब, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, कश्मीर, केरल, हैदराबाद, मुंबई और कोलकाता में फैले हैं. टियर-2 शहरों जैसे अलीगढ़, कानपुर और लखनऊ के खरीदारों की संख्या भी बढ़ी है.
दिलचस्प यह है कि योरलिबास पर मौजूद शीर्ष ब्रांड में से कुछ के लिए बॉलीवुड अभिनेत्रियों ने भी मॉडलिंग की है. बॉलीवुड के कुछ सेलीब्रिटी और मैकअप आर्टिस्ट भी उनके ग्राहक हैं.
अकरम अभी बैचलर हैं, वहीं खालिद ने शाहपर खान से शादी की है. शाहपर ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से मास कम्यूनिकेशंस में मास्टर्स डिग्री ली है. वे इस बिजनेस में भी मदद करती हैं.
आप इन्हें भी पसंद करेंगे
-
‘हेलमेट मैन’ का संघर्ष
1947 के बंटवारे में घर बार खो चुके सुभाष कपूर के परिवार ने हिम्मत नहीं हारी और भारत में दोबारा ज़िंदगी शुरू की. सुभाष ने कपड़े की थैलियां सिलीं, ऑयल फ़िल्टर बनाए और फिर हेलमेट का निर्माण शुरू किया. नई दिल्ली से पार्थो बर्मन सुना रहे हैं भारत के ‘हेलमेट मैन’ की कहानी. -
युवाओं ने ठाना, बचपन बेहतर बनाना
हमेशा से एडवेंचर के शौकीन रहे दिल्ली् के सात दोस्तों ने ऐसा उद्यम शुरू किया, जो स्कूली बच्चों को काबिल इंसान बनाने में अहम भूमिका निभा रहा है. इन्होंने चीन से 3डी प्रिंटर आयात किया और उसे अपने हिसाब से ढाला. अब देशभर के 150 स्कूलों में बच्चों को 3डेक्स्टर के जरिये 3डी प्रिंटिंग सिखा रहे हैं. -
स्नैक्स किंग
नागपुर के मनीष खुंगर युवावस्था में मूंगफली चिक्की बार की उत्पादन ईकाई लगाना चाहते थे, लेकिन जब उन्होंने रिसर्च की तो कॉर्न स्टिक स्नैक्स उन्हें बेहतर लगे. यहीं से उन्हें नए बिजनेस की राह मिली. वे रॉयल स्टार स्नैक्स कंपनी के जरिए कई स्नैक्स का उत्पादन करने लगे. इसके बाद उन्होंने पीछे पलट कर नहीं देखा. पफ स्नैक्स, पास्ता, रेडी-टू-फ्राई 3डी स्नैक्स, पास्ता, कॉर्न पफ, भागर पफ्स, रागी पफ्स जैसे कई स्नैक्स देशभर में बेचते हैं. मनीष का धैर्य और दृढ़ संकल्प की संघर्ष भरी कहानी बता रही हैं सोफिया दानिश खान -
सपनों का छात्रावास
साल 2016 में शुरू हुए विद्यार्थियों को उच्च गुणवत्ता के आवास मुहैया करवाने वाले प्लासिओ स्टार्टअप ने महज पांच महीनों में 10 करोड़ रुपए कमाई कर ली. नई दिल्ली से पार्थो बर्मन के शब्दों में जानिए साल 2018-19 में 100 करोड़ रुपए के कारोबार का सपना देखने वाले तीन सह-संस्थापकों का संघर्ष. -
रोबोटिक्स कपल
चेन्नई के इंजीनियर दंपति एस प्रणवन और स्नेेहा प्रकाश चाहते हैं कि इस देश के बच्चे टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करने वाले बनकर न रह जाएं, बल्कि इनोवेटर बनें. इसी सोच के साथ उन्होंने स्टूडेंट्स को रोबोटिक्स सिखाना शुरू किया. आज देशभर में उनके 75 सेंटर हैं और वे 12,000 बच्चों को प्रशिक्षण दे चुके हैं.