Milky Mist

Saturday, 27 July 2024

लीची ज्यूस के स्टाल से बिजनेस आइडिया आया, आज इनकी कंपनियों का टर्नओवर 75 करोड़ रुपए

27-Jul-2024 By गुरविंदर सिंह
गुवाहाटी

Posted 22 Oct 2020

प्रकाश गोडुका जब कॉलेज में पढ़ते थे, तब चाय पत्ती पैक कर विभिन्न टी स्टॉल को बेचा करते थे, ताकि परिवार की मदद कर सकें. बाद में उनके भाई भी इस बिजनेस से जुड़ गए.


आज परिवार कई बिजनेस में है. सभी बिजनेस का संयुक्त सालाना टर्नओवर 75 करोड़ रुपए है. उनका प्रमुख ब्रांड फ्रेशी है. इसमें फूड प्रॉडक्ट्स की कई रेंज है. इनमें फ्रेश ज्यूस, स्नैक्स, सॉस, अचार और जैम प्रमुख हैं.


प्रकाश गोडुका कॉलेज में पढ़ाई करने के साथ-साथ टी स्टॉलों को चाय के पैकेट बेचा करते थे. (सभी फोटो : विशेष व्यवस्था से)


फ्रेशी और प्रकाश गोडुका की कहानी पूरी तरह आसाम के शिवसागर जिले से शुरू होती है. यहां प्रकाश ने अपने बचपन के शुरुआती साल बिताए थे.

प्रकाश के परिवार का एक सामान्य पृष्ठभूमि से मौजूदा स्तर तक पहुंचना अपने आप में अनूठा है. आज वे उत्तर-पूर्व भारत के सफल घरेलू ब्रांड में से एक के मालिक हैं. उनका बिजनेस भारत के 17 राज्यों में फैला है. विदेशों तक भी उनकी पहुंच है, जिसमें कई खाड़ी देश और हांगकांग भी शामिल हैं. दो दशक से भी कम समय में बिजनेस का इतना विस्तार करना उद्यमिता की भावना का सम्मान है.

प्रकाश एक मध्य आय वाले संयुक्त परिवार से हैं. वे कहते हैं, "मेरे चाचाओं की किराना की दुकान थी और मेरे पिताजी कपड़ों की एक दुकान चलाते थे. बाद में, मेरे चाचाओं ने चाय का एक बागान खरीद लिया और चाय की प्रोसेसिंग और चाय पत्ती बनाना शुरू कर दिया.''

वे कहते हैं कि मुसीबत तब आना शुरू हुई, जब साल 2005 में परिवार अलग हुआ. अपने परिवार के मुश्किल दिनों को याद करते हुए प्रकाश कहते हैं, "परिवार में झगड़े 2001 में शुरू हो गए थे. ये 2004 तक बहुत बढ़ गए. इसके बाद बंटवारा करना तय हो गया. मेरे पिताजी को कुछ नकद और गुवाहाटी में एक घर मिला.''

उस समय तक भी प्रकाश कॉलेज की पढ़ाई कर रहे थे. उन्होंने तय किया कि वे खुद भी कुछ करेंगे, क्योंकि पिताजी के बिजनेस से होने वाली कमाई परिवार का खर्च चलाने के लिए पर्याप्त नहीं थी.

प्रकाश कहते हैं, "वह परिवार के लिए असल मुश्किल समय था. तब मैंने निर्णय लिया कि अपनी पढ़ाई का खर्च खुद निकालने के लिए टी स्टाॅल वालों को चाय की पत्ती बेचूंगा.''

उनका छोटा भाई बिकास भी इस काम में उनके साथ जुड़ गया. उस समय वह भी कॉलेज की पढ़ाई कर रहा था. तब तक पूरा परिवार गुवाहाटी रहने चला गया था.

बिकास कहते हैं, "हम चाय की पत्ती थोक में खरीदते थे, उसे छोटे-छोटे पैकेट में पैक करते थे और टी स्टाल वालों को बेच देते थे. हम एक महीने में 3000 से 4000 किलोग्राम चाय पत्ती बेच लेते थे. इससे परिवार की मदद हो जाती थी और हमारी पढ़ाई का खर्च भी निकल जाता था.''

लगातार कठिन मेहनत कर रहे दोनों भाइयों के लिए एक अच्छा मौका साल 2005 में आया. उस साल गुवाहाटी में एक एग्जीबिशन लगी थी और प्रकाश उसमें शामिल हुए.


प्रकाश ने पहले साल 50 लाख रुपए का बिजनेस करने का लक्ष्य रखा, लेकिन कंपनी ने तय लक्ष्य से 4 गुना बिक्री की.

प्रकाश कहते हैं, "मैंने मैदान में एक स्टाॅल के आगे भारी भीड़ देखी. मैंने देखा कि बांग्लादेश की एक कंपनी बहुत ही नाममात्र कीमत में लीची का ज्यूस बेच रही थी और लोग उसे खरीदने के लिए कतार लगाए खड़े थे.''

प्रकाश कहते हैं, "मैंने भी लीची ज्यूस चखा. मैं उससे प्रभावित हुआ. इसी से मुझे ख्याल आया कि भारत में कोई लीची का ज्यूस नहीं बना रहा था है और हम यह बिजनेस शुरू कर सकते हैं. मैंने अपने पिताजी और भाई से इस बारे में बात की और हमने तय कर लिया कि यह बिजनेस शुरू करेंगे.''

परिवार ने थोड़े समय पहले ही बंटवारे में मिले पैसे में से 15 लाख रुपए निकाले और गुवाहाटी में 3,000 वर्ग फुट जगह किराए से लेकर रेडी-टू-ड्रिंक लीची ज्यूस और ऑरेंज स्क्वॉश यूनिट शुरू कर दी.

जल्द ही तीनों ने प्रॉडक्ट की लॉन्चिंग के लिए फूड टेक्नोलॉजिस्ट्स और सप्लायर्स से बात करनी शुरू कर दी. उत्तर पूर्व के बाजार को केंद्रित करते हुए अपने महत्वाकांक्षी योजनाओं के बारे में बिकास बताते हैं, "हमने 10 कर्मचारी रखे और पहले साल कम से कम 50 से 60 लाख रुपए का बिजनेस करने का उद्देश्य लेकर कंपनी शुरू की.''

समूह के फाइनेंस का काम देख रहे बिकास कहते हैं, "हमने मेघालय, मणिपुर और आसाम में डिस्ट्रिब्यूटर नियुक्त किए. हम दुकान-दुकान गए और डिस्ट्रिब्यूटर्स को हमारा प्रॉडक्ट चखाया. चूंकि हमारे प्रॉडक्ट की क्वालिटी अच्छी थी, इसलिए उसे डिस्ट्रिब्यूटर्स और ग्राहकों ने हाथोहाथ लिया.''

तीनों कहते हैं कि परिणाम बेहतर रहे. हमने अपने वित्तीय लक्ष्य से भी बेहतर प्रदर्शन किया. पहले साल ही कंपनी ने 2 से 2.5 करोड़ रुपए का बिजनेस किया.

समूह के चेयरमैन और परिवार के वरिष्ठ सदस्य आरके गोडुका कहते हैं, "हमने तत्काल गुवाहाटी में 57,000 वर्ग फुट का एक प्लॉट खरीदा और साल 2006 में प्लांट का विस्तार कर दिया. हमने और भी प्रॉडक्ट जोड़े. जैसे अचार, सॉस, विनेगर, जैम और अन्य.''

साल 2009 में देश के अग्रणी फूड और बेवरेज ब्रांड ब्रिटानिया ने उन्हें रस्क के निर्माण और पैक करने का ऑर्डर दिया. यह उनका बिस्कुट का मशहूर ब्रांड था.

बिकास कहते हैं, "साल 2013 तक बिजनेस यूं ही चलता रहा. बाद में हमने इसी तरह के बिस्कुट बनाने शुरू कर दिए और उन्हें खाड़ी देशों में निर्यात करने लगे. साल 2013 में हमने पैकेज्ड ड्रिंकिंग वाटर लॉन्च किया और उसी साल गुवाहाटी में फ्रेश ज्यूस की एक अतिरिक्त यूनिट शुरू की. इसकी क्षमता 1000 लीटर ज्यूस प्रति घंटे बनाने की थी.''


बाएं से दाएं : बिकास गोडुका, आरके गोडुका, प्रकाश गोडुका.


साल 2015 में, कंपनी का टर्नओवर 20 करोड़ रुपए को छू गया. तब कंपनी में 100 कर्मचारी थे.

वर्तमान में, समूह की सात कंपनियां हैं. इनके नाम हैं एसएम कोमोट्रेड प्राइवेट लिमिटेड, एसएम फ्रूट प्रॉडक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड, एसएम फ्रूट एंड बेव्रिजिज प्राइवेट लिमिटेड, एसएम कंज्यूमर्स प्राइवेट लिमिटेड, यिप्पी कंज्यूमर्स प्राइवेट लिमिटेड और ब्रह्मपुत्र फूड्स प्राइवेट लिमिटेड.

कंपनी ने कोरोना महामारी के दौरान एक मास्क यूनिट भी लगाई है और जल्द ही पर्सनल हेल्थ केयर प्रॉडक्ट्स लॉन्च करने की भी योजना है.

तीनों उद्यमियों को एक मशविरा देते हैं : कोई बिजनेस बड़ा या छोटा नहीं होता. किस्मत का रोना रोए बिना कठिन परिश्रम करते रहें क्योंकि किस्मत सिर्फ उन्हीं लोगों का साथ देती है, जो कठिन परिश्रम करते हैं.
 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • World class florist of India

    फूल खिले हैं गुलशन-गुलशन

    आज दुनिया में ‘फ़र्न्स एन पेटल्स’ जाना-माना ब्रैंड है लेकिन इसकी कहानी बिहार से शुरू होती है, जहां का एक युवा अपने पूर्वजों की ख़्याति को फिर अर्जित करना चाहता था. वो आम जीवन से संतुष्ट नहीं था, बल्कि कुछ बड़ा करना चाहता था. बिलाल हांडू बता रहे हैं यह मशहूर ब्रैंड शुरू करने वाले विकास गुटगुटिया की कहानी.
  • Match fixing story

    जोड़ी जमाने वाली जोड़ीदार

    देश में मैरिज ब्यूरो के साथ आने वाली समस्याओं को देखते हुए दिल्ली की दो सहेलियों मिशी मेहता सूद और तान्या मल्होत्रा सोंधी ने व्यक्तिगत मैट्रिमोनियल वेबसाइट मैचमी लॉन्च की. लोगों ने इसे हाथोहाथ लिया. वे अब तक करीब 100 शादियां करवा चुकी हैं. कंपनी का टर्नओवर पांच साल में 1 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है. बता रही हैं सोफिया दानिश खान
  • Udipi boy took south indian taste to north india and make fortune

    उत्तर भारत का डोसा किंग

    13 साल की उम्र में जयराम बानन घर से भागे, 18 रुपए महीने की नौकरी कर मुंबई की कैंटीन में बर्तन धोए, मेहनत के बल पर कैंटीन के मैनेजर बने, दिल्ली आकर डोसा रेस्तरां खोला और फिर कुछ सालों के कड़े परिश्रम के बाद उत्तर भारत के डोसा किंग बन गए. बिलाल हांडू आपकी मुलाक़ात करवा रहे हैं मशहूर ‘सागर रत्ना’, ‘स्वागत’ जैसी होटल चेन के संस्थापक और मालिक जयराम बानन से.
  • Anjali Agrawal's story

    कोटा सिल्क की जादूगर

    गुरुग्राम की अंजलि अग्रवाल ने राजस्थान के कोटा तक सीमित रहे कोटा डोरिया सिल्क को न केवल वैश्विक पहचान दिलाई, बल्कि इसके बुनकरों को भी काम देकर उनकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ की. आज वे घर से ही केडीएस कंपनी को 1,500 रिसेलर्स के नेटवर्क के जरिए चला रही हैं. उनके देश-दुनिया में 1 लाख से अधिक ग्राहक हैं. 25 हजार रुपए के निवेश से शुरू हुई कंपनी का टर्नओवर अब 4 करोड़ रुपए सालाना है. बता रही हैं उषा प्रसाद
  • Safai Sena story

    पर्यावरण हितैषी उद्ममी

    बिहार से काम की तलाश में आए जय ने दिल्ली की कूड़े-करकट की समस्या में कारोबारी संभावनाएं तलाशीं और 750 रुपए में साइकिल ख़रीद कर निकल गए कूड़ा-करकट और कबाड़ इकट्ठा करने. अब वो जैविक कचरे से खाद बना रहे हैं, तो प्लास्टिक को रिसाइकिल कर पर्यावरण सहेज रहे हैं. आज उनसे 12,000 लोग जुड़े हैं. वो दिल्ली के 20 फ़ीसदी कचरे का निपटान करते हैं. सोफिया दानिश खान आपको बता रही हैं सफाई सेना की सफलता का मंत्र.