पेप्सी-कोका कोला से टक्कर लेने के बजाय कोयंबटूर के युवा ने खेला कीमत का खेल, कम कीमत के सॉफ्ट ड्रिंक्स से पांच साल में 35 करोड़ रुपए का कारोबार किया
02-Apr-2025
By उषा प्रसाद
कोयंबटूर
प्रभु गांधीकुमार ने आठ साल पहले अमेरिका में अपनी अच्छी-खासी तनख्वाह 48 लाख रुपए सालाना वाली नौकरी छोड़ी और अपने पारिवारिक कारोबार की देखभाल के लिए गृहनगर कोयंबटूर लौट आए.
अपने दादा द्वारा शुरू की गई फाउंड्री में दो साल काम करने के बाद उन्होंने खुद की फाउंड्री स्थापित कर उच्च प्रतिमान बनाए. जब इस नए उद्यम ने भी उन्हें पर्याप्त चुनौती नहीं दी, तो वे नए अवसरों की तलाश करने लगे.
प्रभु गांधीकुमार ने 2016 में पार्टनरशिप फर्म के रूप में टीएबीपी बेवरेजेज एंड स्नैक्स प्राइवेट लिमिटेड की शुरुआत की. पहले-पहल उन्होंने मैंगो और एपल जूस रखे. (फोटो: विशेष व्यवस्था से)
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31 साल की उम्र में प्रभु ने फ्रूट जूस और सॉफ्ट ड्रिंक्स बिजनेस में प्रवेश किया. यह एक ऐसा क्षेत्र था, जिसमें पेप्सी और कोका कोला जैसे बड़े दिग्गजों का बोलबाला है.
हालांकि एक रणनीति कदम के उन्होंने दिग्गजों से मुकाबला करने के बजाय कम कीमत वाले उत्पादों के साथ पिरामिड के निचले हिस्से वाले उपभोक्ताओं को लक्ष्य किया और महज पांच सालों में 35 करोड़ रुपए का बिजनेस साम्राज्य बना लिया.
प्रभु ने 2016 की शुरुआत में सबसे पहले पत्नी बृंदा विजयकुमार के साथ मिलकर तन्वी फूड्स नाम से पार्टनरशिप फर्म स्थापित की और मैंगो व एपल जूस के साथ शुरुआत की.
प्रभु कहते हैं, “फरवरी और मार्च में 200 मिलीलीटर की प्लास्टिक बोतलों में 10 रुपए में बेचे गए मैंगो और एपल जूस ने बहुत अच्छा कारोबार किया. हमने जबर्दस्त बिजनेस किया. मुझे स्पष्ट था कि यही वह बाजार है, जिसकी जरूरत की पूर्ति मैं करूंगा.”
दिलचस्प बात यह थी कि प्रभु ने उस कीमत पर भी मुनाफा कमाया.
वे कहते हैं, “हमें उस बिंदु पर 24% से 25% का कुल मार्जिन हो रहा था. चूंकि तब मैं अकेला ही बिजनेस संभाल रहा था इसलिए परिवहन और अन्य खर्चों के बाद शुद्ध मुनाफा 10% से 11% के बीच था.”

प्रभु की कंपनी में अब 60 कर्मचारी हैं. वे कहते हैं, “हम पिछले पांच साल से इसी मूल्य पर बिजनेस कर रहे हैं, क्योंकि हम बड़ी मात्रा में उत्पादन कर रहे हैं.”
पहले साल 40 लाख रुपए के टर्नओवर के साथ अच्छा बिजनेस हुआ और तबसे इसका राजस्व सालाना रूप से 3 गुना बढ़ रहा है.
प्रभु कहते हैं, “सौभाग्य से, हमने कभी पेप्सी या कोका कोला जैसी बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों से मुकाबले के बारे में नहीं सोचा. हमने तय किया कि वे जिस जगह हैं, वहां कभी प्रतिस्पर्धा नहीं करेंगे. हमारा बाजार ग्रामीण क्षेत्र में है.”
जब वितरकों ने कार्बोनेटेड पेय की मांग की तो उन्होंने 2017 में नीबू-आधारित और संतरा-आधारित कार्बोनेटेड फ्रूट ड्रिंक्स बनाने शुरू कर दिए.
उत्पादों की मांग बढ़ी और प्रभु ने महसूस किया कि उन्हें बिजनेस बढ़ाने के लिए अधिक पूंजी की आवश्यकता है. इस पर 2018 में, उन्होंने अपने दोस्त अरुण मुखर्जी की सलाह पर टीएबीपी बेवरेजेज एंड स्नैक्स प्राइवेट लिमिटेड को शामिल कर लिया.
उन्होंने तन्वी फूड्स का टीएबीपी (जो उनकी बेटी तन्वी, पत्नी बृंदा और खुद के नाम प्रभु का संक्षिप्त रूप है) के साथ विलय कर लिया.
शुरुआत में, अपने दोस्तों मुखर्जी और अन्य एंजेल निवेशकों के जरिए कंपनी के 26 करोड़ रुपए के मूल्यांकन पर 2.5 करोड़ रुपए जुटाए.

प्रभु, अपनी पत्नी बृंदा के साथ. बृंदा टीएबीपी की निदेशक भी हैं. |
प्रभु कहते हैं, “टीएबीपी ने दो साल तक बहुत अच्छा प्रदर्शन किया, लेकिन 2020 के मार्च से मई तक कोविड-19 के कारण बिक्री में गिरावट आई. इसके बावजूद, हमने 2020-21 में करीब 37% की वृद्धि की और टर्नओवर करीब 35 करोड़ रुपए रहा.”
“इस वित्त वर्ष में भी, पहली तिमाही में बिलकुल बिजनेस नहीं रहा. लेकिन बचे साल के लिए उम्मीद बरकरार है. संभावनाएं अच्छी हैं क्योंकि वितरक नेटवर्क के साथ हमने जो विश्वास कायम किया है, वह हमारे लगातार विकास में मदद कर रहा है.”
2019 में, टीएबीपी ने स्कूली छात्रों को लक्ष्य बनाकर स्नैक्स 91 ब्रांड के तहत 5 रुपए के स्नैक्स की रेंज भी पेश की.
टीएबीपी लगातार अनुसंधान एवं विकास भी कर रही है. कंपनी ने पिछले साल कोविड लॉकडाउन के दौरान 'मिलेट माइट' ब्रांड के तहत ब्रेकफास्ट सीरियल भी बनाया.
भारत में उपलब्ध बाजरे की सात किस्मों का इस्तेमाल करते हुए उन्होंने फ्लेक्स को तीन किस्मों में पेश किया है - सुपर बेरी के साथ, बहुत से नट्स के साथ और एक अन्य निर्जलित फलों के साथ.
ब्रेकफास्ट सीरियल्स को स्टोर के साथ-साथ वेबसाइट के जरिए डी2सी मॉडल में ऑनलाइन बेचा जाता है.
आज, टीएबीपी के तहत उत्पादों की श्रेणी में एपल, मैंगो व ग्रैप्स के स्वाद में फ्रूट जूस और गुलप व प्लंज ब्रांड नाम के तहत 10 रुपए वाले नीबू और संतरे के स्वाद में कार्बोनेटेड पेय शामिल हैं.
स्नैक्स आइटम जैसे आलू के चिप्स, क्रिस्पी स्टिक्स, कॉर्न बॉल्स, चोको फ्लैक्स और फ्राइम्स स्नैक्स 91 ब्रांड और तन्वी के तहत 5 रुपए में बेचे जाते हैं.
उनके उत्पादों की श्रेणी में थ्रस्टी आउल नाम से गैर-अल्कोहल वाली बियर भी है. इसकी कीमत 50 रुपए है और यह रेस्तरां में बेची जाती है.
प्रभु कहते हैं, “एसेट-लाइट मॉडल के बाद, हम बेवरेजेस का उत्पादन बाहर करवाने लगे हैं. इससे हम अधिक पूंजी की जरूरत के बगैर तेजी से आगे बढ़ने में कामयाब हुए.”
ड्रिंक्स का मुख्य काॅन्सन्ट्रैट कोयंबटूर में कंपनी की 4,000 वर्ग फुट निर्माण इकाई में बनाया जाता है. अंतिम उत्पाद और बॉटलिंग थर्ड-पार्टी यूनिट (टीपीयू) कोयंबटूर, कृष्णागिरी, धर्मपुरी, चेन्नई, पुडुचेरी, मैसूर और औरंगाबाद में होती है.
कंपनी मैंगो पल्प कृष्णागिरी और एपल पल्प चेन्नई में हिमाचल प्रदेश मार्केटिंग कॉरपोरेशन के डिपो से खरीदती है.
टीएबीपी उत्पाद वर्तमान में तमिलनाडु, ओडिशा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना सहित छह राज्यों के स्टोर में उपलब्ध हैं.
टीएबीपी जूस और सॉफ्ट ड्रिंक्स ग्रामीण बाजार में उपलब्ध हैं. |
प्रभु ने 2006 में पीएसजी कॉलेज ऑफ टेक्नोलॉजी, कोयंबटूर से मैकेनिकल सैंडविच कार्यक्रम के तहत बीई किया. इसके बाद टीसीएस के कैंपस सिलेक्शन के जरिए चेन्नई के करापक्कम में रिटेल कंसल्टिंग डोमेन में काम किया.
दो साल बाद उनका प्रमोशन हुआ और उन्हें यूएस क्लाइंट के लिए पोर्टफोलियो मैनेजर के रूप में अमेरिका भेज दिया गया.
2012 में वे कोयंबटूर लौट आए. उनके पिता चाहते थे कि वे धातु की ढलाई के निर्माण का पारिवारिक व्यवसाय संभालें. प्रभु ने जब अमेरिका छोड़ा, तब उन्हें 4 लाख रुपए मासिक वेतन मिल रहा था.
उसी साल उन्होंने आईटी इंजीनियर बृंदा विजयकुमार से शादी की.
प्रभु के दादा पीआर दोराईस्वामी ने 1976 में गांधीकुमार फाउंड्री की स्थापना की थी. उनके पिता गांधीकुमार दोराईस्वामी ने इस बिजनेस को जारी रखा.
“परामर्श देने वाली पृष्ठभूमि से आने के कारण मेरे लिए दिन में 15-16 घंटे काम करना मेरे लिए सामान्य था. लेकिन गृहनगर लौटना मेरे लिए शांत चित्त बैठने जैसा था. चूंकि मेरे पिता पहले से बिजनेस अच्छी तरह जमा चुके थे, इसलिए मेरे पास करने के लिए बहुत कुछ नहीं था.”
प्रभु ने दिसंबर 2013 में अपनी खुद की फाउंड्री 'नियोकास्ट' स्थापित की. बिजनेस अच्छा चलने लगा, इसलिए यह उनके लिए उबाऊ हो गया. तभी उन्होंने कुछ अलग करने का फैसला किया और भारत के अन्य उभरते उद्योगों पर ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया, जिसमें पैकेज्ड फूड इंडस्ट्री भी शामिल है.
ग्रामीण क्षेत्र में स्थित परिवारिक मंदिर के दर्शन के दौरान, उन्हें सॉफ्ट ड्रिंक पीने का मन हुआ और स्थानीय दुकानों पर इसे तलाशा. दुकानदार ने कहा कि स्थानीय लोग 25 या 30 रुपए के ड्रिंक नहीं खरीदते. इसलिए उन्होंने कभी शहरों में लोकप्रिय बड़े ब्रांड नहीं बेचे.
उसी समय प्रभु के दिमाग में 10 रुपए के फ्रूट जूस पैक या कार्बोनेटेड ड्रिंक का आइडिया आया.
वे कहते हैं, “मैंने सोचा कि यह एक बहुत बड़ा बाजार होने जा रहा है क्योंकि एक दिन में 300 रुपए से कम कमाने वालों की संख्या अमेरिका की आबादी के जितनी बड़ी हैं.”
बृंदा ने प्रभु को ऐसे बिजनेस में खासा समर्थन दिया है, जिसमें कुछ ही भारतीय कंपनियों ने कारोबार करने का साहस किया है. |
कोयंबटूर में स्थित तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय के पोस्ट प्रोसेसिंग टेक्नोलॉजी सेंटर की टीम के मार्गदर्शन और समर्थन के साथ प्रभु ने वहां की छोटी प्रयोगशाला में फ्रूट ड्रिंक्स के साथ प्रयोग करना शुरू किया था.
उनका पहला उत्पाद पपीते का जूस था. सितंबर 2015 में प्रभु ने यूनिवर्सिटी लैब में करीब 50,000 रुपए खर्च कर 1000 लीटर पपीते का जूस तैयार किया. इस जूस को 200 मिलीलीटर की बोतलों में भरकर बाजार में उतारा गया, लेकिन एक भी बोतल बेचने में असफल रहे.
वे कहते हैं, “ड्रिंक सेहतमंद और मल्टीविटामिन से भरपूर था, लेकिन मुझे प्रतिक्रिया मिली कि पपीता शरीर में गर्मी भड़काता है और महिलाओं को इससे पूरी तरह बचना चाहिए.”
वितरकों की प्रतिक्रिया के आधार पर, प्रभु ने मैंगो जूस के साथ आगे बढ़ने का फैसला किया, जो सेब के बाद सबसे पसंदीदा जूस था.
उन्होंने बैंक से करीब 40 लाख रुपए का कर्ज लिया. अपनी कुछ बचत निवेश की और कोयंबटूर में अपने ससुर की भूमि पर छोटा मैन्यूफैक्चरिंग प्लांट शुरू कर दिया.
आईटी में बीटेक कर चुकी उनकी पत्नी बृंदा शादी से पहले बजाज आलियांज में ऐक्चूएरी के रूप में काम करती थीं.
वे तन्वी फूड्स की स्थापना में प्रभु के साथ जुड़ीं और बिजनेस चलाने में प्रमुख स्तंभ हैं. वे कंपनी के तकनीकी पहलुओं का भी ध्यान रखती हैं. वे टीएबीपी की निदेशक भी हैं.
प्रभु की मां डॉ. पी. लक्ष्मी एक वकील थीं और कोयंबटूर के सरकारी लॉ कॉलेज के प्रिंसिपल पद से सेवानिवृत्त हुईं. प्रभु की एक छोटी बहन इमाया है, जो कोयंबटूर में ही बस गई हैं.
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