Milky Mist

Tuesday, 1 July 2025

कभी घर-घर बूटीक आइटम बेचने से भी झिझकती थीं, वे अब 487 करोड़ रुपए के बिजनेस एंपायर की मालकिन

01-Jul-2025 By सोफिया दानिश खान
नई दिल्ली

Posted 22 Jan 2021

दिल्ली की एक शर्मीली किशोरी, जिसे उसकी मां को अपने बूटीक से सामान लेकर घर-घर जाकर बेचने के लिए प्रेरित करना पड़ता था, वही भावना जुनेजा बड़ी होकर एक अति महत्वाकांक्षी उद्यमी बन गई. उन्होंने 20 से भी कम वर्षों में 65 मिलियन डॉलर (करीब 487.5 करोड़ रुपए) का बिजनेस एंपायर खड़ा कर लिया.

45 वर्षीय भावना ने अपनी पहली कंपनी 17 वर्ष की उम्र में बनाई थी और वे एक अमेरिकी कंपनी एसएस ड्वेक एंड संस के लिए भारत में खरीदी करने वाली एजेंट बन गई थीं.

बाद में, 21 वर्ष की उम्र में शादी कर वे अमेरिका चली गईं. वहां एक आईटी स्टार्टअप में रिसेप्शनिस्ट के रूप में नौकरी की. थोड़े ही समय में उस स्टार्टअप के लिए लाखों रुपए की बिक्री बढ़ाकर खुद काे साबित किया. इसके बाद उस कंपनी की मालकिन बन गईं.
भावना जुनेजा ने अपनी पहली कंपनी 17 वर्ष की उम्र में शुरू की थी. इसके बाद वे सीरियल एंटरप्रेन्योर बन गईं. (सभी फोटो : विशेष व्यवस्था से)

वर्तमान में उनकी कई कंपनियां हैं. पहली, इन्फिनिटी, यह एक फार्मास्यूटिकल और लाइफ साइंसेस कंपनी है. दूसरी, वैनाटोर, यह एक एआई आधारित आरपीओ (रिक्रूटमेंट प्रोसेस आउटसोर्सिंग) फर्म है. तीसरी, जम्मू, यह एक फैशन रिटेल आउटलेट है और चौथी, एमपावर्ड, यह एक असेट मैनेजमेंट कंपनी है, जिसे जून 2020 में लॉन्च किया गया.

एंटरप्रेन्योरशिप भले ही उनके जीन में हो सकती है, लेकिन उनकी मां ने उन्हें बेचने की कला में माहिर बनाया और उनमें सपनों का पीछा करने का आत्मविश्वास भरा.

वे याद करती हैं, "मेरे पिता का लंदन में कैटरिंग बिजनेस था. वहां उन्होंने समोसे की दुकान खोली और 'समोसा किंग' कहलाने लगे.''

जब वे महज 13 साल की थीं, तब उनके माता-पिता अलग हो गए थे. इसका उन पर बहुत असर हुआ. तीन बच्चों में दूसरे नंबर पर जन्मी भावना संकोची स्वभाव की और अलग-थलग होकर रह गई. वे कहती हैं, "लेकिन मां ने मुझे प्रोत्साहित किया और यह सुनिश्चित किया कि मैं घर से बाहर निकलूं और लोगों से मिलूं.''

भावना कहती हैं, "हम नई दिल्ली की डिफेंस कॉलोनी के रहवासी क्षेत्र में रहते थे. वे मुझे वहां क्रिस्टल, सजावटी सामान और बूटीक की ऐसी ही चीजें बेचने के लिए कॉलोनी में भेजा करती थीं.''

"उन्होंने मुझे शुरुआत में सिखाया था, 'यदि लोग ना कहें, तो तुम्हें अधिक कोशिश करने और स्थिति से अच्छी तरह संभालने की जरूरत है.' यदि कोई घर किसी प्रॉडक्ट को खरीदने से इनकार कर देता तो वे मुझे उसी घर में दूसरा सामान लेकर भेजती. और अंतत: मेरा सामान बिक जाता.''

भावना के लिए यह जीवन की सीख थी. उन्होंने लोगों से मिलने-जुलने में रुकावट बन रही अपनी झिझक को जल्द किनारे कर दिया और 17 वर्ष की उम्र में खुद की कंपनी शुरू की.

उन्होंने हायर सेकंडरी की पढ़ाई मातृ देई स्कूल से की. 1994 से 97 के बीच दिल्ली यूनिवर्सिटी से बीए की डिग्री ली. हालांकि खर्च बचाने के लिए उन्होंने यह डिग्री कॉरस्पॉन्डस से की.

भावना एमपावर्ड में अपने बिजनेस पार्टनर और सह-संस्थापक सुदीप सिंह के साथ.

1995 में, उन्होंने स्पेक्ट्रा शेड्स इंटरनेशनल की शुरुआत की. यह एक ट्रेडिंग फर्म थी, जो घर के सजावटी सामान बेचती थी. उन्होंने इंडिया ट्रेड प्रोमोटर्स ऑर्गनाइजेशन से विदेशी खरीदारों की सूची हासिल की. इससे वे न्यूयॉर्क की एक कंपनी एसएस ड्वेक एंड सन्स के संपर्क में आईं और उनके साथ डील करने में सफल रहीं.

भावना से मिलने भारत आए कंपनी के प्रतिनिधि ने उन्हें भारत के लिए अपना 'बाइंग एजेंट' बना लिया और खरीदी की प्रक्रिया शुरू करने के लिए एडवांस कमीशन के रूप में 3000 डॉलर का चेक दिया.

भावना कहती हैं, "अगले 4 सालों तक कंपनी के एजेंट के रूप में मैंने देश के कई भागों की यात्रा की. और जिस तरह जीवन चल रहा था, उससे मैं बहुत खुश थी.''

21 वर्ष की उम्र में विशाल खुराना से उनकी शादी हो गई और दोनों अमेरिका चले गए.

वे स्पष्ट करती हैं, "मेरी मां तलाकशुदा थीं और वे जानती थीं कि भारतीय समाज ऐसे परिवारों के प्रति कितना आलोचक रहता है. इसलिए मुझे जल्दी शादी के लिए तैयार होना पड़ा.''

अमेरिका में उन्होंने एक आईटी स्टार्टअप में रिसेप्शनिस्ट के रूप में नौकरी शुरू की. भावना कहती हैं, "चूंकि बिक्री से मेरा दिली जुड़ाव था, इसलिए मैंने उन्हें मनाया कि मुझे बिक्री में हाथ आजमाने दें. मुझे पहला ऑर्डर कैटरपिलर से मिला. एक साल में मैंने कंपनी का रेवेन्यू 0 से 2 मिलियन डॉलर पर पहुंचा दिया.'' आगे चलकर उन्होंने उस कंपनी को खरीदा और बाद में बेच दिया.

वर्ष 2004 में उनके पति भारत लौट आए, लेकिन भावना अमेरिका में ही अपनी बेटी और बेटे के साथ रुक गईं.

साल 2005 उनके लिए सबसे पीड़ादायी रहा. उनके सहारे की मजबूत स्तंभ उनकी मां का कैंसर के चलते देहावसान हो गया. और वर्ष 2009 में वे अपने पति से अलग हो गईं.

लेकिन कोई भी बाधा उनका कामयाबी को नहीं रोक पाई.

साल 2013 में उन्होंने इन्फिनिटी की स्थापना की. यह एक फार्मास्यूटिकल और लाइफ साइंसेस कंपनी थी, जो बायोटेक, फार्मास्यूटिकल और मेडिकल डिवाइस कंपनियों को दुनियाभर में आईटी सर्विसेज उपलब्ध कराती थी. कंपनी का कार्यक्षेत्र यूके, कनाडा और भारत था.

यह कंपनी उन्होंने अपने फंड से स्थापित की, लेकिन बाद में अमेरिकी निवेशक शेली निचानी ने इसमें निवेश किया. वर्तमान में इन्फिनिटी में 700 से अधिक कर्मचारी काम करते हैं. कंपनी का सालाना सेल्स रेवेन्यू 35 मिलियन डॉलर है.
अपने बेटे और बेटी के साथ भावना.

साल 2018 में भावना ने वैनाटोर की शुरुआत की. यह एक एआई आधारित आरपीओ कंपनी थी. इसका मुख्यालय अमेरिका में है और इसका जम्मू नामक फैशन रिटेल आउटलेट नोएडा में है.

साल 2019 में भावना की मुलाकात सुदीप सिंह से हुई. तब वे गोवर्क में सीईओ थे. दोनों ने बातचीत की और मिलकर जून 2020 में एमपॉवर्ड कंपनी की स्थापना की. यह एक असेट मैनेजमेंट कंपनी है.

यह कंपनी मल्टीनेशनल कंपनियों के लिए इंटरनेट ऑफ थिंक्स (आईओटी) से लैस ऑफिस बनाने का काम करती है और तकनीक को शामिल कर वर्कस्पेस का अधिक से अधिक इस्तेमाल सुनिश्चित करती है.

भावना कहती हैं, "गुड़गांव, नोएडा और हैदराबाद में हमारे 3 लाख वर्ग फीट के तीन प्रोजेक्ट चल रहे हैं. इसलिए 2020 अच्छा रहा है. भविष्य में अपनी जड़ों की ओर लौटना चाहती हूं. लड़कियों के लिए अधिक से अधिक स्कूल खोलकर और उन्हें शिक्षित दिलाकर अधिक से अधिक महिलाओं को काम से जोड़ना चाहती हूं.''

 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • Chai Sutta Bar Story

    चाय का नया जायका 'चाय सुट्टा बार'

    'चाय सुट्टा बार' नाम आज हर युवा की जुबा पर है. दिलचस्प बात यह है कि इसकी सफलता का श्रेय भी दो युवाओं को जाता है. नए कॉन्सेप्ट पर शुरू की गई चाय की यह दुकान देश के 70 से अधिक शहरों में 145 आउटलेट में फैल गई है. 3 लाख रुपए से शुरू किया कारोबार 5 साल में 100 करोड़ रुपए का हो चुका है. बता रही हैं सोफिया दानिश खान
  • Bharatpur Amar Singh story

    इनके लिए पेड़ पर उगते हैं ‘पैसे’

    साल 1995 की एक सुबह अमर सिंह का ध्यान सड़क पर गिरे अख़बार के टुकड़े पर गया. इसमें एक लेख में आंवले का ज़िक्र था. आज आंवले की खेती कर अमर सिंह साल के 26 लाख रुपए तक कमा रहे हैं. राजस्थान के भरतपुर से पढ़िए खेती से विमुख हो चुके किसान के खेती की ओर लौटने की प्रेरणादायी कहानी.
  • Agnelorajesh Athaide story

    मुंबई के रियल हीरो

    गरीब परिवार में जन्मे एग्नेलोराजेश को परिस्थितिवश मुंबई की चॉल और मालवानी जैसे बदनाम इलाके में रहना पड़ा. बारिश में कई रातें उन्होंने टपकती छत के नीचे भीगते हुए गुजारीं. इन्हीं परिस्थितियाें ने उनके भीतर का एक उद्यमी पैदा किया. सफलता की सीढ़ियां चढ़ते-चढ़ते वे आज सफल बिल्डर और मोटिवेशनल स्पीकर हैं. बता रहे हैं गुरविंदर सिंह
  • Success story of helmet manufacturer

    ‘हेलमेट मैन’ का संघर्ष

    1947 के बंटवारे में घर बार खो चुके सुभाष कपूर के परिवार ने हिम्मत नहीं हारी और भारत में दोबारा ज़िंदगी शुरू की. सुभाष ने कपड़े की थैलियां सिलीं, ऑयल फ़िल्टर बनाए और फिर हेलमेट का निर्माण शुरू किया. नई दिल्ली से पार्थो बर्मन सुना रहे हैं भारत के ‘हेलमेट मैन’ की कहानी.
  • IIM topper success story

    आईआईएम टॉपर बना किसानों का रखवाला

    पटना में जी सिंह मिला रहे हैं आईआईएम टॉपर कौशलेंद्र से, जिन्होंने किसानों के साथ काम किया और पांच करोड़ के सब्ज़ी के कारोबार में धाक जमाई.