युवा जोड़ी ने मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़ 5 लाख रुपए के निवेश से वड़ा पाव की दुकान शुरू की, पांच साल में टर्नओवर 20 करोड़ रुपए पहुंचा
20-May-2025
By बिलाल खान
मुंबई
दो युवा कॉलेज में मिले और एक-दूसरे से प्यार कर बैठे. दोनों ने 2016 में मुंबई के संपन्न कमला मिल्स इलाके में 12 वर्ग फुट की छोटी सी जगह में 5 लाख रुपए के निवेश से वड़ा पाव और पाव भाजी की दुकान शुरू की.
पांच साल बाद 29 साल के अक्षय प्रमोद राणे और 25 साल की धनश्री घरत जुगाड़ी अड्डा के मालिक हो गए हैं. इसका टर्नओवर 20 करोड़ रुपए है. 34 आउटलेट की शृंखला है, जो चटकारेदार स्वाद वाले फ्यूजन वड़ा पाव की रेंज के लिए जाने जाते हैं.
महाराष्ट्र के लोकप्रिय नाश्ते के जायकेदार रूपांतरण बनाते हुए दोनों ने त्वरित विस्तार के लिए फ्रैंचाइजी मॉडल को चुना. 34 आउटलेट्स में से केवल दो इनकी कंपनी के स्वामित्व वाले हैं. बाकी फ्रैंचाइजी के जरिए खोले गए हैं.
अपने बिजनेस मॉडल के बारे में अक्षय बताते हैं, “हम एक फ्रैंचाइजी के लिए 10 से 15 लाख रुपए लेते हैं. फ्रैंचाइजी के मुनाफे में से 5 फीसदी हिस्सा लेते हैं.”
अक्षय और धनश्री दोनों इस बिजनेस को मिलकर संभालते हैं, जो प्रोप्राइटरशिप के रूप में पंजीकृत है.
मध्यम वर्गीय परिवारों से ताल्लुक रखने वाले दोनों युवा आज सफलता के फल का आनंद ले रहे हैं और मर्सिडीज सी 200 कार में सफर करते हैं. दोनों ने यह कार पिछले साल ही खरीदी है.
अक्षय के पिता बीपीसीएल में सीनियर इंजीनियर के पद पर थे. धनश्री के पिता अग्निशमन विभाग में कार्यरत हैं. दोनों की मां गृहिणी हैं.
अक्षय ने सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में विप्रो की नौकरी छोड़कर 2016 में अपना पहला आउटलेट शुरू किया. तब उनके पास सिर्फ दो कर्मचारी थे. एक वड़ा पाव बनाता था और दूसरा ग्राहकों को परोसता था.

शुरुआत में, दुकान में सामान्य वड़ा पाव और पाव भाजी परोसी जाती थी, जो आमतौर पर मुंबई में अन्य जगह भी आसानी से मिल जाता है. फिर अक्षय और धनश्री ने प्रयोग शुरू किए. वे वड़ा पाव के विभिन्न रूप लेकर आए, जो ग्राहकों के बीच जल्द बड़े सफल रहे.
अक्षय ने अपने पहले नवाचार का नाम "दिल खुश' वड़ा पाव रखा. यह लाल सुखा चटनी, शेजवान, कुछ मसालों और तवे पर मक्खन में सेंके गए पाव से बनाए जाते थे.
अक्षय कहते हैं, “मैं दुकान पर यह डिश बनाता था और खुद ही चखता था. जब भी हमारे ग्राहक मुझे इसे खाते देखते थे, तो वे भी इसका ऑर्डर देते थे. जल्द ही, दिल खुश कई लोगों का पसंदीदा वड़ा पाव बन गया. हमने और अधिक शोध किया और पहले चरण में फ्यूजन वड़ा पाव के लगभग 40 विभिन्न फ्लेवर पेश किए. हालांकि अब हम केवल 16 रूप ही पेश कर रहे हैं.”
अक्षय ने कक्षा 10वीं के बाद आईटी में डिप्लोमा शुरू किया था, लेकिन बीच में छोड़ दिया हो, फिर कुछ वर्ष तक इवेंट मैनेजमेंट फर्म के साथ काम करते रहे. इसके बाद फिर डिप्लोमा कोर्स से जुड़े और बाद में इंजीनियरिंग की. उन्होंने बिजनेस शुरू किया, तो कई लोगों को आश्चर्य लगा.

अपनी मर्सिडीज सी 200 कार के सामने अक्षय और धनश्री. |
विद्यालंकार स्कूल ऑफ इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, मुंबई में धनश्री से मिलने के बाद अक्षय के जीवन में अच्छा मोड़ आया. अक्षय ने इंजीनियरिंग यहीं से की.
अक्षय पढ़ाई में औसत थे. धनश्री क्लास में टॉपर थीं. अक्षय कहते हैं, “जब मैंने धनश्री को देखा, तो मुझे उनसे प्यार हो गया. उन्हें अपने जीवन में लाने के लिए मुझे अच्छी पढ़ाई करनी थी. अंतत:, मैं अपनी कड़ी मेहनत से फाइनल परीक्षा में टॉपर्स में से एक रहा.”
अक्षय को कैंपस प्लेसमेंट के जरिए विप्रो में नौकरी मिली, लेकिन जल्द ही उन्हें अहसास हो गया कि 9 से 5 की नौकरी के लिए वे नहीं हैं.
अक्षय कहते हैं, “मैं कुछ बड़ा और अनोखा करना चाहता था. मेरी नौकरी अच्छी चल रही थी. मैं कंपनी के सबसे अच्छे उत्पादक कर्मचारियों में से एक था. लेकिन फिर भी नौकरी मुझे प्रेरित नहीं कर पाई.”
दोनों ने इस आधार पर बिजनेस शुरू करने का फैसला किया कि अक्षय नौकरी छोड़ देंगे और बिजनेस पर ध्यान केंद्रित करेंगे, जबकि धनश्री बिजनेस जमने तक नौकरी करती रहेंगी.
अक्षय ने वड़ा पाव की दुकान में अपना मन और आत्मा लगा दी. फ्यूजन वड़ा पाव पेश करने के बाद उनके बिजनेस में तूूफानी तेजी आई और उन्होंने मुंबई, अहमदाबाद, ठाणे, राजकोट और मोरबी में फ्रैंचाइजी आउटलेट खोले.
धनश्री कहती हैं, “एक बार जब हमें यकीन हो गया कि बिजनेस चल निकला है, तो मैंने 5.5 लाख रुपए सालाना वाली अपनी नौकरी छोड़ दी.” धनश्री उस समय टीसीएस में सिस्टम इंजीनियर के रूप में काम कर रही थीं.
फ्रैंचाइजी मिलाकर आज करीब 1.5 करोड़ रुपए का मासिक राजस्व इकट्ठा कर लेते हैं. उनके दो आउटलेट 3 करोड़ रुपए सालाना का कारोबार करते हैं. उनके आउटलेट पर वड़ा पाव की कीमत 20 रुपए से लेकर 50 रुपए तक है.

जुगाड़ी अड्डा के अब महाराष्ट्र और गुजरात के विभिन्न हिस्सों में 34 आउटलेट हैं. |
अक्षय कहते हैं, “वड़ा पाव की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए हम अपने मुंबई स्थित वेयरहाउस से सभी आउटलेट्स को कच्चा माल सप्लाई करते हैं.”
“हमारे वड़ा और पाव दोनों बाजार में मिलने वाले अन्य वड़ा पाव से बड़े होते हैं. इसलिए हमने अपना स्लोगन "भाई का वड़ा सबसे बड़ा' रखा.”
इस बीच, अक्षय और धनश्री अपना पूरा समय अपने बिजनेस को देने लगे हैं. ऐसे में वे पार्टी करने और साथ-साथ घूमने का शौक पूरा नहीं कर पा रहे हैं.
हालांकि उन्हें अपनी व्यस्तता का मलाल नहीं है. धनश्री कहती हैं, “हम खुश हैं कि हम ज्यादातर समय साथ रहते हैं क्योंकि हम एक ही बिजनेस में हैं.”
“इस बिजनेस को शुरू करने से पहले हम सप्ताह के अंत में पार्टी करते थे, फिल्में देखते और छुट्टियों पर जाते थे. अब हम देर रात तक कई विचारों पर चर्चा करने और बिजनेस के लिए नए कौशल सीखने पर बात करते हैं.
“हम अक्सर केवल 3-4 घंटे सोते हैं. हमारा मानना है कि कड़ी मेहनत के बिना हम किसी भी सपने को सफल नहीं बना सकते.”
कोविड-19 महामारी खत्म होने के बाद दोनों जल्द शादी करने और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ब्रांड का विस्तार करने की योजना बना रहे हैं. धनश्री कहती हैं, “हमारे पास दुनिया के अन्य हिस्सों से भी फ्रैंचाइजी के लिए पूछताछ आ रही है.”
आप इन्हें भी पसंद करेंगे
-
बेजोड़ बिरयानी के बादशाह
अवधी बिरयानी खाने के शौकीन इसका विशेष जायका जानते हैं. कोलकाता के बैरकपुर के दादा बाउदी रेस्तरां पर लोगों को यही अनूठा स्वाद मिला. तीन किलोग्राम मटन बिरयानी रोज से शुरू हुआ सफर 700 किलोग्राम बिरयानी रोज बनाने तक पहुंच चुका है. संजीब साहा और राजीब साहा का 5 हजार रुपए का शुरुआती निवेश 15 करोड़ रुपए के टर्नओवर तक पहुंच गया है. बता रहे हैं पार्थो बर्मन -
इन्हाेंने किराना दुकानों की कायापलट दी
उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के आईटी ग्रैजुएट वैभव अग्रवाल को अपने पिता की किराना दुकान को बड़े स्टोर की तर्ज पर बदलने से बिजनेस आइडिया मिला. वे अब तक 12 शहरों की 50 दुकानों को आधुनिक बना चुके हैं. महज ढाई लाख रुपए के निवेश से शुरू हुई कंपनी ने दो साल में ही एक करोड़ रुपए का टर्नओवर छू लिया है. बता रही हैं सोफिया दानिश खान. -
बेंगलुरु का ‘कॉफ़ी किंग’
टाटा कॉफ़ी से नया ऑर्डर पाने के लिए यूएस महेंदर लगातार कंपनी के मार्केटिंग मैनेजर से मिलने की कोशिश कर रहे थे. एक दिन मैनेजर ने उन्हें धक्के मारकर निकलवा दिया. लेकिन महेंदर अगले दिन फिर दफ़्तर के बाहर खड़े हो गए. आखिर मैनेजर ने उन्हें एक मौक़ा दिया. यह है कभी हार न मानने वाले हट्टी कापी के संस्थापक यूएस महेंदर की कहानी. बता रही हैं बेंगलुरु से उषा प्रसाद. -
कागज के फूल बने करेंसी
बेंगलुरु के 53 वर्षीय हरीश क्लोजपेट और उनकी पत्नी रश्मि ने बिजनेस के लिए बचपन में रंग-बिरंगे कागज से बनाए जाने वाले फूलों को चुना. उनके बनाए ये फूल और अन्य क्राफ्ट आयटम भारत सहित दुनियाभर में बेचे जा रहे हैं. यह बिजनेस आज सालाना 64 करोड़ रुपए टर्नओवर वाला है. -
शून्य से शिखर की ओर
सिलचर (असम) के राजन नाथ आर्थिक परिस्थिति के चलते मेडिकल की पढ़ाई कर डॉक्टर तो नहीं कर पाए, लेकिन अपने यूट्यूब चैनल और वेबसाइट के जरिए सैकड़ों डाक कर्मचारियों को वरिष्ठ पद जरूर दिला रहे हैं. उनके बनाए यूट्यूब चैनल ‘ईपोस्टल नेटवर्क' और वेबसाइट ‘ईपोस्टल डॉट इन' का लाभ हजारों लोग ले रहे हैं. उनका चैनल भारत में डाक कर्मचारियों के लिए पहला ऑनलाइन कोचिंग संस्थान है. वे अपने इस स्टार्ट-अप को देश के बड़े ऑनलाइन एजुकेशन ब्रांड के बराबरी पर लाना चाहते हैं. बता रही हैं उषा प्रसाद