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Sunday, 28 April 2024

बचपन के खेल को बनाया बिजनेस, सालाना टर्नओवर है 64 करोड़ रुपए

28-Apr-2024 By उषा प्रसाद
बेंगलुरु

Posted 03 Jun 2019

क्‍या आपको आनंद के वो पल याद हैं, जब आपने स्‍कूल के दिनों में रंग-बिरंगे कागज से खूबसूरत फूल बनाए थे?

बेंगलुरु के 53 वर्षीय हरीश क्‍लोजपेट और उनकी पत्‍नी 52 वर्षीय रश्मि क्‍लोजपेट ने बचपन की साधारण सी गति‍विधि को 64 करोड़ रुपए टर्नओवर वाले कारोबार में बदल दिया है. दोनों करीब 2000 महिलाओं को रोजगार देकर उनके जीवन में खुशबू फैला रहे हैं और दुनियाभर के लोगों को मजेदार गतिविधियां उपलब्‍ध करवा रहे हैं.

हरीश और रश्मि क्‍लोजपेट ने बेंगलुरु में कागज के फूल बनाने की यूनिट वर्ष 2004 में शुरू की थी, जो अब 64 करोड़ रुपए के टर्नओवर वाले बिजनेस में तब्‍दील हो चुकी है. (सभी फोटो : विशेष व्‍यवस्‍था से)

हरीश और रश्मि अपनी दो कंपनियों के जरिये आर्ट एंड क्राफ्ट उत्‍पादों का निर्माण, बिक्री और एक्‍सपोर्ट करते हैं. ये कंपनियां हैं- एईसी ऑफशोर प्राइवेट लिमिटेड और इट्सी बिट्सी प्राइवेट लिमिटेड.

क्‍लोजपेट दंपति की अधिकांश कर्मचारी महिलाएं हैं. इनमें अधिकतर कर्नाटक के गांवों की हैं, तो कुछ हरियाणा, उत्‍तर प्रदेश और राजस्‍थान के गांवों की हैं.

आधी कर्मचारी कंपनी से सीधी जुड़ी हैं और 10-12 हजार रुपए प्रति महीना तनख्‍वाह पाती हैं, जबकि बाकी अप्रत्‍यक्ष रूप से उत्‍पादों की संख्‍या के आधार पर भुगतान पाती हैं. कंपनी की पांच प्रतिशत कर्मचारी शारीरिक रूप से दिव्‍यांग हैं.

शुरुआत में एईसी ऑफशोर प्राइवेट लिमिटेड के जरिये कार्ड बनाने और स्‍क्रैप बुक में काम आने वाले पेपर क्राफ्ट उत्‍पाद जैसे हाथ के बने फूल व स्‍टीकर्स विदेशी बाजार में भेजे गए.

वर्ष 2007 में हरीश और रश्मि ने घरेलू रिटेल बाजार में आज आजमाया. बेंगलुरु में उनका पहला इट्सी बिट्सी स्‍टोर खुला. अब, देश के सात शहरों में ऐसे 21 स्‍टोर हैं. अकेले बेंगलुरु में 11 स्‍टोर हैं. बाकी चेन्‍नई, मुंबई, हैदराबाद और दिल्‍ली में हैं.

मूल रूप से होम्‍योपैथी डॉक्‍टर रश्मि इट्सी बिट्सी की सीईओ और एमडी हैं. वे रिटेल बिजनेस देखती हैं. हरीश सिविल इंजीनियर हैं. वे एईसी कंपनी के सीईओ व एमडी हैं और निर्माण व एक्‍सपोर्ट संभालते हैं. दोनों कंपनियों की संयुक्‍त टर्नओवर में लगभग बराबर की हिस्‍सेदारी है.

बेंगलुरु में बनाए जाने वाले पेपर फ्लावर दुनिया के कई देशों में भेजे जाते हैं.

ह‍रीश कहते हैं, ‘‘ये गतिविधियां पश्चिम की देन हैं. स्‍क्रैप बुक मूल रूप से अमेरिका के उटाह में जन्‍मी और 1960 में प्रसिद्ध हुई. उसी समय कार्ड मेकिंग ब्रिटेन में मशहूर हुई. पेंट, स्‍याही, वाटर कलर से बनी कलाकृतियों का मिलाजुला रूप वर्षों तक चलता रहा, लेकिन पिछले कुछ सालों में इनमें आमूलचूल बदलाव आया और ये बहुत प्रसिद्ध हो गईं.’’

एईसी में लगभग 100 प्रतिशत महिला कर्मचारी हैं.

मध्‍यमवर्गीय परिवार से आए हरीश और रश्मि के जीवन में कई दिलचस्‍प मोड़ आए. दरअसल, सिविल ट्रांसपोर्ट से इंजीनियरिंग के बाद हरीश ने एक कंस्‍ट्रक्‍शन कंपनी शुरू की थी, लेकिन जल्‍द ही उसे बंद करना पड़ा, क्‍योंकि लोग पैसे देरी से दे रहे थे. हरीश याद करते हैं, ‘‘वर्ष 1989 में जब मैंने यह कंपनी बंद की, तभी सिंगापुर में चीन की एक कंपनी स्‍टारको ट्रेडिंग प्राइवेट लिमिटेड से अच्‍छा ऑफर मिला.’’ हरीश इस कंपनी में भारत के साथ व्‍यापार बढ़ाने के प्रमुख बन गए और भारत से बिल्डिंग मटेरियल मंगवाने लगे.

हरीश और रश्मि की मुलाकात प्री-यूनिवर्सिटी कोर्स (पीयूसी) के दौरान हुई थी. रश्मि से शादी को लेकर हरीश बताते हैं, ‘‘सिंगापुर में काम करते वक्‍त मां ने शादी को लेकर दबाव डाला. मैंने उन्‍हें बताया कि मैं किसी परिचित लड़की से शादी करूंगा. बेंगलुरु आने के दौरान मैं रश्मि से मिला. मैंने उन्‍हें प्रपोज किया और वर्ष 1992 में हमने शादी कर ली. उस वक्‍त मैं 26 वर्ष का और रश्मि 25 की थीं.’’

सिंगापुर लौटने पर हरीश के सुझाव पर उनकी कंपनी ने भारतीय हथकरघा का सामान बेचने के लिए शोरूम खोला. रश्मि ने हरीश के साथ काम करना शुरू किया. वे रिटेल का काम देखती थीं, वहीं हरीश भारत से बिल्डिंग मटेरियल आयात करने पर ध्‍यान दे रहे थे.

वर्ष 1994 में दोनों बेहतर अवसर की तलाश में सिडनी चले गए. रश्मि ने एक नैचुरोपैथी कॉलेज में पढ़ाना शुरू कर दिया.

तत्‍काल कोई नौकरी न मिलने पर हरीश घर-घर जाकर दुर्घटना बीमा बेचने लगे. हरीश याद करते हैं, ‘‘सर्वश्रेष्‍ठ प्रयासों के बावजूद मैं केवल एक पॉलिसी बेच पाया.’’ उनकी तंगहाली तब दूर हुई, जब उन्‍हें डिस्‍काउंट रिटेल चेन क्लिट्स क्रैजी बारगेन में नौकरी मिली.

तीन साल पहले तक हरीश और रश्मि दोनों 20-20 हजार रुपए तनख्‍वाह ले रहे थे और मुनाफा वापस कंपनी में लगा रहे थे.

हरीश को कन्‍फेक्‍शनरी डिवीजन और भारतीय मूल के उत्‍पादों को खरीदने की जिम्‍मेदारी दी गई. रश्मि को भी उसी कंपनी के होलसेल डिवीजन में नौकरी मिल गई. हरीश बताते हैं कि वे कन्‍फेक्‍शनरी बिजनेस को दो साल में 3 लाख डॉलर से 50 लाख डॉलर तक ले गए. वहां उन्‍होंने छह साल काम किया.

लेकिन जब उन्‍हें हेरिटेज चॉकलेट्स, मेलबर्न से आकर्षक ऑफर मिला तो 18 महीने का कॉन्‍ट्रेक्‍ट साइन कर उससे जुड़ गए. मेलबर्न में रश्मि ने प्‍लास्टिक होज मैन्‍यूफैक्‍चरिंग कंपनी में काम किया और ग्राफिक डिजाइन का कोर्स भी किया.

डेढ़ साल बाद दोनों सिडनी लौट गए और खुद की कंपनी ऑस्‍ट्रेलियन एक्‍सपोर्ट कनेक्‍शन (एईसी) स्‍थापित की. एईसी भारतीय उत्‍पाद ऑस्‍ट्रेलिया में इम्‍पोर्ट करती थी.

करीब डेढ़ साल बाद उन्‍होंने यह बिजनेस व घर बेच दिया. इस तरह सिंगापुर और ऑस्‍ट्रेलिया में 10 वर्ष की मेहनत से कमाए गए 2,20,000 डॉलर (करीब 1.25 करोड़ रुपए) लेकर वर्ष 2004 में बेंगलुरु आ गए. यहां उन्‍होंने बानेरघाटा में एक छोटी फैक्‍टरी किराए पर ली और पेपर फ्लावर बनाने लगे. रश्मि बताती हैं, ‘‘ऑस्‍ट्रेलिया में हमारा सामना स्‍क्रैपबुक इंडस्‍ट्री से हुआ था. हमने देखा था कि वहां थाइलैंड से कई प्रकार के पेपर फ्लावर आ रहे हैं.’’

रंगों की अच्‍छी जानकार और रचनात्‍मकता से भरपूर रश्मि ने ग्राफिक डिजाइन कोर्स का लाभ उठाया और दोनों यह काम करने लगे.

देशभर में इट्सी बिट्सी के 21 स्‍टोर हैं.

रश्मि बताती हैं,  ‘‘हमने खुद की डिजाइन शुरू की और ग्रामीण महिलाओं को हाथ से पेपर फ्लावर बनाने का प्रशिक्षण दिया.’’ पहली फैक्‍टरी 20 कर्मचारियों से शुरू की गई. शुरुआती परेशानियां भी आईं, जिसके चलते भारी घाटा भी हुआ.

दोनों ने लगभग तय कर लिया था कि वे यह बिजनेस बंद कर देंगे, तभी ब्रिटेन के एक ग्राहक ने बड़ा ऑर्डर दिया और एक लाख डॉलर एडवांस दिए. इससे उन्‍हें दोबारा उभरने में मदद मिली. हरीश कहते हैं, ‘‘वह ग्राहक हमारे लिए मसीहा बनकर आया.’’

सिडनी स्थित क्लिंट के पुराने बॉस ने भी हरीश की मदद की और एक लाख डॉलर भेजे. हरीश कहते हैं, ‘‘मैं विश्‍वास नहीं कर पा रहा था कि किस तरह सब चीजें हमारे पक्ष में हो रही थीं.’’

दुनियाभर में हाथ से पेपर फ्लावर बनाने वाली सिर्फ चार कंपनियां हैं-एक चीन में, दो थाइलैंड में और चौथी भारत की एईसी. पेपर फ्लावर और इट्सी बिट्सी के अन्‍य क्राफ्ट आयटम लिटिल बर्डी ब्रांड के तहत बेचे जाते हैं.

दोनों अपने आउटलेट पर हाथ से बने मनके भी बेचते हैं. महिलाएं ये मनके खरीदती हैं और इन्‍हें जोड़कर अपनी ज्‍वेलरी बनाती हैं. ये मनके प्‍लास्टिक, ग्‍लास, टेराकोटा और पोर्सलिन के बने होते हैं.

हरीश बताते हैं, ‘‘हमारा कोई प्रतिस्‍पर्धी नहीं है. हम खुद अपने बल पर खड़े हुए हैं. हमने पिछले तीन सालों तक सिर्फ 20-20 हजार रुपए सैलरी ली है और शेष पैसा वापस कंपनी में लगाया.’’

एईसी तथा इट्सी बिट्सी करीब 1000 महिलाओं को प्रत्‍यक्ष और अन्‍य 1000 महिलाओं को अप्रत्‍यक्ष रूप से रोजगार उपलब्‍ध कराती हैं.

एईसी में फूल बनाने में इस्‍तेमाल होने वाला पेपर टी-शर्ट वेस्‍ट को रिसाइकिल कर बनाया जाता है. हरीश बताते हैं, ‘‘ऐसी कई फैक्‍टरियां हैं जो पुरानी टी-शर्ट का यार्न बनाती हैं. हम ऐसी फैक्‍टरियों से माल इकट्ठा करते हैं और सुंदर फूल बनाने में इस्‍तेमाल करते हैं.’’

क्‍लोजपेज दंपति की बड़ी बेटी विभा 23 साल की हैं. उन्‍होंने वर्ष 2017 में इंडस्‍ट्रीयल इंजीनियरिंग एंड मैनेजमेंट में स्‍नातक किया है. वे कंपनी में मार्केटिंग, ई-कॉमर्स और सोशल मीडिया की जिम्‍मेदारी संभालती हैं.

दंपति की छोटी बेटी ईशा 16 वर्ष की है. वे पीयूसी के सेकंड ईयर में पढ़ती हैं. वे अलग बिजनेस करती हैं. वे ‘ओवेंजर्स’ ब्रांड के तले कपकेक्‍स बनाती हैं और करीब 20 हजार रुपए महीना कमा लेती हैं.

अपने सपनों को पाल-पोस रहे क्‍लोजपेट दंपति वास्‍तव में कई लोगों की जिंदगी में पेपर फ्लावर के जरिये खुशबू फैला रहे हैं.


 

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