पुरुष प्रधान समाज में एक युवा महिला उद्यमी पेशेवर तरीक़े से करवा रही अंत्येष्टि
30-Oct-2024
By जी सिंह
कोलकाता
मौत निष्ठुर कारोबार है, लेकिन कोलकाता की एक सॉफ़्टवेयर इंजीनियर श्रुति रेड्डी सेठी ने इसे अपना कारोबार बना लिया है. श्रुति के इस कारोबार ने किसी व्यक्ति की मौत के बाद उसके परिवारजनों के काम को आसान बना दिया है.
अपनी इस अनूठी सेवा के जरिये उनकी कंपनी अंत्येष्टि ने एक साल में ही 16 लाख रुपए का बिज़नेस किया है.
जब किसी की मौत होती है, तब श्रुति का काम शुरू हो जाता है.
वो बताती हैं, “जब हमें फ़ोन आता है तो सबसे पहले हम शव वाहन का प्रबंध करते हैं. हम यह भी पता करते हैं कि क्या शव को सुरक्षित रखने के लिए फ्रीजर बॉक्स की ज़रूरत है.
श्रुति रेड्डी सेठी की कंपनी अंत्येष्टि कोलकाता में दाह संस्कार, क्रिया कर्म और इससे जुड़ी सेवाएं उपलब्ध कराती हैं (फ़ोटो - मोनिरुल इस्लाम मुलिक)
|
“जब शव वाहन श्मशान घाट की ओर रवाना हो जाता है, हम परिवारवालों को ज़रूरत पड़ने पर कोलकाता म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन से मृत्यु प्रमाण पत्र हासिल करने में मदद करते हैं. इसके बाद हम परिवारों को पैकेज के आधार पर पंडित भी मुहैया करवाते हैं.”
उनकी कंपनी - अंत्येष्टि - के पास कई व्यवस्थित और प्रभावी पैकेज हैं - जैसे वीआईपी शव वाहन की सुविधा, मोबाइल फ्रीजर या शव का लेपन, अस्थियां संग्रह और श्राद्ध करवाना.
कंपनी ये सुविधाएं विभिन्न समुदायों जैसे आर्य समाज, गुजराती, मारवाड़ी और बंगाली समाज को 2,500 रुपए से एक लाख रुपए के बीच मुहैया करवाती है.
जी हां, यह सच है. 32 साल की श्रुति रेड्डी सेठी फ़्यूनरल सर्विसेज़ प्लानर हैं.
आधिकारिक रूप से कोलकाता में इस क्षेत्र की यह अपनी तरह की पहली कंपनी है.
वो बताती हैं, “मैंने एक ऐसी कंपनी जो दाह संस्कार करने में मदद करे, स्थापित करने का आइडिया सबसे पहले अपने पति के साथ शेयर किया.”
पति ने उनका साथ देने का वादा किया.
वो आगे बताती हैं, “लेकिन मेरे माता-पिता, ख़ासकर मेरी मां इससे बहुत नाराज़ थीं. उनका कहना था कि ऐसा ‘घृणित’ काम करना एक आईटी इंजीनियर की बेइज्ज़ती है. उन्होंने मुझसे महीनेभर तक बात नहीं की!”
साल 2015 में श्रुति के पति नौकरी के सिलसिले में कोलकाता आए, तो वो भी उनके साथ कोलकाता चली आईं.
मूल रूप से वो हैदराबाद की रहने वाली हैं, जहां उन्होंने शिक्षा पूरी की. उनका एक छोटा भाई है.
उनके पिता इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड में इलेक्ट्रिकल इंजीनियर थे. वहीं उनकी मां परिवार की आमदनी बढ़ाने के लिए घर से साड़ियां बेचती थीं.
श्रुति ने साईं पब्लिक स्कूल में कक्षा 10 तक पढ़ाई की. इसके बाद साल 2002 में उन्होंने लिटिल फ़्लॉवर जूनियर कॉलेज में दाख़िला लिया.
साल 2006 ख़त्म होते-होते उन्होंने भोज रेड्डी इंजीनियरिंग कॉलेज से डिग्री हासिल कर ली और अपना गृहनगर हैदराबाद छोड़ दिया.
वो बताती हैं, “मैंने बेंगलुरु में जूनियर प्रोग्रामर के तौर पर एक आईटी कंपनी को ज्वाइन किया. साल 2011 में एक अन्य आईटी कंपनी में नौकरी की, तो वापस हैदराबाद लौट आई.”
श्रुति ने अंत्येष्टि की शुरुआत एक लाख रुपए की लागत से फ़रवरी 2016 में की थी. यह राशि उन्होंने अपने पति से उधार ली थी.
|
साल 2009 में, उन्होंने गुरविंदर सिंह सेठी से शादी कर ली. गुरविंदर हैदराबाद में टाटा मोटर्स में काम करते थे.
वो कहती हैं, “ज़िंदगी बिना किसी समस्या के चल रही थी, लेकिन साल 2011 में मेरे पति का कोलकाता ट्रांसफ़र हो गया.”
कुछ दिनों तक श्रुति को घर से काम करने की अनुमति मिली, लेकिन जब साल 2015 में उनकी कंपनी ने उनसे हैदराबाद लौटने को कहा, तो उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया.
श्रुति अपने अगले क़दम की योजना बना रही थीं.
वो याद करती हैं, “मैं एमबीए करना चाहती थी क्योंकि मेरा विचार था कि इससे मुझे खुद का बिज़नेस स्थापित करने में मदद मिलेगी.”
“मैंने जीमैट परीक्षा पास की, ताकि आईआईएम का एक साल का एग्ज़ीक्यूटिव प्रोग्राम और अन्य प्रतिष्ठित बिज़नेस स्कूल में एडमिशन ले सकूं.”
उन्हें आईआईएम इंदौर और आईआईएम लखनऊ में दाख़िले का प्रस्ताव मिला.
वो इनमें से एक में दाख़िला लेने ही वाली थीं कि उनके दोस्त सिद्धार्थ चूड़ीवाल ने उन्हें डिग्री की बजाय बिज़नेस में पैसा लगाने की सलाह दी.
उन्होंने श्रुति को ख़ुद पर भरोसा रखने को कहा, जिससे सबकुछ हासिल किया जा सकता है.
उनकी सलाह काम कर गई. हालांकि श्रुति को बिज़नेस शुरू करने की एबीसीडी और औपचारिकताओं की बिल्कुल भी जानकारी नहीं थी.
वो याद करती हैं, “अंतिम संस्कार से जुड़ा बिज़नेस शुरू करने के बारे में मैंने सोच रखा था. साल 2014 में मेरे पति के नाना की मौत के बाद उन्हें बहुत समस्याओं का सामना करना पड़ा था. वो अंतिम संस्कार का इंतज़ाम करने में इतने व्यस्त रहे कि उन्हें परिवार के साथ वक्त बिताने का समय ही नहीं मिला.”
इस तरह उन्होंने कंपनी की शुरुआत की और मृत्यु के बाद की प्रक्रियाओं और रस्मों से जुड़े हर पहलू को संवेदनशीलता व प्रभावी तरीक़े से समझने लगीं. इनमें शव को सुरक्षित रखने की प्रक्रिया से लेकर सभी संस्कार शामिल थे.
अंत्येष्टि को हर माह क़रीब 35 ऑर्डर मिलते हैं. |
श्रुति तर्क देती हैं, “कोलकाता में अकेले रहने वाले बुजु़र्गों की संख्या बहुत अधिक है. उनका कोई सहारा नहीं होता. वो बेहद ख़ुश होते हैं जब उन्हें जीवन के आख़िरी पड़ाव पर मदद मिलती है.”
बाज़ार और लागत का गणित समझने के लिए श्रुति सबसे पहले शवदाह गृह गईं, वहां उन्होंने पता किया कि हर दिन कितनी मौतें होती हैं, शव वाहन, पूजा, पंडित आदि का कितना शुल्क होता है.
अंतिम संस्कार से जुड़ा यह क्षेत्र पुरुष प्रधान है. इससे जुड़े ज़्यादातर लोग अनपढ़ होते हैं. कई शराबी होते हैं.
श्रुति कहती हैं, “मेरे दोस्तों और परिवार ने सोचा कि मेरा दिमाग़ ख़राब हो गया है, जो मैं दिनभर मरे हुए लोगों से जुड़ी बातों में व्यस्त रहती थी. वो बेहद मुश्किल वक्त था.”
आख़िरकार, श्रुति ने पति से उधार लिए एक लाख रुपए के निवेश से 19 फ़रवरी 2016 को अंत्येष्टि फ़्यूनरल सर्विसेज़ प्राइवेट लिमिटेड की शुरुआत कर दी.
वो अपनी कंपनी की फाउंडर-डायरेक्टर हैं और उनके पास 99 प्रतिशत शेयर हैं.
उनकी मां सुहासिनी रेड्डी भी कंपनी में डायरेक्टर हैं, जिन्होंने बाद में अपनी बेटी के काम को सराहा. उनके पास कंपनी के बचे हुए एक प्रतिशत शेयर हैं.
श्रुति बताती हैं, “कंपनी का नाम तय करने में मुझे कई दिन लगे. अंत्येष्टि संस्कृत का शब्द है जिसका मतलब है अंतिम संस्कार.”
कंपनी ने 1,000 वर्ग फ़ीट के किराए के दफ़्तर में दो कर्मचारियों से शुरुआत की.
कोलकाता के लिए यह कॉन्सेप्ट नया था. लेकिन जब श्रुति ने कंपनी के प्रचार-प्रसार में पैसा लगाया, तो धीरे-धीरे लोग कंपनी के बारे में जानने लगे.
अंत्येष्टि से छह लोगों को रोजगार मिला है और कंपनी ने एक साल में 16 लाख रुपए का कारोबार किया है.
|
“मैंने शव वाहन चालकों व पंडितों से संपर्क बनाए और उन्हें हर अंतिम संस्कार के हिसाब से पैसा अदा किया. अप्रैल 2015 में जस्ट-डायल ने हमें सूचीबद्ध कर लिया. इसके बाद हमें अंतिम संस्कार के लिए फ़ोन भी आने लगे.”
लेकिन लोग ज़्यादातर शव वाहन के लिए फ़ोन करते थे, न कि अंतिम संस्कार करवाने के लिए.
श्रुति ने इसका भी तोड़ निकाला. उन्होंने जून 2016 में क़रीब सात लाख रुपए की लागत से दो फ़्रीजर बॉक्स और एक एअर कंडीशंड शव वाहन ख़रीदा.
अब, अंत्येष्टि के लिए बुकिंग फ़ोन या ऑनलाइन भी की जा सकती है.
कंपनी में छह लोग काम करते हैं और उन्हें हर महीने क़रीब 35 ऑर्डर मिलते हैं.
मात्र एक साल में कंपनी का सालाना कारोबार 16 लाख रुपए तक पहुंच गया है.
भविष्य की ओर उम्मीद भरी निगाहों से श्रुति कहती हैं, इंतज़ार कीजिए, यह अभी और बढ़ेगा.
अंत्येष्टि के पास अकेले रहने वाले लोगों के लिए प्री-प्लानिंग सर्विस पैकेज भी उपलब्ध है. इसकी क़ीमत 6,000 रुपए से शुरू होकर 20,000 रुपए तक है.
श्रुति कहती हैं, “प्री-डेथ पैकेज ऐसे लोगों के लिए आश्वासन है, जिन्हें लगता है कि अगर उन्हें अचानक कुछ हो गया तो उनका अंतिम संस्कार कौन करेगा. हम उनका अंतिम संस्कार करते हैं. ऐसे मामलों के लिए हम क़ानूनी समझौते करते हैं जिन्हें अनुभवी वकीलों की सहमति हासिल होती है.”
अंत्येष्टि बहुत बड़े खालीपन को भर रही है.
श्रुति कहती हैं, “मृत्य जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है और उसके साथ पेशेवराना और गरिमा के साथ पेश आना चाहिए. मेरी टीम ऐसे मौक़ों पर शांत, संवेदनशील रहने का ध्यान रखती है.”
कारोबार ने श्रुति को सिखाया है कि मृत्यु ही जीवन का अंतिम सत्य है.
|
श्रुति की योजना साल 2020 तक कंपनी के विस्तार की है. वो इसकी फ्रैंचाइज़ी देने पर विचार कर रही हैं. वो महसूस करती हैं कि उनके अनुभव ने उन्हें पैसे की क़ीमत सिखा दी है और यह भी कि मृत्यु ही जीवन का अंतिम सत्य है.
महिला उद्यमियों के लिए उनकी क्या सलाह होगी?
चार साल के एक बेटे की मां श्रुति समझदारी से कहती हैं, “धरती पर अपनी मौजूदगी को सार्थक बनाएं, ताकि आप दूसरों के काम आ सकें. ख़ुद पर विश्वास रखें और कभी कम करके न आंके. अगर आप बड़ा सोचेंगी तो छोटी समस्याएं खुद सुलझ जाएंगी.”
आप इन्हें भी पसंद करेंगे
-
जुनूनी शिक्षाद्यमी
पॉली पटनायक ने बचपन से ऐसे स्कूल का सपना देखा, जहां कमज़ोर व तेज़ बच्चों में भेदभाव न हो और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी जाए. आज उनके स्कूल में 2200 बच्चे पढ़ते हैं. 150 शिक्षक हैं, जिन्हें एक करोड़ से अधिक तनख़्वाह दी जाती है. भुबनेश्वर से गुरविंदर सिंह बता रहे हैं एक सपने को मूर्त रूप देने का संघर्ष. -
ये हैं चेन्नई के चाय किंग्स
चेन्नई के दो युवाओं ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई, फिर आईटी इंडस्ट्री में नौकरी, शादी और जीवन में सेटल हो जाने की भेड़ चाल से हटकर चाय की फ्लैवर्ड चुस्कियों को अपना बिजनेस बनाया. आज वे 17 आउटलेट के जरिये चेन्नई में 7.4 करोड़ रुपए की चाय बेच रहे हैं. यह इतना आसान नहीं था. इसके लिए दोनों ने बहुत मेहनत की. -
पर्यावरण हितैषी उद्ममी
बिहार से काम की तलाश में आए जय ने दिल्ली की कूड़े-करकट की समस्या में कारोबारी संभावनाएं तलाशीं और 750 रुपए में साइकिल ख़रीद कर निकल गए कूड़ा-करकट और कबाड़ इकट्ठा करने. अब वो जैविक कचरे से खाद बना रहे हैं, तो प्लास्टिक को रिसाइकिल कर पर्यावरण सहेज रहे हैं. आज उनसे 12,000 लोग जुड़े हैं. वो दिल्ली के 20 फ़ीसदी कचरे का निपटान करते हैं. सोफिया दानिश खान आपको बता रही हैं सफाई सेना की सफलता का मंत्र. -
मोदी-अडानी पहनते हैं इनके सिले कपड़े
क्या आप जीतेंद्र और बिपिन चौहान को जानते हैं? आप जान जाएंगे अगर हम आपको यह बताएं कि वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निजी टेलर हैं. लेकिन उनके लिए इस मुक़ाम तक पहुंचने का सफ़र चुनौतियों से भरा रहा. अहमदाबाद से पी.सी. विनोज कुमार बता रहे हैं दो भाइयों की कहानी. -
‘अंत्येष्टि’ के लिए स्टार्टअप
जब तक ज़िंदगी है तब तक की ज़रूरतों के बारे में तो सभी सोच लेते हैं लेकिन कोलकाता का एक स्टार्ट-अप है जिसने मौत के बाद की ज़रूरतों को ध्यान में रखकर 16 लाख सालाना का बिज़नेस खड़ा कर लिया है. कोलकाता में जी सिंह मिलवा रहे हैं ऐसी ही एक उद्यमी से -