Milky Mist

Wednesday, 2 April 2025

मां के दिए 100 रुपए से मलय देबनाथ ने बनाई 200 करोड़ रुपए की संपत्ति

02-Apr-2025 By गुरविंदर सिंह
नई दिल्ली

Posted 02 Oct 2020

मलय देबनाथ साल 1988 में पश्चिम बंगाल के कूच बिहार जिले के दूरस्थ गांव से जब दिल्ली आए थे, जो उनकी उम्र महज 19 साल थी. यह गांव राज्य की राजधानी कोलकाता से 700 किलोमीटर दूर है.
देबनाथ कैटरर्स एंड डेकोरेटर्स के मालिक मलय देबनाथ राष्ट्रीय राजधानी में रहकर अपनी जिंदगी के फर्श से अर्श तक पहुंचे. आज उनके पास 200 करोड़ रुपए की निजी संपत्ति है और यह देश के कई हिस्सों में है. वे कहते हैं, "मुझे आज भी याद है कि जब मैं दिल्ली के लिए निकल रहा था, तब मेरी मां ने मुझे 100 रुपए दिए थे. मैं दिल्ली मेल में बैठा था और उसका किराया 70 रुपए था.''


मलय देबनाथ ने पश्चिम बंगाल का अपना गांव छोड़ा था, तब उनके हाथ में महज 100 रुपए थे. (सभी फोटो : विशेष व्यवस्था से)


कैटरिंग बिजनेस के अलावा देबनाथ छह ट्रेनों में पैंट्रीज भी चलाते हैं. पिछले वित्तीय वर्ष में उनकी कंपनी का सालाना टर्नओवर 6 करोड़ रुपए रहा है.

रंक से राजा बनने की देबनाथ की कहानी परिश्रम, संकल्प और जुनून की दास्तां है. इनकी बदौलत वे अपनी किस्मत बदलने में कामयाब रहे.

देबनाथ पश्चिम बंगाल के कूच बिहार जिले के पेस्थारझार गांव के रहने वाले हैं. वहां उनके दादा की बड़ी जमीन थी. देबनाथ कहते हैं, "मेरे दादा पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) के रहने वाले थे. वे 1935 में पश्चिम बंगाल आ गए थे. उनकी गिनती गांव के अमीर लोगों में होती थी.''

गांव में परिवार की एक विविंग यूनिट थी और सम्मानजनक सामाजिक प्रतिष्ठा थी.

देबनाथ कहते हैं, "मेरे दादा ने न केवल अपनी जमीन दान दे दी थी, बल्कि गांव के गरीब बच्चों के लिए एक स्कूल भी बनवाया था. उस स्कूल की इमारत गांव में आज भी उसी शान से खड़ी है. यह उनकी उदारता की गवाह है.''

लेकिन देबनाथ जब छोटे थे, तब एक हादसा हुआ और बंगाल में साल 1970 के मध्य में वाम दलों की सत्ता आने के बाद हुई राजनीतिक हिंसा में परिवार के मालिकाना हक वाली फैक्ट्री जला दी गई.

देबनाथ कहते हैं, "हम कंगाल हो गए थे, क्योंकि फैक्ट्री जल गई थी और हमारी सारी जमापूंजी खत्म हो गई थी. उस समय मैं सिर्फ छह साल का था. परिवार ने बिजनेस फिर शुरू किया, लेकिन हमारा पुराना वैभव कभी नहीं लौट सका. साल 1980 की शुरुआत तक हमारे हालात और बिगड़ गए.''

साल 1986 में देबनाथ के पिता परिवार की मदद करने के उद्देश्य से दिल्ली चले आए. देबनाथ, उनकी बड़ी बहन और दो छोटे भाई भी उनके साथ थे. देबनाथ अब भी पढ़ रहे थे.

देबनाथ कहते हैं, "पिताजी को एक ग्राइंडिंग मशीन फैक्ट्री में नौकरी मिल गई थी. दो साल बाद उन्होंने खुद की यूनिट शुरू कर दी. लेकिन वे अब भी परिवार को पैसे नहीं भेज पा रहे थे, क्योंकि उन्हें यूनिट में मुनाफा नहीं हो रहा था.''

देबनाथ ने पहले दिल्ली में एक इवेंट मैनेजमेंट कंपनी में काम किया. वहां उन्होंने बिजनेस की बारीकियां सीखीं.


दिल्ली से गांव लौटकर देबनाथ अपनी परिवार की चाय की छोटी दुकान संभालने लगे. शुरुआती सालों के संघर्ष को याद कर नम आंखों से देबनाथ कहते हैं, "मैं स्कूल के पहले और बाद के समय में उस दुकान पर बैठा करता था. यह तीन साल तक चलता रहा, जब तक कि मेरी 12वीं की पढ़ाई पूरी नहीं हो गई. इसके बाद मैंने पढ़ाई छोड़ दी और 100 रुपए के साथ दिल्ली के लिए निकल पड़ा, जो मेरी मां ने दिए थे.''

दिल्ली पहुंचने के बाद उन्होंने अपने पिता की फैक्ट्ररी में काम किया, लेकिन दो महीने बाद ही छोड़ दिया. वे कहते हैं, "वह फैक्ट्री ऐसे इलाके में थी, जहां बहुत ज्यादा वायु प्रदूषण था. मुझे वहां का पर्यावरण पसंद नहीं आया और मैंने दूसरी नौकरी ढूंढने का फैसला किया. मैंने अपने पिता को यह बात बताई और उन्होंने मुझे इसकी अनुमति दे दी.''

देबनाथ को जल्द ही एक कैटरिंग फर्म में सुपरवाइजर का काम मिल गया. वे कहते हैं, "मेरी तनख्वाह 500 रुपए महीना थी. मैं भले ही सुपरवाइजर था, लेकिन मैंने ऑफिस की साफ-सफाई जैसे काम भी किए और कठिन परिश्रम किया. मैं अपनी पूरी तनख्वाह घर भेज देता था, ताकि मेरे भाई-बहन को पढ़ाई में मदद मिल सके. मैं अतिरिक्त समय तक काम करता था और हर रात ओवरटाइम के 30 रुपए तक कमा लेता था. इस पैसे का इस्तेमाल मैं अपने निजी खर्च के लिए करता था.''

उन्होंने उसी कैटरिंग फर्म में अगले 10 साल काम किया. वे कहते हैं, "साल 1998 तक मेरी तनख्वाह बढ़कर 5000 रुपए हो गई थी. इस बीच, मैंने 1994-97 के बीच आईटीडीसी (इंडियन टूरिज्म डेवलपमेंट कॉरपोरेशन) से होटल मैनेजमेंट का कोर्स किया.''

साल 1997 में उनकी शादी हो गई और अगले साल वे 8000 रुपए महीना तनख्वाह में दिल्ली की एक इवेंट मैनेजमेंट कंपनी से जुड़ गए.

वे कहते हैं, "हमारी कंपनी कई बड़ी पार्टियां आयोजित करती थी. वह मेरे लिए सीखने वाला अनुभव था. दो साल बाद, मैंने नौकरी छोड़ दी और खुद का कैटरिंग बिजनेस शुरू कर दिया.''

साल 2001 में, उन्होंने देबनाथ कैटरर्स एंड डेकोरेटर्स की शुरुआत की. इसकी शुरुआत का भी एक दिलचस्प वाकया है. उन्हें संयोग से एक वरिष्ठ आर्मी अफसर कर्नल बागची मिले. उन्होंने सुझाव दिया कि मैं आर्मी के मेस के कैटरर की सूची में शामिल हो सकता हूं. देबनाथ बताते हैं, "मैंने अपनी कंपनी बनाई और 2 लाख रुपए की फीस चुकाकर सूची में शामिल हो गया. इसके बाद मुझे आर्मी अफसरों द्वारा आयोजित की जाने वाली पार्टियाें के ऑर्डर मिलने लगे.''

कई संपत्तियों के साथ देबनाथ के उत्तर बंगाल में 250 बीघा चाय के बागान भी हैं.


देबनाथ कहते हैं, बाकी इतिहास है. वर्तमान में वे दिल्ली, पुणे, जयपुर, अजमेर और ग्वालियर समेत देश के 35 आर्मी मेस की सूची में शामिल हैं.

वे कहते हैं कि उन्होंने 200 करोड़ रुपए की संपत्ति बनाई है. इसमें उत्तर बंगाल में 250 बीघा के चाय बागान भी शामिल हैं. उनकी पत्नी गृहिणी हैं और उनकी दो बेटियां ऑस्ट्रेलिया और पुणे में पढ़ाई कर रही हैं.

सफलता और संपन्नता की कहानी के बावजूद देबनाथ आज भी बहुत सादा जीवन जीते हैं. वे कहते हैं, "मैं आज भी बहुत छोटे घर में रहता हूं क्योंकि मेरी जरूरतें बहुत छोटी हैं. मैं सादा जीवन उच्च विचार में यकीन करता हूं.''

 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • From roadside food stall to restaurant chain owner

    ठेला लगाने वाला बना करोड़पति

    वो भी दिन थे जब सुरेश चिन्नासामी अपने पिता के ठेले पर खाना बनाने में मदद करते और बर्तन साफ़ करते. लेकिन यह पढ़ाई और महत्वाकांक्षा की ताकत ही थी, जिसके बलबूते वो क्रूज पर कुक बने, उन्होंने कैरिबियन की फ़ाइव स्टार होटलों में भी काम किया. आज वो रेस्तरां चेन के मालिक हैं. चेन्नई से पीसी विनोज कुमार की रिपोर्ट
  • Sid’s Farm

    दूध के देवदूत

    हैदराबाद के किशोर इंदुकुरी ने शानदार पढ़ाई कर शानदार कॅरियर बनाया, अच्छी-खासी नौकरी की, लेकिन अमेरिका में उनका मन नहीं लगा. कुछ मनमाफिक काम करने की तलाश में भारत लौट आए. यहां भी कई काम आजमाए. आखिर दुग्ध उत्पादन में उनका काम चल निकला और 1 करोड़ रुपए के निवेश से उन्होंने काम बढ़ाया. आज उनके प्लांट से रोज 20 हजार लीटर दूध विभिन्न घरों में पहुंचता है. उनके संघर्ष की कहानी बता रही हैं सोफिया दानिश खान
  • Multi-crore businesswoman Nita Mehta

    किचन से बनी करोड़पति

    अपनी मां की तरह नीता मेहता को खाना बनाने का शौक था लेकिन उन्हें यह अहसास नहीं था कि उनका शौक एक दिन करोड़ों के बिज़नेस का रूप ले लेगा. बिना एक पैसे के निवेश से शुरू हुए एक गृहिणी के कई बिज़नेस की मालकिन बनने का प्रेरणादायक सफर बता रही हैं दिल्ली से सोफ़िया दानिश खान.
  • Dairy startup of Santosh Sharma in Jamshedpur

    ये कर रहे कलाम साहब के सपने को सच

    पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम से प्रेरणा लेकर संतोष शर्मा ने ऊंचे वेतन वाली नौकरी छोड़ी और नक्सल प्रभावित इलाके़ में एक डेयरी फ़ार्म की शुरुआत की ताकि जनजातीय युवाओं को रोजगार मिल सके. जमशेदपुर से गुरविंदर सिंह मिलवा रहे हैं दो करोड़ रुपए के टर्नओवर करने वाले डेयरी फ़ार्म के मालिक से.
  • Free IAS Exam Coach

    मुफ़्त आईएएस कोच

    कानगराज ख़ुद सिविल सर्विसेज़ परीक्षा पास नहीं कर पाए, लेकिन उन्होंने फ़ैसला किया कि वो अभ्यर्थियों की मदद करेंगे. उनके पढ़ाए 70 से ज़्यादा बच्चे सिविल सर्विसेज़ की परीक्षा पास कर चुके हैं. कोयंबटूर में पी.सी. विनोज कुमार मिलवा रहे हैं दूसरों के सपने सच करवाने वाले पी. कानगराज से.