एमबीए पास बहू ने गांव के पारिवारिक कारोबार को ब्रांड बनाया, 7 साल में टर्नओवर 10 लाख रुपए से 6 करोड़ रुपए पहुंचाया
07-Oct-2024
By उषा प्रसाद
तिरुपुर
घर वह जगह है जहां सिंधु अरुण का दिल बसता है. सिंधु अरुण ने यूके के वारविक बिजनेस स्कूल से एमबीए में ग्रैजुएशन किया. फिर तमिलनाडु के तिरुपुर जिले के एक गांव में कोल्ड-प्रेस्ड ऑयल ब्रांड बनाया. 2013 में 10 लाख रुपए मामूली टर्नओवर वाले पारिवारिक कारोबार को साल 2020-21 में 6 करोड़ रुपए सालाना टर्नओवर तक पहुंचा दिया.
सिंधु ने अपने पति अरुण के परिवार, विशेषकर अपने ससुर के छोटे भाई वी गोपालकृष्णन का भरोसा जीता, जो बिना नाम या ब्रांड के परिवार का खोपरा कारोबार चला रहे थे. सिंधु ने नए कर्मचारी रखे, विविध प्रोडक्ट जोड़े और कुछ ही साल में टर्नओवर बढ़ा दिया.
सिंधु अरुण ने 2017 में कोल्ड-प्रेस्ड ऑयल ब्रांड प्रेसो (PRESSO) लॉन्च किया. वे गांव के पारिवारिक कारोबार को नए स्तर पर ले गईं. (फोटो : विशेष व्यवस्था से)
|
आज, कारोबार एग्रीप्रो इंडस्ट्रीज के रूप में विकसित हो चुका है. यह एक पार्टनरशिप फर्म है, जो प्रेसो (PRESSO) ब्रांड के तहत खोपरा, नारियल, नारियल के गोले, भूसी और तीन प्रकार के कोल्ड प्रेस्ड तेल (नारियल, मूंगफली और तिल) बेचती है.
37 वर्षीय सिंधु कोयंबटूर जिले के पोलाची के पास एक गांव के मध्यम वर्गीय परिवार से हैं. उनके माता-पिता सरकारी स्कूल के शिक्षक थे.
हाई स्कूल की छात्रा के रूप में युवा सिंधु पेप्सिको की पूर्व अध्यक्ष और सीईओ इंदिरा नूयी को अपना आदर्श मानती थीं.
सिंधु ने हमेशा उद्यमी बनने का सपना देखा. वे कहती हैं, “मेरे कमरे में हमेशा इंदिरा नूयी की तस्वीर होती थी. वे आज भी मेरी दूरस्थ गुरु की तरह हैं.”
सिंधु ने 12वीं कक्षा तक तमिल माध्यम से पढ़ाई की. फिर पोलाची के महालिंगम इंजीनियरिंग कॉलेज से इन्फॉरमेशन टेक्नोलॉजी में बीटेक किया.
सिंधु की शादी अरुण से हुई. अरुण का परिवार खोपरा कारोबार में था. वे अपने गांव मोदक्कुपट्टी और उसके आसपास के किसानों से नारियल खरीदते थे और मजदूरों की मदद से खोपरा बनाते थे. वह खोपरा स्थानीय बाजार में बेचा जाता था.
सिंधु के साथ करीब 15 लोग काम करते हैं. इनमें ज्यादातर महिलाएं हैं. |
अरुण का आठ लोगों का संयुक्त परिवार था. अरुण के पिता वी. रामानुजम और मां आर राजवेनी ने जमीन की देखभाल की. जबकि गोपालकृष्णन ने पारिवारिक कारोबार संभाला.
सास ने सिंधु को कारोबार से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित किया. उन्होंने सिंधु की छह माह की बेटी और घर के काम संभालकर उनका समर्थन किया.
सिंधु और अरुण ने कारोबार को अगले स्तर पर ले जाने का फैसला किया. वे जिस खोपरा और नारियल के कारोबार में थे, उसका कोई पंजीकृत नाम नहीं था. यह विशुद्ध रूप से उस क्षेत्र में अरुण के परिवार की प्रतिष्ठा और सद्भावना के आधार पर चलता है.
सबसे पहले सिंधु ने 2013 में ससुराल वालों को कंपनी का नाम एवरग्रीन एंटरप्राइजेज रखने के लिए मनाया. वे कहती हैं, “हमारे पास सिर्फ काम करने वाले मजदूर थे. कोई प्रशासनिक कर्मचारी नहीं था. मैं चाहती थी कि मेरा परिवार बड़ा सोचे.” सिंधु ने शुरुआत में एक सुपरवाइजर और एक अकाउंटेंट की नियुक्ति की.
सिंधु की मुख्य भूमिका भर्ती किए नए लोगों को प्रशिक्षित करना और अकाउंट्स संभालना था. वे आगे कहती हैं, “मुझे "द मैजिक ऑफ थिंकिंग बिग' किताब से प्रेरणा (पारिवारिक कारोबार को बदलने की) मिली.”
इसके बाद सिंधु ने अग्रणी एफएमसीजी ब्रांड मैरिको के साथ दोबारा संपर्क स्थापित किया. इस कंपनी को परिवार 2002 से खोपरा की आपूर्ति कर रहा था. अरुण ने 2012 में शादी से लगभग पांच साल पहले जब लोहे के स्क्रैप कारोबार में प्रवेश किया, तो उन्होंने मैरिको को आपूर्ति करना बंद कर दी थी.
सिंधु कहती हैं, “मुझे लगा कि अगर हम अपने कारोबार को बढ़ाना चाहते हैं तो उनके साथ सहयोग करने से हमें बहुत कुछ सीखने में मदद मिलेगी.”
वारविक बिजनेस स्कूल से एमबीए करने के बाद सिंधु ने कुछ साल लंदन में काम किया. इसके बाद 2009 में भारत लौट आईं. |
“हमने 2014 में मैरिको के साथ अपना कारोबार फिर शुरू किया. तब तक मैरिको ने एक नई योजना के तहत नारियल खरीदना शुरू कर दिया था और हम खोपरा की बजाय उन्हें नारियल भेजने लगे.”
2017 में, सिंधु और अरुण ने एग्रीप्रो इंडस्ट्रीज को पार्टनरशिप फर्म के रूप में पंजीकृत कराया. इसके बाद प्रेसो ब्रांड के तहत कोल्ड-प्रेस्ड तेल लॉन्च किया.
उन्होंने अपने शुभचिंतकों से 12 लाख रुपए उधार लिए और सिंधु के गहने गिरवी रखकर 8 लाख रुपए जुटाए, ताकि मोदक्कुपट्टी में कोल्ड-प्रेस्ड तेलों के लिए उत्पादन सुविधा स्थापित की जा सके.
वे स्थानीय किसानों से नारियल और मूंगफली खरीदते हैं. वेदारण्यम में एक जैविक किसान से तिल खरीदते हैं. तेल विभिन्न ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म, उनकी वेबसाइट और आउटलेट पर बेचा जाता है.
सिंधु कहती हैं, “हमारी पहुंच तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, भोपाल और हरियाणा के बाजार तक है. हम कतर को भी निर्यात करते हैं. मलेशिया और यूके के खरीदारों से बातचीत चल रही है.”
वित्त वर्ष 20-21 के दौरान कंपनी के कुल 6 करोड़ रुपए के टर्नओवर में ब्रांड प्रेसो का योगदान 27 लाख रुपए रहा.
सिंधु ने जीवन में अपने लिए जो भी लक्ष्य निर्धारित किए थे, उन सभी को हासिल किया. छात्रा के रूप में वे चाहती थीं कि उच्च शिक्षा विदेश में शीर्ष रैंकिंग विश्वविद्यालयों में से एक में करें और वे 2006 में 23 साल की उम्र में वारविक बिजनेस स्कूल गईं.
उन्होंने वहां इन्फॉरमेशन सिस्टम्स एंड मैनेजमेंट में एमबीए किया. कोर्स के दौरान एक साल के लिए शाम 6 से रात 11.30 बजे तक कॉलेज के समय के बाद एक रेस्तरां में वैट्रस के रूप में भी काम किया.
अपने पति और बिजनेस पार्टनर अरुण तथा बेटी लाया के साथ सिंधु. |
सिंधु कहती हैं, “भारत में ग्रामीण पृष्ठभूमि से होना मेरे लिए एक अलग अनुभव रहा. मैं आधी रात को काम से अकेले ही लौट आती थी. मुझे लगता है कि चुनौतियों का सामना करने का साहस मुझे अपनी मां से मिला, जो एक साहसी महिला थीं.”
बाद में, सिंधु ने लंदन में एक्सा लाइफ इंश्योरेंस में सेल्स एग्जीक्यूटिव के रूप में और फिर एक सुपरमार्केट में काम किया. वहां उन्होंने सेल्स एग्जीक्यूटिव के रूप में शुरुआत की थी और असिस्टेंट मैनेजर बनीं.
2009 में वे भारत लौट आई और अपने भाई के साथ एक ई-कॉमर्स पोर्टल शुरू किया. पोर्टल सीधे आपूर्ति यानी ड्रॉपशीपिंग मॉडल पर काम करता था. इसके जरिए मोबाइल फोन और किताबें बेचे जाते थे.
भाई-बहन दोनों ने बैंक से कर्ज लेकर पैसे जुटाए और अपनी बचत का पैसा भी लगाया, लेकिन उसे दो साल बाद ही बंद करना पड़ा. वे याद करती हैं, “हमने उन दो सालों में करीब 25 लाख रुपए का निवेश किया था.”
उसी समय मां ने सिंधु को शादी करने और घर बसाने के लिए मना लिया. सिंधु ने 2012 में अरुण से शादी की और एक साल बाद उनकी बेटी लाया का जन्म हुआ.
2017 में सिंधु और अरुण ने बेंगलुरु में बिजनेस कोच राजीव तलरेजा के मातहत एक साल का कोर्स किया. दोनों हर सप्ताह के अंत में कक्षा के लिए बेंगलुरु जाते थे.
सिंधु कहती हैं, “इस कोर्स के दौरान मुझे एहसास हुआ कि मुझे अपना खुद का एक ब्रांड लॉन्च करना चाहिए. इसने हमें एक नया व्यवसाय शुरू करने के लिए एक अच्छी बुनियाद उपलब्ध कराई. इसके साथ ही मौजूदा बिजनेस को नया आयाम दिया.”
“तलरेजा ने बहुत सारे कमजोर बिंदुओं को छुआ और हमारे लिए बहुत-सी संभावनाएं खोलीं.”
मोदक्कुपट्टी गांव में अपने उत्पादन संयंत्र में टीम के कुछ सदस्यों के साथ सिंधु. |
प्रेसो को बेंगलुरू में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में लॉन्च किया गया. इसमें उन संपर्कों के घरों पर सामान डिलीवर करने की योजना थी, जो उन्होंने कोर्स के दौरान बनाए थे. उन शुरुआती दिनों में उन्हें ऑर्डर वॉट्सएप और फोन कॉल पर मिलते थे.
आज, प्रेसो के पूरे भारत में लगभग 100 डिस्ट्रीब्यूटर्स और रिसेलर हैं. सिंधु कहती हैं, “हमारा लक्ष्य एक लाख लोगों को बिजनेस शुरू करने या उनके बिजनेस में विविधता लाने में मदद करना है.” वर्तमान में उनकी टीम में 15 लोग हैं. वे सभी महिलाएं हैं.
वे अपनी बात समाप्त करते हुए कहती हैं, “ताजा और प्राकृतिक उत्पाद उपलब्ध कराने में लोगों की मदद करना ही हमारा मंत्र है.”
आप इन्हें भी पसंद करेंगे
-
किचन से बनी करोड़पति
अपनी मां की तरह नीता मेहता को खाना बनाने का शौक था लेकिन उन्हें यह अहसास नहीं था कि उनका शौक एक दिन करोड़ों के बिज़नेस का रूप ले लेगा. बिना एक पैसे के निवेश से शुरू हुए एक गृहिणी के कई बिज़नेस की मालकिन बनने का प्रेरणादायक सफर बता रही हैं दिल्ली से सोफ़िया दानिश खान. -
मधुमक्खी की सीख बनी बिज़नेस मंत्र
छाया नांजप्पा को एक होटल में काम करते हुए मीठा सा आइडिया आया. उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. आज उनकी कंपनी नेक्टर फ्रेश का शहद और जैम बड़े-बड़े होटलों में उपलब्ध है. प्रीति नागराज की रिपोर्ट. -
सिंधु के स्पर्श से सोना बना बिजनेस
तमिलनाडु के तिरुपुर जिले के गांव में एमबीए पास सिंधु ब्याह कर आईं तो ससुराल का बिजनेस अस्त-व्यस्त था. सास ने आगे बढ़ाया तो सिंधु के स्पर्श से बिजनेस सोना बन गया. महज 10 लाख टर्नओवर वाला बिजनेस 6 करोड़ रुपए का हो गया. सिंधु ने पति के साथ मिलकर कैसे गांव के बिजनेस की किस्मत बदली, बता रही हैं उषा प्रसाद -
खिलाड़ी से बने बस कंपनी के मालिक
साल 1985 में प्रसन्ना पर्पल कंपनी की सालाना आमदनी तीन लाख रुपए हुआ करती थी. अगले 10 सालों में यह 10 करोड़ रुपए पहुंच गई. आज यह आंकड़ा 300 करोड़ रुपए है. प्रसन्ना पटवर्धन के नेतृत्व में कैसे एक टैक्सी सर्विस में इतना ज़बर्दस्त परिवर्तन आया, पढ़िए मुंबई से देवेन लाड की रिपोर्ट -
‘अंत्येष्टि’ के लिए स्टार्टअप
जब तक ज़िंदगी है तब तक की ज़रूरतों के बारे में तो सभी सोच लेते हैं लेकिन कोलकाता का एक स्टार्ट-अप है जिसने मौत के बाद की ज़रूरतों को ध्यान में रखकर 16 लाख सालाना का बिज़नेस खड़ा कर लिया है. कोलकाता में जी सिंह मिलवा रहे हैं ऐसी ही एक उद्यमी से -