Milky Mist

Saturday, 27 July 2024

पति-पत्नी दिवालिया होने की कगार पर पहुंचे, लेकिन हिम्मत नहीं हारी; 5 हजार रुपए निवेश कर 25 करोड़ रुपए टर्नओवर वाला बिजनेस बनाया

27-Jul-2024 By सोफिया दानिश खान
कोयंबटूर

Posted 09 May 2021

प्रितेश अशर और मेघा अशर. दोनों बचपन के दोस्त. बड़े होकर एक-दूसरे के जीवनसाथी बने. जब उन्होंने छोटे बिजनेस शुरू किए तो दिवालिया होने की कगार पर पहुंच गए. इनमें से एक बिजनेस घर पर बने स्कीनकेयर प्रोडक्ट्स का था. उन्होंने यह बिजनेस 2014 में कोयंबटूर में महज 5,000 रुपए के निवेश से शुरू किया था.

ज्यूसी केमेस्ट्री उनके घर के किचन में सहयोगी की मदद से शुरू हुआ. इस छोटी सी शुरुआत के बाद दोनों ने लंबा सफर तय किया है. प्रितेश कहते हैं, “2020-21 में हमारा टर्नओवर 25 करोड़ रुपए को पार कर गया है.”

प्रितेश अशर और मेघा अशर ने 2014 में अपने घर के किचन से ज्यूसी केमेस्ट्री को लॉन्च किया. निवेश राशि महज 5 हजार रुपए थी. (सभी फोटो : विशेष व्यवस्था से)

ज्यूसी केमेस्ट्री ने 100 से अधिक ऑर्गेनिक प्रोडक्ट पेश किए हैं. ये मुंहासों, ऑयली हेयर, हेयर फॉल, आंखों के नीचे डार्क सर्कल और पिगमेंटेड लिप्स में कारगर हैं.

लेकिन इस युगल के लिए जीवन हमेशा गुलाबों की सेज नहीं रहा. शादी के शुरुआती दिनों में ही उन्होंने कई मुसीबतों और असफलताओं का सामना किया. शादी के दो साल बाद 2011 में प्रितेश ने कैंसर से अपने पिता को खो दिया. उस समय प्रितेश महज 26 साल के थे.

उनके पिता की पेट्रोलियम प्रोडक्ट बनाने की यूनिट थी, लेकिन अपने सर्वश्रेष्ठ प्रयासों के बावजूद प्रितेश वह बिजनेस जारी नहीं रख सके.

अतीत के मुश्किल दिनों को याद कर प्रितेश कहते हैं, “पैसा जुटाने, पार्टनर तलाशने, मशीनरी बेचने में मुझे 18 बार असफलता का सामना करना पड़ा.”

“व्यक्तिगत और व्यावसायिक दोनों रूपों में वह मेरे जीवन का कठिन समय था. हम दिवालिया हो गए, और एक समय तो मेरे परिवार के लिए एक समय का भोजन जुटाना मुश्किल हो गया था.”

घर खर्च चलाने के लिए मेघा शादियों में मेहंदी के ऑर्डर लेने लगी. बाद में उन्होंने मेघा अशर डिजाइन लेबल से डिजाइनर ड्रेसेस बेचने के लिए बूटीक शुरू किया.

प्रितेश ने कर्ज चुकाने के लिए गेस्ट हाउस, प्रॉपर्टी और फैक्टरी की जमीन तक बेच दी. वे कहते हैं, “मेघा परिवार की एकमात्र कमाने वाली थी. मुझे बिजनेस से बाहर आने के लिए 11 बैंकों का कर्ज और निजी कर्ज चुकाने पड़े.”
प्रितेश और मेघा सबसे पहले स्कूल में मिले थे. बाद में वे जीवनसाथी और बिजनेस पार्टनर बन गए.

प्रितेश ने अवसर तलाशने शुरू कर दिए. वे कहते हैं, “मुझे कहीं नहीं जाना था क्योंकि मैं हमेशा सोचता था कि मैं पारिवारिक बिजनेस संभालूंगा. मैंने मेघा की मदद करना शुरू किया. मैं अवसर की तलाश में 30 दिन के लिए दुबई भी गया, लेकिन कुछ काम नहीं बना.

प्रितेश के जीवन में ऐसा समय आया था, जब उन्हें सभी दरवाजे बंद दिख रहे थे. वे कहते हैं, “हमने ऑस्ट्रेलिया में बस जाने के बारे में सोचा. वहां हमारे कॉलेज के दिनों के दोस्त थे, लेकिन मुझे अपनी मां की भी देखभाल करनी थी.”

मेघा का बूटीक बेहतर चलने लगा था. अब वही उनके जीवन का सहारा था. यहां बेचे जाने वाले कपड़े मुंबई में एक वर्कशॉप में बनाए जाते थे. वहां मेघा की मां रहती थीं और बिजनेस की देखभाल करती थीं. वहां से कपड़े कोयंबटूर भेजे जाते थे.

मेघा अशर डिजाइन ने एक साल में करीब 25 लाख रुपए का बिजनेस किया. इसमें करीब 30% मुनाफा था.

मेघा कहती हैं, “कपड़े हमेशा से मेरा जुनून रहे हैं. सिले हुए सबसे अलग कपड़े पहनना मुझे बहुत अच्छा लगता है. जब मैं शादी के बाद कोयंबटूर रहने आई, तो मुझे मेरे कपड़ों या स्टाइल को लेकर हमेशा तारीफ मिली. तभी मैंने अपने नाम का लेबल बनाने और तैयार कपड़े बेचने का अवसर देखा.”

“इस विचार को अच्छा प्रतिसाद मिला और बिजनेस चल पड़ा. मेरी पूरी वर्कशॉप मुंबई में थी. मेरी मां इस यात्रा का सबसे अहम हिस्सा रही हैं. उन्हीं ने सिले हुए कपड़ों के प्रति मेरा रुझान बढ़ाया. वे मेरे बूटीक की आधार थीं.”

दोनों के मन में स्कीनकेयर के ऑर्गेनिक प्रोडक्ट्स लॉन्च करने का विचार तब आया, जब वे मेघा की मुंहासे वाली त्वचा के इलाज के लिए कोई ऑर्गेनिक लोशन तलाश रहे थे.

इस खोज के दौरान ही उन्हें पता चला कि जिन उत्पादों पर ऑर्गेनिक या नैचुरल का लेबल लगा होता है उनमें प्रिजर्वेटिव्ज, पैराबेन्स और मिनरल ऑइल्स होते हैं. प्रितेश इनमें से कुछ केमिकल से परिचित थे क्योंकि उनका इस्तेमाल उनके पिता के पेट्रोलियम प्रॉडक्ट्स बनाने वाले प्लांट में होता था.
मेघा ने पहले एक बूटीक लॉन्च किया था, जिसकी बदौलत मुश्किल दिनों में परिवार को बहुत मदद मिली.

प्रितेश ने पाया कि हर्बल टी में भी केमिकल्स होते हैं. वे कहते हैं, “लोग जिस प्रॉडक्ट का इस्तेमाल करते हैं, वे उसके तत्वों के बारे में जानते ही नहीं हैं. यहां तक कि बेबीकेयर प्रॉडक्ट्स में भी केमिकल होते हैं, जबकि दावा किया जाता है कि वे नैचुरल हैं.”

प्रितेश और मेघा की मुलाकात कोयंबटूर के चिन्मया इंटरनेशनल रेसिडेंशियल स्कूल में हुई थी. वहां दोनों पढ़ाई करते थे. दोनों कक्षा 11 में सहपाठी थे. इसके बाद दोस्त बन गए.

मेघा कहती हैं, “जब हमारी मुलाकात हुई, तब मैं एकाकी थी, जो बस किताबों और संगीत से घिरी रहना पसंद करती थी. प्रितेश स्कूल के सबसे लोकप्रिय लड़कों में से एक थे.”

“मैं डरती थी कि मुझे चुप करा दिया जाएगा. लेकिन प्रितेश का सोचने, बोलने, जीवन जीने का अंदाज बिल्कुल अलग था, जिसकी मैं अब तक अभ्यस्त थी. मुझे लगता है यह दो विपरीत ध्रुवों का आकर्षण था और जब भी मैं उनके साथ होती थी, मुझे ऐसा ही लगता था.”

बाद में, दोनों ने ऑस्ट्रेलिया में ग्रिफिथ यूनिवर्सिटी में प्रवेश लिया. प्रितेश ने बिजनेस मैनेजमेंट में बैचलर डिग्री ली. वहीं मेघा ने क्रिमिनल साइंस एंड जस्टिस सिस्टम का विकल्प चुना.

2009 में, दोनों अपने परिवार के आशीर्वाद से विवाह बंधन में बंध गए. उस समय मेघा 25 साल की थी और प्रितेश 26 साल के.

मेघा कहती हैं, “जब हमने ज्यूसी केमेस्ट्री की शुरुआत की, तो लोगों ने हाथोहाथ लिया.” लेकिन हमें लोगों को प्रॉडक्ट के बारे में विस्तार से जानकारी देना चुनौती था. जैसे लोग पूछते थे कि यह मार्केट में उपलब्ध दूसरे प्रॉडक्ट से अलग क्यों दिखता है, आदि.

मेघा कहती हैं, “हम तत्काल समझ गए कि यही वह रणनीति है, जो बिजनेस को बढ़ाने के लिए जरूरी थी. कोई गलत वादे नहीं, कोई झूठे वादे नहीं. केवल यह बताना कि प्रॉडक्ट किस चीज से बना है, इसके तत्व क्यों सर्वश्रेष्ठ हैं और हम यह प्रॉडक्ट कैसे बनाते हैं. यही बातें हमारी ताकत थीं.”

शुरुआती दिनों में, उन्होंने अपने प्रॉडक्ट फेसबुक और वॉट्सएप से बेचे. 2016 में, इन्हें अमेजन पर सूचीबद्ध कराया.

उसी साल उनके प्रॉडक्ट का एक वीडियो वायरल हुआ और बिजनेस चल पड़ा. प्रितेश कहते हैं, “हम फोन नीचे भी नहीं रख पा रहे थे. हमारे पास लगातार ऑर्डर आ रहे थे. हमने दिल्ली, मुंबई और अन्य मेट्रो शहरों की एग्जीबिशन में भी हिस्सा लिया.”


प्रितेश ने इकोसर्ट सर्टिफिकेशन लेने पर जोर दिया. हालांकि इसमें अच्छा-खासा पैसा लगा.

साल 2017 में, वे अपने घर में बनाए गए ऑफिस से शहर के हृदय स्थल स्थित 2,500 वर्ग फुट की प्रॉपर्टी पर शिफ्ट हो गए. वहां उन्होंने अपना ऑफिस और फैक्टरी स्थापित की.

उन्होंने अपने प्रोडक्ट के लिए प्रतिष्ठित इकोसर्ट सर्टिफिकेशन भी हासिल किया है. (इकोसर्ट अंतरराष्ट्रीय रूप से मान्यता प्राप्त एक संगठन है. इसका मुख्यालय फ्रांस में है. यह कॉस्मेटिक ब्रांड्स को ऑर्गेनिक सर्टिफिकेट देता है.)

प्रितेश कहते हैं, “यह बहुत महंगा था. इसे हासिल करना बहुत मुश्किल रहा. मैंने मेघा की ओर देखा और कहा कि हमें इसे हासिल करना है. इसके लिए हमें अपने सेटअप में पूरी तरह बदलाव करना था.”

प्रितेश बताते हैं, “उनकी एक लंबी चेकलिस्ट होती है. इसमें उन लोगों को भी जानकारी देनी होती है, जिनसे हम रॉ प्रोडक्ट जुटाते हैं. इस प्रक्रिया को पूरा करने में हमें दो साल लग गए.”

आज, ज्यूसी केमेस्ट्री दुनियाभर से रॉ मटेरियल का आयात करती है. इनके 35 देशों में ग्राहक हैं और 6 देशों में डिस्ट्रीब्यूटर हैं. उनके प्रॉडक्ट में 350 रुपए के लिप बाम से लेकर 1,100 रुपए का हेयर ऑयल तक शामिल है.

साल 2019 में इन्हें 4.5 करोड़ रुपए की सीड फंडिंग मिली है. कंपनी ने नई मशीनरी और उनकी उत्पादन सुविधा बढ़ाने पर निवेश किया है.

कोविड की वजह से लगे लॉकडाउन ने उनकी बढ़ोतरी को धीमा कर दिया है. प्रितेश कहते हैं, “हमने अपने प्रॉडक्ट्स का निर्माण रोक दिया है और कर्मचारियों को व्यस्त रखने के लिए सैनिटाइजर बनाना शुरू कर दिया है.”

वे कहते हैं, “मैं इंस्टाग्राम पर सक्रिय हूं और लोगों को त्वचा की देखभाल के लिए बहुत सारे डाई फॉर्मूले बताता हूं. इंस्टाग्राम पर मेरे फॉलोअर्स 80 हजार से बढ़कर 1.30 लाख हो गए हैं. अब हम फिर से पटरी पर लौट रहे हैं.”

 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • Sharath Somanna story

    कंस्‍ट्रक्‍शन का महारथी

    बिना अनुभव कारोबार में कैसे सफलता हासिल की जा सकती है, यह बेंगलुरु के शरथ सोमन्ना से सीखा जा सकता है. बीबीए करने के दौरान ही अचानक वे कंस्‍ट्रक्‍शन के क्षेत्र में आए और तमाम उतार-चढ़ावों से गुजरने के बाद अब वे एक सफल बिल्डर हैं. अपनी ईमानदारी और समर्पण के चलते वे लगातार सफलता हासिल करते जा रहे हैं.
  • The man who is going to setup India’s first LED manufacturing unit

    एलईडी का जादूगर

    कारोबार गुजरात की रग-रग में दौड़ता है, यह जितेंद्र जोशी ने साबित कर दिखाया है. छोटी-मोटी नौकरियों के बाद उन्होंने कारोबार तो कई किए, अंततः चीन में एलईडी बनाने की इकाई स्थापित की. इसके बाद सफलता उनके क़दम चूमने लगी. उन्होंने राजकोट में एलईडी निर्माण की देश की पहली इकाई स्थापित की है, जहां जल्द की उत्पादन शुरू हो जाएगा. राजकोट से मासुमा भारमल जरीवाला बता रही हैं एक सफलता की अद्भुत कहानी
  • Weight Watches story

    खुद का जीवन बदला, अब दूसरों का बदल रहे

    हैदराबाद के संतोष का जीवन रोलर कोस्टर की तरह रहा. बचपन में पढ़ाई छोड़नी पड़ी तो कम तनख्वाह में भी काम किया. फिर पढ़ते गए, सीखते गए और तनख्वाह भी बढ़ती गई. एक समय ऐसा भी आया, जब अमेरिकी कंपनी उन्हें एक करोड़ रुपए सालाना तनख्वाह दे रही थी. लेकिन कोरोना लॉकडाउन के बाद उन्हें अपना उद्यम शुरू करने का विचार सूझा. आज वे देश में ही डाइट फूड उपलब्ध करवाकर लोगों की सेहत सुधार रहे हैं. संतोष की इस सफल यात्रा के बारे में बता रही हैं उषा प्रसाद
  • Bengaluru college boys make world’s first counter-top dosa making machine

    इन्होंने ईजाद की डोसा मशीन, स्वाद है लाजवाब

    कॉलेज में पढ़ने वाले दो दोस्तों को डोसा बहुत पसंद था. बस, कड़ी मशक्कत कर उन्होंने ऑटोमैटिक डोसामेकर बना डाला. आज इनकी बनाई मशीन से कई शेफ़ कुरकुरे डोसे बना रहे हैं. बेंगलुरु से उषा प्रसाद की दिलचस्प रिपोर्ट में पढ़िए इन दो दोस्तों की कहानी.
  • The rich farmer

    विलास की विकास यात्रा

    महाराष्ट्र के नासिक के किसान विलास शिंदे की कहानी देश की किसानों के असल संघर्ष को बयां करती है. नई तकनीकें अपनाकर और बिचौलियों को हटाकर वे फल-सब्जियां उगाने में सह्याद्री फार्म्स के रूप में बड़े उत्पादक बन चुके हैं. आज उनसे 10,000 किसान जुड़े हैं, जिनके पास करीब 25,000 एकड़ जमीन है. वे रोज 1,000 टन फल और सब्जियां पैदा करते हैं. विलास की विकास यात्रा के बारे में बता रहे हैं बिलाल खान