Milky Mist

Saturday, 13 December 2025

अलीगढ़ से ऑस्ट्रेलिया, इस युवा ने कई बाधाएं पार कर बनाई 12 करोड़ रुपए टर्नओवर वाली कंपनी

13-Dec-2025 By सोफिया दानिश खान
अलीगढ़

Posted 18 Dec 2020

उत्तर प्रदेश के छोटे से शहर अलीगढ़ के मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मे और पले-बढ़े आमिर कुतुब एमबीए करने के लिए ऑस्ट्रेलिया के गीलॉन्ग गए. वहां उन्होंने उद्यमी बनने की अपनी महत्वाकांक्षा पूरी की.

उन्होंने एयरपोर्ट पर क्लीनर और सुबह अखबार बांटने जैसे पार्ट-टाइम काम किए. इसके बाद वे उसी कंपनी में सबसे युवा जीएम बने, जिसमें वे काम करते थे. आखिर उन्होंने अपना खुद का बिजनेस शुरू किया, जिसने महज पांच सालों में 2 मिलियन ऑस्ट्रेलियाई डॉलर (करीब 12 करोड़ रुपए) का टर्नओवर हासिल कर लिया.

एंटरप्राइज मंकी के संस्थापक आमिर कुतुब. (सभी फोटो : विशेष व्यवस्था से)

एंटरप्राइज मंकी आमिर की गीलॉन्ग स्थित कंपनी है. यह बिजनेस को ऑटोमेट करने में मदद करती है. वर्तमान में इस कंपनी में करीब 100 लोग काम करते हैं.

आमिर निवेशक भी हैं. वे ऑस्ट्रेलिया में आठ अन्य स्टार्ट-अप के सह-संस्थापक भी हैं. इन सभी का संयुक्त मूल्य 30 मिलियन ऑस्ट्रेलियाई डॉलर है.

2011 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) से मेकेनिकल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन के बाद ग्रेटर नोएडा स्थित होंडा कंपनी में पहली नौकरी करने वाले 31 वर्षीय आमिर के मुताबिक, "इन स्टार्ट-अप में से दो फेल हो गए थे. छह किसी तरह अस्तित्व में हैं, जबकि तीन बहुत अच्छा काम कर रहे हैं.''

उन्होंने होंडा कंपनी में करीब एक साल प्रोडक्शन इंजीनियर के रूप में काम किया. इस बीच उन्हें एहसास हुआ कि वे सुबह 9 से शाम 5 बजे तक की नौकरी के लायक नहीं हैं और वे जिंदगी में बड़ी चीजें पाने के लिए बने हैं.

आमिर अपनी पहली नौकरी के बारे में बताते हैं, "मुझे महसूस हुआ कि मैं अपनी योग्यता और कौशल को व्यर्थ गंवा रहा हूं. ऑफिस में सबकुछ कागज आधारित था. दस्तावेज अक्सर गुम हो जाते थे और समस्याएं खड़ी करते थे. मैंने सबकुछ ऑटोमैट और डिजिटलीकरण करने का प्रस्ताव दिया. उन्होंने मुझे रोज का काम पूरा करने के बाद यह काम करने की अनुमति दे दी.''

जब मैंने प्रोजेक्ट खत्म किया, तो इसे सभी स्टोर में लागू किया गया. लेकिन उन्होंने मेरी प्रोफाइल नहीं बदली. इसी के बाद मैंने नौकरी छोड़ दी.
अलीगढ़ में जन्मे आमिर ने लंबा सफर तय किया है. आज वे ऑडी और मर्सिडीज जैसी गाड़ियां चलाते हैं. ऑस्ट्रेलिया में उनका घर भी है.

23 की उम्र में आमिर जीवन के दोराहे पर थे. शुरुआती शंकाओं और डर से निकलकर अंतत: उन्होंने फैसला किया कि वे अपने सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट के कौशल का इस्तेमाल करेंगे, जो उन्होंने अपने कॉलेज के दिनों में यूके, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया की कंपनियों के लिए फ्रीलांस काम करने के उद्देश्य से सीखा था.

एएमयू में आमिर ने मेकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करते हुए पाठ्येतर गतिविधियों में भी रुचि ली थी. वे वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेते थे और पुरस्कार जीतते थे. उन्होंने एक स्टूडेंट मैग्जीन भी शुरू की थी.

उन्होंने स्टूडेंट्स के लिए एक सोशल नेटवर्किंग साइट बनाने की खातिर कोडिंग भी सीखी. यह वेबसाइट बहुत लोकप्रिय हुई थी. आमिर कहते हैं, "एक समय वेबसाइट के 50 हजार सक्रिय यूजर थे. इनमें पूर्व छात्र भी शामिल थे.'' आमिर को कोडिंग की अपनी महारत की बदौलत ही आने वाले सालों में खुद की कंपनी खड़ी करने का साहस मिला.

आमिर के लिए नए अवसर तब खुले, जब ऑस्ट्रेलिया के एक क्लाइंट ने उन्हें सुझाव दिया कि वे बेहतर अवसरों के लिए ऑस्ट्रेलिया आ जाएं. उन्होंने डीकिन यूनिवर्सिटी, गीलॉन्ग में एमबीए के लिए आवेदन किया. उन्हें वहां एडमिशन मिल गया और पहली तिमाही के लिए स्कॉलरशिप भी मिल गई.

ऑस्ट्रेलिया में भी आमिर खुद का बिजनेस शुरू करने का सपना देखते रहे. साथ ही वे पार्ट टाइम काम की तलाश भी करते रहे. 

आमिर कहते हैं, "मुझे अब भी जीने और अपना बिजनेस शुरू करने के लिए पैसों की जरूरत थी. मैं अपने पिता से पैसे नहीं लेना चाहता था क्योंकि वे एमबीए के लिए मुझे पहले ही 5 लाख रुपए दे चुके थे.'' आमिर ने 170 कंपनियों में आवेदन दिया, लेकिन किसी ने भी पलट कर जवाब नहीं दिया.

आखिर, उन्हें गीलॉन्ग एयरपोर्ट पर क्लिनर के रूप में नौकरी मिल गई, जहां वे हफ्ते में 4 दिन सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक काम करने लगे.

वे कहते हैं, "मैं पायलटों से मिलता और किसी-किसी से बातचीत भी कर लेता. भारत में सफाई के काम को हिकारत की नजरों से देखा जाता है, लेकिन ऑस्ट्रेलिया में यह किसी अन्य नौकरी की तरह ही है. जब मेरे परिजनों को इस काम के बारे में पता चला तो वे उदास हो गए. इसके अलावा, रिश्तेदारों ने भी मजाक बनाया, जिससे परिवार का जीना मुश्किल कर दिया.''

काम का समय अधिक होने से तीन महीने बाद आमिर ने वह नौकरी छोड़ दी. इससे उनकी पढ़ाई भी प्रभावित हो रही थी. इसके बाद उन्हें अखबार बांटने का काम मिला, जो अलसुबह 3 बजे शुरू होता था और 8 बजे खत्म हो जाता था. इससे उन्हें पढ़ाई पर ध्यान देने के लिए अच्छा-खासा समय मिलने लगा.

वे लगातार अवसर भी तलाशते रहे. एक आईटी फर्म में उन्हें इंटर्नशिप का मौका मिला. वहां वे कंपनी के लिए पूरे बिजनेस मॉडल की रिपोर्ट तैयार करते थे. उन्होंने दूसरी इंटर्नशिप आईसीटी गीलॉन्ग में की. यह भी एक अन्य आईटी फर्म थी. वहां उन्हें ऑपरेशन मैनेजर के रूप में काम मिला. उनकी सैलरी 5 हजार ऑस्ट्रेलियाई डॉलर थी.

आमिर ने उद्ममिता को प्रोत्साहित करने के लिए अलीगढ़ में एक फाउंडेशन की स्थापना की है. वे इस पर ध्यान देने के लए अक्सर भारत आने की योजना बनाते हैं.

वे सीधे जनरल मैनेजर के मातहत काम करते थे. जीएम ने करीब डेढ़ साल बाद इस्तीफा दे दिया. इससे कंपनी में जनरल मैनेजर की पोस्ट खाली हो गई. आमिर को अंतरिम जीएम बनाया गया और उन्होंने अपने काम से कंपनी के बोर्ड का दिल जीत लिया.

समय के साथ उन्होंने अपना एमबीए पूरा किया और उन्हें स्थायी जनरल मैनेजर बना दिया गया. 25 साल की उम्र में वे कंपनी के सबसे युवा जीएम थे. वे बताते हैं, "एक साल में ही कंपनी का रेवेन्यू 300 प्रतिशत बढ़ गया.''

2014 में आईसीटी गीलॉन्ग में काम करते हुए ही उन्होंने अपनी बचत के पैसों से 4 हजार डॉलर निवेश कर एंटरप्राइज मंकी प्रोप्राइटर लि. कंपनी रजिस्टर करवाई. एक साल बाद, उन्होंने भारत से एक वर्चुअल असिस्टेंट को नौकरी पर रखा और चार लोगों के साथ मिलकर काम करने लगे.

जैसे-जैसे बिजनेस बढ़ा, वे अधिक लोगों को नौकरी पर रखने लगे, लेकिन जल्द ही उन्होंने पाया कि उनके पास कर्मचारियों काे तनख्वाह देने के लिए पैसे नहीं हैं. आमिर कहते हैं, "हम पैसे कमा रहे थे, लेकिन मैं कर्ज में डूबा हुआ था. मैंने निजी कर्जदाताओं से करीब 1 लाख ऑस्ट्रेलियाई डॉलर का लोन ले रखा था.''

आमिर कहते हैं, "परिस्थिति इतनी खराब हो गई थी कि मेरे पास अपनी कार में पेट्रोल भरवाने के पैसे भी नहीं थे. मेरे पास 17 कर्मचारी थे, टर्नओवर बड़ा था, लेकिन मुनाफा नहीं हो रहा था.''

उन्होंने करीब 2 महीने का ब्रेक लिया और पूरे बिजनेस मॉडल का अध्ययन किया, ताकि यह पता लगा सकें कि आखिर चीजें कहां गड़बड़ हो रही हैं.

उद्यमी बनने की यात्रा में अशांत समय को याद करते हुए आमिर बताते हैं, "मैं दोस्तों, परामर्शदाताओं, ग्राहकों के पास गया और उनका फीडबैक लिया. मैंने महसूस किया कि हमारे पास बहुत से छोटे-छोटे क्लाइंट थे, जिनकी वजह से हम मात खा रहे थे. बिजनेस को वृद्धि की बजाय मुनाफे पर लाया गया और कमाल हो गया! मैंने तीन ही महीने में सारा कर्ज चुका दिया.''


आमिर ने ऑस्ट्रेलियाई यंग बिजनेस लीडर ऑफ द ईयर के साथ ही कई अवॉर्ड जीते हैं.

आज, आमिर सफलता की परिभाषा बन चुके हैं, जिसका पीछा वे बहुत समय से कर रहे थे. उन्हें अब तक कई अवॉर्ड मिल चुके हैं, जिनमें ऑस्ट्रेलियाई यंग बिजनेस लीडर ऑफ द ईयर अवॉर्ड भी शामिल है. वे ऑडी आौर मर्सिडीज गाड़ियां चलाते हैं. ऑस्ट्रेलिया में उनका खुद का घर है. वहां वे अपनी डेंटिस्ट पत्नी सारा नियाजी के साथ रहते हैं.

आमिर ने अलीगढ़ में आमिर कुतुब फाउंडेशन की स्थापना की है. इसके जरिये वे लोगों को उद्यमिता अपनाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं.

आमिर समझदारीभरी बात करते हैं, "मैं अर्ध-सेवानिवृत्त स्थिति में हूं क्योंकि बिजनेस ऑटो-मोड में है. इसलिए अब मैं फाउंडेशन पर अधिक ध्यान दूंगा. मेरा जीवन हमेशा पैसे बनाने के बजाय कुछ नया और रोचक चीजें करने के बारे में रहा है.''

 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • Bandana Jain’s Sylvn Studio

    13,000 रुपए का निवेश बना बड़ा बिज़नेस

    बंदना बिहार से मुंबई आईं और 13,000 रुपए से रिसाइकल्ड गत्ते के लैंप व सोफ़े बनाने लगीं. आज उनके स्टूडियो की आमदनी एक करोड़ रुपए है. पढ़िए एक ऐसी महिला की कहानी जिसने अपने सपनों को एक नई उड़ान दी. मुंबई से देवेन लाड की रिपोर्ट.
  • Dairy startup of Santosh Sharma in Jamshedpur

    ये कर रहे कलाम साहब के सपने को सच

    पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम से प्रेरणा लेकर संतोष शर्मा ने ऊंचे वेतन वाली नौकरी छोड़ी और नक्सल प्रभावित इलाके़ में एक डेयरी फ़ार्म की शुरुआत की ताकि जनजातीय युवाओं को रोजगार मिल सके. जमशेदपुर से गुरविंदर सिंह मिलवा रहे हैं दो करोड़ रुपए के टर्नओवर करने वाले डेयरी फ़ार्म के मालिक से.
  • The rich farmer

    विलास की विकास यात्रा

    महाराष्ट्र के नासिक के किसान विलास शिंदे की कहानी देश की किसानों के असल संघर्ष को बयां करती है. नई तकनीकें अपनाकर और बिचौलियों को हटाकर वे फल-सब्जियां उगाने में सह्याद्री फार्म्स के रूप में बड़े उत्पादक बन चुके हैं. आज उनसे 10,000 किसान जुड़े हैं, जिनके पास करीब 25,000 एकड़ जमीन है. वे रोज 1,000 टन फल और सब्जियां पैदा करते हैं. विलास की विकास यात्रा के बारे में बता रहे हैं बिलाल खान
  • Rhea Singhal's story

    प्लास्टिक के खिलाफ रिया की जंग

    भारत में प्‍लास्टिक के पैकेट में लोगों को खाना खाते देख रिया सिंघल ने एग्रीकल्चर वेस्ट से बायोडिग्रेडेबल, डिस्पोजेबल पैकेजिंग बॉक्स और प्लेट बनाने का बिजनेस शुरू किया. आज इसका टर्नओवर 25 करोड़ है. रिया प्‍लास्टिक के उपयोग को हतोत्साहित कर इको-फ्रेंडली जीने का संदेश देना चाहती हैं.
  • Safai Sena story

    पर्यावरण हितैषी उद्ममी

    बिहार से काम की तलाश में आए जय ने दिल्ली की कूड़े-करकट की समस्या में कारोबारी संभावनाएं तलाशीं और 750 रुपए में साइकिल ख़रीद कर निकल गए कूड़ा-करकट और कबाड़ इकट्ठा करने. अब वो जैविक कचरे से खाद बना रहे हैं, तो प्लास्टिक को रिसाइकिल कर पर्यावरण सहेज रहे हैं. आज उनसे 12,000 लोग जुड़े हैं. वो दिल्ली के 20 फ़ीसदी कचरे का निपटान करते हैं. सोफिया दानिश खान आपको बता रही हैं सफाई सेना की सफलता का मंत्र.