Milky Mist

Thursday, 21 November 2024

इन्होंने बनाया था पीएम मोदी के नाम वाला मशहूर सूट, 225 करोड़ के टर्नओवर वाले जेड ब्लू ब्रैंड के हैं मालिक

21-Nov-2024 By पी.सी. विनोज कुमार
अहमदाबाद

Posted 08 Mar 2018

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निजी टेलर जीतेंद्र और बिपिन चौहान की कहानी बेहद रोचक है.

कल्पना कीजिए अगर किसी परिवार का कमाने वाला एकमात्र व्यक्ति अचानक संन्यास ले ले तो क्या होगा? उसके पांच छोटे बच्चों और पत्नी के लिए यह बहुत बड़ी चुनौती होगी.

लेकिन जब जीतेंद्र व बिपिन चौहान के सामने यह चुनौती आई तो उन्होंने तय किया कि वो सिलाई के अपने पारिवारिक पेशे को आगे बढ़ाएंगे. साथ ही उन्होंने इस काम में सर्वश्रेष्ठ बनकर उभरने की ठानी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निजी टेलर जितेंद्र चौहान (दाएं) और बिपिन चौहान बचपन से सिलाई की दुकान पर काम कर रहे हैं.

जीतेंद्र और बिपिन आज 225 करोड़ रुपए टर्नओवर वाले जेड ब्लू स्टोर की चेन के मालिक हैं. यह ब्रैंड पुरुषों के कपड़े बेचता है.

अहमदाबाद निवासी जीतेंद्र और बिपिन जब छोटे थे, तब से उन्होंने सिलाई की दुकानों में काम किया. उन्होंने कठोर परिश्रम से काम सीखा और 1981 में अपने उद्यमी सफर की शुरुआत करते हुए ख़ुद की दुकान खोली.

आज दोनों भाई अपने सपनों का जीवन जी रहे हैं. वो देश की मशहूर हस्तियों जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल के अलावा गौतम अडानी तथा करसनभाई पटेल जैसे उद्योगपतियों के भी कपड़े सिल रहे हैं.

भारत भर में उनके विभिन्न स्टोर्स में क़रीब 1,200 कर्मचारी काम करते हैं. दोनों भाई अमीर व मशहूर लोगों से मेलजोल रखते हैं और बिज़नेस के सिलसिले में दुनिया की यात्रा करते हैं.

लेकिन अगर 50 साल पहले आपकी इनसे मुलाक़ात हुई होती तो आप अंदाज़ नहीं लगा पाते कि अहमदाबाद के बाहरी इलाक़े में परिवार के साथ एक चॉल में रहने वाले ये छोटे बच्चे इन ऊंचाइयों को छुएंगे.

दोनों भाई खानदान की छठी पुश्त है, जो सिलाई से जुड़ी है. चौहान भाइयों का परिवार अहमदाबाद से 100 किलोमीटर दूर लिंबिदी का रहने वाला है.

पांच भाइयों में सबसे छोटे बिपिन जब चार साल के थे, तो उनके पिता चिमनलाल चौहान ने घर छोड़ दिया था और संन्यासी बन गए. यह साल 1966 की बात है.

53 वर्षीय बिपिन बताते हैं, “मेरे पिता मास्टर टेलर थे और निपुणता के हिमायती थे. उन्होंने कई जगहों की यात्रा की और लिंबिदी, मुंबई व कोलकाता में दुकानें शुरू कीं, लेकिन वो किसी जगह तीन से चार सालों से ज़्यादा नहीं टिकते थे.”

बिपिन कहते हैं, “वो आध्यात्मिक और दयालु इंसान थे. वो अपनी शर्ट निकालकर ग़रीबों को दे दिया करते थे.”

अपने स्टाफ़ के कुछ साथियों के साथ बिपिन और जितेंद्र. उनके स्टोर्स में क़रीब 1200 लोग काम करते हैं.

जब उनके पिता संन्यास लेने मशहूर आध्यात्मिक स्थल जूनागढ़ हिल्स चले गए, तब अहमदाबाद के साबरमती आश्रम के पास उनकी सिलाई की दुकान थी.

बिपिन कहते हैं, “दुकान का नाम था चौहान टेलर्स. वो दुकान को लेकर बेहद उत्साहित रहते थे. उन्होंने सिनेमा हॉल में स्लाइड्स पर इसका प्रचार भी किया था.”

उन दिनों जीवन मुश्किल से कट रहा था, लेकिन परिवार सम्मान से जी रहा था. हालांकि पिता के संन्यास लेने के बाद मुश्किलें और बढ़ गईं.

पिता के संन्यास लेने के एक साल में ही परिवार अहमदाबाद शहर के रतनपोल चला आया और नाना व मामा के साथ रहने लगा. 

उनके मामा की ‘मकवाना ब्रदर्स’ नाम से कुर्ते की दुकान थी.

बिपिन कहते हैं, “यह एक प्रसिद्ध दुकान थी, जहां हर दिन 100 कुर्ते सिले जाते थे. हम दोनों से बड़े भाई दिनेश ने दुकान में काम किया और सिलाई सीखी. बाकी भाई स्कूल से आने के बाद वहां काम करते थे.”

उनकी मां सुबह छह बजे से आधी रात तक सबसे ज़्यादा काम करती थीं. संभवतः बच्चों के पालन-पोषण में पिता की कमी को पूरा करने के लिए मां दोगुनी मेहनत करती थीं.

बिपिन कहते हैं, “उन्हें हेमिंग और बटन लगाने में महारत हासिल थी.”

अपने पिता की तरह बिपिन ‘परफे़क्ट फ़िट’ पर ज़ोर देते हैं.

बिपिन, उनके दो भाई और दो बहनें म्युनिसिपल स्कूल में पढ़ते थे.

साइकोलॉजी से ग्रैजुएट बिपिन कहते हैं, “हमें पढ़ाने-लिखाने का पूरा श्रेय मेरे नाना-मामा को जाता है. उन्होंने सुनिश्चित किया कि हम सभी भाई-बहनों के पास कॉलेज की डिग्री हो.”

साल 1975 में 22 वर्षीय दिनेश ने नाना-मामा की मदद से सिलाई की दुकान शुरू की. उन्होंने दुकान का नाम दिनेश टेलर्स रखा.

उस वक्त 15 वर्षीय बिपिन स्कूल, जबकि 19 वर्षीय जीतेंद्र कॉलेज में पढ़ रहे थे. यहीं दोनों भाइयों ने पेशेवर बारीकियां सीखीं और स्कूल-कॉलेज से आने के बाद घंटों काम किया.

बिपिन बताते हैं, “जीतेंद्र दिन में 14-15 घंटे काम करते और हर दिन 16 शर्ट सिलते. इतने शर्ट बनाना आसान नहीं था, लेकिन उन्होंने यह किया.”

बिपिन और जीतेंद्र ने मिलकर साल 1981 में सुप्रीमो क्लॉथिंग और मेंसवियर नाम से कपड़ा व सिलाई दुकान शुरू की.

देशभर में जेड ब्लू के 51 स्टोर हैं, जो 1,68,193 वर्ग फ़ीट में फैले हैं. 

बैंक से डेढ़ लाख रुपए लोन लेकर उन्होंने पुराने अहमदाबाद में एलिस ब्रिज के पास एक कमर्शियल कॉम्प्लेक्स में 250 वर्ग फ़ीट की दुकान शुरू की.
यह इलाक़ा सी.जी. रोड से अधिक दूर नहीं है, जहां जेड ब्लू का फ्लैगशिप स्टोर स्थित है.

सुप्रीमो दोनों भाइयों के लिए लॉन्चिंग पैड साबित हुई. जीतेंद्र दूरदर्शी थे. उन्होंने दुकान कंपनी के विस्तार की योजना बनाई. रचनात्मकता से भरे बिपिन कहते हैं, “जीतेंद्र तिकड़मी व्यक्ति हैं.” 

हालांकि बिपिन भी जितेंद्र से कम महत्वाकांक्षी नहीं हैं. साल 1980 के दौर में जब  उनका नाम बहुत कम था, तब भी बिपिन की ख़्वाइश थी, वो प्रधानमंत्री जैसे देश के नाम-गिरामी लोगों के लिए कपड़े बनाएं.

उन्हें इस बात का बिल्कुल अंदाज़ा नहीं था कि उनके ग्राहकों में से एक नरेंद्र मोदी एक दिन देश के प्रधानमंत्री बनेंगे.

उन दिनों नरेंद्र मोदी आरएसएस प्रचारक थे. उन्हें पॉली खादी फ़ैब्रिक का आधी बांह का कुर्ता पसंद था, क्योंकि इस पर आसानी से सिलवटे नहीं पड़तीं. कुर्ता सही फ़िट हो, इस पर मोदी का ख़ासा ध्यान रहता था.

बिज़नेस तेज़ी से फैला, उनकी दुकान का आकर्षण बढ़ा. मोदी व गौतम अडानी जैसे ग्राहक उनके दुकान पर आने लगे.

बिपिन बताते हैं, “मोदी साल 1989 से हमारे ग्राहक हैं.”

बिपिन नरेंद्र मोदी का नाप लेने के लिए साल में दो बार उनसे मिलते हैं.

अपने जीवनसाथी के साथ दोनों भाई.

ये बिपिन ही थे, जिन्होंने नरेंद्र मोदी के लिए मशहूर बंदगला सूट बनाया था, जिसके पूरे कपड़े की स्ट्रिप पर ‘नरेंद्र दामोदरदास मोदी’ लिखा था. यह सूट नरेंद्र मोदी ने पिछले साल तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से मुलाक़ात के दौरान पहना था.

उन्होंने साल 1986 में रेडीमेड कपड़े बनाना शुरू किया और ब्रैंड का नाम डी’ पीक प्वाइंट रखा.

नौ साल बाद 1995 में उन्होंने रिलॉन्च करते हुए ब्रैंड का नाम जेड ब्लू रखा और अपनी दुकान शहर के उच्चवर्गीय सीजी रोड इलाके में ले गए.

दरअसल उनके एक निष्ठावान ग्राहक बिज़नेसमैन एन.जी. पटेल ने उन्हें सलाह दी थी कि अगर वो दुकान को किसी प्रतिष्ठित इलाके़ में ले जाएं तो उनका काम तेज़ी से फैलेगा. बैंक ऋण और पटेल की कुछ मदद से यह संभव हो पाया.

बिपिन कहते हैं, “हम ऐसा नाम चाहते थे जो अंतरराष्ट्रीय हो और जिसके नाम की शुरुआत जे (जीतेंद्र) और बी (बिपिन) से हो.”

बिपिन कहते हैं, “हमारा एक दोस्त ऐड एजेंसी में काम करता था. उसने छह महीने लिए और जेड (कीमती पत्थर का नाम) ब्लू (पुरुषों का पसंदीदा रंग) नाम सुझाया.”

दो दशक बाद उसी इमारत में जेड ब्लू की 20,000 वर्ग फ़ीट बड़ी दुकान है. इसी इमारत में उनका कॉर्पाेरेट दफ़्तर और गोदाम है.

वर्तमान में पूरे देश में उनके कुल 51 स्टोर हैं, जो 1,68,193 वर्ग फ़ीट में फैले हैं.

इन दुकानों में वो अपने ब्रैंड जेड ब्लू और ग्रीन फ़ाइबर के अलावा बाहरी ब्रैंड के कपड़े बेचते हैं.

जितेंद्र के बेटे संभव (बाएं से दूसरे) और बिपिन के बेटे सिद्धेश अपने पारिवारिक बिज़नेस से जुड़ चुके हैं.

उनके स्टोर के ‘मोदी कुर्ता’ और ‘मोदी जैकेट’ बेहद लोकप्रिय हैं.

चौहान भाई नाप लेकर कपड़े सिलने की पारिवारिक परंपरा जारी रखे हुए हैं. हालांकि इस काम के लिए आजकल कारीगर मिलना आसान नहीं है.

अहमदाबाद, सूरत, हैदराबाद, पुणे और जयपुर स्थित पांच स्टोर में कस्टमाइज़्ड टेलरिंग की सुविधा है.

बिपिन के 26 साल के बेटे सिद्धेश कहते हैं, “सवाल परफ़ेेक्ट फ़िटिंग का है. सिर्फ़ कस्टमाइज़्ड टेलरिंग ही आपको ऐसी संतुष्टि दे सकती है.”

सिद्धेश ने लंदन स्कूल ऑफ़ फ़ैशन से डिज़ाइन की पढ़ाई की है.

सिद्धेश और उनकी बहन खुशाली कंपनी का ई-कॉमर्स ऑपरेशन देखते हैं जबकि जीतेंद्र के बेेटे शांभव कंपनी का प्रबंधन देखते हैं.

यह नई पीढ़ी परिवार की सातवीं पीढ़ी है, जो इस पारिवारिक बिज़नेस से जुड़ी है और इसे आगे बढ़ा रही है.


 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • Prakash Goduka story

    ज्यूस से बने बिजनेस किंग

    कॉलेज की पढ़ाई के साथ प्रकाश गोडुका ने चाय के स्टॉल वालों को चाय पत्ती बेचकर परिवार की आर्थिक मदद की. बाद में लीची ज्यूस स्टाॅल से ज्यूस की यूनिट शुरू करने का आइडिया आया और यह बिजनेस सफल रहा. आज परिवार फ्रेश ज्यूस, स्नैक्स, सॉस, अचार और जैम के बिजनेस में है. साझा टर्नओवर 75 करोड़ रुपए है. बता रहे हैं गुरविंदर सिंह...
  • New Business of Dustless Painting

    ये हैं डस्टलेस पेंटर्स

    नए घर की पेंटिंग से पहले सफ़ाई के दौरान उड़ी धूल से जब अतुल के दो बच्चे बीमार हो गए, तो उन्होंने इसका हल ढूंढने के लिए सालों मेहनत की और ‘डस्टलेस पेंटिंग’ की नई तकनीक ईजाद की. अपनी बेटी के साथ मिलकर उन्होंने इसे एक बिज़नेस की शक्ल दे दी है. मुंबई से देवेन लाड की रिपोर्ट
  • Success story of man who sold saris in streets and became crorepati

    ममता बनर्जी भी इनकी साड़ियों की मुरीद

    बीरेन कुमार बसक अपने कंधों पर गट्ठर उठाए कोलकाता की गलियों में घर-घर जाकर साड़ियां बेचा करते थे. आज वो साड़ियों के सफल कारोबारी हैं, उनके ग्राहकों की सूची में कई बड़ी हस्तियां भी हैं और उनका सालाना कारोबार 50 करोड़ रुपए का आंकड़ा पार कर चुका है. जी सिंह के शब्दों में पढ़िए इनकी सफलता की कहानी.
  • Success story of a mumbai restaurant owner

    सचिन भी इनके रेस्तरां की पाव-भाजी के दीवाने

    वो महज 13 साल की उम्र में 30 रुपए लेकर मुंबई आए थे. एक ऑफ़िस कैंटीन में वेटर की नौकरी से शुरुआत की और अपनी मेहनत के बलबूते आज प्रतिष्ठित शाकाहारी रेस्तरां के मालिक हैं, जिसका सालाना कारोबार इस साल 20 करोड़ रुपए का आंकड़ा छू चुका है. संघर्ष और सपनों की कहानी पढ़िए देवेन लाड के शब्दों में
  • Santa Delivers

    रात की भूख ने बनाया बिज़नेसमैन

    कोलकाता में जब रात में किसी को भूख लगती है तो वो सैंटा डिलिवर्स को फ़ोन लगाता है. तीन दोस्तों की इस कंपनी का बिज़नेस एक करोड़ रुपए पहुंच गया है. इस रोचक कहानी को कोलकाता से बता रहे हैं जी सिंह.