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Tuesday, 19 March 2024

24 साल की उम्र में कैंसर सर्वाइवर कनिका ने बनाई 150 करोड़ रुपए टर्नओवर वाली एविएशन कंपनी

19-Mar-2024 By सोफिया दानिश खान
नई दिल्ली

Posted 23 Sep 2021

जब आप बड़े सपने देखने की हिम्मत जुटाते हैं, तो आप ऊंचाई पर उड़ने वालों की श्रेणी में शामिल हो जाते हैं. कनिका टेकरीवाल के वास्तविक जीवन की कहानी ठीक ऐसी ही है. नौ साल पहले 24 वर्षीय कनिका ने कैंसर को हराकर जिंदगी की जंग जीती और भारतीय विमानन उद्योग में कदम रखा. उस समय उनके पास एक भी विमान नहीं था.

उसकी योजना ओला और उबर जैसे एग्रीगेटर मॉडल का उपयोग कर चार्टर विमान कारोबार करने की थी.


कनिका टेकरीवाल ने 2012 में जेटसेटगो नामक एयरक्राफ्ट एग्रीगेटर लॉन्च किया था. (तस्वीरें: विशेष व्यवस्था से)

दिल्ली स्थित जेटसेटगो (Jetsetgo) एविएशन सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड की संस्थापक कनिका कहती हैं, “मैंने 5600 रुपए का निवेश किया और चार्टर्ड फ्लाइट बुक करने के लिए एप बनाया. पहले दो साल मैंने ग्राहकों से अग्रिम राशि ली और वेंडर्स से क्रेडिट लेकर बिजनेस चलाया.”

2014 में, चार्टर्ड अकाउंटेंट और ऑक्सफोर्ड मैनेजमेंट ग्रैजुएट सुधीर पेरला कंपनी में सह-संस्थापक के रूप में जुड़े. वे कहती हैं, “मैंने लोगों को उनकी जरूरतों के अनुसार हवाई जहाज खरीदने के लिए परामर्श और सलाह भी दी.”

आज जेटसेटगो 150 करोड़ रुपए टर्नओवर वाली कंपनी बन गई है. इसके दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और हैदराबाद में कार्यालय और करीब 200 कर्मचारी हैं. साल 2020 में कंपनी ने आठ विमानों का अपना बेड़ा खरीदा है.

कनिका कहती हैं, “2020-21 में हमने 1 लाख यात्रियों को सफर करवाया और 6000 उड़ानें संचालित कीं. हमारे ज्यादातर ग्राहक कॉरपोरेट, मशहूर हस्तियां, नेता और महत्वपूर्ण लोग हैं. हम छह सीटों से लेकर 18 सीटों वाले विमान तक कई तरह की चार्टर उड़ानें संचालित करते हैं.”

“हमारी सबसे अधिक उड़ानें दिल्ली-मुंबई, मुंबई-बेंगलुरु और हैदराबाद-दिल्ली रूट पर होती हैं. हमारी करीब 5 प्रतिशत उड़ानें मेडिकल इमरजेंसी के लिए इस्तेमाल की जाती हैं.”

महामारी के कारण अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव के बावजूद कंपनी बढ़ रही है. कनिका इसका कारण बताती हैं, “हमने कोविड लॉकडाउन के दौरान लोगों की छंटनी नहीं की. न ही कोई वेतन कम किया. चूंकि हम अपना मुनाफा (अपने कर्मचारियों के साथ) साझा नहीं करते हैं, इसलिए हमें उनके वेतन में कटौती करने का कोई अधिकार नहीं है.”
कनिका ने कैंसर को हराया और जेटसेटगो को लॉन्च कर वापसी की.

अपने कर्मचारियों के लिए कनिका की चिंता स्पष्ट थी. जब हम उनका इंटरव्यू कर रहे थे, उसी दौरान एक विमान से कर्मचारी गिर गया. उन्होंने इंटरव्यू को बीच में रोका, स्थिति को खुद ही संभाला और यह सुनिश्चित करने के बाद ही लौटीं कि कर्मचारी को आवश्यक चिकित्सा सहायता मिल गई है.

जेटसेटगो अपनी ईवीटीओएल (इलेक्ट्रिकल वर्टिकल टेक-ऑफ) विमान सेवा के साथ शहरी क्षेत्र में एयर ट्रैफिक बढ़ने की स्थिति में अधिक लाभ की उम्मीद कर रहा है. ईवीटीओएल विमान उर्ध्वाधर टेकऑफ और लैंडिंग में सक्षम होते हैं. निकट भविष्य में इनके शहरी एयर ट्रैफिक में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की उम्मीद की जा रही है.

कनिका कहती हैं, “यह एक शहर के भीतर दो बिंदुओं के बीच शटल सेवा होगी. हमने हाल ही में मुंबई में यह सेवा शुरू की है और दूरी के आधार पर इसका शुल्क उबर की तरह 1000 से 2500 रुपए तक सस्ता होगा.”

“इस सेवा के लिए एक हेलीकॉप्टर का उपयोग किया जाता है. हम इसकी संभावना का परीक्षण कर रहे हैं. हम इसे आगे बढ़ा रहे हैं क्योंकि हमें विश्वास है कि भविष्य में एयर टैक्सी आम बात हो जाएगी.”

कनिका इस समय जिस मुकाम पर हैं, उस तक पहुंचने के लिए उन्होंने कई लड़ाइयां लड़ीं. उनका जन्म भोपाल के एक मारवाड़ी कारोबारी परिवार में हुआ था. परिवार के पास देशभर में मारुति की डीलरशिप थी.

पारिवारिक कारोबार विभाजित होने के बाद कनिका के पिता अनिल टेकरीवाल ने रियल एस्टेट बिजनेस शुरू किया. उनकी मां सुनीता गृहिणी हैं. उनका छोटा भाई कनिष्क है.
जेटसेटगो ने साल 2020 में आठ विमान खरीदे.

कनिका जब सिर्फ 7 साल की थी, जब उन्हें ऊटी के लवडेल स्थित लॉरेन्स स्कूल में कक्षा 4 में पढ़ने भेजा गया. यह एक आवासीय विद्यालय था और वे कक्षा में सबसे छोटी बच्ची थीं.

अपने गृहनगर भोपाल से करीब 1700 किलोमीटर दूर तमिलनाडु के हिल-स्टेशन ऊटी के बोर्डिंग स्कूल में पढ़ाई के दिनों को याद करते हुए कनिका कहती हैं, “मुझे डबल प्रमोशन मिला था. इसलिए मैं कक्षा में सबसे छोटी थी. मैं वहां अकेलापन महसूस करती थी, जबकि घर पर नौकरानी मेरी जरूरतों का ख्याल रखती थी.”

“मुझे बोर्डिंग में रहना कभी पसंद नहीं आया, लेकिन मुझे पता था कि मेरे माता-पिता ने मेरे लिए सबसे अच्छा सोचा होगा.”

10वीं कक्षा की पढ़ाई के बाद वे भोपाल लौट आईं. 2005 में जवाहरलाल नेहरू स्कूल से कॉमर्स विषय से 12वीं की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद वे बीडी सोमानी इंस्टीट्यूट (2005-08) से विजुअल कम्युनिकेशन एंड डिजाइनिंग में स्नातक करने के लिए मुंबई चली गईं.

वे हंसती हुई कहती हैं, “मुंबई आसान थी, क्योंकि होस्टल के जीवन ने मुझे सबसे बुरे के लिए तैयार कर दिया था. पिताजी मुझे थोड़ी सी पॉकेट देते थे क्योंकि वे सोचते थे कि अगर मुझे ज्यादा पैसा मिला तो मुझे शराब, धूम्रपान और ड्रग्स की लत लग जाएगी.”

“मुंबई ने मुझे जीना सिखा दिया. वहीं मैंने जीवन में पहली बार बस में चढ़ना सीखा, क्योंकि तब तक ड्राइवर ही मुझे कार से ले जाते थे. मैं स्ट्रीट स्मार्ट लड़की बन गई थी, और अधिक मानवीय भी.”

कनिका ने पार्ट-टाइम काम भी किया. वे कहती हैं, “17 साल की उम्र में मैंने डिज्नी के एक कार्यक्रम में भाग लिया और मुझे 300 रुपए मिले. यह उस समय बहुत अच्छा पैसा लग रहा था, क्योंकि मेरी पॉकेट मनी बहुत कम हुआ करती थी.”

“मैंने वह पैसा अपनी मां को दिया, क्योंकि कार्यक्रम के आयोजकों ने मुझे डिज्नी उपहार दिए थे, जो मुझे पसंद थे और वे मेरे लिए पैसे से ज्यादा कीमती थे.”
जेटसेटगो में पायलट और चालक दल सहित करीब 200 लोग काम करते हैं.

कॉलेज में रहते हुए कनिका ने इंडिया बुल्स के रियल एस्टेट डिवीजन के डिजाइनिंग विभाग में भी काम किया. बाद में उन्हें कंपनी के एविएशन सेक्शन में शिफ्ट कर दिया गया, जहां उन्हें एविएशन इंडस्ट्री के कई लोगों से मिलने का मौका मिला.

कनिका को इस कंपनी ने एविएशन बिजनेस का बहुमूल्य अनुभव दिया. वे कहती हैं, “मैंने कंपनी के लिए तीन हवाई जहाज और एक हेलीकॉप्टर खरीदा. मैंने सौदे के हर पहलू पर गौर किया, चाहे वह खरीदने के लिए सही विमान तय करना हो, या सौदे के तकनीकी पहलू हों या अंतिम कीमतों के लिए सौदेबाजी हो.”

जब उन्होंने 2008 में स्नातक की पढ़ाई पूरी की, तो माता-पिता ने कहा कि वे पोस्ट ग्रेजुएशन करें या शादी कर लें.

कनिका कहती हैं, “यह सब दिसंबर में हुआ, और जनवरी 2009 में मैंने एक साल के एमबीए प्रोग्राम के लिए यूके की कोवेंट्री यूनिवर्सिटी में दाखिला ले लिया. मुझे लगता है कि मेरे माता-पिता ने मुझे हमेशा सही दिशा में आगे बढ़ाया. भले ही कभी-कभी उनके फैसले उस समय कठोर लगे.”

यूके में भी उन्होंने विमानन उद्योग के साथ अपने रिश्ते को जारी रखा और एयरोस्पेस रिसोर्सेज में नौकरी करने लगीं. एमबीए करने के साथ-साथ भी उन्होंने इसे जारी रखा.

वे कहती हैं, “मैंने सीखा कि एक अंतरराष्ट्रीय विमानन कंपनी में चीजें कैसे काम करती हैं. मुझे लगता है कि मैंने वहां अधिक घंटों तक काम किया, ताकि अपना सर्वश्रेष्ठ काम दे सकूं.”

“मैंने वहां काम करके दिखाया, क्योंकि एक भारतीय होने के नाते हमेशा असुरक्षा और हीनता की भावना रहती थी. मैं उड्डयन क्षेत्र के बारे में जो कुछ भी जानती हूं, उसका श्रेय उसी स्थान को जाता है. उसी कंपनी में जेटसेटगो के विचार का जन्म हुआ.

कनिका का मानना ​​है कि निकट भविष्य में एयर-टैक्सी एक प्रमुख बाजार होंगी.

“मैं सिर्फ परीक्षा देने के लिए कॉलेज गई थी, क्योंकि वहां के शिक्षक समझते हैं कि आप अपनी जिम्मेदारी हैं. हैरानी की बात है कि मैंने हमेशा अच्छा स्कोर किया.”

एमबीए करने के बाद कनिका यूके में ही रह गईं. हालांकि 2011 में उन्हें यह जानकर सदमा पहुंचा कि उन्हें कैंसर है. उस समय वे सिर्फ 23 साल की थीं.

वे कहती हैं, "मैं लौटकर घर आ गई क्योंकि मैं अपने माता-पिता के साथ रहना चाहती थी. वे बहुत मददगार साबित हुए. उन्होंने मेरे लिए नर्स की भूमिका निभाई. उन्होंने मुझे अपनी प्राथमिकता में रखा और उनकी बदौलत ही मैं बच पाई.”

“एक बार जब मैंने कैंसर से लड़ने का मन बना लिया, तो लांस आर्मस्ट्रांग की प्रेरक किताबें पढ़नी शुरू दी. लांस एक पेशेवर साइकिलिस्ट थे, जिन्होंने टेस्टिकुलर कैंसर से लड़ाई लड़ी और जीतकर ट्रैक पर लौटे.

“उनके शब्दों ने वास्तव में प्रेरित किया और मुझे आगे बढ़ाया. मैं 12 कीमोथेरेपी सत्रों से गुजरी. एक साल रेडिएशन भी चला. इसके बाद सब ठीक हो गया.”

ठीक होने के तुरंत बाद कनिका ने जेटसेटगो शुरू कर दिया. निकट भविष्य में रोमांचक हवाई-टैक्सी यात्रा का हिस्सा बनने की योजनाएं बताते हुए वे कहती हैं, “भविष्य में हम हवाई जहाजों को लीज पर देना जारी रखेंगे, साथ ही विमान भी खरीदेंगे, क्योंकि हमें कंपनी का बुनियादी ढांचा बनाने की जरूरत है.”


 

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