रंग-बिरंगी बेड शीट्स के दीवाने हुए, दिवालिया हो रही कंपनी से बकाया के बदले ढाई लाख रुपए का माल खरीद शुरू किया बिजनेस, अब 9.25 करोड़ का टर्नओवर
30-Oct-2024
By उषा प्रसाद
जयपुर
कहा जाता है कि जब आप किसी चीज को शिद्दत से चाहते हैं, तो पूरी कायनात उस चीज को पाने में आपकी मदद करती है. पुनीत पाटनी महज 22 साल के थे. उन्होंने कॉलेज की पढ़ाई पूरी की ही थी जब वे कुछ बेड शीट्स के दीवाने हो गए, जो उन्होंने एक फैक्ट्री में देखी थीं.
उन्होंने इस दीवानेपन को अवसर में बदला और दो कंपनियां बनाईं. ये कंपनियां बेड शीट्स, दोहड़, रजाई और घर की साज-सज्जा से जुड़ा कारोबार करती हैं. दोनों कंपनियों का संयुक्त टर्नओवर 9.25 करोड़ रुपए है. यह सब कैसे शुरू हुआ, इसकी बड़ी दिलचस्प कहानी है. .
पुनीत
पाटनी ने साल 2009
में
पाटनी इंटरप्राइजेस की स्थापना
की और बेड शीट्स बेचने लगे.
(फोटो
:
विशेष
व्यवस्था से)
|
पुनीत ने शहीद भगत सिंह कॉलेज, नई दिल्ली से 2008 में कॉमर्स में ग्रैजुएशन किया और अपने गृहनगर जयपुर लौट आए. वहां वे अपने पिता परेश पाटनी की मदद करने लगे, जो टेक्सटाइल के क्षेत्र में इस्तेमाल होने वाले केमिकल्स और डाई के डीलर थे. उन दिनों वे अपने पिता के साथ विभिन्न टेक्सटाइल मिल्स और एक्सपोर्ट हाउस जाया करते थे.
“ पुनीत कहते हैं, “एक दिन ऐसी ही एक मिल में जाने के दौरान एक जगह मैंने कुछ बेड शीट्स देखीं. वे मेरे दिल पर छा गईं. उनकी सुंदर प्रिंट देखकर मैं मंत्रमुग्ध हो गया. मैंने तत्काल अपने निजी इस्तेमाल के लिए कुछ बेड शीट्स खरीद लीं."
“मेरे परिवार के बहुत से सदस्यों और दोस्तों को ये बेड शीट्स बहुत पसंद आईं. उन्होंने मुझसे यह भी पूछा कि मैंने इन्हें कहां से खरीदा है. वे भी ऐसी ही बेड शीट्स खरीदना चाहते थे. तभी मैंने यह सोचा कि क्यों न इन बेड शीट्स का ही कारोबार किया जाए. ”
लगभग उसी वक्त, उनके पिता के एक ग्राहक को बिजनेस में घाटा हुआ और वे अपना कर्ज नहीं चुका पाए. बकाया राशि के एवज में यह तय हुआ कि पुनीत और उनके पिता उनसे 2.5 लाख से 3 लाख रुपए मूल्य की बेड शीट्स खरीद लेंगे. इस तरह पुनीत ने 2009 में अपने पिता के साथ पार्टनरशिप में पाटनी इंटरप्राइजेस की शुरुआत की. बेड शीट्स एक ऐसी कंपनी से आनी थीं, जो दिवालिया होने की कगार पर थी.पुनीत
विभिन्न ऑनलाइन मार्केट पर
बेड शीट्स और अन्य उत्पाद
चादरवालाज के नाम से बेचते
हैं.
|
बिजनेस लगातार बढ़ता रहा. बेड शीट्स की प्रशंसा परिवार के बीच से बढ़कर थोक बिक्री तक बढ़ी. 2018 में पुनीत ने ई-रिटेलिंग पर ध्यान केंद्रित करने के लिए एक और कंपनी आरोही क्रिएशंस शुरू की. यह प्रोप्राइटरशिप कंपनी थी. पाटनी का मौजूदा टर्नओवर 8 करोड़ रुपए और आरोही का 1.25 करोड़ रुपए है. पाटनी थोक विक्रेताओं को बेड शीट्स की आपूर्ति करती है, वहीं आरोही में ‘चादरवालाज’ ब्रांड के तहत बेड शीट्स आदि बनाई जाती हैं और अमेजन, फ्लिपकार्ट, फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बेची जाती हैं. इनकी बी2बी प्लेटफॉर्म जैसे मीशो और उड़ान पर भी बिक्री की जाती है. पुनीत का 65 प्रतिशत बिजनेस बेड शीट्स का है. वे बेड कवर, कर्टन्स, दीवान सेट कवर, कुशन कवर, टेबल मैट्स, नैपकिन और अन्य कई उत्पाद भी बनाते हैं. रंग-बिरंगी चादरों पर हाथ से प्रिंट की जाती है. यह काम पुनीत की सांगानेर में स्थित तीन प्रिंटिंग यूनिट में कुशल कारीगर करते हैं. सांगानेर जयपुर का एक उपनगरीय इलाका है, जो प्रिंटिंग और हस्त कौशल के कारखानों के लिए मशहूर है. कॉलेज से निकल कर सीधे उद्यमी बनने की यात्रा के बारे में पुनीत बताते हैं, “सबसे पहले, मैंने बेड शीट्स परिवार के लोगों को बेची. इसके बाद बड़े शहरों जैसे मुंबई, पुणे और दिल्ली के मार्केट में संभावनाएं तलाशीं. “मैं कुछ सैंपल साथ में रखता था और वहां रिटेल दुकानदारों से मिलता था. मुझे मुंबई और पुणे में बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिली.” शुरुआत में, वे प्रिंटेड बेड शीट्स दूसरे लोगों से लेते थे. बाद में, साल 2013 में उन्होंने स्क्रीन प्रिंटिंग और हैंड ब्लॉक प्रिंटिंग मशीनों से अपनी यूनिट शुरू की. उन्होंने 2014 में दूसरी और 2017 में तीसरी यूनिट शुरू की. पुनीत 18 हजार वर्ग फीट और 10 हजार वर्गफीट क्षेत्र की दो यूनिट के मालिक हैं. जबकि तीसरी 10 हजार वर्ग फीट की यूनिट किराए की जगह पर है. तीनों यूनिट में कुल 55 लोग काम करते हैं.
पुनीत
ने 22
साल
की उम्र में बिजनेस में कदम
रख दिया था.
उस
समय उन्होंने कॉलेज की पढ़ाई
पूरी ही की थी.
|
पुनीत कहते हैं, “ब्लॉक प्रिंटिंग में छोटे बदलाव, वाइब्रेंट और सार्थक रूपांकन, व हिंदुस्तानी ब्लॉक प्रिंटिंग की हैंड-मेड तकनीक हर बेड शीट को अद्वितीय और अपनी तरह का अनूठा बनाती है.”
बेड शीट्स, बेड कवर, दोहड़ और रजाई विभिन्न रंगों और मंत्रमुग्ध करने वाली डिजाइन में आती हैं. जैसे इंडिगो ब्ल्यू ऑर्गेनिक मोटिफ्स, एक्जूबरंट मुगल चारबाग हैंड-ब्लॉक प्रिंटेड कलेक्शन, मुगल फ्लोरल मोटिफ्स और फ्लोरल-जाल बेडकवर.
आरोही क्रिएशन द्वारा बेची जाने वाली कॉटन की बेड शीट्स की कीमतें 949 रुपए से लेकर 2,400 रुपए तक है. जबकि सिल्क के बेड कवर्स की कीमत 3,200 रुपए से लेकर 3,600 रुपए तक हैं.
वर्तमान में पाटनी की भारतीय बाजार तक पहुंच है. इसमें महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और दिल्ली बड़े बाजार हैं. इनके बाद दक्षिण में बेंगलुरु और केरल का नंबर आता है.
पुनीत कॉटन का सफेद कपड़ा मुख्य रूप से तमिलनाडु में टेक्सटाइल के केंद्र तिरुपुर, पल्लादम और इरोड क्षेत्र से खरीदते हैं. इसके अलावा जयपुर के पास किशनगढ़ से भी वे खरीदी करते हैं. .
वॉशिंग, डाइंग, प्रिंटिंग, सिलाई, पैकिंग और क्वालिटी चेक उनकी यूनिट पर ही की जाती है.
पैसों के संकट के बीच पुनीत बेड शीट्स बेचकर जो भी कमाते हैं, उसे वापस बिजनेस में लगा देते हैं. अब तक उन्हें कोई बाहरी फंडिंग नहीं मिली है.
पहले साल, पाटनी एंटरप्राइजेस ने 8 लाख रुपए का टर्नओवर हासिल किया है. दूसरे साल 19 लाख रुपए का टर्नओवर रहा. इसके बाद से कंपनी साल-दर-साल 100% से अधिक की वृद्धि दर्ज कर रही है. 2020 में महामारी ने बिजनेस को बहुत नुकसान पहुंचाया है. पुनीत कहते हैं, “अप्रैल, मई और जून में कोई बिक्री नहीं हुई. मैं बहुत परेशान रहा क्योंकि हमें सप्लायर को भी पैसे देने थे. हमारे पास हाेलसेलर्स और ग्राहकों से कोई पैसा नहीं आया क्योंकि दोनों भी मुश्किल हालात में थे. “दिवाली के सीजन में हमारे लिए उम्मीद की किरण जागी क्योंकि इस दौरान लोग बड़ी मात्रा में एक-दूसरे को गिफ्ट देते हैं. इस दौरान बिजनेस बेहतर हुआ.”
पुनीत के मुताबिक, घर की साज-सज्जा में चीन बड़ा खिलाड़ी है. उसे कोविड के कारण खासा नुकसान हुआ है.
वे कहते हैं, “चूंकि हमारे (रिटेल) कारोबारियों ने चीन से खरीदारी बंद कर दी है, इसलिए हमारे जैसे लोगों को सीधी मदद मिली है. खासकर अहमदाबाद अौर जयपुर में.” पुनीत के पिता, जो पाटनी एंटरप्राइजेस में भी पार्टनर हैं, अब भी अपना कारोबार कर रहे हैं और जर्मनी की एक कंपनी के डिस्ट्रीब्यूटर हैं. पुनीत भी उनके ग्राहकों में से एक हैं.
पुनीत की पत्नी मनीला ज्वेलरी मैन्यूफैक्चरर हैं. वे ब्रांड नेम मनीला क्रिएशंस के तहत एमरल्ड, डायमंड और रूबी की ज्वेलरी बनाती हैं.
दोनों की तीन साल की एक बेटी आरोही है.
आप इन्हें भी पसंद करेंगे
-
13,000 रुपए का निवेश बना बड़ा बिज़नेस
बंदना बिहार से मुंबई आईं और 13,000 रुपए से रिसाइकल्ड गत्ते के लैंप व सोफ़े बनाने लगीं. आज उनके स्टूडियो की आमदनी एक करोड़ रुपए है. पढ़िए एक ऐसी महिला की कहानी जिसने अपने सपनों को एक नई उड़ान दी. मुंबई से देवेन लाड की रिपोर्ट. -
विलास की विकास यात्रा
महाराष्ट्र के नासिक के किसान विलास शिंदे की कहानी देश की किसानों के असल संघर्ष को बयां करती है. नई तकनीकें अपनाकर और बिचौलियों को हटाकर वे फल-सब्जियां उगाने में सह्याद्री फार्म्स के रूप में बड़े उत्पादक बन चुके हैं. आज उनसे 10,000 किसान जुड़े हैं, जिनके पास करीब 25,000 एकड़ जमीन है. वे रोज 1,000 टन फल और सब्जियां पैदा करते हैं. विलास की विकास यात्रा के बारे में बता रहे हैं बिलाल खान -
ऊंची उड़ान
तारा रंजन पटनायक ने कारोबार की दुनिया में क़दम रखते हुए कभी नहीं सोचा था कि उनका कारोबार इतनी ऊंचाइयां छुएगा. भुबनेश्वर से जी सिंह बता रहे हैं कि समुद्री उत्पादों, स्टील व रियल एस्टेट के क्षेत्र में 1500 करोड़ का सालाना कारोबार कर रहे फ़ाल्कन समूह की सफलता की कहानी. -
पूर्वी भारत का ‘मिल्क मैन’
ज़िंदगी में बिना रुके खुद पर विश्वास किए आगे कैसे बढ़ा जाए, नारायण मजूमदार इसकी बेहतरीन मिसाल हैं. एक वक्त साइकिल पर घूमकर किसानों से दूध इकट्ठा करने वाले नारायण आज करोड़ों रुपए के व्यापार के मालिक हैं. कोलकाता में जी सिंह मिलवा रहे हैं इस प्रेरणादायी शख़्सियत से. -
भारत का एंटी-वायरस किंग
एक वक्त था जब कैलाश काटकर कैलकुलेटर सुधारा करते थे. फिर उन्होंने कंप्यूटर की मरम्मत करना सीखा. उसके बाद अपने भाई संजय की मदद से एक ऐसी एंटी-वायरस कंपनी खड़ी की, जिसका भारत के 30 प्रतिशत बाज़ार पर कब्ज़ा है और वह आज 80 से अधिक देशों में मौजूद है. पुणे में प्राची बारी से सुनिए क्विक हील एंटी-वायरस के बनने की कहानी.