इस युवा ने स्टोरेज रूम में शुरू की कंपनी, सात साल में टर्नओवर पहुंचाया 18 करोड़ रुपए
07-Dec-2024
By गुरविंदर सिंह
बेंगलुरु
बंगाल के एक छोटे से गांव के निवासी सुमन हलदर हमेशा से कुछ बड़ा करना चाहते थे. वो अपने सपनों पर भरोसा करते थे. अपनी मध्यमवर्गीय पृष्ठभूमि और सामान्य स्कूल में पढ़ाई के बावजूद 37 वर्षीय इस युवा ने साबित कर दिखाया है कि यदि कोई व्यक्ति अपना लक्ष्य तय कर ले तो कोई बाधा उसके रास्ते में नहीं आ सकती.
अपनी धारणा को साबित करने के लिए सुमन के पास कुछ नहीं था और वो ख़ुद भी कुछ नहीं थे. लेकिन उन्होंने अपने दृढ़ निश्चय के बलबूते यह कर दिखाया और शीर्ष पर जा पहुंचे.
सुमन हलदर ने बेंगलुरु में चार कर्मचारियों के साथ 50 वर्गफुट जगह में बनाए गए ऑफिस से फोइवे की शुरुआत की थी. आज, वो 400 लोगों को रोज़गार दिया है. कंपनी के कोलकाता और रूस में भी ऑफिस हैं. (सभी फ़ोटो – विशेष व्यवस्था से)
|
सुमन ने अपनी आईटी सर्विसज़ मैनेजमेंट फर्म फोइवे (Fusion of Intelligence with Excellence) इन्फो ग्लोबल सॉल्यूशंस एलएलपी की शुरुआत बेंगलुरु में 50 वर्गफुट जगह से वर्ष 2010 में की थी. तब उनके पास मात्र तीन पुराने कंप्यूटर, एक राउटर, एक सेल फ़ोन और कुछ फर्नीचर था.
उन्होंने अपनी बचत से 60,000 रुपए बिज़नेस में लगाए और चार लोगों के साथ गंदे से स्टोरेज रूम से की.
सुमन हंसते हुए कहते हैं, ‘‘ऑफिस के लिए जगह लेने में समर्थ नहीं था. मैंने स्टोरेज रूम किराए पर ले लिया क्योंकि कोई भी उसे लेने के लिए इच्छुक नहीं था.’’
आज, फ़ोइवे बेंगलुरु की सीमाओं से आगे निकल चुकी है. कंपनी के कोलकाता के साथ-साथ रूस में भी ऑफिस हैं और इनमें 400 लोग काम करते हैं. वर्ष 2017-18 में कंपनी का टर्नओवर 18 करोड़ रुपए रहा.
फ़ोइवे ने आईटी सर्विसेज़ मैनेजमेंट, कंटेंट मॉडरेशन और कस्टमर सपोर्ट के तौर पर शुरुआत की थी.
सुमन कहते हैं, ‘‘हम प्रतिष्ठित ब्रैंड की वेबसाइट पर यूज़र द्वारा पोस्ट किए गए संदेशों को टेक्स्ट, इमेज, वीडियो, रिव्यूज़ और फ़ीडबैक के रूप में मोडिफाई करते हैं.’’
वो कहते हैं, ‘‘जब यूज़र द्वारा जनरेट कंटेंट निपुणता से नियंत्रित किया जाता है, तो आपकी ऑनलाइन मौजूदगी अधिक विश्वसनीय हो जाती है. कंटेंट मॉडरेशन का हमारा काम दिन-रात लगातार चलता रहता है और हम यह सुनिश्चित करते हैं कि जब भी यूज़र किसी ब्रैंड की वेबसाइट पर जाए तो उसे उपयुक्त कंटेंट मिले.’’
साल 2010 को याद करते हुए सुमन कहते हैं, ‘‘उस वक्त पैसे की बहुत तंगी थी. हमें ऑफिस का किराया 800 रुपए चुकाने में भी परेशानी आ रही थी.’’
सुमन की यात्रा कितनी अपवादों से भरी रही है, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि वो अब दुनियाभर में फैले ऑफिसों का किराया ही क़रीब 1.5 करोड़ रुपए सालाना चुकाते हैं.
10 अगस्त 1981 को जन्मे सुमन बंगाल के चौबीस परगना जिले के बिस्वनाथपुर गांव के रहने वाले हैं. यह गांव कोलकाता से क़रीब 40 किमी दूर है. दो बच्चों में वो सबसे बड़े हैं. दोनों मध्यमवर्गीय परिवार में पले-बढ़े.
उनके पिता एक किसान थे, जबकि मां गृहिणी थीं.
सुमन कहते हैं, ‘‘हमारे पास जीवनयापन लायक़ ही कमाई होती थी...इसके बावजूद मेरे पिता हमारी पढ़ाई के लिए कुछ बचत कर लेते थे.’’
बेंगलुरु में अपने कुछ कर्मचारियों के साथ सुमन.
|
उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा 1998 में बैरकपुर के भोलानंदा नैशनल विद्यालय से पूरी की और बेंगलुरु चले गए, जहां होटल मैनेजमेंट कोर्स के तीन वर्षीय कोर्स के लिए केपीएचआर इंस्टीट्यूट में दाखिला ले लिया. उन्होंने साथ-साथ विभिन्न कंप्यूटर कोर्स भी किए.
सुमन कहते हैं, ‘‘तंगी के बावजूद पिता ने मेरे लिए बहुत कुछ किया. उद्ममी बनने के अपने सपने के बावजूद मैं उन पर और अधिक बोझ नहीं बनना चाहता था. इसलिए स्नातक की डिग्री के बाद तत्काल बाद नौकरी करने लगा.’’
साल 2001 में उन्होंने तकनीकी सलाहकार के तौर पर आईटीसी इन्फ़ोटेक ज्वॉइन की, जहां उनकी मासिक तनख़्वाह 7,500 रुपए थी.
सुमन के मुताबिक, ‘‘मैं नौकरी और पढ़ाई साथ-साथ कर रहा था.’’ उन्होंने इवनिंग क्लास के जरिये साल 2003 में बेंगलुरु के एएमसी कॉलेज से एमबीए किया और बाद में रायपुर की महात्मा गांधी ओपन यूनिवर्सिटी से एमसीए की डिग्री ली.
उन्होंने वर्ष 2010 तक आईबीएम और यूनिसिस जैसी कंपनियों में काम किया.
सुमन कहते हैं, ‘‘साल 2010 में आखिर मुझे अहसास हुआ कि खुद की कंपनी खोलने का सपना साकार करने का यही सही वक्त है. मैं न केवल कुछ बड़ा करना चाहता था, बल्कि मैं समाज को वापस लौटाने को लेकर भी प्रेरित था- दरअसल, मैं लोगों को नौकरी देना चाहता था.’’
जुलाई 2010 में, सुमन ने फ़ोइवे इन्फ़ो ग्लोबल सॉल्यूशंस एलएलपी का रजिस्ट्रेशन करवाया और गंदे से स्टोर रूप में काम शुरू कर दिया, जो उनका पहला ऑफिस बना. शुरुआती दिनों में कंटेंट मॉडरेशन की मांग अधिक नहीं थी, क्योंकि लोगों को इसकी ज़रूरत महसूस नहीं होती थी. इस तरह सुमन को अच्छी शुरुआत करने में थोड़ा वक्त लगा.
सुमन की योजना अपना बिज़नेस अमेरिका और यूरोप तक विस्तार करने की है.
|
सुमन बताते हैं, ‘‘ऐसा भी समय रहा, जब मैंने परिवार के जेवरात बेचकर पैसे जुटाए, क्योंकि मुझे तनख़्वाह और मासिक बिलों के लिए पैसों की आवश्यकता होती थी. संतुष्टि की बात सिर्फ़ यह थी कि मेरा परिवार मेरे साथ चट्टान की तरह अडिग रहा.’’
तमाम अवरोधों के बावजूद पहले साल का टर्नओवर 2.9 लाख रुपए रहा.
सुमन की कंपनी वर्तमान में लेवल 1 की कोर कंटेंट मैनेजमेंट कंपनी हैं. अब वे अमेरिका और यूरोप में अपने बिज़नेस को विस्तार देने की योजना बना रहे हैं.
सुमन की प्रेरणादायी उद्ममी यात्रा साबित करती है कि आप कहां से आए हैं, यह मायने नहीं रखता. महत्वपूर्ण यह है कि आप कहां जा रहे हैं.
आप इन्हें भी पसंद करेंगे
-
शीशे से चमकाई किस्मत
कोलकाता के मोहम्मद शादान सिद्दिक के लिए जीवन आसान नहीं रहा. स्कूली पढ़ाई के दौरान पिता नहीं रहे. चार साल बाद परिवार को आर्थिक मदद दे रहे भाई का साया भी उठ गया. एक भाई ने ग्लास की दुकान शुरू की तो उनका भी रुझान बढ़ा. शुरुआती हिचकोलों के बाद बिजनेस चल निकला. आज कंपनी का टर्नओवर 5 करोड़ रुपए सालाना है. शादान कहते हैं, “पैसे से पैसा नहीं बनता, लेकिन यह काबिलियत से संभव है.” बता रहे हैं गुरविंदर सिंह -
सात्विक भोजन का सहज ठिकाना
जब बिजनेस असफल हो जाए तो कई लोग हार मान लेते हैं लेकिन प्रसून गुप्ता व अंकुश शर्मा ने अपनी गलतियों से सीख ली और दोबारा कोशिश की. आज उनकी कंपनी सात्विको विदेशी निवेश की बदौलत अमेरिका, ब्रिटेन और दुबई में बिजनेस विस्तार के बारे में विचार कर रही है. दिल्ली से सोफिया दानिश खान की रिपोर्ट. -
मोदी-अडानी पहनते हैं इनके सिले कपड़े
क्या आप जीतेंद्र और बिपिन चौहान को जानते हैं? आप जान जाएंगे अगर हम आपको यह बताएं कि वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निजी टेलर हैं. लेकिन उनके लिए इस मुक़ाम तक पहुंचने का सफ़र चुनौतियों से भरा रहा. अहमदाबाद से पी.सी. विनोज कुमार बता रहे हैं दो भाइयों की कहानी. -
सपने, जो सच कर दिखाए
बहुत कम इंसान होते हैं, जो अपने शौक और सपनों को जीते हैं. बेंगलुरु के डॉ. एन एलनगोवन ऐसे ही व्यक्ति हैं. पेशे से वेटरनरी चिकित्सक होने के बावजूद उन्होंने अपने पत्रकारिता और बिजनेस करने के जुनून को जिंदा रखा. आज इसी की बदौलत उनकी तीन कंपनियों का टर्नओवर 41 करोड़ रुपए सालाना है. -
स्मूदी सम्राट
हैदराबाद के सम्राट रेड्डी ने इंजीनियरिंग के बाद आईटी कंपनी इंफोसिस में नौकरी तो की, लेकिन वे खुद का बिजनेस करना चाहते थे. महज एक साल बाद ही नौकरी छोड़ दी. वे कहते हैं, “मुझे पता था कि अगर मैंने अभी ऐसा नहीं किया, तो कभी नहीं कर पाऊंगा.” इसके बाद एक करोड़ रुपए के निवेश से एक स्मूदी आउटलेट से शुरुआत कर पांच साल में 110 आउटलेट की चेन बना दी. अब उनकी योजना अगले 10 महीने में इन्हें बढ़ाकर 250 करने की है. सम्राट का संघर्ष बता रही हैं सोफिया दानिश खान