धुर नक्सल इलाके में शुरू किया डेयरी फ़ार्म, आज है 2 करोड़ का टर्नओवर
30-Oct-2024
By गुरविंदर सिंह
जमशेदपुर
संतोष शर्मा एक मैनेजमेंट पेशेवर के तौर पर ही सामान्य जीवन बिता रहे होते, लेकिन पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम से हुई एक मुलाक़ात ने उनकी ज़िंदगी बदल दी. कलाम ने न सिर्फ़ उन्हें सबसे अलग सोचने के लिए प्रेरित किया, बल्कि ख़ुद के लिए और युवा पीढ़ी के लिए नए अवसर रचने को कहा.
संतोष झारखंड के जमशेदपुर के रहने वाले हैं. साल 2016 में उन्होंने ममा डेयरी फ़ार्म की शुरुआत की और आज 100 लोग उनके लिए काम कर रहे हैं.
उनके लिए काम करने वालों में ज़्यादातर की उम्र 30 साल से कम है और वो नक्सल प्रभावित डाल्मा गांव के जनजातीय लोग हैं.
संतोष शर्मा की ममा डेयरी नक्सल प्रभावित डाल्मा गांव के 100 से अधिक जनजातीय युवाओं को रोजगार उपलब्ध करा रही है. (सभी फ़ोटो - समीर वर्मा)
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उन्होंने आठ पशुओं और 80 लाख रुपए के निवेश से काम की शुरुआत की थी.
आज उनके पास 100 पशु हैं और साल 2016-17 में उनकी कंपनी इंडिमा ऑर्गेनिक्स प्राइवेट लिमिटेड का टर्न ओवर दो करोड़ रुपए रहा.
शर्मा का यह ऑर्गेनिक डेयरी फ़ार्म डाल्मा वाइल्डलाइफ़ सैंक्चुरी के भीतर है, जो जमशेदपुर से 35 किलोमीटर दूर है. नक्सल प्रभावित इलाक़ा होने के कारण यहां नौकरी की संभावनाएं बेहद कम थीं, लेकिन युवाओं को रोज़गार देकर यह 40 वर्षीय उद्यमी उनके जीवन में बदलाव लेकर आए हैं.
इसके अलावा संतोष समानांतर रूप से बतौर शिक्षक और मोटिवेशनल स्पीकर भी अपना कॅरियर संवार रहे हैं. वे अब तक दो पुस्तकें -‘नेक्स्ट वॉट्स इन’ और ‘डिज़ॉल्व द बॉक्स’ - लिख चुके हैं. आईआईएम व अन्य टॉप मैनेजमेंट कॉलेजों के बच्चों को दूसरों की ज़िंदगी में बदलाव लाने पर लेक्चर देते हैं.
संतोष का जन्म जमशेदपुर में 29 जून 1977 को हुआ और वो पांच भाई-बहनों में सबसे छोटे थे.
उनके स्वर्गीय पिता टाटा मोटर्स में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे और उनकी तनख़्वाह परिवार चलाने के लिए पर्याप्त नहीं होती थी.
संतोष याद करते हैं, “मेरे जन्म के वक्त परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. मेरी पैदाइश के क़रीब एक साल बाद ही 1978 में मेरे पिता रिटायर हो गए. शुभचिंतकों ने सुझाव दिया कि हम बिहार में छपरा स्थित अपने पैतृक घर लौट जाएं, लेकिन मेरी मां ने मना कर दिया क्योंकि छपरा में पढ़ाई की सुविधाएं अच्छी नहीं थीं.”
उनकी मां आरके देवी ने परिवार की आर्थिक ज़िम्मेदारी ख़ुद उठाने का फ़ैसला किया.
हमारे एक उदार पड़ोसी ने उन्हें एक गाय दी और उन्होंने उसका दूध बेचना शुरू किया.
संतोष ने साल 1994 में गुलमोहर हाई स्कूल से कक्षा 10 की परीक्षा पास की.
वो कहते हैं, “मैं अच्छा छात्र था और किसी तरह परिवार ने मेरी पढ़ाई का ख़र्च उठाया. मेरी बहनें घर का ख़्याल रखती थीं, जबकि मैं अपने भाइयों और पिता के साथ घर-घर जाकर दूध बेचता था.”
“मुझे वो दिन अभी भी याद हैं, जब मैं स्कूल यूनिफ़ॉर्म में अपने दोस्त के घर दूध देने गया और फिर उसकी कार से स्कूल गया.”
साल 1994 तक धीरे-धीरे घर में गायों की संख्या 25 हो गई और परिवार की आर्थिक बेहतर हो गई.
ममा डेयरी में 100 से अधिक पशु हैं और झारखंड में ग्राहकों को दूध की आपूर्ति करती है.
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उन्होंने लिटिल फ़्लावर स्कूल से साल 1996 में कॉमर्स से 12वीं की परीक्षा पास की और फिर दिल्ली चले गए. वहां उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से बी.कॉम. (ऑनर्स) किया.
इसके साथ उन्होंने कास्ट अकाउंटेंसी का कोर्स भी ज्वाइन कर लिया. दोनों कोर्स उन्होंने साल 1999 में पूरे कर लिए.
संतोष की पहली नौकरी मारुति के साथ थी. उन्होंने कंपनी की मैनेजमेंट ऑडिटिंग टीम के साथ 4,800 रुपए स्टाइपेंड पर काम किया, लेकिन वो वहां मात्र छह महीने ही काम कर पाए.
साल 2000 में उन्हें अर्न्स्ट ऐंड यंग के साथ विश्लेषक के तौर पर एक बेहतर नौकरी मिल गई और उन्हें महीने के 18,000 रुपए मिलने लगे.
संतोष कहते हैं, “मैंने साल 2003 में वो नौकरी छोड़ दी और सिविल सर्विस के सपने के साथ यूपीएससी की परीक्षा दी. मैं जमशेदपुर वापस आ गया और यूपीएससी के लिए गंभीरता से तैयारी करने लगा.”
हालांकि अचानक उन्होंने जमशेदपुर में ब्रांच मैनेजर के तौर पर एक बहुराष्ट्रीय बैंक में 35 हज़ार रुपए की तनख़्वाह पर नौकरी कर ली.
उसी साल उनकी जमशेदपुर की अंबिका शर्मा से शादी हुई. उनका एक बेटा और बेटी है.
उन्होंने उस बैंक में छह महीने काम किया और फिर झारखंड, बिहार व ओडिशा के प्रमुख के तौर पर एक अन्य बैंक में 50 हज़ार रुपए की तनख़्वाह पर काम किया.
संतोष जब एअर इंडिया की नौकरी छोड़ी, तब वे 85 हज़ार रुपए महीना कमा रहे थे.
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वहां तीन साल काम करने के बाद साल 2007 में उन्होंने कोलकाता में 85 हज़ार रुपए मासिक की तनख़्वाह पर एअर इंडिया में असिस्टेंट मैनेजर के तौर पर काम किया. इसके बाद उन्होंने वर्ष 2011 से 2014 तक तीन साल का अध्ययन अवकाश ले लिया.
संतोष कहते हैं, “मेरी लेखन में दिलचस्पी हुई और मैंने मैनेजमेंट पर ‘नेक्स्ट व्हाट्स इन” लिखी. यह किताब 2012 में छपी. मेरी दूसरी किताब ‘डिज़ॉल्व द बॉक्स’ साल 2014 में आई और तुरंत हिट हो गई.”
“इस किताब का ओप्रा विन्फ्रे, सचिन तेंदुलकर और दुनियाभर के क़रीब 50 सीईओ ने समर्थन किया. इसके बाद मैंने कंपनी के उच्च पदाधिकारियों के साथ-साथ देश के आईआईएम और टॉप बिज़नेस स्कूलों के छात्रों को ट्रेनिंग देनी शुरू कर दी.”
ऐसे ही एक सेशन के दौरान, जब वे ‘डिस्ट्रॉइंग द बॉक्स’ पर बात कर रहे थे, तो उनकी मुलाक़ात एपीजे अब्दुल कलाम से हुई. उन्होंने साल 2013 में संतोष शर्मा को एक बैठक के लिए बुलाया.
इस बैठक ने संतोष की ज़िंदगी बदल दी.
उनकी दूसरी किताब का विषय था कि कैसे मस्तिष्क के द्वार खोले जाएं ताकि उसकी ऊर्जा को बाहर लाया जा सके.
कलाम से अपनी बातचीत के बारे में संतोष बताते हैं, “वो मेरे विचारों से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने मुझे दिल्ली स्थित अपने आवास आमंत्रित किया.”
“उन्होंने मुझे युवाओं के लिए काम करने को कहा. हमने फ़ैसला किया कि हम गांवों में परियोजनाओं और देश के 40 करोड़ युवाओं की ऊर्जा के इस्तेमाल के लिए काम करेंगे. दुर्भाग्य से साल 2015 में उनकी मृत्यु हो गई. मुझे अभी भी याद है कि वो बहुत विनम्र और ज़मीन से जुड़े इंसान थे. मुझे कभी नहीं लगा कि मैं एक महान वैज्ञानिक के सामने खड़ा हूं.”
ममा डेयरी हर महीने क़रीब 15 हज़ार दूध बेचती है.
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संतोष ने कलाम के इसी सपने को पूरा करने का फ़ैसला किया.
वो कहते हैं, “मुझे डेयरी फ़ार्मिंग के बारे में जानकारी थी, इसलिए मैंने उसी से शुरुआत करने का फ़ैसला किया और फ़ार्म के लिए ज़मीन ढूंढनी शुरू कर दी.”
आख़िरकार उन्होंने साल 2014 में डाल्मा वाइल्डलाइफ़ सैैंक्चुरी में एक ज़मीन चुनी और ज़मीन मालिकों के साथ पार्टनरशिप कर ली.
उन्होंने 68 एकड़ ज़मीन ली और उनके मालिकों को हर महीने 30,000 रुपए भुगतान किया.
ममा (अपने मां के प्रति प्यार के चलते उन्होंने यह नाम रखा) डेयरी फ़ार्म की शुरुआत जनवरी 2016 से हुई. उन्होंने यह काम 80 लाख रुपए के निवेश और आठ पशुओं से किया.
वो कहते हैं, “मैंने अपने परिवार की सारी जमापूंजी इस काम में लगा दी. मेरे दोस्त माओवादी इलाके़ में फ़ार्म खोलने के ख़िलाफ़ थे, लेकिन मैंने काम जारी रखने का निश्चय किया और यह फ़ैसला सही साबित हुआ.”
ममा डेयरी झारखंड में ऑर्गेनिक दूध सप्लाई करने वाला एकमात्र फ़ार्म है. यहां गायों को पांच तरह की ऑर्गेनिक घास खिलाई जाती है. यह घास डाल्मा गांव में उगती है.
संतोष कहते हैं, “हमने शुद्ध ऑर्गेनिक दूध से शुरुआत की और अब पनीर, मक्खन और घी का उत्पादन कर रहे हैं.”
“अभी हम जमशेदपुर में हर महीने 15 हज़ार लीटर दूध बेच रहे हैं. हमारे उत्पाद चार से पांच घंटों में बिक जाते हैं. हम प्रिज़र्वेटिव का इस्तेमाल नहीं करते और सभी उत्पाद ताज़े बेचते हैं.”
संतोष अपने दोस्तों कमलेश और नीरज के बहुत शुक्रगुज़ार हैं जिन्होंने उनके काम में निवेश किया है.
कमलेश और नीरज ने आईआईटी में पढ़ाई की और वो अमेरिका में रहते हैं.
अपने भतीजे राहुल शर्मा (बाएं) और बेटे के साथ संतोष.
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चूंकि संतोष देशभर में मैनेजमेंट ट्रेनिंग में व्यस्त रहते हैं, इसलिए फ़ार्म का ज़्यादातर काम उनका भतीजा राहुल शर्मा देखता है.
उनके टीम के अन्य सदस्य हैं कुनाल, महतो, शीनू, लोकेश, आशीष, अशोक और कई दूसरे गांववासी.
संतोष को विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है.
उन्हें 2013 का स्टार सिटीज़न ऑनर अवार्ड, टाटा का साल 2014 का अलंकार अवार्ड, साल 2016 का झारखंड सरकार का यूथ आइकॉन अवार्ड मिल चुका है.
उनका कहना है कि वो खेती और पर्यटन का विस्तार करना चाहते हैं ताकि सैकड़ों युवाओं को नौकरी मिल सके. वो गांववासियों के लिए एक स्कूल और अस्पताल भी खोलना चाहते हैं.
संतोष शर्मा की सफलता का मंत्र है: हमेशा पूरी शिद्दत से अपने सपनों का पीछा करो, लेकिन समाज को वापस देना कभी मत भूलो.
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