Milky Mist

Wednesday, 13 November 2024

छोटे से नगर में आइस्क्रीम की छोटी दुकान से तीन भाइयों ने खड़ी की 259 करोड़ रुपए टर्नओवर वाली कंपनी

13-Nov-2024 By गुरविंदर सिंह
राजकोट

Posted 06 Mar 2021

गुजरात में एक गांव के चार भाई राजकोट से 100 किमी दूर छोटे से नगर अमरेली आए और कोल्ड ड्रिंक्स और आइस्क्रीम की दुकान शुरू की. यह अब 259 करोड़ रुपए की एफएमसीजी कंपनी बन चुकी है.

परिवार की सड़क किनारे पान की एक दुकान थी, लेकिन उसे नगर पालिका ने ढहा दिया था. इसके एक साल बाद परिवार ने आइस्क्रीम की दुकान खाेली. उस समय सबसे बड़े भाई दिनेश भुवा महज 27 साल के थे.
भूपत, दिनेश और संजय (बाएं से दाएं) ने अमरेली में कोल्ड ड्रिंक्स स्टोर से शीतल फूड कूल प्रॉडक्ट्स की स्थापना की. (फोटो : विशेष व्यवस्था से)

साधारण शुरुआत के बाद भाइयों ने बिजनेस को धीरे-धीरे बढ़ाया. ब्रांड नेम शीतल के तहत विभिन्न प्रकार की आइस्क्रीम बनाई. कारोबार प्रोप्राइटरशिप से प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के रूप में बढ़ा. अंतत: 2017 में यह लिस्टेड कंपनी बन गई.

आज, शीतल कूल प्रोडक्ट्स लिमिटेड गुजरात की विभिन्न चीजें बनाने वाली शीर्ष कंपनियों में से एक है. यह अलग-अलग सेगमेंट में 300 से अधिक प्रॉडक्ट्स बनाती है. जैसे दूध और दूध के प्रोडक्ट्स, आइस्क्रीम, स्नैक्स, बैकरी, फ्राेजन फूड, रेडी टू कूक वेजिटेबल्स, चॉकलेट्स और मिठाइयां.

शीतल काे अब 55 वर्षीय दिनेश और उनके दो छोटे भाई 43 वर्षीय भूपत और 41 वर्षीय संजय संचालित करते हैं. दूसरे नंबर के भाई जगदीश ने यह बिजनेस शुरू करने में निर्णायक भूमिका निभाई थी, लेकिन 25 साल की युवावस्था में 1997 में एक सड़क हादसे में उनकी मौत हो गई थी.

इन भाइयों की उद्यमी यात्रा 1985 में तब शुरू हुई थी, जब उनके किसान पिता दाकूभाई चावंड नामक छोटे से गांव से बेहतर जीवन की तलाश में जिला मुख्यालय अमरेली रहने आ गए थे.

चार भाइयों में सबसे बड़े दिनेश कहते हैं, “मेरे पिता की खेती से आमदनी इतनी नहीं थी कि परिवार का खर्च चल सके.” यही कारण रहा कि घर की वित्तीय स्थिति ठीक न होने से दिनेश कक्षा 12वीं के बाद नहीं पढ़ पाए.

दिनेश कहते हैं, “पिताजी ने तय किया कि वे परिवार को बड़े नगर ले जाएंगे, ताकि बच्चे पढ़ सकें और साथ ही साथ परिवार को मदद करने के लिए कोई काम भी ढूंढ़ सकें. 1987 में जगदीश ने अमरेली बस स्टैंड पर एक अस्थायी स्टाल शुरू किया. यह पान और कोल्ड ड्रिंक्स की दुकान थी. इसे मैं और जगदीश देखते थे.”
अमरेली में अपनी पहली कोल्ड ड्रिंक्स और आइस्क्रीम दुकान के सामने चारों भाई.

दिनेश कहते हैं, “मेरे पिता गांव और अमरेली के बीच आना-जाना करते रहते थे. क्योंकि वे खेती का भी काम देख रहे थे. दुर्भाग्यवश 1992 में नगर पालिका ने दुकान ढहा दी.” इससे परिवार को बहुत आघात पहुंचा, क्योंकि दुकान की हो रही आमदनी से आर्थिक रूप से स्थिर हो गया था.

जीवनयापन के प्रमुख स्रोत से वंचित हुआ परिवार अब कोई नया अवसर तलाश रहा था. तभी अमरेली में सालाना जन्माष्टमी मेला लगा. इस मेले ने भाइयों को वह मौका दिया, जिसने आइस्क्रीम बिजनेस की नींव रखी.

दिनेश याद करते हैं, “अपने पिता के साथ विचार-विमर्श कर हमने तय किया कि हम लस्सी और आइस्क्रीम का छोटा स्टाल लगाएंगे. हम स्थानीय दुकानदार से उत्पाद लाते और उन्हें मेले में बेचते. इन उत्पादों को सबने पसंद किया. स्थिति यह थी कि लस्सी और आइस्क्रीम आते ही बिक जाते थे. हमने महसूस किया कि इन आइटम का बड़ा बाजार है. इस तरह हमने इस बिजनेस में उतरने का मन बना लिया.”

1993 में, उन्होंने परिवार की बचत से पैसे निकालकर अमरेली बस स्टैंड के पास 2 लाख रुपए से 5 फुट बाय 5 फुट की एक छोटी दुकान खरीदी. दुकान पर पान, कोल्ड ड्रिंक्स और आइस्क्रीम बेची जाने लगी.

तब तक भूपत और संजय ने भी बिजनेस में अपने भाइयों की मदद करना शुरू कर दिया था. भूपत कहते हैं, “हमने पढ़ाई और काम के बीच समय बांट रखा था. हम स्कूल से लौटने के तुरंत बाद दुकान पर बैठते थे और भाइयों की मदद करते थे.” भूपत ने 1994 में अमरेली के केके पारेख कॉमर्स कॉलेज से कॉमर्स में ग्रैजुएशन किया है.

वे कहते हैं, “1995 में हमने लस्सी और आइस्क्रीम जैसे दुग्ध उत्पाद बनाना शुरू कर दिया. जगदीश और मैं घर पर ये उत्पाद बनाते. ये स्वादिष्ट थे और जल्द ही मांग बढ़ने लगी.”

भूपत के मुताबिक, “हमने चॉको और ऑरेंज आइस्क्रीम कैंडी बनानी भी शुरू कर दी. जल्द ही उत्पाद मशहूर हो गए. लोग हमसे उत्पाद खरीदने लगे और उन्हें बेचते. हमने अपने ब्रांड का नाम शीतल रखा. यही नाम मैंने 2000 में जन्मी अपनी बेटी का भी रखा.”
शीतल की सफलता तीनों भाइयों के संयुक्त प्रयासों के चलते संभव हुई, जिन्होंने अपने रास्ते में आई हर अड़चन का मुकाबला दृढ़ता और संकल्प के साथ किया.

1997 में एक दुखद घटना में 25 वर्षीय जगदीश की मौत हो गई. यह भाइयों के लिए बड़ा सदमा था. दिनेश याद करते हैं, “हमने बहुत कठिन परिश्रम किया और ब्रांड को मशहूर बनाने के लिए अपने सर्वश्रेष्ठ प्रयास किए.”

हालांकि, इस क्षति से अन्य भाई जगदीश के सपने को साकार करने के लिए दृढ़ संकल्पित हुए, जो कंपनी को नई ऊंचाइयों पर ले जाना चाहता था.

तीन साल बाद, उन्होंने श्री शीतल इंडस्ट्रीज नाम से कंपनी को रजिस्टर करवाया. यह एक प्रोप्राइटरशिप फर्म थी. उन्होंने अमरेली में 1000 वर्ग मीटर जगह भी खरीदी.

संजय कहते हैं, “हमने 17 से 20 लाख रुपए का निवेश किया और 150 लीटर दूध की प्रोसेसिंग क्षमता वाला प्लांट लगाया. हम आइस्क्रीम और अन्य दुग्ध उत्पाद बनाते थे.” संजय ने 1994 में शांताबेन दयालजीभाई कोटक लॉ कॉलेज से एलएलबी की पढ़ाई पूरी की.

“हम बाइक और ऑटो-रिक्शा से दुकान-दुकान जाते थे. ऑर्डर लाते थे और डिलीवरी करते थे.”

बिजनेस के शुरुआती दिनों में उन्होंने जिन चुनौतियों का सामना किया, उनमें अमरेली में बार-बार गुल होने वाली बत्ती भी थी. इससे बिक्री बहुत प्रभावित होती थी.

संजय कहते हैं, “अमरेली में कुछ ही दुकानें थीं, जो आइस्क्रीम बेचती थीं. काेई बड़ा ब्रांड भी नहीं था क्योंकि राज्य बिजली कटौती से जूझ रहा था, जो एक दिन में कई-कई घंटे होती थी.”

“दुकानदार घाटे के डर से आइस्क्रीम स्टॉक में नहीं रखते थे. कुछ इन्वर्टर्स और पॉवर बैकअप रखते थे, लेकिन यह सबके बस की बात नहीं थी.

“हालांकि स्थिति में तब सुधार हुआ, जब तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2003 में पूरे गुजरात को विद्युतीकृत करने के लिए ज्योतिग्राम योजना लॉन्च की.”

इससे उनकी आइस्क्रीम की बिक्री बढ़ गई थी क्योंकि अधिक दुकानों ने आइस्क्रीम बेचना शुरू कर दिया था. कंपनी ने हर तीन से पांच साल में अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ाना शुरू कर दिया.

पांच साल पहले कंपनी प्रोप्राइटरशिप फर्म से प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बन गई और 2017 में यह पब्लिक लिमिटेड कंपनी बन गई और बीएसई में लिस्टेड हो गई.

2019 में, शीतल ने 15 करोड़ रुपए के निवेश से विस्तार किया और फ्रोजन फूड्स और स्नैक्स आइटम के क्षेत्र में भी उतर गई. लेकिन उसी साल, उनकी स्नैक यूनिट में आग की बड़ी घटना होने से उन्हें करीब 2 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ.

भूपत कहते हैं, “घटना में बहुत नुकसान हुआ. हमारे अधिकतर उपकरण जल गए. लेकिन हमने हिम्मत नहीं खोई और कठिन परिश्रम किया. दो साल के भीतर हमने अपने घाटे की भरपाई कर ली.” यह आश्वासन एक ऐसे व्यक्ति का है, जिसने जीवन में कई चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना किया था.

वर्तमान में कंपनी 300 से अधिक आइटम जैसे स्वीट्स, स्नैक्स, विभिन्न तरह की आइस्क्रीम, रसगुल्ले और लस्सी बनाती है.
अमरेली में लगे जन्माष्टमी के मेले में स्टॉल पर सभी भाई, जिसने उनकी किस्मत बदल दी.

उनका मार्केट गुजरात के बाहर भी बढ़ा. अब उनकी मौजूदगी अन्य राज्यों जैसे मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र और कर्नाटक में भी है.

भूपत कहते हैं, “हम अमरेली जिले में सबसे बड़े रोजगार दाता हैं. आज हमारे साथ एक हजार से अधिक लोग काम करते हैं. 1993 में शुरुआत के बाद हमने एक लंबी यात्रा तय की है, जब महज 4 लोगों के साथ पान की दुकान शुरू की थी.”

“दो साल पहले हमारे प्रोडक्ट पश्चिमी रेलवे में भी पंजीकृत हुए हैं. गुजरात के 10 रेलवे स्टेशनों पर हमारे स्टाल हैं. हम ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और सिंगापुर तक भी उत्पाद निर्यात करते हैं.”

कंपनी 250 डिस्ट्रीब्यूटर्स के साथ काम करती है और इसके प्रोडक्ट कई राज्यों में फैले 30 हजार से अधिक आउटलेट पर बेचे जाते हैं.

परिवार में अगली पीढ़ी भी बिजनेस से जुड़ गई है. दिनेश के 30 वर्षीय बेटे हार्दिक और भूपत के 20 वर्षीय बेटे यश को जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं.

यश कहते हैं, “हम 1500 करोड़ रुपए का टर्नओवर हासिल करने के मिशन 2030 पर काम कर रहे हैं. हम देश की शीर्ष 5 एफएमसीजी कंपनियों के रूप में भी आगे बढ़ना चाहते हैं.”

संस्थापकों का नवोदित उद्यमियों के लिए संदेश है: उतार-चढ़ाव तो बिजनेस का हिस्सा हैं. लेकिन हिम्मत न खोएं; अपने लक्ष्यों का पीछा करना जारी रखें और अंतत: आपको सफलता का स्वाद चखने को मिलेगा.
 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • Robin Jha story

    चार्टर्ड अकाउंटेंट से चाय वाला

    रॉबिन झा ने कभी नहीं सोचा था कि वो ख़ुद का बिज़नेस करेंगे और बुलंदियों को छुएंगे. चार साल पहले उनका स्टार्ट-अप दो लाख रुपए महीने का बिज़नेस करता था. आज यह आंकड़ा 50 लाख रुपए तक पहुंच गया है. चाय वाला बनकर लाखों रुपए कमाने वाले रॉबिन झा की कहानी, दिल्ली में नरेंद्र कौशिक से.
  • Taking care after death, a startup Anthyesti is doing all rituals of funeral with professionalism

    ‘अंत्येष्टि’ के लिए स्टार्टअप

    जब तक ज़िंदगी है तब तक की ज़रूरतों के बारे में तो सभी सोच लेते हैं लेकिन कोलकाता का एक स्टार्ट-अप है जिसने मौत के बाद की ज़रूरतों को ध्यान में रखकर 16 लाख सालाना का बिज़नेस खड़ा कर लिया है. कोलकाता में जी सिंह मिलवा रहे हैं ऐसी ही एक उद्यमी से -
  • Food Tech Startup Frshly story

    फ़्रेशली का बड़ा सपना

    एक वक्त था जब सतीश चामीवेलुमणि ग़रीबी के चलते लंच में पांच रुपए का पफ़ और एक कप चाय पी पाते थे लेकिन उनका सपना था 1,000 करोड़ रुपए की कंपनी खड़ी करने का. सालों की कड़ी मेहनत के बाद आज वो उसी सपने की ओर तेज़ी से बढ़ रहे हैं. चेन्नई से पीसी विनोज कुमार की रिपोर्ट
  • Johny Hot Dog story

    जॉनी का जायकेदार हॉट डॉग

    इंदौर के विजय सिंह राठौड़ ने करीब 40 साल पहले महज 500 रुपए से हॉट डॉग बेचने का आउटलेट शुरू किया था. आज मशहूर 56 दुकान स्ट्रीट में उनके आउटलेट से रोज 4000 हॉट डॉग की बिक्री होती है. इस सफलता के पीछे उनकी फिलोसॉफी की अहम भूमिका है. वे कहते हैं, ‘‘आप जो खाना खिला रहे हैं, उसकी शुद्धता बहुत महत्वपूर्ण है. आपको वही खाना परोसना चाहिए, जो आप खुद खा सकते हैं.’’
  • Punjabi girl IT success story

    इस आईटी कंपनी पर कोरोना बेअसर

    पंजाब की मनदीप कौर सिद्धू कोरोनावायरस से डटकर मुकाबला कर रही हैं. उन्‍होंने गांव के लोगों को रोजगार उपलब्‍ध कराने के लिए गांव में ही आईटी कंपनी शुरू की. सालाना टर्नओवर 2 करोड़ रुपए है. कोरोना के बावजूद उन्‍होंने किसी कर्मचारी को नहीं हटाया. बल्कि सबकी सैलरी बढ़ाने का फैसला लिया है.