Milky Mist

Thursday, 18 September 2025

पांच लाख के निवेश से शुरू किया सौर ऊर्जा का काम, छह साल में पाया 33 करोड़ का टर्नओवर

18-Sep-2025 By गुरविंदर सिंह
कोलकाता

Posted 15 Sep 2018

35 वर्षीय विनय जाजू और 32 वर्षीय पीयूष जाजू एक ऐसा बिज़नेस संभालते हैं, जिसने ग्रामीण भारत में रहने वाले लोगों की जिंदगी रोशनी से भर दी है.

वर्ष 2010 में पांच लाख रुपए के निवेश से शुरू किए गए ओनर्जी ने 10 मेगावाट के संयुक्त सोलर रूफटॉप प्रोजेक्ट पूरे किए हैं और स्कूल समेत 300 से अधिक संस्थानों को सौर ऊर्जा से रोशन किया है.

ओनर्जी ने अब तक 250 से अधिक सोलर माइक्रो ग्रिड, 5000 से अधिक सोलर स्ट्रीट लाइट स्थापित की है और 500 से अधिक इरिगेशन पम्‍प बेचे हैं.

इतनी वृहद सौर संरचना की सर्विस और रखरखाव के लिए जाजू बंधुओं ने ऑन स्किल्‍स ट्रेनिंग डिवीजन स्‍थापित की है. इसके तहत ग्रामीण युवाओं को ट्रेनिंग दी जाती है.

यह नेटवर्क पूरे पश्चिम बंगाल व झारखंड में स्थापित किया गया है और ग्रामीण युवाओं के लिए रोज़गार विकसित किए जा रहे हैं.

समूह ने वर्ष 2016 में ऑर्गेनिक फूड बिज़नेस ऑनगैनिक फूड्स भी स्थापित किया. उनकी समूह कंपनी ऑन कॉन्‍गलोमरेट का ताज़ा सालाना टर्नओवर क़रीब 33 करोड़ रुपए है.

पीयूष (बाएं) और विनय ने ग्रामीण घरों को सौर ऊर्जा से रोशन करने के लिए वर्ष 2010 में पांच लाख रुपए के निवेश से ओनर्जी की शुरुआत की. (सभी फ़ोटो : विशेष व्‍यवस्‍था से)


इस नए क्षेत्र में किस्‍मत आज़माने के लिए दोनों भाइयों ने अपने पारिवारिक बिज़नेस अपनाने का विरोध किया.

जाजू परिवार का एग्रो-प्रोसेसिंग का बिज़नेस था, लेकिन उन्‍होंने अपने जुनून के क्षेत्र को चुना, जिसके ज़रिये वे पर्यावरण पर कुछ सकारात्‍मक प्रभाव डाल सकते थे.

यह सफ़र आसान नहीं था. अनजाने क्षेत्र में बिना सुरक्षा काम करने की शुरुआती परेशानियों के बारे में पीयूष बताते हैं, ‘‘परिवार वाले चाहते थे कि हम पारिवारिक बिज़नेस संभालें या कोई ऊंचे ओहदे वाली नौकरी ढूंढें. लेकिन हममें पर्यावरण के प्रति जोश था और हम इसके अंधाधुंध दोहन को लेकर चिंतित थे.’’

पीयूष और विनय ने कोलकाता के सेंट जेवियर्स कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली. 2007 में स्नातक के बाद पीयूष ने एक साल हांगकांग में वित्‍तीय क्षेत्र में नौकरी की. इसके बाद वो कोलकाता लौट आए. यहां कुछ महीने काम करने के बाद वर्ष 2009 में उन्होंने नौकरी छोड़ दी.

दोनों भाइयों ने तय किया कि वो पूरे समय पर्यावरण के लिए काम करेंगे. हालांकि तब तक उन्‍हें ख़ुद पता नहीं था कि वो कौन सा काम करेंगे.

उन्‍होंने अपनी निजी बचत से एक लाख रुपए निवेश किए और ग़ैर-मुनाफ़े वाला संगठन स्विच ऑन शुरू किया. यह उनके भविष्‍य के सभी बिज़नेस का अगुआ बना.

विनय बताते हैं, ‘‘हमने ऑफिस के कार्य में मदद के लिए दो सहयोगी रखने से शुरुआत की. लोग किन समस्‍याओं से जूझ रहे थे, यह समझने के लिए बंगाल के ग्रामीण क्षेत्रों का दौरा किया.’’

विनय ने मुंबई के एसपी जैन स्‍कूल ऑफ़ ग्‍लोबल मैनेजमेंट से प्रबंधन की डिग्री ली है. इसके बाद उन्‍होंने ऑस्‍ट्रेलिया में जनरल इलेक्ट्रिक और बांग्‍लादेश में ग्रामीण शक्ति में काम किया.

वो कहते हैं, ‘‘हम दूर-दराज के गांवों में साइकिल से जाया करते थे, क्‍योंकि वहां मोटर जाने लायक़ सड़क नहीं होती थी.

अधिकतर गांव बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित थे. हम एक दिन में कई घंटे सा‍इकिल चलाते थे और जो मिलता वही खा लेते थे.’’

जिस एक चीज़ ने विशेषकर दुखी किया, वह यह थी गांवों में बिजली नहीं थी. अधिकतर ग्रामीण घर सूर्यास्‍त होने के बाद घुप्‍प अंधेरे में तब्‍दील हो जाते थे. लोग पूरी तरह अंधेरे में रहते थे.

वर्ष 2015 के बाद ओनर्जी रूफटॉप सोलर इंस्‍टालेशन के क्षेत्र में काम करने लगा.


दोनों याद करते हैं, ‘‘हमने सोचा कि ग्रामीण घरों को रोशन करने का सबसे अच्‍छा तरीक़ा सौर ऊर्जा हो सकती है.’’ उन्‍होंने यह भी महसूस किया कि सौर ऊर्जा से उनकी केरोसीन, और लकड़ी जैसे ईंधन के स्‍त्रोतों पर निर्भरता भी कम होगी, जो पर्यावरण के लिए घातक होते हैं.

वर्ष 2010 में विनय और पीयूष ने अपने परिवार को उद्यम में पांच लाख रुपए निवेश करने पर राजी कर लिया और ओनर्जी सोलर (पुनम एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड) का जन्‍म हुआ.

शुरुआत में, ओनर्जी सोलर ने ऑस्‍ट्रेलियाई कंपनी बेअरफूट पावर के साथ समझौता किया और सोलर लैंप व होम लाइटिंग सिस्‍टम आयात करने लगी.

पीयूष कहते हैं, ‘‘हमने गांवों में घूमना शुरू किया और लोगों को हमारे उत्‍पाद ख़रीदने के लिए मनाने की कोशिश की.

शुरुआत में, वे अनिच्‍छुक दिखे और इस बात के लिए अनिश्चित थे कि हमारे सौर उत्‍पाद काम करेंगे या नहीं. हमें उन्‍हें मनाना पड़ा कि सभी उत्‍पाद अच्‍छी गुणवत्‍ता के हैं.

हमने स्‍थानीय ग़ैर-मुनाफ़े और एमएफ़आई (माइक्रोफाइनेंस इंस्‍टीट्यूशनंस) से भी गठजोड़ किया, जिन्‍होंने हमारे उत्‍पाद बेचने में मदद की. इन संगठनों ने ऐसे लोगों को राशि भी उपलब्‍ध कराई जो उत्‍पाद ख़रीदने में असमर्थ थे.’’

काम शुरू करने के एक ही साल में वर्ष 2010-11 में ओनर्जी सोलर ने 40 लाख रुपए का राजस्‍व हासिल कर लिया.

काम बढ़ाने के लिए अब फंड की ज़रूरत पड़ने लगी. तब उन्‍होंने फंड जुटाना शुरू कर दिया और सिडा स्‍वीडन व हालोरन अमेरिका जैसी एजेंसियों ने ओनर्जी में निवेश किया. वर्ष 2012 तक एक करोड़ का फंड इकट्ठा हो गया.

दोनों भाइयों के अनूठे मार्केटिंग मॉडल ने विपरीत परिस्थितियों को भी अपने पक्ष में कर दिया.

विनय कहते हैं, ‘‘हमने अपने प्रॉडक्‍ट बेचने के लिए कोई डीलर नहीं रखा, बल्कि गांव वालों पर ही निर्भर रहे. हमने ग्रामीण उद्यमी तैयार किए, जो हमारे उत्‍पाद बेचते थे और हर बिक्री पर कमीशन पाते थे. इससे कई लोगों को आत्‍मनिर्भर होने में मदद मिली. हमने हमारे कार्यक्षेत्र के राज्‍यों में हज़ार से अधिक ऐसे उद्यमी तैयार किए.’’

पीयूष और विनय ने किसानों के साथ मिलकर ऑर्गेनिक फ़ूड बिज़नेस भी शुरू किया है. गांवों में अपनी व्‍यापक मौजूदगी का उन्‍हें फ़ायदा मिल रहा है.


वर्तमान में ओनर्जी सोलर देश के 12 राज्‍यों में 8 लाख से अधिक ग्राहकों के साथ काम कर रही है.

वर्ष 2015 में ओनर्जी ने सोलर रूफ़टॉप इंस्‍टालेशन शुरू किया. कंपनी का यह काम भी मशहूर हुआ. 3 से 5 साल में इंस्‍टॉलेशन की लागत निकल आती है. कंपनी अब तक 800 से अधिक ऐसे इंस्‍टालेशन कर चुकी है.

ओनर्जी ने विशिष्‍ट मार्केट रिसर्च और हर स्‍तर के ग्राहकों को समझने को प्राथमिकता दी, जिसका उसे फायदा भी मिला.

विनय मुस्‍कुराते हुए कहते हैं, ‘‘हमने पाया कि किसान डीजल से चलने वाले सिंचाई पंप पर निवेश कर बहुत सा पैसा गंवा रहे थे. यह पर्यावरण के लिए भी नुकसानदेह था. इसलिए हमने सौर पंप में निवेश करने का निश्‍चय किया. प्रतिसाद अच्‍छा मिला. हमने वर्ष 2014-15 तक 4 करोड़ रुपए का टर्नओवर हासिल कर लिया.’’

ओनर्जी सोलर को अंतरराष्‍ट्रीय पहचान तब मिली, जब स्‍वीडन सरकार ने इसे ग़रीबी के विरुद्ध नवाचार पर पुरस्‍कृत किया.

वर्ष 2014 में, ओनर्जी को दीर्घकालिक विकास के लिए उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के लिए संयुक्‍त राष्‍ट्र ने नैरोबी (केन्‍या) में सीड ग्‍लोबल अवार्ड से सम्‍मानित किया. उन्‍हें डब्‍ल्‍यूडब्‍ल्‍यूडब्‍ल्‍यूएफ़-इंडिया क्‍लाइमेट सोल्‍वर अवार्ड, द टेलीग्राफ़ इन्‍फोकॉम एसएमई अवार्ड, बेस्‍ट स्‍टार्ट-अप के लिए यूएनडीपी का अवार्ड समेत कई सम्‍मान मिले.

वर्ष 2016 में दोनों भाइयों ने ऑर्गेनिक फू़ड के क्षेत्र में क़दम रखे और उसे नाम दिया ऑनगैनिक फ़ूड्स. जाजू भाई पहले से ही किसानों से गहराई से जुड़े थे और अब वे आपूर्तिकर्ता से ख़रीदार बन गए थे.

पीयूष (बाएं से तीसरे), विनय अपनी पत्नियों के साथ. दोनों की जीवनसाथी भी इस बिज़नेस में बराबरी से उनका हाथ बंटाती हैं.


विनय की पत्‍नी एकता जाजू बताती हैं, ‘‘शुरुआती निवेश सिर्फ़ 4 लाख रुपए था. हम 50 से अधिक ऑर्गेनिक उत्‍पाद बनाते हैं. जैसे चावल, मसाले, तिलहन, दालें और गुड़ आदि. हमारा उद्देश्‍य छोटे ऑर्गेनिक किसानों के लिए बाज़ार आधारित समाधान ढूंढना है. हम प्रीमियम मार्केट तक किसानों की पहुंच बनाते हैं और मार्केट की जानकारी से किसान को यह सूचना मिल जाती है कि उन्‍हें क्‍या उगाना है.’’

एकता ऑनगैनिक फ़ूड्स संभालती हैं. पीयूष की पत्‍नी श्‍वेता जाजू समूह की संपर्क प्रमुख हैं.

दो इंटर्न के शुरुआती स्‍टाफ से पीयूष और विनय ने लंबा सफर तय किया है. अब, उनके स्‍टाफ़ में 140 कर्मचारी है.

अगले एक दशक में जाजू बंधु का लक्ष्‍य कंपनी का टर्नओवर 300 करोड़ रुपए करने का है.

उदीयमान उद्यमियों के लिए उनका मंत्र है: कठिन परिश्रम करें और ख़ुद में दृढ़ विश्‍वास रखें कि कोई भी सपना इतना बड़ा नहीं होता कि उसे साकार नहीं किया जा सके.

यह वाक़ई सही भी है.


 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • Success story of anti-virus software Quick Heal founders

    भारत का एंटी-वायरस किंग

    एक वक्त था जब कैलाश काटकर कैलकुलेटर सुधारा करते थे. फिर उन्होंने कंप्यूटर की मरम्मत करना सीखा. उसके बाद अपने भाई संजय की मदद से एक ऐसी एंटी-वायरस कंपनी खड़ी की, जिसका भारत के 30 प्रतिशत बाज़ार पर कब्ज़ा है और वह आज 80 से अधिक देशों में मौजूद है. पुणे में प्राची बारी से सुनिए क्विक हील एंटी-वायरस के बनने की कहानी.
  • malay debnath story

    यह युवा बना रंक से राजा

    पश्चिम बंगाल के एक छोटे से गांव का युवक जब अपनी किस्मत आजमाने दिल्ली के लिए निकला तो मां ने हाथ में महज 100 रुपए थमाए थे. मलय देबनाथ का संघर्ष, परिश्रम और संकल्प रंग लाया. आज वह देबनाथ कैटरर्स एंड डेकोरेटर्स का मालिक है. इसका सालाना टर्नओवर 6 करोड़ रुपए है. इसी बिजनेस से उन्होंने देशभर में 200 करोड़ रुपए की संपत्ति बनाई है. बता रहे हैं गुरविंदर सिंह
  • Abhishek Nath's story

    टॉयलेट-कम-कैफे मैन

    अभिषेक नाथ असफलताओं से घबराने वालों में से नहीं हैं. उन्होंने कई काम किए, लेकिन कोई भी उनके मन मुताबिक नहीं था. आखिर उन्हें गोवा की यात्रा के दौरान लू कैफे का आइडिया आया और उनकी जिंदगी बदल गई. करीब ढाई साल में ही इनकी संख्या 450 हो गई है और टर्नओवर 18 करोड़ रुपए पहुंच गया. अभिषेक की सफर अब भी जारी है. बता रहे हैं गुरविंदर सिंह
  • Snuggled in comfort

    पसंद के कारोबारी

    जयपुर के पुनीत पाटनी ग्रैजुएशन के बाद ही बिजनेस में कूद पड़े. पिता को बेड शीट्स बनाने वाली कंपनी से ढाई लाख रुपए लेने थे. वह दिवालिया हो रही थी. उन्होंने पैसे के एवज में बेड शीट्स लीं और बिजनेस शुरू कर दिया. अब खुद बेड कवर, कर्टन्स, दीवान सेट कवर, कुशन कवर आदि बनाते हैं. इनकी दो कंपनियों का टर्नओवर 9.5 करोड़ रुपए है. बता रही हैं उषा प्रसाद
  • Ishaan Singh Bedi's story

    लॉजिस्टिक्स के लीडर

    दिल्ली के ईशान सिंह बेदी ने लॉजिस्टिक्स के क्षेत्र में किस्मत आजमाई, जिसमें नए लोग बहुत कम जाते हैं. तीन कर्मचारियों और एक ट्रक से शुरुआत की. अब उनकी कंपनी में 700 कर्मचारी हैं, 200 ट्रक का बेड़ा है. सालाना टर्नओवर 98 करोड़ रुपए है. ड्राइवरों की समस्या को समझते हुए उन्होंने डिजिटल टेक्नोलॉजी की मदद ली है. उनका पूरा काम टेक्नोलॉजी की मदद से आगे बढ़ रहा है. बता रही हैं सोफिया दानिश खान