Milky Mist

Wednesday, 19 November 2025

गत्ते के फर्नीचर बनाकर चार साल में कमाने लगी एक करोड़

19-Nov-2025 By देवेन लाड
मुंबई

Posted 19 Mar 2018

अपने गृहराज्‍य बिहार से निकलकर मुंबई में बसना और दस साल से भी कम समय में सफलता पा लेना आसान नहीं.

बंदना जैन अपने परिवार की पहली महिला हैं, जो करियर के लिए अपना गांव छोड़कर मुंबई जा बसीं.

आज 30 साल की यह उद्यमी अपने स्टाइलिश इको-फ्रेंडली फ़र्नीचर के लिए मशहूर है.

गत्ते के बने ये फ़र्नीचर अंधेरी स्थित स्टूडियो और रिटेल वेबसाइट्स से बेचे जाते हैं.

 

बंदना ने साल 2013 में म‍हज 13,000 रुपए से सिल्विन स्‍टूडियो की स्‍था‍पना की थी. (सभी फ़ोटो – मनोज पाटील)

आपको विश्वास नहीं होगा, लेकिन सिल्विन की साल 2017 में एक करोड़ रुपए आमदनी रही है.

50 सदस्यों वाले संयुक्त परिवार में जन्मी बंदना बिहार के छोटे से गांव ठाकुरगंज में रहती थीं.

वो याद करती हैं, हमारे परिवार के सिर्फ़ पुरुष शहर पढ़ने जाते थे. महिलाएं शादी होने तक घरों में ही रहती थीं.

कला में रुचि रखने वाली बंदना जब बचपन में दुर्गा पूजा पंडालों में जाती थीं, तो उनकी ख़ूबसूरती और कलाकारी देख दंग रह जाती थीं. वो जानना चाहती थीं कि इन्‍हें कैसे बनाया जाता है, लेकिन उन्‍हें कलाकारों से बात करने की इजाज़त नहीं होती थी.

जब वो बड़ी हुईं तो कॉमर्स में ग्रैजुएशन के बाद मुंबई के जेजे स्कूल ऑफ़ आर्ट के बारे में सुना. पर परिवार ने कहा कि यह शादी के बाद ही संभव हो सकेगा.

बंदना ने यही किया. उन्होंने आईआईएम लखनऊ में पढ़ रहे अपने ब्वायफ़्रेंड मनीष को मुंबई में जॉब करने के लिए मनाया और साल 2008 में शादी के बाद अपने सपनों का पीछा करती मुंबई आ गईं.

अप्रैल 2008 में उन्‍होंने जेजे स्कूल ऑफ़ आर्ट के लिए प्रवेश पत्र भरा. जून में टेस्‍ट होना था.

उनके पास तैयारी के लिए सिर्फ़ डेढ़ महीने थे. किसी ने उन्हें कॉलेज के पूर्व स्टूडेंट जावेद मुलानी की ट्यूशंस के बारे में बताया और उन्होंने जमकर दिन के 12 घंटे तक पढ़ाई की.

जावेद के साथ उन्होंने अलग नज़रिये से सोचना सीखा. अलग-अलग डिज़ाइन, 2डी, 3डी, मेमोरी डिज़ाइन भी सीखीं.

बचपन में बंदना दुर्गा पूजा के पंडालों से ख़ासी आकर्षित थीं, लेकिन उन्‍हें उन कलाकारों से मिलने की इजाज़त नहीं थी, जो पंडाल बनाते थे.

जेजे स्कूल ऑफ़ आर्ट में बाहरी छात्रों के लिए महज आठ सीटें थीं, लेकिन बंदना की मेहनत रंग लाई और उनका एडमिशन हो गया.

कॉलेज में उन्‍हें बहुत प्रोत्‍साहन और सहयोग मिला. वो कहती हैं, कॉलेज में मेरे चारों तरफ़ बेहद प्रतिभावान छात्र थे, उन्होंने मेरी मदद की. कुछ तो मुझे पढ़ाने घर भी आते थे.

बंदना का कोर्स पूरा हुआ, लेकिन उन्हें पता नहीं था कि वो इस डिग्री का क्या करेें.

वो बताती हैं, उसी समय पति ने एक घर ख़रीदा. मेरे पास काफ़ी वक्त था, इसलिए मैंने घर के लिए एक कुर्सी डिज़ाइन की. मैं चाहती थी कि यह अलग हो, इसलिए इसे गत्ते से बनाने पर विचार किया.

बंदना ने धारावी से लेकर क्रॉफ़ोर्ड मार्केट तक तीन महीने अच्छी क्वालिटी का रिसाइकल्ड गत्ता खोजा, लेकिन नहीं मिला. वो मुंबई में हर कबाड़ी के यहां गईं, लेकिन उन्‍हें निराशा ही हाथ लगी.

आखि़र में एक जगह उन्‍हें गत्‍ता मिल गया, लेकिन अब उसे काटना आसान नहीं था. बंदना बताती हैं, मैंने ऑनलाइन ट्यूटोरियल देखकर एक ब्लैड बनाई, जो गत्ते को ख़राब नहीं करती थी.

बंदना की फैक्‍टरी और स्‍टूडियो में कुल १८ लोग काम करते हैं.

तीन महीने और 4,000 रुपए ख़र्च के बाद आखि़रकार कुर्सी तैयार हो गई.

हंसते हुए बंदना कहती हैं, मुझे लगा कि यह अच्छा आइडिया नहीं है.

लेकिन वो सचमुच एक अच्छा आइडिया था. उन्होंने जेजे के अपने साथी राहुल डोंगरे से मदद मांगी.

राहुल को उनका आइडिया पसंद आया और उन्होंने साल 2013 में महज 13,000 रुपए से सिल्विन की शुरुआत कर दी. राहुल अब स्टूडियो में मैनेजर हैं.

सिल्विन रोमन भगवान का नाम है, जो जंगलों की रक्षा करते हैं. यह नाम इको-फ्रेंडली फ़र्नीचर पर भी सटीक बैठता था.

बंदना बताती हैं, इसके बाद हमने पांच सीटर सोफ़ा बनाया. फिर लैंप के साथ प्रयोग किया. 10-12 लैंप पूरे करने के बाद दोस्तों-परिवार वालों को दिखाए, तो उन्हें बेहद पसंद आए.

गोरेगांव की एक प्रदर्शनी में हिस्सा लेने से उनमें आत्मविश्वास आया. साथ ही सीख भी मिली.

उसके बाद उन्होंने फ़र्नीचर वेबसाइट जैसे पेपरफ़्राई और अमेज़न पर सामान बेचना शुरू कर दिया, जिससे ठीकठाक आमदनी होने लगी.

अपने बनाए एक लैंप के साथ बंदना.

आज सिल्विन की वसई में एक फ़ैक्टरी है, जहां 10 स्थानीय महिलाएं काम करती हैं.

बंदना के काम की ख़ासियत उनका रिसाइकल्ड गत्ता है. उनके लैंप की क़ीमत 4,500 से 7,000 रुपए है. सोफ़े की क़ीमत पांच लाख रुपए तक है.

साल 2020 तक बंदना का लक्ष्य अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कंपनी को पहुंचाना है. वो कहती हैं, मेरी इच्‍छा है कि मैं सिल्विन को अंतरराष्‍ट्रीय फ़र्नीचर प्रदर्शनी मिलान सालोन डेल मोबाइल में ले जाऊं.


 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • Royal brother's story

    परेशानी से निकला बिजनेस आइडिया

    बेंगलुरु से पुड्‌डुचेरी घूमने गए दो कॉलेज दोस्तों को जब बाइक किराए पर मिलने में परेशानी हुई तो उन्हें इस काम में कारोबारी अवसर दिखा. लौटकर रॉयल ब्रदर्स बाइक रेंटल सर्विस लॉन्च की. शुरुआत में उन्हें लोन और लाइसेंस के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा, लेकिन मेहनत रंग लाई. अब तीन दोस्तों के इस स्टार्ट-अप का सालाना टर्नओवर 7.5 करोड़ रुपए है. रेंटल सर्विस 6 राज्यों के 25 शहरों में उपलब्ध है. बता रहे हैं गुरविंदर सिंह
  • IIM topper success story

    आईआईएम टॉपर बना किसानों का रखवाला

    पटना में जी सिंह मिला रहे हैं आईआईएम टॉपर कौशलेंद्र से, जिन्होंने किसानों के साथ काम किया और पांच करोड़ के सब्ज़ी के कारोबार में धाक जमाई.
  • success story of courier company founder

    टेलीफ़ोन ऑपरेटर बना करोड़पति

    अहमद मीरान चाहते तो ज़िंदगी भर दूरसंचार विभाग में कुछ सौ रुपए महीने की तनख्‍़वाह पर ज़िंदगी बसर करते, लेकिन उन्होंने कारोबार करने का निर्णय लिया. आज उनके कूरियर बिज़नेस का टर्नओवर 100 करोड़ रुपए है और उनकी कंपनी हर महीने दो करोड़ रुपए तनख्‍़वाह बांटती है. चेन्नई से पी.सी. विनोज कुमार की रिपोर्ट.
  • Success of Hatti Kaapi

    बेंगलुरु का ‘कॉफ़ी किंग’

    टाटा कॉफ़ी से नया ऑर्डर पाने के लिए यूएस महेंदर लगातार कंपनी के मार्केटिंग मैनेजर से मिलने की कोशिश कर रहे थे. एक दिन मैनेजर ने उन्हें धक्के मारकर निकलवा दिया. लेकिन महेंदर अगले दिन फिर दफ़्तर के बाहर खड़े हो गए. आखिर मैनेजर ने उन्हें एक मौक़ा दिया. यह है कभी हार न मानने वाले हट्टी कापी के संस्थापक यूएस महेंदर की कहानी. बता रही हैं बेंगलुरु से उषा प्रसाद.
  • Apparels Manufacturer Super Success Story

    स्पोर्ट्स वियर के बादशाह

    रोशन बैद की शुरुआत से ही खेल में दिलचस्पी थी. क़रीब दो दशक पहले चार लाख रुपए से उन्होंने अपने बिज़नेस की शुरुआत की. आज उनकी दो कंपनियों का टर्नओवर 240 करोड़ रुपए है. रोशन की सफ़लता की कहानी दिल्ली से सोफ़िया दानिश खान की क़लम से.