अगर आप महीने के सिर्फ़ कुछ सौ रुपए कमाते हैं तो इसे ज़रूर पढ़ें
06-Jul-2025
By पी.सी. विनोजकुमार
चेन्नई
साल 1975 में जब एस. अहमद मीरान 19 साल के थे और अंडरग्रैजुएट छात्र थे, तब उन्होंने दूरसंचार विभाग में ऑपरेटर पद के लिए आवेदन किया. इंटरव्यू के बाद उन्हें 180 रुपए में टेलीफ़ोन ऑपरेटर की नौकरी मिल गई.
तिरुनेलवेली जिले के एक सामान्य परिवार में जन्मे मीरान ने बहुत जल्द यह तय कर लिया था कि उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होना है.
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एस. अहमद मीरान प्रोफ़ेशनल कूरियर्स के संस्थापक निदेशकों में से एक हैं. उनकी फ्रैंचाइज़ी के पास चेन्नई का बिज़नेस है, जिसका टर्नओवर 100 करोड़ रुपए है. (सभी फ़ोटो : रवि कुमार)
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सफल होने की सुलगती इच्छा के साथ मीरान ने सही क़दम उठाए. उन्होंने नौकरी छोड़कर ट्रैवल एजेंसी की शुरुआत की, और बाद में कूरियर बिज़नेस में नाम कमाया.
साल 1987 में उन्होंने सात अन्य लोगों के साथ मिलकर प्रोफ़ेशनल कूरियर्स प्राइवेट लिमिटेड की सह-स्थापना की. कंपनी फ़्रैंचाइज़ मॉडल पर आधारित थी और मीरान के पास चेन्नई का बिज़नेस था. आज 100 करोड़ के टर्नओवर वाले इस बिज़नेस की 90 ब्रांच हैं और उनके साथ 2,000 लोग काम करते हैं.
मीरान प्रोफ़ेशनल कूरियर्स प्राइवेट लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर भी हैं.
मीरन बताते हैं, “हम हर महीने तनख़्वाह पर दो करोड़ रुपए ख़र्च करते हैं. इससे मुझे बहुत संतोष मिलता है कि मैं अपने जीवन में इतने सारे लोगों को नौकरियां देने में सक्षम हुआ.”
मीरान बताते हैं कि जब वो बीकॉम सेकंड ईयर में थे, तब उन्हें टेलीफ़ोन ऑपरेटर की नौकरी मिली. उनकी तनख़्वाह काम के घंटों से तय होती थी. वो हफ़्ते के सातों दिन काम करते. एक रुपया प्रति घंटे के हिसाब से उन्हें महीने के 180 रुपए मिलते थे.
मीरान बताते हैं, “मेरी पहली पोस्टिंग कन्याकुमारी जिले के नागरकोइल में हुई. तनख़्वाह किराया देने और खाने में ही ख़र्च हो जाती थी. चार बच्चों में सबसे बड़ा बेटा होने के नाते मुझे परिवार के प्रति जिम्मेदारी का अहसास था, लेकिन एक भी पैसा घर नहीं भेज पाता था.”
उनका पूरा परिवार पिता की आय पर निर्भर था. उनके पिता गांव में किराए पर साइकिल देते थे. बाद में वो कोलंबो चले गए और कुछ जनरल स्टोर्स के कैश काउंटर पर कई साल काम किया.
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चेन्नई स्थित प्रोफ़ेशनल कूरियर्स में 2,000 से अधिक लोगों को रोज़गार मिला है.
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मीरान की मां गांव में लीज पर लिए हुए ज़मीन के टुकड़े पर चावल और अन्य मौसमी फसल उगाती थीं. उनका गांव नागरकोइल से 40 किलोमीटर दूर था.
मीरान बताते हैं कि हमारा परिवार निम्न मध्यवर्गीय था. मां युवावस्था से ही मेरे लिए प्रेरणादायी रहीं. मां ने मुझे कई अच्छी चीज़ें सिखाईं.
मीरान कहते हैं, “एक स्वप्रेरित व्यक्ति के रूप में उन्हें अहसास हो गया कि उनमें टेलीफ़ोन एक्सचेंज के स्विचबोर्ड में कॉर्ड्स इधर-उधर लगाने से अधिक क्षमताएं हैं.”
बीकॉम के बाद या तो वो दूरसंचार विभाग में प्रमोशन की प्रतीक्षा करते या नौकरी छोड़ देते और कोई बिज़नेस शुरू करते.
उन्होंने दूसरा विकल्प चुना.
मीरान कहते हैं, “मैंने कोई बिज़नेस शुरू करने के लिए तनख़्वाह में से पैसे बचाना शुरू कर दिया था. जैसे-जैसे तनख़्वाह बढ़ती गई, वैसे-वैसे बचत.” साल 1983 में उन्होंने काम से छुट्टी ली और चेन्नई जाकर बस गए. वहां ट्रैवल एजेंसी की शुरुआत की और पासपोर्ट, वीज़ा व फ़्लाइट-ट्रेन के टिकट बुक करने लगे.
मीरान बताते हैं, “मैंने 1500 रुपए महीने पर 125 वर्ग फुट का ऑफिस किराए पर लिया और 10 हज़ार रुपए एडवांस दिए. एक फ़ोन और तीन कर्मचारी भी रखे. हमारे यहां ग्राहक आने लगे. इस तरह मेरा बिज़नेस चल निकला.”
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मीरान ने प्रोफ़ेशनल कूरियर्स के लिए पूरे तमिलनाडु में फ्रैंचाइज़ी नेटवर्क खड़ा किया.
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एक साल के भीतर ही उन्होंने केंद्र सरकार की नौकरी छोड़ने की हिम्मत जुटा ली और ख़ुद को पूर्णकालिक उद्यमी के रूप में झोंक दिया.
मीरान बताते हैं, “मैंने अतिरिक्त कारोबारी अवसर के लिए खोज शुरू कर दी. दोस्तों को भी बताया. इस बीच इंडियन एअरलाइंस में काम करने वाले एक दोस्त ने मेरा परिचय कोच्चि की कंपनी कोस्ट कूरियर के एमडी से करवाया. वो चेन्नई में एक नए एजेंट की तलाश में थे.
मीरान याद करते हैं, “उनके पहले से शहर में कुछ क्लाइंट थे. मैंने अपना ऑफ़िस स्पेस और दो कर्मचारी ऑफ़र किए. मुझे कुल कमाई का 15 प्रतिशत कमीशन मिलता था. जब मैंने 1985 में काम शुरू किया, तब मेरी मासिक कमाई 1,500 रुपए थी, लेकिन डेढ़ साल में यह रक़म दस गुना बढ़कर 15,000 रुपए पर पहुंच गई.”
मीरान जल्द ही इस बिज़नेस की बारीकियां सीख गए. भारत में वो कूरियर बिज़नेस के शुरुआती दिन थे और उन्हें ऑर्डर के लिए ख़ुद मेहनत करनी पड़ती थी.
वो बड़े क्लाइंट जैसे इंडियन बैंक और नाबार्ड को कूरियर डिलिवर करने ख़ुद जाते थे और बताते थे कि आप हमें दस्तावेज़ दे दें. हम इसे अगले दिन मुंबई कूरियर कर देंगे.
लेकिन उस समय कूरियर सर्विस दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, कोच्चि, बेंगलुरु और हैदराबाद में ही उपलब्ध थीं.
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बजाज एम80 पर सवारी करने से मर्सिडीज़ बेंज जीएलई का मालिक बनने तक मीरान ने लंबा सफर तय किया है.
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इन दिनों लग्ज़री मर्सिडीज़ बेंज जीएलई में सफर करने वाले मीरान बताते हैं, “मेरे पास बजाज एम80 गाड़ी थी. शुरुआती दिनों में मैं रोज़ एयरपोर्ट जाकर कूरियर पैकेट उठाता या पहुंचाता.”
साल 1986 तक कोस्ट कूरियर के विभिन्न शहरों के एजेंट्स में कोच्चि के मैनेजमेंट के खिलाफ़ विरोध के स्वर उठने लगे, जहां कुछ बदलाव ज़रूरी हो गए थे. आखिरकार मीरान सहित कंपनी से जुड़े आठ लोगों ने कोस्ट कूरियर को छोड़कर कोस्ट इंटरनेशनल नामक नई कंपनी शुरू की.
साल 1987 में क़ानूनी कारणों से कंपनी का नाम बदलकर प्रोफ़ेशनल कूरियर्स कर दिया गया. इस प्राइवेट लिमिटेड कंपनी ने हर शहर में फ़्रैंचाइज़ नियुक्त किए. हर फ्रैंचाइज़ एक स्वतंत्र उद्यमी था, लेकिन व्यापार के लिए प्रोफ़ेशनल ब्रैंड इस्तेमाल करता था.
पूरे तमिलनाडु में फ्रैंचाइज़ नियुक्त करने की ज़िम्मेदारी मीरान ने संभाली.
वो कहते हैं, “आज हमारी 900 ब्रांच हैं और तमिलनाडु में प्रोफ़ेशनल ब्रैंड के अंतर्गत 8,000 कर्मचारी करते हैं.”
मीरान की उम्र 62 वर्ष हो चुकी है.
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प्रोफ़ेशनल कूरियर्स बिज़नेस के लिए अब ई-कॉमर्स क्लाइंट तक पहुंच रही है.
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मीरान कहते हैं, “1993 से 2002 के बीच हमने 15-20 फ़ीसदी की दर से वृद्धि की. लेकिन इसके बाद ई-मेल, एसएमएस और ऑनलाइन बैंकिंग चलन में आ गए. इससे बिज़नेस प्रभावित हुआ. पिछले सालों में दस्तावेजों और चेक का लेन-देन कम हुआ है. ”
“इसके बाद हमने दवाओं और पार्ट्स के छोटे पार्सल स्वीकारना शुरू कर दिए. अब हम ई-कॉमर्स कंपनियों के पार्सल डिलिवर करने लगे हैं.”
निजी जीवन में मीरान निहार फ़ातिमा के साथ प्रसन्नतापूर्वक वैवाहिक जीवन बीता रहे हैं. उनके बेटे शेख शफ़ीक अहमद की उम्र 30 साल है. उन्होंने लीड्स यूनिवर्सिटी से फ़ाइनेंस ऐंड अकाउंटिंग में ग्रैजुएशन किया है. फिलहाल शफ़ीक बिज़नेस में अपने पिता की मदद कर रहे हैं.
उनकी बेटी समीना सुल्ताना की उम्र 25 साल है. वो इस्लामिक स्टडीज़ में ग्रैजुएट हैं.
साल 2004 में मीरान ने शिक्षा क्षेत्र में प्रवेश किया और चेन्नई में युनिटी पब्लिक स्कूल की शुरुआत की. स्कूल में आज 2,400 बच्चे पढ़ रहे हैं.
चुनौतियों से भरी इस ज़िंदगी में ख़ुद के लिए वक्त कैसे निकालते हैं, सवाल पर वो कहते हैं, “मैं किताब पढ़ता हूं और रविवार को छुट्टी लेता हूं. क़रीब हर दो साल में परिवार के साथ मक्का-मदीना जाता हूं. हम कभी-कभी मलेशिया और सिंगापुर भी जाते हैं. हालांकि मुझे बहुत घूमना पसंद नहीं.”
स्पष्ट है कि मीरान के लिए काम ही आनंद है. उन्हें ख़ुश व तनावमुक्त महसूस करने के लिए कुछ और करने की ज़रूरत नहीं पड़ती.
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