Milky Mist

Wednesday, 26 November 2025

ख़ुद वेजिटेरियन हैं, पर नॉनवेज भोजन बनाने में इन्हें महारत हासिल है

26-Nov-2025 By उषा प्रसाद
कोयंबटूर

Posted 05 May 2018

कोयंबटूर से 79 किलोमीटर दूर है इरोड जिला. यहां सीनापुरम गांव में अपने घर पर होटल चला रहे एक दंपति की बदौलत गांव को दुनिया के नक्शे पर पहचान मिली है.

होटल का नाम है यूबीएम नम्मा वीटू सापाडु. यहां नॉनवेज (मांसाहारी) भोजन मिलता है जिसे खाने बेंगलुरु और चेन्नई जैसे शहरों से भी लोग आते हैं.

यूबीएम नम्मा वीटू सापाडु में ग्राहकों को भोजन परोसते आर. करुनैवेल और स्वर्णलक्ष्मी. (सभी फ़ोटो – एच.के. राजाशेकर)


होटल की ख़ासियत यहां 500 रुपए (कुछ मामलों में 700 रुपए तक) में मिलने वाला पेटभर भोजन है. इसमें मटन, चिकन, फ़िश, टर्की आदि से बने क़रीब 20 प्रकार के परंपरागत मांसाहारी व्‍यंजन परोसे जाते हैं.

भोजन सात से आठ फ़ीट लंबे केले के पत्ते पर सर्व किया जाता है. एक पत्ते पर चार से पांच लोगों का परिवार साथ बैठकर भोजन कर सकता है.

आप चाहें तो छोटे पत्ते पर भी खाना परोसा जाता है.

होटल के मालिक हैं 60 साल के आर. करुनैवेल और उनकी 53 वर्षीय पत्नी स्वर्णलक्ष्मी.

करुनैवेल बताते हैं, सप्ताह के अंत या छुट्टियों में होटल में क़रीब 150 लोग आते हैं. बाकी दिनों में यह संख्‍या 50 तक रह जाती है.

एक ग्राहक को अपने हाथों से खिलाते करुनैवेल.


लोग अपने पसंदीदा भोजन के लिए 150 से 200 किलोमीटर तक का सफ़र करके आते हैं.

करुनैवेल कहते हैं, होटल से जाते समय लोगों के चेहरों की मुस्कुराहट मुझे और मेहनत करने की ऊर्जा देती है.

विभिन्‍न मांसाहारी खाना जैसे मटन कोलांबू, रथपोरियाल, कुडाल करी, थलाईकरी, लिवर करी तथा ब्रॉयलर चिकन व नाटुकोली (कंट्री) चिकन से बनी डिश, मीनकोलांबू (फ़िश करी) के अलावा यहां चावल, रसम और दही भी उपलब्‍ध रहता है.

करुनैवेल की होटल के बाहर अपनी बारी का इंतज़ार करती भीड़.

रोचक बात यह है कि करुनैवेल और उनकी पत्‍नी दोनों कठोर शाकाहारी हैं.

करुनैवेल बताते हैं, मैं भगवान शिव को मानने वाला हूँ. मैं अंडा तक नहीं खाता. मैं दिन में एक बार शाम पांच बजे शुद्ध शाकाहारी भोजन करता हूं. यह खाना मेरी आठ साल की पोती मुझे खिलाती है. मेरी पत्नी ने आठ साल पहले मांसाहारी खाना छोड़ दिया था.

करुनैवेल और उनकी पत्‍नी भोजन बनाने का आनंद लेते हैं और लोगों को मन भरने तक खिलाते हैं.


...तो फिर यह होटल कैसे शुरू हुआ?

इस सवाल पर करुनैवेल बताते हैं, हमारा परिवार मेहमाननवाज़ी के लिए जाना जाता था. मेरे दादा-दादी इस बात को सुनिश्चित करते थे कि घर आया कोई व्यक्ति भूखा न जाए. मेरे माता-पिता ने भी इस बात का पालन किया और हम भी इसी परंपरा को निभा रहे हैं.

 “हालांकि हमारा परिवार आर्थिक रूप से संपन्न था, लेकिन हम लोगों को मुफ़्त खाना नहीं खिला सकते थे क्योंकि मांसाहारी भोजन महंगा पड़ता था और इतनी बड़ी संख्या में लोगों को खाना खिलाना संभव नहीं था.

जब करुनैवेल युवा थे तो वो घर में कई तरह का स्‍वादिष्‍ट खाना खाकर बड़े हुए.

वो बताते हैं, स्वाद और प्रामाणिकता ऐसी बातें हैं, जिससे हम समझौता नहीं कर सकते. प्रत्‍येक मांसाहारी डिश की रेसिपी में थोड़े बदलाव किए गए. ये हमारे बुज़ुर्गों की भेंट है.

किचन में भोजन गर्म करतीं स्‍वर्णलक्ष्‍मी.


साल 1992-93 में करुनैवेल के परिवार ने अपने गांव के आराघर में एक कैंटीन से शुरुआत की. छह साल बाद इसे उन्होंने अपने घर से आगे बढ़ाने का फ़ैसला किया.

करुनैवेल बताते हैं, चूंकि हमारा घर मुख्य सड़क पर है, इसलिए वहां से गुज़रने वाले सरकारी अधिकारी भोजन करने के लिए रुक जाते थे. धीरे-धीरे लोग हमारे बारे में जानने लगे और आने लगे.

पति-पत्नी ख़ुद ही मीट और मसाले चुनते हैं. करुनैवेल मीट की गुणवत्‍ता, मछली आदि की जांच करते हैं और पत्‍नी को बताते हैं कि मसाला पेस्ट कैसे बनाया जाए.

वो कहते हैं, खाना पूरी तरह मेरी पत्नी बनाती है. इस तरह हम खाने की गुणवत्‍ता पर बेहतर नियंत्रण रख पाते हैं.

होटल में स्‍वादिष्‍ट भोजन का इंतज़ार करता परिवार.


हमारा मक़सद है कि लोग यहां घर की तरह महसूस करें और अपने परिवार के साथ मिलकर एक पत्ते पर खाना खाएं. जो लोग एक पत्ते पर खाना खाने से हिचकते हैं, उन्हें हम अलग-अलग छोटे पत्तों पर खाना सर्व करते हैं.

संयोगवश अगर आप शाकाहारी हैं और यूबीएम के सामने से गुज़रते हैं, तो चिंता की बात नहीं है.

करुनैवेल कहते हैं, लगभग रोज़ ही पांच लोगों के लिए पर्याप्‍त शाकाहारी भोजन उपलब्‍ध रहता है. यहां आने वाला कभी बिना खाए नहीं जाता.

होटल के सामने का नज़ारा.


करुनैवेल कहते हैं, “मेरी मेहनत का पुरस्‍कार यही है कि यूबीएम नम्मा वीटू सापाडु हमारे स्‍थायी ग्राहकों के बीच जाना-माना नाम बन गया है.”


 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • Abhishek Nath's story

    टॉयलेट-कम-कैफे मैन

    अभिषेक नाथ असफलताओं से घबराने वालों में से नहीं हैं. उन्होंने कई काम किए, लेकिन कोई भी उनके मन मुताबिक नहीं था. आखिर उन्हें गोवा की यात्रा के दौरान लू कैफे का आइडिया आया और उनकी जिंदगी बदल गई. करीब ढाई साल में ही इनकी संख्या 450 हो गई है और टर्नओवर 18 करोड़ रुपए पहुंच गया. अभिषेक की सफर अब भी जारी है. बता रहे हैं गुरविंदर सिंह
  • The Tea Kings

    ये हैं चेन्नई के चाय किंग्स

    चेन्नई के दो युवाओं ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई, फिर आईटी इंडस्ट्री में नौकरी, शादी और जीवन में सेटल हो जाने की भेड़ चाल से हटकर चाय की फ्लैवर्ड चुस्कियों को अपना बिजनेस बनाया. आज वे 17 आउटलेट के जरिये चेन्नई में 7.4 करोड़ रुपए की चाय बेच रहे हैं. यह इतना आसान नहीं था. इसके लिए दोनों ने बहुत मेहनत की.
  • Selling used cars he became rich

    यूज़्ड कारों के जादूगर

    जिस उम्र में आप और हम करियर बनाने के बारे में सोच रहे होते हैं, जतिन आहूजा ने पुरानी कार को नया बनाया और बेचकर लाखों रुपए कमाए. 32 साल की उम्र में जतिन 250 करोड़ रुपए की कंपनी के मालिक हैं. नई दिल्ली से सोफ़िया दानिश खान की रिपोर्ट.
  • World class florist of India

    फूल खिले हैं गुलशन-गुलशन

    आज दुनिया में ‘फ़र्न्स एन पेटल्स’ जाना-माना ब्रैंड है लेकिन इसकी कहानी बिहार से शुरू होती है, जहां का एक युवा अपने पूर्वजों की ख़्याति को फिर अर्जित करना चाहता था. वो आम जीवन से संतुष्ट नहीं था, बल्कि कुछ बड़ा करना चाहता था. बिलाल हांडू बता रहे हैं यह मशहूर ब्रैंड शुरू करने वाले विकास गुटगुटिया की कहानी.
  • J 14 restaurant

    रेस्तरां के राजा

    गुवाहाटी के देबा कुमार बर्मन और प्रणामिका ने आज से 30 साल पहले कॉलेज की पढ़ाई के दौरान लव मैरिज की और नई जिंदगी शुरू की. सामने आजीविका चलाने की चुनौतियां थीं. ऐसे में टीवी क्षेत्र में सीरियल बनाने से लेकर फर्नीचर के बिजनेस भी किए, लेकिन सफलता रेस्तरां के बिजनेस में मिली. आज उनके पास 21 रेस्तरां हैं, जिनका टर्नओवर 6 करोड़ रुपए है. इस जोड़े ने कैसे संघर्ष किया, बता रही हैं सोफिया दानिश खान