Milky Mist

Thursday, 21 November 2024

अमेरिका में नौकरी छोड़ भारत लौटे इंजीनियर ने 1 लाख रुपए से शुरू कर 30 करोड़ रुपए टर्नओवर वाला कारोबार बनाया

21-Nov-2024 By सोफिया दानिश खान
विजयवाड़ा

Posted 19 Aug 2021

खुद का बिजनेस करने की धुन में 26 साल के अरविंद अरासविल्ली ने अमेरिका के मिनेसोटा की ग्लोब विश्वविद्यालय में ऊंची सैलरी वाली नौकरी छोड़ दी. वे आंध्र प्रदेश में गृहनगर विजयवाड़ा लौट आए. 2012 में उन्होंने 1 लाख रुपए के निवेश से विदेशी शिक्षा मार्गदर्शन और वीजा असिस्टेंस फर्म की शुरुआत की.

नौ साल बाद, वे दो कंपनियों के मालिक हैं. दोनों कंपनियों का कुल कारोबार 30 करोड़ रुपए है और 170 लोग उनके साथ काम करते हैं.

अरविंद अरासविल्ली ने विजयवाड़ा में 1 लाख रुपए से विदेशी शिक्षा सलाहकार फर्म एक्सेला एजुकेशन ग्रुप एलएलसी की शुरुआत की. (फोटो: विशेष व्यवस्था)

अपने परिवार के पहले उद्यमी अरविंद कहते हैं, “विजयवाड़ा से औद्योगिक इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद मैंने अमेरिका में एमबीए की पढ़ाई करने का फैसला किया, ताकि समग्र प्रबंधन में अनुभव हासिल किया जा सके और मैं अपना नेतृत्व कौशल बेहतर कर सकूं.”

अरविंद ने विदेश में एमबीए करने के लिए 65 लाख रुपए का एजुकेशन लोन लिया. वे कहते हैं, “मैंने 2009 में मिनेसोटा स्कूल ऑफ बिजनेस से एमबीए किया. फिर 2010 से 2012 तक ग्लोब यूनिवर्सिटी में इंटरनेशनल एडमिशन ऑफिसर के रूप में 40,000 डाॅलर प्रति वर्ष (उस समय करीब 20 लाख रुपए) के वेतन पर काम किया.

“मैंने अपनी कमाई से अगले पांच साल में एजुकेशन लोन चुका दिया.”

अमेरिका में एडमिशन ऑफिसर के अनुभव के साथ वे 2012 में भारत लौट आए और विजयवाड़ा में अपना पहला बिजनेस एक्सेला एजुकेशन ग्रुप एलएलसी शुरू किया. यह एक शिक्षा परामर्शदाता फर्म थी.

एक्सेला ने कुछ बेहतरीन विदेशी कॉलेजों में प्रवेश के लिए आवेदन करने और पाठ्यक्रम पूरा करने के बाद नौकरी हासिल करने में छात्रों का मार्गदर्शन किया. फर्म ने छात्रों को स्कॉलरशिप हासिल करने में भी मदद की.

वे कहते हैं, “मैंने एक कमरे के दफ्तर से शुरुआत की. पहले सात महीने कोई काम नहीं मिला. मैं ऑफिस जाता और बिना कोई क्लाइंट मिले घर लौट आता. लेकिन चीजें बेहतर हुईं और जुबानी प्रचार से कारोबार रफ्तार पकड़ने लगा.”

एक लाख रुपए से एक्सेला की शुरुआत करने वाले अरविंद आज अपने कर्मचारियों को हर महीने 85 लाख रुपए वेतन देते हैं.

अरविंद कहते हैं, “आज हमारे तेलंगाना, अमेरिका और आंध्र प्रदेश में दफ्तर हैं. हम हर साल करीब 5000 आवेदन तैयार करते हैं. इनमें से 100 से अधिक छात्रों को किसी न किसी विदेशी विश्वविद्यालय में प्रवेश मिलता है.”

वे हर आवेदक से 100 डॉलर सेवा शुल्क लेते हैं. प्रीमियम ग्राहकों के लिए शुल्क 1,000 डॉलर हैं और अतिरिक्त सहायता प्रदान की जाती है.

अरविंद के पहले बिजनेस का मौजूदा सालाना टर्नओवर 5 करोड़ रुपए है. वे इसके बारे में बताते हैं, “मैं इन ग्राहकों की पूरी प्रक्रिया खुद करता हूं. हालांकि आजकल मुझे बमुश्किल समय मिल पाता है. मैं छात्र को परामर्श देता हूं, और आवेदन लिखने में मार्गदर्शन करता हूं. उन्हें दूसरे देश में जीवन के लिए तैयार भी करता हूं.”

अरविंद ने अपनी दूसरी कंपनी परम टेक्नोलॉजीस इंक अमेरिका के मिनीपोलिस में 2015 में एक किराए के अपार्टमेंट से शुरू की. वह अपार्टमेंट तब तक अमेरिका में उनका घर था. वे इसी का इस्तेमाल कंसल्टेंसी के अमेरिकी ऑफिस के रूप में भी करते थे.

अरविंद कहते हैं, “मैंने पाया कि प्रोद्यौगिकी के विकास के साथ क्लाउड कंप्यूटिंग भी बढ़ रही है. मैंने मिनीपोलिस और उसके आसपास की छोटी फर्मों से संपर्क किया और उन्हें डेटा स्टोर करने के लिए इन-हाउस सर्वर के मुकाबले क्लाउड टेक्नोलॉजी के फायदों के बारे में बताया.”

“हमें स्थानीय फर्मों से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली और कंपनियों में क्लाउड कंप्यूटिंग सिस्टम बनाने के लिए वर्क ऑर्डर मिलने लगे.”

जल्द ही, उन्हें अमेरिका में सबसे बड़ी इलेक्ट्रॉनिक्स रिटेल चेन बेस्ट बॉय, चेज बैंक, वॉलमार्ट और क्रोगर्स से कॉन्ट्रैक्ट मिल गए.

उनकी यूएस फर्म के लिए लोगों को रखना आसान था. जैसा कि अरविंद कहते हैं, “हमारे पास संभावित कर्मचारियों का एक तैयार पूल था. हमने उन्हीं छात्रों को काम पर रख लिया, जिन्होंने हमारी कंसल्टेंसी (एक्सेला) के माध्यम से आवेदन किया था और अमेरिका में पाठ्यक्रम पूरा किया था.”

अपने दफ्तर के कुछ स्टाफ और कर्मचारियों के साथ अरविंद.   

मिनीपोलिस स्थित कंपनी के अमेरिका में 100 कर्मचारी हैं और बाकी कर्मचारी भारत में हैं. हैदराबाद में उनका कार्यालय अमेरिकी टीम को बैकएंड मदद देता है.

अरविंद बताते हैं, “2015 में जब हमने शुरुआत की, तब मुझे अकाउंटेंट और एचआर का काम भी करना पड़ा. उस समय मेरे पास लोगों को रखने के लिए इतने पैसे नहीं थे. लेकिन आज हम कर्मचारियों को वेतन के रूप में हर महीने 1,20,000 डाॅलर (करीब 85 लाख रुपए) का भुगतान करते हैं.

2015-16 में कंपनी का पहला साल का कारोबार 40,000 डाॅलर था, लेकिन आज यह बढ़कर हर महीने करीब 3,00,000 डाॅलर या सालाना 25 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है.

महामारी के साल के दौरान भी कंपनी बढ़ती रही और नए कर्मचारी भर्ती किए जाते रहे.

अरविंद का प्राथमिक ध्यान अब भी क्लाउड कंप्यूटिंग पर बना हुआ है. वे कहते हैं, “हमने छह महीने पहले कनाडा में छह कर्मचारियों के साथ काम शुरू किया था. साल के अंत तक मेक्सिको में एक और दफ्तर खोलने जा रहे हैं.”

अरविंद के पिता रमेश अरासविल्ली ने एक बैंक क्लर्क के रूप में करियर शुरू किया था. हाल ही में वे मैनेजर के रूप में सेवानिवृत्त हुए. उन्होंने और पत्नी पद्मा ने अपने बच्चों को वह सर्वोत्तम शिक्षा दी, जिसका खर्च वे वहन कर सकते थे. अरविंद की एक छोटी बहन दीपिका है, जो आज सॉफ्टवेयर इंजीनियर है.

अरविंद विजयवाड़ा में पले-बढ़े, लेकिन करीब नौ साल की उम्र में उनके पिता का स्थानांतरण होने के बाद परिवार दिल्ली आ गया. चूंकि उनके पिता का हर तीन साल में नए स्थान पर स्थानांतरण हो जाता था, इसलिए उन्हें विभिन्न शहरों में पढ़ने का अवसर मिला.

अरविंद कहते हैं, “मैंने दिल्ली में कक्षा चार और पांच की पढ़ाई की. वहां मैंने हिंदी भाषा सीखी. बाद में मैंने अपनी कक्षा छह-सात की पढ़ाई नागपुर में की और मराठी सीखी. इन भाषाओं का ज्ञान अब भी मेरी मदद कर रहा है.”

अरविंद के तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और अमेरिका में दफ्तर हैं.

बाद में परिवार विजयवाड़ा लौट आया. अरविंद ने 2003 में सेंट जॉन्स पब्लिक स्कूल से 12वीं और केएल कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से औद्योगिक इंजीनियरिंग में बी टेक किया.

भारत और अमेरिका दोनों देशों में दफ्तर होने से अरविंद दोनों देशों के बीच अक्सर यात्रा करते हैं.

35 वर्ष के हो चुके अरविंद देश के सबसे योग्य कुंआरे व्यक्ति हो सकते हैं. वे कहते हैं, “मैं बहुत पढ़ता हूं. एक सप्ताह में एक पुस्तक खत्म करने की कोशिश करता हूं. आत्मकथाएं और भगवद् गीता मेरी हमेशा से पसंदीदा पुस्तकें रही हैं. माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स की आत्मकथा मेरे लिए एक बड़ी प्रेरणा रही है. यह पुस्तक मैंने 2015 में पढ़ी थी.”

शादी में देरी का कारण यह है कि वे अब भी काम में व्यस्त हैं और लड़कियों के लिए अच्छी खबर यह है कि वे अब एक जीवनसाथी की तलाश कर रहे हैं.

 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • Story of Sattviko founder Prasoon Gupta

    सात्विक भोजन का सहज ठिकाना

    जब बिजनेस असफल हो जाए तो कई लोग हार मान लेते हैं लेकिन प्रसून गुप्ता व अंकुश शर्मा ने अपनी गलतियों से सीख ली और दोबारा कोशिश की. आज उनकी कंपनी सात्विको विदेशी निवेश की बदौलत अमेरिका, ब्रिटेन और दुबई में बिजनेस विस्तार के बारे में विचार कर रही है. दिल्ली से सोफिया दानिश खान की रिपोर्ट.
  • Caroleen Gomez's Story

    बहादुर बेटी

    माता-पिता की अति सुरक्षित छत्रछाया में पली-बढ़ी कैरोलीन गोमेज ने बीई के बाद यूके से एमएस किया. गुड़गांव में नौकरी शुरू की तो वे बीमार रहने लगीं और उनके बाल झड़ने लगे. इलाज के सिलसिले में वे आयुर्वेद चिकित्सक से मिलीं. धीरे-धीरे उनका रुझान आयुर्वेदिक तत्वों से बनने वाले उत्पादों की ओर गया और महज 5 लाख रुपए के निवेश से स्टार्टअप शुरू कर दिया। दो साल में ही इसका टर्नओवर 50 लाख रुपए पहुंच गया. कैरोलीन की सफलता का संघर्ष बता रही हैं सोफिया दानिश खान...
  • Aamir Qutub story

    कुतुबमीनार से ऊंचे कुतुब के सपने

    अलीगढ़ जैसे छोटे से शहर में जन्मे आमिर कुतुब ने खुद का बिजनेस शुरू करने का बड़ा सपना देखा. एएमयू से ग्रेजुएशन के बाद ऑस्ट्रेलिया का रुख किया. महज 25 साल की उम्र में अपनी काबिलियत के बलबूते एक कंपनी में जनरल मैनेजर बने और खुद की कंपनी शुरू की. आज इसका टर्नओवर 12 करोड़ रुपए सालाना है. वे अब तक 8 स्टार्टअप शुरू कर चुके हैं. बता रही हैं सोफिया दानिश खान...
  • Punjabi girl IT success story

    इस आईटी कंपनी पर कोरोना बेअसर

    पंजाब की मनदीप कौर सिद्धू कोरोनावायरस से डटकर मुकाबला कर रही हैं. उन्‍होंने गांव के लोगों को रोजगार उपलब्‍ध कराने के लिए गांव में ही आईटी कंपनी शुरू की. सालाना टर्नओवर 2 करोड़ रुपए है. कोरोना के बावजूद उन्‍होंने किसी कर्मचारी को नहीं हटाया. बल्कि सबकी सैलरी बढ़ाने का फैसला लिया है.
  • Success story of Susux

    ससक्स की सक्सेस स्टोरी

    30 रुपए से 399 रुपए की रेंज में पुरुषों के टी-शर्ट, शर्ट, ट्राउजर और डेनिम जींस बेचकर मदुरै के फैजल अहमद ने रिटेल गारमेंट मार्केट में तहलका मचा दिया है. उनके ससक्स शोरूम के बाहर एक-एक किलोमीटर लंबी कतारें लग रही हैं. आज उनके ब्रांड का टर्नओवर 50 करोड़ रुपए है. हालांकि यह सफलता यूं ही नहीं मिली. इसके पीछे कई असफलताएं और कड़ा संघर्ष है.