Milky Mist

Thursday, 21 November 2024

फूलों के बिज़नेस में खोजा नवाचार, खड़ा किया 200 करोड़ का कारोबार

21-Nov-2024 By बिलाल हांडू
नई दिल्ली

Posted 14 Apr 2018

बिहार के गांव का एक लड़का दिल्‍ली आता है, फूलों में नवाचार से वह सभी को दीवाना देता है और 200 करोड़ का बिज़नेस खड़ा कर लेता है.

ये कहानी है फ़र्न्स एन पेटल्स की.

आज चेन्नई, बेंगलुरु, दिल्ली, मुंबई, इलाहाबाद, कोयंबटूर समेत 93 शहरों में कंपनी के 240 फ़्रैंचाइज़ी स्टोर हैं. इन सबके पीछे सोच और मेहनत है 48 वर्षीय विकास गुटगुटिया की. वो फ़र्न्स एन पेटल्‍स के संस्‍थापक और मैनेजिंग डायरेक्‍टर हैं.

वर्ष 1994 में विकास गुटगुटिया ने साउथ एक्‍सटेंशन पार्ट II में 200 वर्गफीट में छोटी सी दुकान खोली और दिल्‍ली में रिटेलर्स को फूलों की आपूर्ति शुरू कर दी. (सभी फ़ोटो - नवनिता)


यह कहानी शुरू होती है 1994 में.

विकास बताते हैं, बचपन से मैं आम इंसान बनकर नहीं रहना चाहता था. मैं उस ज़िंदगी से कभी ख़ुश नहीं रहा. मुझे अपने पड़दादा के बारे में पता था और मैं वह प्रतिष्‍ठा फिर पाना चाहता था.

विकास देश के जाने-माने चार्टर्ड अकाउंटेंट केएन गुटगुटिया के पड़पोते हैं.

लेकिन समृद्धि के वो दिन बहुत पहले बीत चुके थे. उनके पिता सरकारी कर्मचारी थे. वो पूर्वी बिहार के विद्यासागर गांव में एक मध्यमवर्गीय मारवाड़ी परिवार में पले-बढ़े थे.

कक्षा 10 पास करने के बाद विकास आगे पढ़ने कोलकाता चले गए, जहां वो अपने अंकल के साथ रहते थे.

स्कूल और कॉलेज के बाद वो अंकल की फूलों की दुकान में मदद करते. वहीं उन्होंने फूलों के कारोबार को समझा.

विकास बताते हैं, “90 के दशक के शुरुआती दिनों में रोज 7,000 रुपए के फूल बिकते थे, लेकिन मैं कुछ बड़ा करना चाहता था.

कॉमर्स से ग्रैजुएशन पूरा होने के बाद वो बेहतर अवसरों की तलाश में मुंबई आ गए.

1994 में एक दिन वो कॉलेज के दिनों की अपनी गर्लफ़्रेंड मीता को जन्मदिन की मुबारकबाद देने दिल्ली गए. उन्होंने फूल एक स्थानीय फ़्लोरिस्ट से भिजवा दिए थे.

लेकिन जन्मदिन की पार्टी में उन्होंने देखा कि फूलों का गुलदस्ता बेतरतीब तरीक़े से सजाया गया था. फूल भी ख़राब क्‍वालिटी के थे.

चतुर कारोबारी दिमाग़ को इसमें मौक़ा नज़र आया और विकास ने दिल्ली में फूल बाज़ार का अध्‍ययन शुरू कर दिया.

दिल्‍ली में फ्लावर एन पेटल्‍स का एक आउटलेट.


विकास को पता चला कि दिल्ली में मुख्‍य रूप से छह लोग फूल बेचते थे, लेकिन वो ख़राब क्वालिटी के फूल और सेवाएं देते थे. न उनकी दुकान में एसी था, न ही अच्छा माहौल.

विकास ने फूलों से जुड़ा कारोबार करने का फ़ैसला किया, लेकिन उनकी जेब में मात्र 5,000 रुपए थे. वो दिल्ली में काम कर रहे कोलकाता के अपने एक दोस्त से मिले.

विकास याद करते हैं, मैंने उसे अपने प्लान और पैसे की तंगी के बारे में बताया.

उनके दोस्त ने ढाई लाख रुपए का निवेश किया और गुटगुटिया ने साउथ एक्सटेंशन पार्ट II  में पटरी पर 200 वर्ग फ़ीट की दुकान खोल ली. इस तरह मीता के जन्मदिन के कुछ ही महीनों में फ़र्न्स एन पेटल्स का जन्म हुआ.

विकास बताते हैं, मैं दिल्ली की दर्ज़नों दुकानों को फूल भेजने लगा.

विकास और उनके एक दोस्त ने फूलों की क़रीब एक दर्जन दुकानें खोलीं. हालांकि पांच साल बाद वो अपने दोस्त से अलग हो गए.

उन्होंने दिल्ली व बाहर के किसानों से संबंध बढ़ाए और उन्हें फूल के सबसे बेहतरीन बीज उपलब्ध करवाए.

हालांकि बिज़नेस बढ़ाना आसान नहीं था. किराए बढ़ रहे थे और पैसे जुटाना आसान नहीं था. लेकिन पीछे हटने के बजाय वन मैन आर्मी की तरह बीज की सप्लाई, फूलों की मार्केटिंग से लेकर फूलों से भरे वैन फ़्रैंचाइज़ तक ले जाने के सारे काम विकास ने किए.

इस बीच मीता के माता-पिता उनके साथ रिश्ते को लेकर हिचक रहे थे, लेकिन बाद में विकास की मेहनत ने उनकी सोच बदल दी और आखिरकार दोनों की शादी हो गई.

कुछ घटनाओं ने उनका हौसला भी बढ़ाया. एक दिन एक ग्राहक आया और अपनी गर्लफ़्रेंड के लिए पूरी दुकान के सभी फूल दो लाख रुपए में ख़रीद ले गया.

हालांकि विकास का सपना 10 लाख रुपए महीने की कमाई से ज़्यादा का था.

वर्ष 2003 में गुटगुटिया ने फ़ैशन डिज़ाइनर तरुण टहिल्‍यानी से हाथ मिलाया और लग्‍ज़री फ़्लोरल बुटिक शुरू किया.


विकास को बड़ा ब्रेक 1997 में मिला, जब उन्हें दिल्ली के ताज पैलेस होटल में शादी में सजावट का कॉन्‍टैक्‍ट मिला.

न सिर्फ़ उन्हें इस कॉन्‍टैक्‍ट से क़रीब 50 लाख रुपए मिले, बल्कि लोगों की ज़ुबां पर फ़र्न्स एन पेटल्स का नाम भी आ गया और लोग उनके स्टोर पर आने लगे.

इसने उनका बिज़नेस मॉडल बदल दिया. गुटगुटिया का मास्टरस्ट्रोक था पारंपरिक पुष्पमाला-आधारित सजावट की जगह कटे फूलों से सजावट करना. देखते ही देखते गुटगुटिया के विचार ने क्रांति ला दी.

उनकी फ़र्म एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बन गई.

नब्बे के दशक के अंत तक उनके पास बड़े-बड़े ऑर्डर आने लगे. मांग पूरी करने के लिए उन्होंने पश्चिम बंगाल के मिदनापुर से पारंपरिक फूल कारीगरों को काम पर रखा.

उन्होंने दिल्ली में फ़र्न्स एन पेटल्स फ़्लोरल डिज़ाइन स्कूल की भी स्थापना की.

अगला बड़ा मौक़ा वर्ष 2002 में आया, जब गुटगुटिया ने ऑनलाइन गिफ़्टिंग पोर्टल शुरू किया. यह पोर्टल भारतीय और विदेशी फूलों की घर पहुंच सेवा उपलब्ध करवाता था.

अगला साल भी महत्वपूर्ण रहा.

साल 2003 में उन्होंने फ़ैशन डिज़ाइनर तरुण टहिल्यानी से हाथ मिलाया और एफ़.एन.पी. टहिल्यानी नाम से लग्ज़री फ़्लोरल बुटीक की शुरुआत की. मशहूर डिज़ाइनर और दोस्त जेजे वलाया के साथ मिलकर भी उन्होंने लग्ज़री वेडिंग्स में सजावट की.

साल 2006 में उन्होंने चटक चाट नाम से स्ट्रीट फ़ूड ब्रैंड शुरू किया, लेकिन उसमें 25 करोड़ रुपए का नुकसान होने पर 2009 में उसे बंद करना पड़ा.

विकास कहते हैं, मैंने जीवन का महत्‍वपूर्ण सबक लिया और अब उद्यमियों को सलाह देता हूं, किसी भी बिज़नेस की शुरुआत से पहले वो उसका सी.ई.ओ. ज़रूर ढूंढ लें.

अपने फूलों के बिज़नेस में लौटकर उन्‍होंने भारतीय शादियों में होने वाली सजावट को नई दिशा दी है.

फ़र्न्‍स एन पेटल्‍स दुनिया के सबसे बड़े फ़्लावर रिटेलर्स में से एक है, जिसकी 155 देशों में सेवाए हैं.


साल 2009 में 30 करोड़ रुपए का कारोबार करने वाले फ़र्न्स एन पेटल्स का बिज़नेस 2012 में 145 करोड़ रुपए जा पहुंचा, जिसमें 13 करोड़ रुपए मुनाफ़ा था.

साल 2016 में उनका बिज़नेस 200 करोड़ रुपए तक पहुंच गया.

विस्‍तार की उनकी रणनीति है, नए मार्केट्स में तो जाओ, लेकिन पुराने मार्केट पर अपनी पकड़ बरकरार रखो.

विकास के मुताबिक, फ़्लावर एन पेटल्‍स अब तक ऑनलाइन और ऑफ़लाइन ४० लाख ग्राहकों को सेवाएं दे चुका है, जिनमें हॉलैंड और रूस से आयात किए फूल भी शामिल हैं.


दुनिया के 155 देशों में सेवाएं देने वाले वो सबसे बड़े फूल विक्रेताओं में से एक है.

उनकी पत्नी मीता कंपनी में डायरेक्टर और क्रिएटिव हेड हैं. उनके दो बच्चे उद्यत और मन्नत स्कूल जाते हैं.

विकास को विभिन्न पुरस्कारों से सम्‍मानित जा चुका है, जिनमें ई.ई.एम.ए. का 2016 का डिज़ाइनर ऑफ़ द ईयर और इंटरनेशनल फ़्रैंचाइज एंड रिटेल शो में बिज़नेस लीडरशिप अवार्ड शामिल हैं.

 

 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • Bijay Kumar Sahoo success story

    देश के 50 सर्वश्रेष्ठ स्कूलों में इनका भी स्कूल

    बिजय कुमार साहू ने शिक्षा हासिल करने के लिए मेहनत की और हर महीने चार से पांच लाख कमाने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट बने. उन्होंने शिक्षा के महत्व को समझा और एक विश्व स्तरीय स्कूल की स्थापना की. भुबनेश्वर से गुरविंदर सिंह की रिपोर्ट
  • Alkesh Agarwal story

    छोटी शुरुआत से बड़ी कामयाबी

    कोलकाता के अलकेश अग्रवाल इस वर्ष अपने बिज़नेस से 24 करोड़ रुपए टर्नओवर की उम्मीद कर रहे हैं. यह मुकाम हासिल करना आसान नहीं था. स्कूल में दोस्तों को जीन्स बेचने से लेकर प्रिंटर कार्टेज रिसाइकिल नेटवर्क कंपनी बनाने तक उन्होंने कई उतार-चढ़ाव देखे. उनकी बदौलत 800 से अधिक लोग रोज़गार से जुड़े हैं. कोलकाता से संघर्ष की यह कहानी पढ़ें गुरविंदर सिंह की कलम से.
  • Chai Sutta Bar Story

    चाय का नया जायका 'चाय सुट्टा बार'

    'चाय सुट्टा बार' नाम आज हर युवा की जुबा पर है. दिलचस्प बात यह है कि इसकी सफलता का श्रेय भी दो युवाओं को जाता है. नए कॉन्सेप्ट पर शुरू की गई चाय की यह दुकान देश के 70 से अधिक शहरों में 145 आउटलेट में फैल गई है. 3 लाख रुपए से शुरू किया कारोबार 5 साल में 100 करोड़ रुपए का हो चुका है. बता रही हैं सोफिया दानिश खान
  • Finishing Touch

    जिंदगी को मिला फिनिशिंग टच

    पटना की आकृति वर्मा उन तमाम युवतियों के लिए प्रेरणादायी साबित हो सकती हैं, जो खुद के दम पर कुछ करना चाहती हैं, लेकिन कर नहीं पाती। बिना किसी व्यावसायिक पृष्ठभूमि के आकृति ने 15 लाख रुपए के निवेश से वॉल पुट्‌टी बनाने की कंपनी शुरू की. महज तीन साल में मेहनत रंग लाई और कारोबार का टर्नओवर 1 करोड़ रुपए तक पहुंचा दिया. आकृति डॉक्टर-इंजीनियर बनने के बजाय खुद का कुछ करना चाहती थीं. उन्होंने कैसे बनाया इतना बड़ा बिजनेस, बता रही हैं सोफिया दानिश खान
  • Udipi boy took south indian taste to north india and make fortune

    उत्तर भारत का डोसा किंग

    13 साल की उम्र में जयराम बानन घर से भागे, 18 रुपए महीने की नौकरी कर मुंबई की कैंटीन में बर्तन धोए, मेहनत के बल पर कैंटीन के मैनेजर बने, दिल्ली आकर डोसा रेस्तरां खोला और फिर कुछ सालों के कड़े परिश्रम के बाद उत्तर भारत के डोसा किंग बन गए. बिलाल हांडू आपकी मुलाक़ात करवा रहे हैं मशहूर ‘सागर रत्ना’, ‘स्वागत’ जैसी होटल चेन के संस्थापक और मालिक जयराम बानन से.