Milky Mist

Sunday, 24 August 2025

धक्कों, परेशानियों से उभरा उद्ममी, आज हैं इनके 46 कॉफ़ी आउटलेट

24-Aug-2025 By उषा प्रसाद
बेंगलुरु

Posted 23 Mar 2018

बेंगलुरु में तेज़ी से फैलती साउथ इंडियन फ़िल्टर कॉफ़ी चेन हट्टी कापी के संस्थापक यूएस महेंदर से नए उद्यमी बहुत कुछ सीख सकते हैं.

महेंदर साल 2009 में बासवानगुडी की 30 वर्ग फ़ीट जगह पर दिन के 100 कप सर्व करते थे. आज सालाना 15 करोड़ रुपए का बिज़नेस कर रही हट्टी कापी के बेंगलुरु और हैदराबाद में 46 आउटलेट हैं, जहां रोज़ 40,000 से अधिक कप कॉफ़ी सर्व की जाती है. इनमें बेंगलुरु और हैदराबाद के एयरपोर्ट स्थित स्टोर्स भी शामिल हैं.

बेंगलुरु में अपने एक आउटलेट पर पार्टनर महालिंग गौड़ा के साथ हट्टी कापी की स्‍थापना करने वाले यूएस महेंदर (बाएं). (सभी फ़ोटो – विजय बाबू)


महेंद्र का ताल्लुक हासन में कॉफ़ी उगाने वाले एक परिवार से है. जब वो कॉलेज के दूसरे साल में विज्ञान के छात्र थे तो पढ़ाई छोड़कर कॉफ़ी के कारोबार में कूद गए.

जब 25 साल के हुए, तब तक बहुत अमीर बन चुके थे.

लेकिन अच्छे दिन ज़्यादा दिन नहीं टिके और बिज़नेस बिखर गया. उन्‍होंने ख़ुद को हेजिंग से घिरा हुआ पाया. हेजिंग यानी काफ़ी की फ़सल की पैदावार से पहले उसका दाम तय करना.

महेंदर दुखी थे, लेकिन हारे नहीं थे. साल 2001 में अपने पार्टनर महालिंग गौड़ा के साथ नई शुरुआत के इरादे से हासन से बेंगलुरु आ गए.

बेंगलुरु में विभिन्न विकल्पों पर विचार कर ही रहे थे कि कॉफ़ी बिज़नेस के दिनों के एक दोस्‍त और स्‍वर्णा फूड्स के श्रीकांत ने घाटे में चल रही रोस्टिंग यूनिट को ख़रीदने का प्रस्‍ताव दिया.

महेंदर कहते हैं, उसने बताया कि मैं उसकी बेंगलुरु में 2,000 वर्ग फ़ीट में फैली यूनिट में टाटा कॉफ़ी के लिए काम जारी रखूं. उसने मुझे टाटा कॉफ़ी के अधिकारियों से भी मिलवाया.

महेंदर को यूनिट ख़रीदने के लिए पैसे नहीं चुकाने पड़े. सेंटर पर तीन लाख रुपए का कर्ज़ था. तीन महीने का किराया भी बाकी थी. महेंदर ने सभी समस्‍याओं से आसानी से पार पा लिया.

कर्मचारी ख़ुश – हट्टी कापी के हर आउटलेट पर चार दिव्‍यांग और दो सीनियर सिटीजंस काम संभालते हैं.


महेंदर के लिए अगली चुनौती टाटा कॉफ़ी से नया ऑर्डर लेना था. वो याद करते हैं, मैं कुमारा पार्क वेस्‍ट स्थित उनके दफ़्तर कई बार गया, लेकिन बात नहीं बनी. अगले दो साल चुनौतीपूर्ण गुज़रे. मैंने पिताजी के रिटायरमेंट और पेंशन का पैसा यूनिट पर चढ़े कर्ज़ को चुकाने में लगा दिया. हम अपनी मां की थोड़ी बचत और मामी के सहारे पर निर्भर थे.

और फिर आया वो दिन, जो उनके जीवन के सबसे अपमानजनक दिनों में से था.

महेंदर बताते हैं, टाटा कॉफ़ी के मार्केटिंग मैनेजर ने अपने सिक्योरिटी से मुझे धक्के मारकर बाहर निकलवा दिया, क्योंकि मैं उनसे रोज़ मिलने की कोशिश कर रहा था.

लेकिन महेंदर हार मानने वालों में से नहीं थे. अगले दिन सुबह 7.45 बजे वो फिर दफ़्तर के बाहर खड़े हो गए.

मार्केटिंग मैनेजर दफ़्तर में जा रहे थे तो उन्होंने मुझे देखा और कुछ मिनट देने का फ़ैसला किया.

आखिरकार उन्हें बादाम मिक्स सैंपल की सप्लाई का ऑफ़र मिल गया. इसे पांच अन्‍य सैंपल के साथ परखा गया.

महेंदर और महालिंग गौड़ा ने शून्‍य से शुरुआत कर कॉफ़ी चेन को खड़ा किया है.


महेंदर बताते हैं, क़रीब 30 लोगों ने हमारे सैंपल का स्वाद चखा. कड़ी मेहनत रंग लाई और हमें 3,500 रुपए की क़ीमत का 35 किलो का ऑर्डर मिल गया. मैंने वक्त पर ऑर्डर तैयार कर दिया. धीरे-धीरे हमें कॉफ़ी और चाय ब्लेंड्स के ऑर्डर मिलने लगे. टाटा कॉफ़ी को मनाने में 18 महीने लग गए.

तबसे महेंदर कॉफ़ी, चाय, बादाम और माल्ट का प्री-मिक्स टाटा कॉफ़ी को सप्लाई कर रहे हैं, जो देशभर की वेंडिंग मशीनों में इस्‍तेमाल किया जाता है.

साल 2008 में उन्होंने फ़िल्टर कॉफ़ी पाउडर बनाना शुरू किया. शुरुआत में उन्होंने इसे ट्रायल के तौर पर एक महीने एक बड़ी होटल चेन को सप्लाई किया.

महेंदर कहते हैं, हमें ग्राहकों से अच्छा फ़ीडबैक मिला, लेकिन होटल मालिक ने कहा कि ग्राहक स्वाद से खुश नहीं हैं. यहीं से मुझे ख़ुद का आउटलेट शुरू करने का विचार आया. मुझे होटल मालिक का शुक्रिया अदा करना चाहिए. अगर उसने हमें ऑर्डर दे दिया होता, तो हट्टी कापी की शुरुआत नहीं हुई होती.

इसके बाद 30 वर्ग फ़ीट पर 1.8 लाख रुपए के निवेश से 27 नवंबर, 2009 को हट्टी कापी के पहले आउटलेट की शुरुआत की.

हट्टी कापी कन्नड़ शब्द है. हट्टी का मतलब गांव का घर और कापी मतलब कॉफ़ी होता है.

किराए के रूप में 5,000 रुपए महीना या बिकने वाले हर कप पर एक रुपए की रॉयल्टी में से जो ज़्यादा हो, दिया जाना था.

महेंदर याद करते हैं, कॉफ़ी का पहला कप सुबह 4.45 बजे पांच रुपए में सर्व किया गया. मैं हर दिन 300 कप कॉफ़ी बेचना चाहता था, ताकि किराया और कर्ज़ चुका पाएं.

बेंगलुरु और हैदराबाद में हट्टी कापी के 46 आउटलेट के ज़रिये रोज़ 40 हज़ार से अधिक कप कॉफ़ी बेची जाती है.


पहले दिन 100 कप कॉफ़ी बिकी. तीसरे दिन के बाद हर दिन 300-400 कप बिकने लगी.

महेंदर के मुताबिक, सुबह टहलने वाले, जिनमें से ज़्यादा उम्रदराज़ लोग थे हमें कॉफ़ी के टेस्ट के बारे में बताने लगे.

दुकान में एक कॉफ़ी-मेकर, एक कैशियर और एक लड़का काम करता था जबकि महेंदर और एक दूसरा साथी मार्केटिंग देखते थे. गौड़ा सप्लाई चेन देखते थे.

सत्ताइसवें दिन तक हट्टी कापी में हर दिन 2,800 कप कॉफ़ी बिक रही थी.

मीडिया में ख़बर छपने के बाद लोगों की संख्या बढ़ने लगी.

आज हट्टी कापी के 46 आउटलेट हैं. इनमें से कुछ इन्फ़ोसिस, विप्रो, टीसीएस, सिस्को आदि के कॉर्पोरेट कैंपस में हैं.

हट्टी कापी में बिकने वाली फ़िल्टर कॉफ़ी का दाम अब नौ से 30 रुपए के बीच है.

हट्टी कापी में दक्षिण भारतीय खाना, अलग-अलग तरह की मिठाइयां, केक आदि चीज़ें भी मिलती हैं. यहां पेय पदार्थ मिट्टी और तांबे के कप में सर्व किए जाते हैं.

हट्टी कापी के हर आउटलेट पर चार दिव्‍यांग और दो सीनियर सिटीजन काम करते हैं. कुल मिलाकर ३० सीनियर सिटीजन और ३० दिव्‍यांग कार्यरत हैं, जिनमें चार दृष्टिबाधित हैं.

हट्टी कापी के आउटलेट युवाओं के मिलने-जुलने के पसंदीदा स्‍थान बन गए हैं.


महिंदर और महालिंग गौड़ा हट्टी फ़ूड एंड बेवरेज प्राइवेट लिमिटेड में बराबर के हिस्सेदार हैं. वो विस्‍तार के लिए अब तक बैंक से ६ करोड़ का कर्ज़ ले चुके हैं.

महेंदर की बड़ी प्रेरणा उनकी मां रजनी सुधाकर हैं जबकि उनकी पत्नी स्मिता गृहिणी हैं. उनके दो बच्चे हैं.


 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • Success story of Wooden Street

    ऑनलाइन फ़र्नीचर बिक्री के महारथी

    चार युवाओं ने पांच लाख रुपए की शुरुआती पूंजी लगाकर फ़र्नीचर के कारोबार की शुरुआत की और सफल भी हुए. तीन साल में ही इनका सालाना कारोबार 18 करोड़ रुपए तक पहुंच गया. नई दिल्ली से पार्थाे बर्मन के शब्दों में पढ़ें इनकी सफलता की कहानी.
  • story of Kalpana Saroj

    ख़ुदकुशी करने चली थीं, करोड़पति बन गई

    एक दिन वो था जब कल्पना सरोज ने ख़ुदकुशी की कोशिश की थी. जीवित बच जाने के बाद उन्होंने नई ज़िंदगी का सही इस्तेमाल करने का निश्चय किया और दोबारा शुरुआत की. आज वो छह कंपनियां संचालित करती हैं और 2,000 करोड़ रुपए के बिज़नेस साम्राज्य की मालकिन हैं. मुंबई में देवेन लाड बता रहे हैं कल्पना का अनूठा संघर्ष.
  • Dairy startup of Santosh Sharma in Jamshedpur

    ये कर रहे कलाम साहब के सपने को सच

    पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम से प्रेरणा लेकर संतोष शर्मा ने ऊंचे वेतन वाली नौकरी छोड़ी और नक्सल प्रभावित इलाके़ में एक डेयरी फ़ार्म की शुरुआत की ताकि जनजातीय युवाओं को रोजगार मिल सके. जमशेदपुर से गुरविंदर सिंह मिलवा रहे हैं दो करोड़ रुपए के टर्नओवर करने वाले डेयरी फ़ार्म के मालिक से.
  •  Aravind Arasavilli story

    कंसल्टेंसी में कमाल से करोड़ों की कमाई

    विजयवाड़ा के अरविंद अरासविल्ली अमेरिका में 20 लाख रुपए सालाना वाली नौकरी छोड़कर देश लौट आए. यहां 1 लाख रुपए निवेश कर विदेश में उच्च शिक्षा के लिए जाने वाले छात्रों के लिए कंसल्टेंसी फर्म खोली. 9 साल में वे दो कंपनियों के मालिक बन चुके हैं. दोनों कंपनियों का सालाना टर्नओवर 30 करोड़ रुपए है. 170 लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं. अरविंद ने यह कमाल कैसे किया, बता रही हैं सोफिया दानिश खान
  • From sales executive to owner of a Rs 41 crore turnover business

    सपने, जो सच कर दिखाए

    बहुत कम इंसान होते हैं, जो अपने शौक और सपनों को जीते हैं. बेंगलुरु के डॉ. एन एलनगोवन ऐसे ही व्यक्ति हैं. पेशे से वेटरनरी चिकित्सक होने के बावजूद उन्होंने अपने पत्रकारिता और बिजनेस करने के जुनून को जिंदा रखा. आज इसी की बदौलत उनकी तीन कंपनियों का टर्नओवर 41 करोड़ रुपए सालाना है.