चार युवाओं ने फ़र्नीचर निर्माण में जमाया सिक्का, तीन साल में करने लगे 18 करोड़ का कारोबार
30-Mar-2023
By पार्थो बर्मन
नई दिल्ली
राजस्थान से ताल्लुक रखने वाले चार नौजवान कस्टमाइज़ फ़र्नीचर तैयार करने के कारोबार में कड़ी मेहनत से नई चुनौतियां पेश कर रहे हैं. इन चारों के हौसलों और जुनून के बलबूते यह तीन सालों में 18 करोड़ का कारोबार करने लगा है.
लोकेन्द्र राणावत, दिनेश प्रताप सिंह, वीरेन्द्र राणावत और विकास बाहेती, ये सभी महज 30 साल के हैं. साल 2015 में इन्होंने जब ऑनलाइन कस्टमाइज़ फ़र्नीचर का कारोबार शुरू किया, तब इन्हें इस व्यवसाय के बारे में कोई भी जानकारी नहीं थी. इसके बावजूद अपने कठिन परिश्रम और उद्यमशील नज़रिये से इन्होंने बड़ी सफलता हासिल की.
![]() |
वुडन स्ट्रीट के सह-संस्थापकों लोकेन्द्र राणावत, दिनेश प्रताप सिंह, वीरेन्द्र राणावत व विकास बाहेती ने अपनी अच्छी-ख़ासी तनख़्वाह वाली नौकरी छोड़ी और एक ऐसे उद्योग में क़दम जमाए, जिसके बारे में वो बहुत कम जानते थे. हालांकि अपने कठिन परिश्रम के दम पर उन्होंने सफलता हासिल की. (सभी फ़ोटो - विशेष व्यवस्था से)
|
कंपनी के सीईओ लोकेन्द्र राणावत बताते हैं, “हम सभी ने साल 2015 में बराबर भागीदारी से 5 लाख रुपए की शुरुआती पूंजी के साथ वुडन स्ट्रीट प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना की और पहली पीढ़ी के उद्यमी बने. जून 2015 में कंपनी का पहला कारखाना जोधपुर में शुरू हुआ.”
पहले ही साल 2015-16 में कंपनी का सालाना कारोबार 2 करोड़ रुपए का था, जो साल 2016-17 तक भारी उछाल के साथ 18 करोड़ रुपए का हो गया. इन्होंने मात्र 10 कर्मचारियों के साथ इस कंपनी की शुरुआत की थी. आज वो 100 शिल्पियों और एनआईडी (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ डिज़ाइन, अहमदाबाद) के दर्ज़न भर डिज़ाइनरों के साथ अपनी कंपनी को आगे बढ़ा रहे हैं.
प्रारंभिक दिनों को याद करते हुए लोकेन्द्र बताते हैं कि “हमें अपना पहला ऑर्डर 22 जून, 2015 को मिला, जो बेंगलुरु के एक ग्राहक का था. उसने एक शेल्फ़ ऑर्डर की थी.” आज वुडन स्ट्रीट प्राइवेट लिमिटेड देशभर के 15 बड़े शहरों में 4 से 5 हफ़्तों में तैयार फ़र्नीचर पहुंचाने का वादा करता है.
आज इनकी वेबसाइट पर रोज़ लगभग 10 हज़ार और महीनेभर में क़रीब तीन लाख लोग आते हैं. ग्राहकों की बात करें तो वुडन स्ट्रीट के लगभग 10 हज़ार नियमित ग्राहक हैं, जिनमें लेंसकार्ट के सीईओ, पेटीएम के संस्थापक और कैपजेमिनी इंडिया के सीईओ जैसे कई प्रतिष्ठित व्यक्ति शामिल हैं.
कंपनी में सेल्स और प्रॉडक्ट्स की ज़िम्मेदारी संभाल रहे 36 साल के लोकेन्द्र को सेल्स और मार्केटिंग में एक दशक से अधिक का अनुभव है. 2012 में लंदन से लौटने के बाद वो ख़ुद का कारोबार शुरू करना चाहते थे.
उन्होंने ज्ञान विहार स्कूल ऑफ़ टेक्नोलॉजी, जयपुर से इलेक्ट्रॉनिक्स ऐंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग की पढ़ाई की. इसके बाद आईटीएम, गाजियाबाद से सेल्स ऐंड मार्केटिंग में एमबीए किया. वीरेन्द्र ने बिरलासॉफ़्ट लिमिटेड, एक्सिस आईटी ऐंड टी के साथ भारत व लंदन में काम किया.
दिनेश एमएनआईटी-जयपुर के छात्र रहे हैं. आईआईएम-कोझीकोड से उन्होंने एमबीए की डिग्री हासिल की है. उन्हें ख़रीद और सामान्य प्रबंधन में महारथ हासिल है. उन्होंने सिंगापुर में प्रॉक्टर ऐंड गैंबल और कम्प्यूटर साइंस कॉर्पोरेशन, भारत के साथ काम किया है. दिनेश वुडन स्ट्रीट के वर्तमान और आगामी स्टोर्स पर पर ध्यान देते हैं.
![]() |
वुडन स्ट्रीट के चार कारखाने हैं. दो जोधपुर और दो जयपुर में. कंपनी के मुुंबई, बेंगलुरु, जयपुर और उदयपुर में ऑफ़लाइन स्टोर भी हैं.
|
वीरेन्द्र एक इंजीनियर हैं और आईआईएमएम-पुणे से एमबीए कर चुके हैं. उन्हें टाटा और एनर्जाे के साथ काम करने का अनुभव है. वो कंपनी के वित्त प्रबंधन का काम संभालते हैं. विकास वित्त में ग्रेजुएट हैं और डेल व वर्टेक्स जैसी कंपनियों के साथ काम कर चुके हैं. वो जोधपुर में कारखानों का संचालन करते हैं.
चारों व्यक्तियों ने अपनी अच्छी-ख़ासी तनख़्वाह वाली नौकरी छोड़कर अपने व्यापक कार्य अनुभव को ई-कॉमर्स स्टार्टअप को शुरू करने में लगाया. उस वक्त के हालातों को याद करते हुए लोकेन्द्र कहते हैं, “यह तय करना बिलकुल आसान नहीं था कि हम क्या करना चाहते हैं. लेकिन काफ़ी चिंतन-मनन के बाद हमने अपना ध्यान फ़र्नीचर व्यवसाय पर केन्द्रित किया.”
दो साल से अधिक समय तक गहन अध्ययन और शोध के बाद इन्होंने पाया कि मौजूदा स्टोर्स फ़र्नीचर की डिजाइन और आकार को ग्राहक की पसंद व मांग के अनुरूप नहीं बदल रहे थे. इसके अलावा लकड़ी की प्रामाणिकता और डिज़ाइन की गुणवत्ता की भी गारंटी नहीं दी जाती थी. अधिकतर फ़र्नीचर आयातित प्लाईवुड से बनाए जा रहे थे.
अपनी बुद्धिमानी के बलबूते इन्होंने आसानी से बाज़ार की नब्ज़ पकड़ ली और इसे एक अवसर के तौर पर देखा. वो राजस्थान के लगभग 50-60 छोटे गांवों में गए और स्थानीय कारीगरों से बात कर कई दिनों तक विचार-विमर्श किया कि इसे सभी लोगों के लिए लाभदायक कैसे बनाया जाए?
लोकेन्द्र बताते हैं, “हमने कंपनी का नाम ‘वुडन स्ट्रीट’ इसलिए रखा क्योंकि हम लकड़ी से जुड़ा काम करते हैं. साल 2013 में ही हमने इस नाम का डोमेन बुक कर लिया था.”
वेबसाइट, 10 लोगों के छोटे स्टाफ़ और जोधपुर में गोदाम-सह-कारखाने के साथ 1 जून, 2015 को वुडन स्ट्रीट की शुरुआत हुई.
वो 90 प्रतिशत फ़र्नीचर शीशम और बाक़ी आम व बबूल की लकड़ी से बनाते हैं. लोकेन्द्र बताते हैं, “हमारी विशेषता फ़र्नीचर को ग्राहक की ज़रूरत के हिसाब से बनाना और सबसे हटकर डिज़ाइन करना है. हम अपने फ़र्नीचर को किसी भी घर में फ़िट कर सकते हैं, चाहे कमरे का आकार कितना भी हो. हम एक जैसा फ़र्नीचर दोबारा बेचने में रुचि नहीं रखते हैं.”
![]() |
वुडन स्ट्रीट के सह-संस्थापक (बाएं से दाएं) लोकेन्द्र राणावत, दिनेश प्रताप सिंह, वीरेन्द्र राणावत और विकास बाहेती.
|
कंपनी के सीईओ लोकेन्द्र फ़र्नीचर ऑर्डर करने की प्रकिया समझाते हुए कहते हैं, “ग्राहक हमारी वेबसाइट पर जाकर अपनी इच्छानुसार फ़र्नीचर ऑर्डर कर सकते हैं. वे किस प्रकार का फ़र्नीचर बनवाना चाहते हैं इसकी जानकारी भी दे सकते हैं. लोग फ़र्नीचर को लेकर अपने विचार हमसे साझा कर सकते हैं. इसके बाद हमारे डिज़ाइनर, उसका रेखाचित्र और 3डी मॉडल तैयार करते हैं. जब ग्राहक इस 3डी मॉडल पर स्वीकृति दे देता है, तभी हम इसे कारखाने में बनवाते हैं.”
मौजूदा समय में वुडन स्ट्रीट के दो कारखाने जोधपुर और दो जयपुर में हैं. साथ ही इसके 13 कार्यालय भी हैं. इसके अलावा मुंबई, बेंगलुरु, जयपुर और उदयपुर में कई ऑफ़लाइन स्टोर्स भी हैं, जो ‘अनुभव स्टोर’ के नाम से पंजीकृत हैं. वो 2018 में चेन्नई, दिल्ली-एनसीआर, पुणे और हैदराबाद में भी अनुभव स्टोर्स का विस्तार करने की योजना बना रहे हैं.
फ़र्नीचर की विशेषता के बारे में पूछे जाने पर दिनेश बताते हैं ‘हम फ़र्नीचर बनाने की प्रक्रिया पर पूरा ध्यान केन्द्रित करते हैं, जैसे लकड़ी को अच्छी तरह सुखाना, उचित तरीक़े से जोड़ना और मजबूती के साथ चिपकाने वाले पदार्थ का इस्तेमाल करना हमारी प्राथमिकता है.’
दिनेश आगे समझाते हैं कि ‘अच्छी तरह सुखाना लकड़ी को मजबूती देने का मूलमंत्र है. इससे फ़र्नीचर हल्का रहता है और पॉलिश के बाद बहुत अच्छा दिखता है.’
आज ये चार कारोबारी एफ़एबी फ़र्नीचर, अर्बन लैडर और पेपर फ्राई जैसी बड़ी कंपनियों से स्पर्धा कर रहे हैं. कई विशाल कंपनियों ने इन्हें वुडन स्ट्रीट के अधिग्रहण का प्रस्ताव भी दिया, लेकिन इन्होंने इन प्रस्तावों को ठुकरा दिया. वे महसूस करते हैं कि अभी इस कंपनी में विकास की काफ़ी गुंजाइश है.
![]() |
वुडन स्ट्रीट द्वारा बेचे जाने वाला 90 फ़ीसदी फ़र्नीचर शीशम का बना होता है.
|
लोकेन्द्र बताते हैं, “हमने उद्यमी बनने के लिए अपनी बड़ी नौकरियां छोड़ीं और अब हम किसी और के लिए काम नहीं करना चाहते हैं. हम सही राह पर हैं इसीलिए कंपनी का अधिग्रहण करने के लिए हमेें इतने प्रस्ताव मिल रहे हैं.”
अपनी कारोबारी रणनीतियों का ख़ुलासा करते हुए लोकेन्द्र कहते हैं, “हर माह क़रीब 700-800 यूनिट की बिक्री होती है और 400-500 ग्राहक हमारे साथ जुड़ते हैं. फ़र्नीचर के कारोबार में किसी ग्राहक से दोबारा ऑर्डर मिलने की संभावना 15-16 प्रतिशत होती है, लेकिन हमें 32 प्रतिशत ग्राहकों से दोबारा ऑर्डर मिलते हैं. यह इस बात का संकेत है कि ग्राहक हमारे काम से संतुष्ट और ख़ुश हैं.”
टाइम्स उद्यमी पुरस्कार 2016, हिंदुस्तान टाइम्स उत्कृष्टता पुरस्कार 2016 और सोसायटी फ़ॉर इनोवेशन ऐंड एंटरप्रेन्योरशिप, आईआईटी बॉम्बे के शीर्ष अन्वेषक पुरस्कार से नवाजी जा चुकी वुडन स्ट्रीट अब स्टार्टअप के दौर से ऊपर उठ चुकी है.
आप इन्हें भी पसंद करेंगे
-
रोक सको तो रोक लो
राजलक्ष्मी एस.जे. चल-फिर नहीं सकतीं, लेकिन उनका आत्मविश्वास अटूट है. उन्होंने न सिर्फ़ मिस वर्ल्ड व्हीलचेयर 2017 में मिस पापुलैरिटी खिताब जीता, बल्कि दिव्यांगों के अधिकारों के लिए संघर्ष भी किया. बेंगलुरु से भूमिका के की रिपोर्ट. -
मधुमक्खी की सीख बनी बिज़नेस मंत्र
छाया नांजप्पा को एक होटल में काम करते हुए मीठा सा आइडिया आया. उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. आज उनकी कंपनी नेक्टर फ्रेश का शहद और जैम बड़े-बड़े होटलों में उपलब्ध है. प्रीति नागराज की रिपोर्ट. -
चाय का नया जायका 'चाय सुट्टा बार'
'चाय सुट्टा बार' नाम आज हर युवा की जुबा पर है. दिलचस्प बात यह है कि इसकी सफलता का श्रेय भी दो युवाओं को जाता है. नए कॉन्सेप्ट पर शुरू की गई चाय की यह दुकान देश के 70 से अधिक शहरों में 145 आउटलेट में फैल गई है. 3 लाख रुपए से शुरू किया कारोबार 5 साल में 100 करोड़ रुपए का हो चुका है. बता रही हैं सोफिया दानिश खान -
13,000 रुपए का निवेश बना बड़ा बिज़नेस
बंदना बिहार से मुंबई आईं और 13,000 रुपए से रिसाइकल्ड गत्ते के लैंप व सोफ़े बनाने लगीं. आज उनके स्टूडियो की आमदनी एक करोड़ रुपए है. पढ़िए एक ऐसी महिला की कहानी जिसने अपने सपनों को एक नई उड़ान दी. मुंबई से देवेन लाड की रिपोर्ट. -
भारत का एंटी-वायरस किंग
एक वक्त था जब कैलाश काटकर कैलकुलेटर सुधारा करते थे. फिर उन्होंने कंप्यूटर की मरम्मत करना सीखा. उसके बाद अपने भाई संजय की मदद से एक ऐसी एंटी-वायरस कंपनी खड़ी की, जिसका भारत के 30 प्रतिशत बाज़ार पर कब्ज़ा है और वह आज 80 से अधिक देशों में मौजूद है. पुणे में प्राची बारी से सुनिए क्विक हील एंटी-वायरस के बनने की कहानी.