महाराष्ट्र के किसान ने 1 लाख रुपए निवेश कर 525 करोड़ रुपए टर्नओवर वाली कृषि कंपनी बनाई... सपना सिर्फ एक था साथी किसानों का जीवन बेहतर बनाना
01-Apr-2025
By बिलाल खान
नासिक (महाराष्ट्र)
असफलताओं और निराशाओं को नकारते हुए कृषि से स्नातकोत्तर की पढ़ाई में गोल्ड मेडल हासिल कर चुके विलास शिंदे किसानों की भलाई के लिए काम करने के अपने सपने पर कायम रहे और अपने प्रयासों में सफल रहे.
2010 में उन्होंने 1 लाख रुपए के निवेश और 100 किसानों के साथ मिलकर एक किसान उत्पादक कंपनी (एफपीसी) के रूप में सह्याद्री फार्म्स शुरू किया. यह एक सहकारी समिति और निजी लिमिटेड कंपनी का मिलाजुला रूप है. यह कंपनी पूरी तरह किसानों के स्वामित्व की है. गैर-किसान इसका हिस्सा नहीं हैं.

विलास शिंदे ने 2010 में 100 किसानों के साथ किसान उत्पादक कंपनी के रूप में सह्याद्री फार्म्स की शुरुआत की. (फोटो: विशेष व्यवस्था से)
|
आज, सह्याद्री फार्म्स बड़ी सफलता की कहानी है. इसमें महाराष्ट्र के नासिक क्षेत्र के 10,000 किसानों के पास सामूहिक रूप से करीब 25,000 एकड़ जमीन है. वे रोज 1,000 टन फल और सब्जियां पैदा करते हैं.
सह्याद्री फार्म्स भारत में अंगूर का सबसे बड़ा निर्यातक है. कंपनी ने 2018-19 में 23,000 मीट्रिक टन अंगूर, 17,000 मीट्रिक टन केले और 700 मीट्रिक टन अनार का निर्यात किया.
47 वर्षीय विलास कहते हैं, “हमने पिछले वित्तीय वर्ष में 525 करोड़ रुपए का कारोबार हासिल किया. हम देश में टमाटर के सबसे बड़े कारोबारियों में से भी एक हैं.”
सह्याद्री के किसान अंगूर की कई किस्मों जैसे थॉमसन, क्रिम्सन, सोनाका, बिना बीज वाले शरद, फ्लेम और एरा की खेती करते हैं.
सह्याद्री फार्म्स के करीब 60% फलों और सब्जियों का निर्यात किया जाता है. बाकी 40% को भारत में बेचा जाता है. विलास कहते हैं, “हम रूस, अमेरिका और विभिन्न यूरोपीय देशों सहित 42 देशों में अपने उत्पादों का निर्यात करते हैं.”
एरा अंगूर की सफेद, लाल और काली जैसी विभिन्न किस्में एफपीसी के 40 हेक्टेयर से अधिक खेत में उगाई जाती है.

विलास ने किसानों को अंगूर की विभिन्न किस्मों को उगाने के लिए प्रोत्साहित किया. ये किस्में बड़े पैमाने पर निर्यात की जाती हैं और मूल्य वर्धित उत्पादों में भी बनाई जाती हैं. |
शुरुआती सालों में सह्याद्री ने ज्यादातर अंगूर पर ध्यान केंद्रित किया, क्योंकि इसकी विदेशी बाजार में बहुत मांग थी.
अब, फल और सब्जियों के उत्पादन के अलावा सह्याद्री फार्म्स ब्रांड नाम से सब्जियों-फलों के विभिन्न प्रकार के मूल्य वर्धित उत्पादों जैसे पल्प, डाइसेस, फलों के रस, स्लाइस, केचप, फ्रोजन सब्जियां और फलों के जैम भी तैयार किए जाते हैं.
कंपनी के अपने ब्रांडेड उत्पाद बेचने के लिए मुंबई, पुणे और नासिक में 12 स्टोर हैं. उत्पादों को अन्य खुदरा दुकानों में भी बेचा जाता है. हालांकि, डिजिटल प्लेटफॉर्म पर उनके उत्पाद सिर्फ उनकी अपनी वेबसाइट पर उपलब्ध हैं.
विलास डायरेक्ट मार्केटिंग मॉडल पर काम कर रहे हैं, जिसे 2020 में कोविड लॉकडाउन के बाद से जोरदार बढ़ावा मिला है. अब उनके पास वेबसाइट और एप के जरिए ऑर्डर देने वाले अधिक ग्राहक हैं.
विलास कहते हैं, “हम हर महीने करीब 38,000 होम डिलीवरी करते हैं.” हाल के सालों में कंपनी विकास के पथ पर बढ़ चुकी है. उनके ग्राहक मुंबई, पुणे और नासिक में हैं.
2018 में, कंपनी ने 250 करोड़ रुपए के निवेश से नासिक के मोहदी में फ्रूट प्रोसेसिंग प्लांट लगाया. यह प्लांट 100 एकड़ में फैले परिसर में स्थित है.
परिसर में किसान-हब (KISAN-HUB) भी है, जो किसानों को उनकी कृषि गतिविधियों में मदद करने की एक पहल है.

नासिक के मोहदी में सह्याद्री फार्म्स के फ्रूट प्रोसेसिंग प्लांट का विहंगम नजारा. |
इस संयंत्र में स्वचालित मौसम स्टेशन, सेंसर और उपग्रह इमेजिंग शामिल की गई हैं. ये सिस्टम किसानों को समय पर मौसम की ताजा जानकारी देते हैं और फसलों को प्रकृति के प्रकोप से बचाने में मदद करते हैं.
विलास कहते हैं, “सह्याद्री फार्म्स ने अपने किसानों को पैदावार 25 प्रतिशत बढ़ाने में मदद की है. आज, हमारे किसान थोक मंडियों में 35 रुपए की तुलना में अपने अंगूर के लिए औसतन 67 रुपए प्रति किलो कमाते हैं.”
“जो किसान साल में सिर्फ 1 लाख रुपए कमाते थे, वह भी नियमित रूप से नहीं; अब दोगुने से ज्यादा कमाते हैं और यह कमाई स्थिर है. वे अब वित्तीय रूप से असुरक्षित नहीं हैं.”
यह इसलिए संभव हुआ है क्योंकि अब किसानों और ग्राहकों के बीच कोई बिचौलिया नहीं है. विलास कहते हैं, “इसके अलावा, हमने मूल्य संवर्धन और उन्हें विदेशी बाजार सहित बड़े ग्राहकों के बीच बेचकर किसानों के उत्पादों का मूल्य बढ़ाया है.”
सह्याद्री के जरिए विलास ने हजारों लोगों को रोजगार भी दिया है. कंपनी के विभिन्न विभागों जैसे अनुसंधान और विकास, उत्पादन, वित्त, मानव संसाधन और खुदरा में 1200 प्रत्यक्ष कर्मचारी और दैनिक वेतनभोगी व अनुबंध श्रमिकों सहित 3500 अप्रत्यक्ष कर्मचारी काम करते हैं.
खुद मामूली परिवार से नाता रखने वाले और कठिन जीवन से उभरे विलास कहते हैं, “मैं वास्तव में खुश हूं और मुझे इस बात का बिल्कुल अभिमान नहीं है कि मैं इतने सारे लोगों को रोजगार देने और उनके जीवन को बेहतर बनाने में सक्षम रहा हूं.”
उनके पिता विष्णु शिंदे नासिक के अडगांव नामक गांव में संघर्षशील किसान थे. परिवार अंगूर, मेथी, पालक और टमाटर की खेती करता था.

विलास का जन्म नासिक के अडगांव नामक गांव के एक किसान परिवार में हुआ था.
|
विलास पढ़ाई में अच्छे थे. इसीलिए उन्हें स्कॉलरशिप मिलती गई और वे आगे पढ़ते गए. वे कहते हैं, “हम घर चलाने के लिए उन फल-सब्जियों को स्थानीय बाजारों में बेच देते थे. मेरे परिवार की स्थिति किसी भी अन्य संघर्षशील किसान परिवार से अलग नहीं थी.”
महाराष्ट्र के प्रमुख कृषि विश्वविद्यालय महात्मा फुले कृषि विद्यापीठ, राहुरी से विलास ने 1998 में गोल्ड मेडल के साथ कृषि में स्नातकोत्तर डिग्री पूरी की. इसके बाद खेती को पेशे के रूप में अपनाने के लिए अपने गांव लौट आए.
वे पारिवारिक खेत में अंगूर, तरबूज और मकई के बीज जैसी विभिन्न फसलें उगाते थे और उन्हें जिले के बाजार में बेच देते थे. लेकिन वे महीने में एक एकड़ खेत से मुश्किल से 10,000 रुपए का लाभ कमा पाते थे.
तब विलास ने डेयरी फार्मिंग में कदम रखा और निजी साहूकारों और बैंकों से कुछ राशि कर्ज लेकर करीब 200 गायें खरीदीं.
उन्होंने अपने खेत में एक छोटी पाश्चराइजेशन इकाई स्थापित की और नासिक में दूध बेचा. बाद में वर्मीकम्पोस्ट बनाना और बेचना भी शुरू किया, लेकिन उनमें से कोई भी लाभकारी नहीं था. एक समय उन पर 75 लाख रुपए का कर्ज हो गया था.
इस स्थिति में साल 2001 में उनकी शादी हुई. फिर उन्हें लगा कि अन्य किसानों के साथ सहयोग करना और विदेशी बाजारों तक पहुंच बनाना अच्छा विचार होगा.

लगभग 10,000 किसान अब सह्याद्री फार्म्स से जुड़े हैं. |
2004 में विलास ने एक प्रोपराइटरशिप कंपनी की स्थापना की और लगभग 12 किसानों को साथ लिया. उन्होंने अंगूर उगाए और 2004 में व्यापारियों के जरिए यूरोपीय बाजार में करीब 72 मीट्रिक टन अंगूर का निर्यात किया.
स्टॉक 70-80 लाख रुपए का था, लेकिन अच्छे लाभ का उनका सपना धराशायी हो गया क्योंकि उन्हें व्यापारी से अंगूर के सिर्फ एक कंटेनर (लगभग 18 मीट्रिक टन) का पैसा मिला.
उस समय विलास ने बिचौलियों पर निर्भरता को बंद करने और उत्पादों को सीधे ग्राहकों तक पहुंचाने का फैसला किया.
विलास कहते हैं, “मैंने महसूस किया कि हमें सब्जियों और फलों के लिए अमूल जैसा मॉड्यूल बनाने की जरूरत है.” उन्होंने 2010 में लगभग 100 किसानों के साथ सह्याद्री फार्म्स की शुरुआत की.
यूरोप में उनकी अंगूर की पहली खेप अतिरिक्त रासायनिक अवशेष पाए जाने के कारण अस्वीकार कर दी गई थी. यह उनके स्टार्टअप के लिए बड़ा झटका था, लेकिन विलास हार मानने को तैयार नहीं थे.
वे कहते हैं, “जब से हमें 6.50 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है, तब से मेरा दिल टूट गया था. सह्याद्री के किसानों को मुझसे बहुत उम्मीद थी और यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई. मैं उन्हें निराश नहीं करना चाहता था, इसलिए मैंने किसानों के नुकसान की भरपाई के लिए अपनी संपत्तियां बेच दीं.”

सह्याद्री फार्म्स 1200 लोगों को रोजगार देता है. अपनी टीम के कुछ सदस्यों के साथ विलास. |
यह उनके जीवन का टर्निंग प्वाइंट था. इसके बाद से कंपनी का विकास होने लगा. 2017 में उनका टर्नओवर 76.04 करोड़ रुपए था और पिछले साल यह बढ़कर 525 करोड़ रुपए हो गया.
विलास कहते हैं, “मुझे खुशी है कि मैं सह्याद्री फार्म्स के जरिए इतने सारे लोगों के जीवन को प्रभावित कर पाया. लेकिन यह किसानों के मुझ पर विश्वास और उनकी कड़ी मेहनत की बदौलत ही संभव हुआ है.” विलास के दो बच्चे हैं. 19 वर्षीय ओम शिंदे और 13 वर्षीय गौरी शिंदे.
उनकी पत्नी आरती शिंदे भी एक किसान हैं. वे अपना टिश्यू सैंपलिंग बिजनेस चलाती हैं, जिसे शुरू में विलास ने ही स्थापित किया था.
आप इन्हें भी पसंद करेंगे
-
ये मोदी ‘जूट करोड़पति’ हैं
एक वक्त था जब सौरव मोदी के पास लाखों के ऑर्डर थे और उनके सभी कर्मचारी हड़ताल पर चले गए. लेकिन उन्होंने पत्नी की मदद से दोबारा बिज़नेस में नई जान डाली. बेंगलुरु से उषा प्रसाद बता रही हैं सौरव मोदी की कहानी जिन्होंने मेहनत और समझ-बूझ से जूट का करोड़ों का बिज़नेस खड़ा किया. -
स्नैक्स किंग
नागपुर के मनीष खुंगर युवावस्था में मूंगफली चिक्की बार की उत्पादन ईकाई लगाना चाहते थे, लेकिन जब उन्होंने रिसर्च की तो कॉर्न स्टिक स्नैक्स उन्हें बेहतर लगे. यहीं से उन्हें नए बिजनेस की राह मिली. वे रॉयल स्टार स्नैक्स कंपनी के जरिए कई स्नैक्स का उत्पादन करने लगे. इसके बाद उन्होंने पीछे पलट कर नहीं देखा. पफ स्नैक्स, पास्ता, रेडी-टू-फ्राई 3डी स्नैक्स, पास्ता, कॉर्न पफ, भागर पफ्स, रागी पफ्स जैसे कई स्नैक्स देशभर में बेचते हैं. मनीष का धैर्य और दृढ़ संकल्प की संघर्ष भरी कहानी बता रही हैं सोफिया दानिश खान -
पान स्टाल से एफएमसीजी कंपनी का सफर
गुजरात के अमरेली के तीन भाइयों ने कभी कोल्डड्रिंक और आइस्क्रीम के स्टाल से शुरुआत की थी. कड़ी मेहनत और लगन से यह कारोबार अब एफएमसीजी कंपनी में बढ़ चुका है. सालाना टर्नओवर 259 करोड़ रुपए है. कंपनी शेयर बाजार में भी लिस्टेड हो चुकी है. अब अगले 10 सालों में 1500 करोड़ का टर्नओवर और देश की शीर्ष 5 एफएमसीजी कंपनियों के शुमार होने का सपना है. बता रहे हैं गुरविंदर सिंह -
क्वालिटी : नाम ही इनकी पहचान
नरेश पगारिया का परिवार हमेशा खुदरा या होलसेल कारोबार में ही रहा. उन्होंंने मसालों की मैन्यूफैक्चरिंग शुरू की तो परिवार साथ नहीं था, लेकिन बिजनेस बढ़ने पर सबने नरेश का लोहा माना. महज 5 लाख के निवेश से शुरू बिजनेस ने 2019 में 50 करोड़ का टर्नओवर हासिल किया. अब सपना इसे 100 करोड़ रुपए करना है. -
आईआईएम टॉपर बना किसानों का रखवाला
पटना में जी सिंह मिला रहे हैं आईआईएम टॉपर कौशलेंद्र से, जिन्होंने किसानों के साथ काम किया और पांच करोड़ के सब्ज़ी के कारोबार में धाक जमाई.