Milky Mist

Wednesday, 14 May 2025

महाराष्ट्र के किसान ने 1 लाख रुपए निवेश कर 525 करोड़ रुपए टर्नओवर वाली कृषि कंपनी बनाई... सपना सिर्फ एक था साथी किसानों का जीवन बेहतर बनाना

14-May-2025 By बिलाल खान
नासिक (महाराष्ट्र)

Posted 30 Sep 2021

असफलताओं और निराशाओं को नकारते हुए कृषि से स्नातकोत्तर की पढ़ाई में गोल्ड मेडल हासिल कर चुके विलास शिंदे किसानों की भलाई के लिए काम करने के अपने सपने पर कायम रहे और अपने प्रयासों में सफल रहे.

2010 में उन्होंने 1 लाख रुपए के निवेश और 100 किसानों के साथ मिलकर एक किसान उत्पादक कंपनी (एफपीसी) के रूप में सह्याद्री फार्म्स शुरू किया. यह एक सहकारी समिति और निजी लिमिटेड कंपनी का मिलाजुला रूप है. यह कंपनी पूरी तरह किसानों के स्वामित्व की है. गैर-किसान इसका हिस्सा नहीं हैं.

विलास शिंदे ने 2010 में 100 किसानों के साथ किसान उत्पादक कंपनी के रूप में सह्याद्री फार्म्स की शुरुआत की. (फोटो: विशेष व्यवस्था से)

आज, सह्याद्री फार्म्स बड़ी सफलता की कहानी है. इसमें महाराष्ट्र के नासिक क्षेत्र के 10,000 किसानों के पास सामूहिक रूप से करीब 25,000 एकड़ जमीन है. वे रोज 1,000 टन फल और सब्जियां पैदा करते हैं.

सह्याद्री फार्म्स भारत में अंगूर का सबसे बड़ा निर्यातक है. कंपनी ने 2018-19 में 23,000 मीट्रिक टन अंगूर, 17,000 मीट्रिक टन केले और 700 मीट्रिक टन अनार का निर्यात किया.

47 वर्षीय विलास कहते हैं, “हमने पिछले वित्तीय वर्ष में 525 करोड़ रुपए का कारोबार हासिल किया. हम देश में टमाटर के सबसे बड़े कारोबारियों में से भी एक हैं.”

सह्याद्री के किसान अंगूर की कई किस्मों जैसे थॉमसन, क्रिम्सन, सोनाका, बिना बीज वाले शरद, फ्लेम और एरा की खेती करते हैं.

सह्याद्री फार्म्स के करीब 60% फलों और सब्जियों का निर्यात किया जाता है. बाकी 40% को भारत में बेचा जाता है. विलास कहते हैं, “हम रूस, अमेरिका और विभिन्न यूरोपीय देशों सहित 42 देशों में अपने उत्पादों का निर्यात करते हैं.”

एरा अंगूर की सफेद, लाल और काली जैसी विभिन्न किस्में एफपीसी के 40 हेक्टेयर से अधिक खेत में उगाई जाती है.

विलास ने किसानों को अंगूर की विभिन्न किस्मों को उगाने के लिए प्रोत्साहित किया. ये किस्में बड़े पैमाने पर निर्यात की जाती हैं और मूल्य वर्धित उत्पादों में भी बनाई जाती हैं.

शुरुआती सालों में सह्याद्री ने ज्यादातर अंगूर पर ध्यान केंद्रित किया, क्योंकि इसकी विदेशी बाजार में बहुत मांग थी.

अब, फल और सब्जियों के उत्पादन के अलावा सह्याद्री फार्म्स ब्रांड नाम से सब्जियों-फलों के विभिन्न प्रकार के मूल्य वर्धित उत्पादों जैसे पल्प, डाइसेस, फलों के रस, स्लाइस, केचप, फ्रोजन सब्जियां और फलों के जैम भी तैयार किए जाते हैं.

कंपनी के अपने ब्रांडेड उत्पाद बेचने के लिए मुंबई, पुणे और नासिक में 12 स्टोर हैं. उत्पादों को अन्य खुदरा दुकानों में भी बेचा जाता है. हालांकि, डिजिटल प्लेटफॉर्म पर उनके उत्पाद सिर्फ उनकी अपनी वेबसाइट पर उपलब्ध हैं.

विलास डायरेक्ट मार्केटिंग मॉडल पर काम कर रहे हैं, जिसे 2020 में कोविड लॉकडाउन के बाद से जोरदार बढ़ावा मिला है. अब उनके पास वेबसाइट और एप के जरिए ऑर्डर देने वाले अधिक ग्राहक हैं.

विलास कहते हैं, “हम हर महीने करीब 38,000 होम डिलीवरी करते हैं.” हाल के सालों में कंपनी विकास के पथ पर बढ़ चुकी है. उनके ग्राहक मुंबई, पुणे और नासिक में हैं.

2018 में, कंपनी ने 250 करोड़ रुपए के निवेश से नासिक के मोहदी में फ्रूट प्रोसेसिंग प्लांट लगाया. यह प्लांट 100 एकड़ में फैले परिसर में स्थित है.

परिसर में किसान-हब (KISAN-HUB) भी है, जो किसानों को उनकी कृषि गतिविधियों में मदद करने की एक पहल है.

नासिक के मोहदी में सह्याद्री फार्म्स के फ्रूट प्रोसेसिंग प्लांट का विहंगम नजारा.

इस संयंत्र में स्वचालित मौसम स्टेशन, सेंसर और उपग्रह इमेजिंग शामिल की गई हैं. ये सिस्टम किसानों को समय पर मौसम की ताजा जानकारी देते हैं और फसलों को प्रकृति के प्रकोप से बचाने में मदद करते हैं.

विलास कहते हैं, “सह्याद्री फार्म्स ने अपने किसानों को पैदावार 25 प्रतिशत बढ़ाने में मदद की है. आज, हमारे किसान थोक मंडियों में 35 रुपए की तुलना में अपने अंगूर के लिए औसतन 67 रुपए प्रति किलो कमाते हैं.”

“जो किसान साल में सिर्फ 1 लाख रुपए कमाते थे, वह भी नियमित रूप से नहीं; अब दोगुने से ज्यादा कमाते हैं और यह कमाई स्थिर है. वे अब वित्तीय रूप से असुरक्षित नहीं हैं.”

यह इसलिए संभव हुआ है क्योंकि अब किसानों और ग्राहकों के बीच कोई बिचौलिया नहीं है. विलास कहते हैं, “इसके अलावा, हमने मूल्य संवर्धन और उन्हें विदेशी बाजार सहित बड़े ग्राहकों के बीच बेचकर किसानों के उत्पादों का मूल्य बढ़ाया है.”

सह्याद्री के जरिए विलास ने हजारों लोगों को रोजगार भी दिया है. कंपनी के विभिन्न विभागों जैसे अनुसंधान और विकास, उत्पादन, वित्त, मानव संसाधन और खुदरा में 1200 प्रत्यक्ष कर्मचारी और दैनिक वेतनभोगी व अनुबंध श्रमिकों सहित 3500 अप्रत्यक्ष कर्मचारी काम करते हैं.

खुद मामूली परिवार से नाता रखने वाले और कठिन जीवन से उभरे विलास कहते हैं, “मैं वास्तव में खुश हूं और मुझे इस बात का बिल्कुल अभिमान नहीं है कि मैं इतने सारे लोगों को रोजगार देने और उनके जीवन को बेहतर बनाने में सक्षम रहा हूं.”

उनके पिता विष्णु शिंदे नासिक के अडगांव नामक गांव में संघर्षशील किसान थे. परिवार अंगूर, मेथी, पालक और टमाटर की खेती करता था.

विलास का जन्म नासिक के अडगांव नामक गांव के एक किसान परिवार में हुआ था.

विलास पढ़ाई में अच्छे थे. इसीलिए उन्हें स्कॉलरशिप मिलती गई और वे आगे पढ़ते गए. वे कहते हैं, “हम घर चलाने के लिए उन फल-सब्जियों को स्थानीय बाजारों में बेच देते थे. मेरे परिवार की स्थिति किसी भी अन्य संघर्षशील किसान परिवार से अलग नहीं थी.”

महाराष्ट्र के प्रमुख कृषि विश्वविद्यालय महात्मा फुले कृषि विद्यापीठ, राहुरी से विलास ने 1998 में गोल्ड मेडल के साथ कृषि में स्नातकोत्तर डिग्री पूरी की. इसके बाद खेती को पेशे के रूप में अपनाने के लिए अपने गांव लौट आए.

वे पारिवारिक खेत में अंगूर, तरबूज और मकई के बीज जैसी विभिन्न फसलें उगाते थे और उन्हें जिले के बाजार में बेच देते थे. लेकिन वे महीने में एक एकड़ खेत से मुश्किल से 10,000 रुपए का लाभ कमा पाते थे.

तब विलास ने डेयरी फार्मिंग में कदम रखा और निजी साहूकारों और बैंकों से कुछ राशि कर्ज लेकर करीब 200 गायें खरीदीं.

उन्होंने अपने खेत में एक छोटी पाश्चराइजेशन इकाई स्थापित की और नासिक में दूध बेचा. बाद में वर्मीकम्पोस्ट बनाना और बेचना भी शुरू किया, लेकिन उनमें से कोई भी लाभकारी नहीं था. एक समय उन पर 75 लाख रुपए का कर्ज हो गया था.

इस स्थिति में साल 2001 में उनकी शादी हुई. फिर उन्हें लगा कि अन्य किसानों के साथ सहयोग करना और विदेशी बाजारों तक पहुंच बनाना अच्छा विचार होगा.

लगभग 10,000 किसान अब सह्याद्री फार्म्स से जुड़े हैं.

2004 में विलास ने एक प्रोपराइटरशिप कंपनी की स्थापना की और लगभग 12 किसानों को साथ लिया. उन्होंने अंगूर उगाए और 2004 में व्यापारियों के जरिए यूरोपीय बाजार में करीब 72 मीट्रिक टन अंगूर का निर्यात किया.

स्टॉक 70-80 लाख रुपए का था, लेकिन अच्छे लाभ का उनका सपना धराशायी हो गया क्योंकि उन्हें व्यापारी से अंगूर के सिर्फ एक कंटेनर (लगभग 18 मीट्रिक टन) का पैसा मिला.

उस समय विलास ने बिचौलियों पर निर्भरता को बंद करने और उत्पादों को सीधे ग्राहकों तक पहुंचाने का फैसला किया.

विलास कहते हैं, “मैंने महसूस किया कि हमें सब्जियों और फलों के लिए अमूल जैसा मॉड्यूल बनाने की जरूरत है.” उन्होंने 2010 में लगभग 100 किसानों के साथ सह्याद्री फार्म्स की शुरुआत की.

यूरोप में उनकी अंगूर की पहली खेप अतिरिक्त रासायनिक अवशेष पाए जाने के कारण अस्वीकार कर दी गई थी. यह उनके स्टार्टअप के लिए बड़ा झटका था, लेकिन विलास हार मानने को तैयार नहीं थे.

वे कहते हैं, “जब से हमें 6.50 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है, तब से मेरा दिल टूट गया था. सह्याद्री के किसानों को मुझसे बहुत उम्मीद थी और यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई. मैं उन्हें निराश नहीं करना चाहता था, इसलिए मैंने किसानों के नुकसान की भरपाई के लिए अपनी संपत्तियां बेच दीं.”

सह्याद्री फार्म्स 1200 लोगों को रोजगार देता है. अपनी टीम के कुछ सदस्यों के साथ विलास.

यह उनके जीवन का टर्निंग प्वाइंट था. इसके बाद से कंपनी का विकास होने लगा. 2017 में उनका टर्नओवर 76.04 करोड़ रुपए था और पिछले साल यह बढ़कर 525 करोड़ रुपए हो गया.

विलास कहते हैं, “मुझे खुशी है कि मैं सह्याद्री फार्म्स के जरिए इतने सारे लोगों के जीवन को प्रभावित कर पाया. लेकिन यह किसानों के मुझ पर विश्वास और उनकी कड़ी मेहनत की बदौलत ही संभव हुआ है.” विलास के दो बच्चे हैं. 19 वर्षीय ओम शिंदे और 13 वर्षीय गौरी शिंदे.

उनकी पत्नी आरती शिंदे भी एक किसान हैं. वे अपना टिश्यू सैंपलिंग बिजनेस चलाती हैं, जिसे शुरू में विलास ने ही स्थापित किया था.

 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • Success story of three youngsters in marble business

    मार्बल भाईचारा

    पेपर के पुश्तैनी कारोबार से जुड़े दिल्ली के अग्रवाल परिवार के तीन भाइयों पर उनके मामाजी की सलाह काम कर गई. उन्होंने साल 2001 में 9 लाख रुपए के निवेश से मार्बल का बिजनेस शुरू किया. 2 साल बाद ही स्टोनेक्स कंपनी स्थापित की और आयातित मार्बल बेचने लगे. आज इनका टर्नओवर 300 करोड़ रुपए है.
  • Bharatpur Amar Singh story

    इनके लिए पेड़ पर उगते हैं ‘पैसे’

    साल 1995 की एक सुबह अमर सिंह का ध्यान सड़क पर गिरे अख़बार के टुकड़े पर गया. इसमें एक लेख में आंवले का ज़िक्र था. आज आंवले की खेती कर अमर सिंह साल के 26 लाख रुपए तक कमा रहे हैं. राजस्थान के भरतपुर से पढ़िए खेती से विमुख हो चुके किसान के खेती की ओर लौटने की प्रेरणादायी कहानी.
  • Bikash Chowdhury story

    तंगहाली से कॉर्पोरेट ऊंचाइयों तक

    बिकाश चौधरी के पिता लॉन्ड्री मैन थे और वो ख़ुद उभरते फ़ुटबॉलर. पिता के एक ग्राहक पूर्व अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर थे. उनकी मदद की बदौलत बिकाश एक अंतरराष्ट्रीय कंपनी में ऊंचे पद पर हैं. मुंबई से सोमा बैनर्जी बता रही हैं कौन है वो पूर्व क्रिकेटर.
  • Astha Jha story

    शादियां कराना इनके बाएं हाथ का काम

    आस्था झा ने जबसे होश संभाला, उनके मन में खुद का बिजनेस करने का सपना था. पटना में देखा गया यह सपना अनजाने शहर बेंगलुरु में साकार हुआ. महज 4000 रुपए की पहली बर्थडे पार्टी से शुरू हुई उनकी इवेंट मैनेटमेंट कंपनी पांच साल में 300 शादियां करवा चुकी हैं. कंपनी के ऑफिस कई बड़े शहरों में हैं. बता रहे हैं गुरविंदर सिंह
  • From roadside food stall to restaurant chain owner

    ठेला लगाने वाला बना करोड़पति

    वो भी दिन थे जब सुरेश चिन्नासामी अपने पिता के ठेले पर खाना बनाने में मदद करते और बर्तन साफ़ करते. लेकिन यह पढ़ाई और महत्वाकांक्षा की ताकत ही थी, जिसके बलबूते वो क्रूज पर कुक बने, उन्होंने कैरिबियन की फ़ाइव स्टार होटलों में भी काम किया. आज वो रेस्तरां चेन के मालिक हैं. चेन्नई से पीसी विनोज कुमार की रिपोर्ट