किराए पर बाइक मिलने में परेशानी हुई तो बाइक रेंटल सर्विस शुरू करने का आइडिया आया, 7.5 लाख रुपए निवेश वाले स्टार्ट-अप का टर्नओवर आज 7.5 करोड़ रुपए
20-May-2025
By गुरविंदर सिंह
बेंगलुरु
छुट्टियों में पुड्डुचेरी की एक ट्रिप ने बेंगलुरु के दो कॉलेज छात्रों का जीवन बदल दिया. वे लौटे और उन्होंने बाइक रेंटल कंपनी की शुरुआत की. यह कर्नाटक की पहली ऐसी कंपनी थी. यह एक ऐसी सफलता थी, जो उन्होंने राज्य के परिवहन विभाग से तमाम जरूरी मंजूरियां लेकर हासिल की.
अभिषेक चंद्रशेखर और आकाश सुरेश ने साल 2015 में जब अपना बाइक रेंटल स्टार्ट-अप 'रॉयल ब्रदर्स' शुरू किया, तब दोनों की उम्र महज 22 साल थी. यह शुरुआत उन्होंने 5 रॉयल एनफील्ड क्लासिक 350 क्रूजर बाइक से की थी. उस समय उनके पास बेंगलुरु में 800 वर्ग फुट का एक ऑफिस और 100 वर्ग फुट का एक गैरेज था.
![]() |
(बाएं से दाएं) रॉयल ब्रदर्स के सह-संस्थापक आकाश सुरेश, अभिषेक चंद्रशेखर और कुलदीप पुरोहित. |
महज दो कर्मचारियों, जो वे दोनों खुद थे, से शुरू हुई कंपनी ने इस साल 7.5 करोड़ रुपए का टर्नओवर हासिल किया है और अब कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, केरल, गुजरात, तेलंगाना और राजस्थान के 25 शहरों में इसकी मौजूदगी है.
फिलहाल उनके बेड़े में 2000 बाइक है. इनमें महंगी बीएमडब्ल्यू (प्रत्येक की कीमत 4.5 लाख रुपए) और हार्ले डेविडसन (प्रत्येक की कीमत 7 लाख रुपए) बाइक भी शामिल हैं. उनकी टीम में अब 90 कर्मचारी हैं.
शुरुआत हालांकि साधारण थी. दोनों दोस्तों को अपना स्टार्ट-अप लॉन्च करने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा. कर्नाटक में इस क्षेत्र में दोनों पहले ऐसे व्यक्ति थे, जो यह काम कर रहे थे. टू-व्हीलर रेंटल सर्विस के लिए उस समय कर्नाटक में लाइसेंस उपलब्ध नहीं था. इसलिए दोनों को शुरू से शुरुआत करनी पड़ी.
आकाश याद करते हैं, "हमने राज्य के ट्रांसपोर्ट सेक्रेटरी से मिलने की हिम्मत जुटाई और उनसे अपने प्रोजेक्ट के बारे में बात की. हमने उन्हें विस्तार से बताया कि इस सेवा से न केवल यात्रियों को सुविधा होगी, बल्कि सरकार को भी राजस्व मिलेगा. हमें उनकी प्रतिक्रिया को लेकर थोड़ा संदेह था, लेकिन संयोग से वे मददगार निकले.''
उस समय दोनों बेंगलुरु के आरवी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में पढ़ाई कर रहे थे और से ग्रैजुएशन के तीसरे साल में थे. अभिषेक मेकेनिकल इंजीनियरिंग और आकाश कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई कर रहे थे.
![]() |
रॉयल ब्रदर्स के पास 25 शहरों में 2,000 मोटरबाइक का बेड़ा है. |
दरअसल, दोनों को बाइक रेंटल सर्विस शुरू करने का आइडिया पुड्डुचेरी से आया था. वे वहां घूमने के लिए एक मोटरबाइक किराए पर लेना चाहते थे.
अभिषेक कहते हैं, "हमें एक व्यक्ति मिल गया, जिसने हमें बाइक दे दी. लेकिन उस बाइक के कोई दस्तावेज नहीं थे. उस व्यक्ति ने हमसे कहा कि रास्ते में यदि पुलिस पकड़ ले तो हम उसे फोन कर दें. बाकी सब वह देख लेगा. उस व्यक्ति ने उन्हें कोई रसीद भी नहीं दी थी.''
अभिषेक के मुताबिक, "बेंगलुरु लौटकर हमने बाइक रेंटल के लिए रिसर्च की. आश्चर्यजनक रूप से हमें मालूम पड़ा कि कर्नाटक में ऐसी एक भी कंपनी नहीं थी जो टू-व्हीलर किराए पर देती हो. हमें तत्काल बिजनेस का अवसर नजर आया. हमने तय किया कि हम यही काम करेंगे.''
अभिषेक कहते हैं, "कॉलेज की पढ़ाई खत्म होने के तुरंत बाद मई 2015 में हमने रॉयल ब्रदर्स की शुरुआत कर दी. हम कभी किसी कैंपस प्लेसमेंट में नहीं बैठे, क्योंकि हम हमेशा से उद्यमी बनना चाहते थे. हमने संचालन शुरू किए बगैर स्टार्ट-अप लॉन्च कर दिया था, क्योंकि लाइसेंस आना अभी बाकी था. हम यह नहीं जानते थे कि लाइसेंस आने में कितना समय लगेगा, लेकिन हम पूरी तरह से आश्वस्त थे कि आइडिया सफल होगा.''
![]() |
अभिषेक चंद्रशेखर ने बेंगलुरु के आरवी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से मेकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है. |
दोनों ने रॉयल बाइसन ऑटोरेंटल्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में 7.5 लाख रुपए का निवेश किया. फंड का इंतजाम उन्होंने अपने परिवारों से किया. जुलाई में उन्हें राज्य सरकार से अनुमति मिल गई और उन्होंने संचालन शुरू कर दिया.
अभिषेक कहते हैं, "हमने बिना किसी स्टाफ के काम शुरू किया था. शुरुआत में हम खुद वाहनों को साफ करते थे और डिलीवरी भी खुद ही देते थे. दस्तावेज भी हम ही लेते थे. ग्राहक सेवा लेने के लिए अपने लाइसेंस और अन्य दस्तावेज जैसे आईडी प्रूफ अपलोड कर देते थे.''
बाइक किराए से लेने का शुल्क 50 रुपए प्रति घंटा तय था. बाइक कम से कम 10 घंटे और अधिकतम 30 दिन के लिए किराए पर ली जा सकती थी. पेट्रोल ग्राहक को ही भरवाना होता है. कंपनी कोई सिक्योरिटी डिपॉजिट नहीं लेती.
राज्य में अपनी तरह का पहला स्टार्ट-अप होने से शुरुआती दिनों में उन्हें अच्छा मीडिया कवरेज मिला. इससे उन्हें अधिक बिजनेस मिला. अभिषेक कहते हैं, "हमने उसी साल अक्टूबर में बिना गियर वाली 10 स्कूटी और खरीदी, लेकिन मांग बढ़ती जा रही थी और हमारे पास अधिक वाहन खरीदने के लिए संसाधन नहीं थे.'' इस तरह उन्होंने तय किया कि वे लोगों से भी उनकी बाइक किराए पर लेंगे.
अभिषेक बताते हैं कि बाइक के मालिक को किराए की 70 प्रतिशत राशि मिलती थी. शेष राशि हम कंपनी के हिस्से के रूप में रख लेते थे.
![]() |
आकाश सुरेश ने बेंगलुरु के आरवी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई की है. |
जनवरी 2016 में, उन्होंने मैंगलुरु में एक बाइक डीलर को पहली फ्रैंचाइजी दी. रॉयल ब्रदर्स का संचालन शुरू हाेने के तीन महीने बाद जुड़े कंपनी के तीसरे सह-संस्थापक 32 वर्षीय कुलदीप पुरोहित कहते हैं, "हमने उनसे 50 हजार रुपए लिए. समझौता यह हुआ कि किराए की 80 प्रतिशत राशि वह रखेगा और 20 प्रतिशत हिस्सा हमें देगा.''
2018 तक तीनों के पास करीब 300 बाइक हो चुकी थी. उनका कामकाज कर्नाटक के 8 शहरों में फैल चुका था. जल्द ही उन्होंने आंध्र प्रदेश, केरल और तेलंगाना तक विस्तार किया.
कंपनी कोविड काल के पहले तक अच्छा काम कर रही थी. कोविड के चलते उनका कामकाज प्रभावित हुआ. इसके चलते उन्हें अपने बिजनेस में नया आयाम जोड़ने का दबाव पड़ा. यह था- बाइक लंबे समय के लिए किराए पर देना.
आकाश कहते हैं, "मासिक किराए का शुल्क करीब 3000 रुपए प्रति महीना है. यह योजना कारगर साबित हुई है क्योंकि लोग सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखने के लिए सार्वजनिक वाहनों के बदले बाइक पसंद कर रहे हैं.''
आज, फ्रैंचाइजी का शुल्क 3 से 5 लाख रुपए के बीच है. यह शहर के आकार और बिजनेस की संभावना पर निर्भर करता है.
![]() |
रॉयल ब्रदर्स के तीसरे सह-संस्थापक कुलदीप पुरोहित कंपनी से लॉन्चिंग के तीन महीने बाद जुड़े. |
बिजनेस के जोिखम के बारे में अभिषेक बताते हैं, "हमने अपनी बाइक्स में जीपीएस लगाए हैं. सभी बाइक्स का बीमा भी है. अब तक हमारी तीन बाइक्स चोरी हो चुकी हैं.''
...तो बिजनेस में उन्होंने किन चुनौतियों का सामना किया और नए उद्यमियों को उनकी क्या सलाह है? इस पर अभिषेक कहते हैं, "हमने कई चुनौतियों का सामना किया. शुरुआत में बैंकें हमें लोन देने के लिए तैयार नहीं थीं. लेकिन हमने कभी हिम्मत नहीं हारी. उद्यमियों में सफल होने की सशक्त इच्छाशक्ति होनी चाहिए और राह अपने आप खुलती जाती है.''
आप इन्हें भी पसंद करेंगे
-
इस आईटी कंपनी पर कोरोना बेअसर
पंजाब की मनदीप कौर सिद्धू कोरोनावायरस से डटकर मुकाबला कर रही हैं. उन्होंने गांव के लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए गांव में ही आईटी कंपनी शुरू की. सालाना टर्नओवर 2 करोड़ रुपए है. कोरोना के बावजूद उन्होंने किसी कर्मचारी को नहीं हटाया. बल्कि सबकी सैलरी बढ़ाने का फैसला लिया है. -
कॉस्मेटिक प्रॉडक्ट्स की मलिका
विदेश में रहकर आई मलिका को भारत में अच्छी गुणवत्ता के बेबी केयर प्रॉडक्ट और अन्य कॉस्मेटिक्स नहीं मिले तो उन्हें ये सामान विदेश से मंगवाने पड़े. इस बीच उन्हें आइडिया आया कि क्यों न देश में ही टॉक्सिन फ्री प्रॉडक्ट बनाए जाएं. महज 15 लाख रुपए से उन्होंने अपना स्टार्टअप शुरू किया और देखते ही देखते वे मिसाल बन गईं. अब तक उनकी कंपनी को दो बार बड़ा निवेश मिल चुका है. कंपनी का टर्नओवर 4 साल में ही 100 करोड़ रुपए काे छूने के लिए तैयार है. बता रही हैं सोफिया दानिश खान. -
इनके लिए पेड़ पर उगते हैं ‘पैसे’
साल 1995 की एक सुबह अमर सिंह का ध्यान सड़क पर गिरे अख़बार के टुकड़े पर गया. इसमें एक लेख में आंवले का ज़िक्र था. आज आंवले की खेती कर अमर सिंह साल के 26 लाख रुपए तक कमा रहे हैं. राजस्थान के भरतपुर से पढ़िए खेती से विमुख हो चुके किसान के खेती की ओर लौटने की प्रेरणादायी कहानी. -
स्नैक्स किंग
नागपुर के मनीष खुंगर युवावस्था में मूंगफली चिक्की बार की उत्पादन ईकाई लगाना चाहते थे, लेकिन जब उन्होंने रिसर्च की तो कॉर्न स्टिक स्नैक्स उन्हें बेहतर लगे. यहीं से उन्हें नए बिजनेस की राह मिली. वे रॉयल स्टार स्नैक्स कंपनी के जरिए कई स्नैक्स का उत्पादन करने लगे. इसके बाद उन्होंने पीछे पलट कर नहीं देखा. पफ स्नैक्स, पास्ता, रेडी-टू-फ्राई 3डी स्नैक्स, पास्ता, कॉर्न पफ, भागर पफ्स, रागी पफ्स जैसे कई स्नैक्स देशभर में बेचते हैं. मनीष का धैर्य और दृढ़ संकल्प की संघर्ष भरी कहानी बता रही हैं सोफिया दानिश खान -
फर्नीचर के फरिश्ते
आवश्यकता आविष्कार की जननी है. यह दिल्ली के गौरव और अंकुर कक्कड़ ने साबित किया है. अंकुर नए घर के लिए फर्नीचर तलाश रहे थे, लेकिन मिला नहीं. तभी देश छोड़कर जा रहे एक राजनयिक का लग्जरी फर्नीचर बेचे जाने के बारे में सुना. उसे देखा तो एक ही नजर में पसंद आ गया. इसके बाद दोनों ने प्री-ओन्ड फर्नीचर की खरीद और बिक्री को बिजनेस बना लिया. 3.5 लाख से शुरू हुआ बिजनेस 14 करोड़ का हो चुका है. एकदम नए तरीका का यह बिजनेस कैसे जमा, बता रही हैं उषा प्रसाद.