Milky Mist

Friday, 19 April 2024

मल्टीनेशनल कंपनी की 1 करोड़ के पैकेज वाली नौकरी छोड़ 5 लाख रुपए से पोल्ट्री फार्म खोला, 2 साल में टर्नओवर 1.2 करोड़ रुपए पहुंचा

19-Apr-2024 By उषा प्रसाद
चेन्नई

Posted 30 Dec 2020

जब किसी व्यक्ति का करियर चरम पर होता है, तो कॉरपोरेट संस्कृति से सम्मोहित होना आम बात होती है.


जीवन में तरक्की की सीढ़ी बहुत जल्द चढ़ने वाले 40 वर्षीय सेंथिलवेला के. ने आईबीएम की नौकरी ऐसे समय छोड़ी, जब उनकी सालाना कमाई 1 करोड़ रुपए से ऊपर थी और वे और पोल्ट्री फार्म के बिजनेस में कूद गए.

जादुई शक्ति वाला यह व्यक्ति अब पोल्ट्री फार्मर के रूप में अपनी चमक बिखेर रहा है.

सेंथिलवेला ने अच्छे-खासे कॉरपाेरेट करियर को छोड़ा और पोल्ट्री फार्मिंग करने लगे. (सभी फोटो : विशेष व्यवस्था से)

सेंथिलवेला ने 2018 में 5 लाख रुपए के निवेश से चेन्नई से 70 किमी दूर चेंगलपेट जिले के तिरुकालुकुंद्रम के पास एक गांव में निर्मला नेचर फार्म नाम से पोल्ट्री फार्म लगाया. आज वे सालाना 1.2 करोड़ रुपए कमाई कर रहे हैं.

सेंथिलवेला मुर्गियों की चार नस्ल पालते हैं. पहली सिरुविदाई. यह मूल रूप से तमिलनाडु की नस्ल है. दूसरी निकोबारी. यह खालिस अंडमान और निकोबार आइलैंड्स की नस्ल है. तीसरी नैकेड नेक. यह नस्ल कर्नाटक और आंध्र प्रदेश की है और चौथी कड़कनाथ या काली मासी. काले रंग की यह मुर्गी मूल रूप से मध्य प्रदेश के आदिवासी पालते हैं. हालांकि अब देशभर के पोल्ट्री फार्म में यह देखी जाती है.

कोविड-19 महामारी के बावजूद 45 वर्षीय सेंथिलवेला का बिजनेस 2020-21 में 20 प्रतिशत की दर से बढ़ा. वे कहते हैं, "मैंने पोल्ट्री के कारोबार को दो कारणों से चुना. पहला, आज की दुनिया में बहुत सी देसी नस्ल गुम हो चुकी है और उन्हें पुनर्जीवित करने की जरूरत है. और दूसरा, मैं कम से कम अपने परिवार या आने वाली पीढ़ी को अच्छा भोजन उपलब्ध कराना चाहता था.''

साल 2015 में नौकरी छोड़ने के बाद लगभग दो साल सेंथिलवेला ने सरकार और निजी एजेंसियों द्वारा आयोजित डेयरी, पोल्ट्री, फिशरीज और इंटीग्रेटेड फार्मिंग जैसे क्षेत्रों के प्रशिक्षण कार्यक्रमों में जाते रहे.

आखिर, सेंथिलवेला ने एक दोस्त से डेढ़ एकड़ जमीन लीज पर लेकर अपना पोल्ट्री फार्म शुरू किया. उन्हाेंने 450 वर्ग फुट के शेड में 200 चूजों को रखा. उन्होंने संकल्प लिया कि वे चूजों पर एंटीबायोटिक्स या वैक्सीन का इस्तेमाल नहीं करेंगे. वे केवल देसी नस्लों को ही पालेंगे.

सेंथिलवेला के तीन एकड़ के फार्म में 11,000 मुर्गियां हैं. फोटो में दिख रही काली मुर्गियां हैं.


सेंथिलवेला फार्म में लगातार पैसा लगाते रहे, जो अब तीन एकड़ से अधिक क्षेत्र में फैल चुका है. इसमें 7000 वर्ग फुट का शेड है. वे 11,000 मुर्गियों को पालते हैं और करीब 40,000 अंडों, 2,500 जिंदा मुर्गियों और 1,500 चूजे प्रति महीना बेच देते हैं.

उन्हें पहले स्थानीय बाजार से समझौता करना पड़ता था. वह अब दूर-दूर तक फैल चुका है. इसमें तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल और आंध्र प्रदेश के 50 से 60 थोक व्यापारी शामिल हैं. तमिलनाडु की कुछ शीर्ष होटल चेन और हॉस्पिटल भी उनके ग्राहक हैं.

वे काली मुर्गियों के अंडे 30 रुपए के प्रीमियम दाम पर बेचते हैं और दूसरी देसी नस्लों के अंडे 15 रुपए में बेचते हैं.

जिंदा देसी मुर्गियां 350 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बेची जाती हैं, जबकि काली मुर्गियां 750 रुपए प्रति किलो बिकती हैं. हर मुर्गी का वजन करीब डेढ़ किलो होता है. चूजे 65 रुपए में बिकते हैं. सेंथिलवेला अपने मुर्गियों और अंडे के कुल कारोबार की 25 प्रतिशत काली मुर्गियां बेच लेते हैं.

सेंथिलवेला का बिजनेस फलता-फूलता दिखाई देता है. हालांकि उन्हें लगता है कि उन्होंने इसका केवल एक छोर ही थामा है. उनका अनुमान है कि वे चेन्नई की मांग की केवल पांच से छह प्रतिशत ही पूर्ति कर पा रहे हैं. यहां बहुत बड़ा मार्केट है, जो उनका इंतजार कर रहा है.

मूल रूप से कोयंबटूर के और अब चेन्नई में बस गए कंप्यूटर साइंस ग्रैजुएट सेंथिलवेला कहते हैं, “बाजार में बहुत मांग है, जिसकी पूर्ति नहीं हो पा रही है. इसलिए मैं मुर्गी और अंडों के अधिक उत्पादन और थोक में बेचने के लिए मिलती-जुलती सोच के किसानों को को-ऑपरेटिव के जरिये जोड़ने की योजना बना रहा हूं.''

सेंथिलवेला ने सिंगापुर की एक कंपनी में काम करते हुए स्नातकोत्तर की डिग्री ऑस्ट्रेलिया की न्यू कैसल यूनिवर्सिटी से इंफॉरमेशन टेक्नोलॉजी में ली थी. वर्ष 2003 में उन्होंने अमेरिका में मोटोरोला कंपनी की हैंडसेट डिविजन में टेक्निकल कंसल्टेंट के रूप में जॉइन किया.
दुनिया के शीर्ष पर : एमएनसी में काम करने के दिनों में सेंथिलवेला.


2005 के अंत तक सेंथिलवेला ने कंपनी छोड़ दी और बेंगलुरु में सस्केन टेक्नोलॉजीस जॉइन की. वहां उनका पहला प्रोजेक्ट जापान की पैनासोनिक मोबाइल कॉरपोरेशन के लिए था.

नवंबर 2006 में उन्होंने वेट्रिकोडी से विवाह किया. उन्होंने फ्रांसीसी डिफेंस डिपार्टमेंट के एक प्रोजेक्ट पर काम करते हुए पत्नी के साथ पेरिस में करीब एक साल बिताया.

सेंथिलवेला याद करते हैं, "हम अपने पहले बेटे आदित्य के जन्म के लिए चेन्नई आए थे. वेट्रिकोडी भारत में ही रुकना चाहती थी, इसलिए मैं पेरिस गया और बॉस को किसी तरह मनाया ताकि वे मुझे छोड़ दें. मैं भारत लौटा और 2008 में मैंने सस्केन टेक्नोलॉजीस से इस्तीफा दे दिया क्योंकि वे मुझे भारत में कोई उपयुक्त पद नहीं दे पा रहे थे.''

सेंथिलवेला ने चेन्नई में असिस्टेंट वॉइस प्रेसिडेंट-वेल्थ मैनेजमेंट के रूप में सिटीबैंक जॉइन किया. उनके पास एशिया पेसिफिक का कार्यभार था, जिसके अंतर्गत 18 देश थे. दो साल बाद उन्हें वाइस प्रेसिडेंट बना दिया गया.

2014 में, उन्होंने सिटीबैंक की नौकरी छोड़ दी और डायरेक्टर-टेलीकम्यूनिकेशन डेवलपमेंट के रूप में आईबीएम कंपनी जॉइन की. एक साल बाद उन्होंने आईबीएम कंपनी भी छोड़ दी क्योंकि अब कॉरपोरेट करियर से उनका मोहभंग हो गया था.

उनका रुझान कृषि क्षेत्र की तरफ हुआ और वे ऑर्गेनिक फार्मिंग की किताबें पढ़ने लगे.
सप्ताह के दिनों में सेंथिलवेला फार्म पर रुकते हैं. सप्ताहांत में चेन्नई आ जाते हैं.

सेंथिलवेला याद करते हैं, "थोड़े समय बाद मेरे दूसरे बेटे का जन्म हुआ. कृषि क्षेत्र में जाने के लिए अपनी पत्नी को समझाने में बहुत मुश्किल आई.'' हालांकि सेंथिलवेला ने अन्य कृषि गतिविधियों के बजाय पोल्ट्री को चुना.

सेंथिलवेला ने जहां धीरे-धीरे अपना काम और ग्राहक बढ़ाए, वहीं वे अपनी जैसी सोच वाले किसानों के साथ मिलकर पोल्ट्री को-ऑपरेटिव शुरू करने पर भी गंभीरता से विचार कर रहे हैं.

वे कहते हैं, "मैं कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग जैसा कुछ विकसित करना चाहता हूं. मैं किसानों को चूजे, उनका भोजन उपलब्ध कराऊंगा और उन्हें पालने की प्रक्रिया भी बताऊंगा. इससे उन्हें अपनी आमदनी बढ़ाने में मदद मिलेगी और ग्रामीण रोजगार भी बढ़ेगा.''

सेंथिलवेला कहते हैं, "यदि कोई छोटा किसान अपनी 10 से 15 प्रतिशत जमीन पर देसी नस्ल के 50 चूजे पाले, तो वह आसानी से रोज करीब 400 रुपए कमा सकता है. डिजिटल मीडिया के जरिये मैं अधिक से अधिक लोगों तक पहुंच सकता हूं और उनकी मदद कर सकता हूं.''

सेंथिलवेला के फार्म को तमिलनाडु यूनिवर्सिटी ऑफ वेटरनरी एंड एनिमल साइंसेज (टीएएनयूवीएएस) 'वन हेल्थ पोल्ट्री हब' प्रोजेक्ट के तहत मॉडल फार्म की मान्यता मिली है. इस प्रोजेक्ट में यूके नोडल देश है.

इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत दुनिया के बारह देशों को देसी नस्लों को पुनर्जीवित करने के लिए चुना गया है. भारत में गुजरात और तमिलनाडु की पहचान की गई है.

यही नहीं, टीएएनयूवीएएस के पोल्ट्री रिसर्च स्टेशन के प्रोफेसर सेंथिलवेला के फार्म के साथ काम भी कर रहे हैं. वे सिरुवेदाई नस्ल के लिए जीआई टैग लेने पर शाेध कर रहे हैं.
परिवार के साथ सेल्फी : सेंथिलवेला अपनी पत्नी और बच्चों के साथ.


सेंथिलवेला ने आमदनी बढ़ाने के लिए अपने फार्म पर ऑर्गेनिक मोरिंगा और नीबू भी उगाना शुरू किया है. चार स्थायी श्रमिक उनके फार्म पर काम करते हैं. जरूरत पड़ने पर दिहाड़ी मजदूरों को भी बुला लेते हैं.

सेंथिलवेला कहते हैं कि उन्हें महाराष्ट्र से भी लोगों के फोन आ रहे हैं. वे पोल्ट्री फार्मिंग का बिजनेस करना चाहते हैं. सेंथिलवेला और उनकी पत्नी फार्म पर हफ्ते के पांच दिन रहते हैं. वीकेंड पर चेन्नई चले जाते हैं, जहां आवासीय स्कूल में उनके बच्चे पढ़ रहे हैं.

सेंथिलवेला कहते हैं, "फार्मिंग को अपनाने के बाद उनकी जीवनशैली बदल गई है. कॉरपोरेट सेक्टर में हम दूसरों के लिए जीना शुरू करते हैं. वह अवरोध यहां टूट गया है.''


 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • Juicy Chemistry story

    कॉस्मेटिक में किया कमाल

    कोयंबटूर के युगल प्रितेश और मेघा अशर ने छोटे बिजनेस से अपनी उद्यमिता का सफर शुरू किया. बीच में दिवालिया हाेने की स्थिति बनी. पत्नी ने शादियों में मेहंदी बनाने तक के ऑर्डर लिए. धीरे-धीरे गाड़ी पटरी पर आने लगी. स्कीनकेयर प्रोडक्ट्स का बिजनेस चल निकला. 5 हजार रुपए के निवेश से शुरू हुए बिजनेस का टर्नओवर अब 25 करोड़ रुपए सालाना है. बता रही हैं सोफिया दानिश खान.
  • Success Story of Gunwant Singh Mongia

    टीएमटी सरियों का बादशाह

    मोंगिया स्टील लिमिटेड के मालिक गुणवंत सिंह की जिंदगी में कई उतार-चढ़ाव आए, लेकिन उनका सिर्फ एक ही फलसफा रहा-‘कभी उम्मीद मत छोड़ो. विश्वास करो कि आप कर सकते हो.’ इसी सोच के बलबूते उन्‍होंने अपनी कंपनी का टर्नओवर 350 करोड़ रुपए तक पहुंचा दिया है.
  • Success story of three youngsters in marble business

    मार्बल भाईचारा

    पेपर के पुश्तैनी कारोबार से जुड़े दिल्ली के अग्रवाल परिवार के तीन भाइयों पर उनके मामाजी की सलाह काम कर गई. उन्होंने साल 2001 में 9 लाख रुपए के निवेश से मार्बल का बिजनेस शुरू किया. 2 साल बाद ही स्टोनेक्स कंपनी स्थापित की और आयातित मार्बल बेचने लगे. आज इनका टर्नओवर 300 करोड़ रुपए है.
  • 3 same mind person finds possibilities for Placio start-up, now they are eyeing 100 crore business

    सपनों का छात्रावास

    साल 2016 में शुरू हुए विद्यार्थियों को उच्च गुणवत्ता के आवास मुहैया करवाने वाले प्लासिओ स्टार्टअप ने महज पांच महीनों में 10 करोड़ रुपए कमाई कर ली. नई दिल्ली से पार्थो बर्मन के शब्दों में जानिए साल 2018-19 में 100 करोड़ रुपए के कारोबार का सपना देखने वाले तीन सह-संस्थापकों का संघर्ष.
  • how a boy from a small-town built a rs 1450 crore turnover company

    जिगर वाला बिज़नेसमैन

    सीके रंगनाथन ने अपना बिज़नेस शुरू करने के लिए जब घर छोड़ा, तब उनकी जेब में मात्र 15 हज़ार रुपए थे, लेकिन बड़ी विदेशी कंपनियों की मौजूदगी के बावजूद उन्होंने 1,450 करोड़ रुपए की एक भारतीय अंतरराष्ट्रीय कंपनी खड़ी कर दी. चेन्नई से पीसी विनोज कुमार लेकर आए हैं ब्यूटी टायकून सीके रंगनाथन की दिलचस्प कहानी.